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आखिर दीपावली में क्यों मंडराता है उल्लुओं की जान पर खतरा? पढ़ें पूरी खबर

दीपावली के दिन उल्लू की बलि देने को गलत बताते हुए ज्योतिषाचार्य प्रतीक मिश्रपुरी कहते हैं कि इन दिन लकड़ी के बने उल्लू की पूजा करनी चाहिए.

उल्लू की बली
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Published : Oct 25, 2019, 2:58 PM IST

Updated : Oct 25, 2019, 4:04 PM IST

हरिद्वार: हिंदू शास्त्रों में दीपावली के दिन महालक्ष्मी की पूजा करने का विशेष महत्व है. इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने के साथ ही उनकी सवारी उल्लू की भी पूजा होती है. मान्यता है कि दीपावली के दिन उल्लू की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और धन-धान्य की भी प्राप्ति होती है. यही मान्यता आज उल्लुओं की जान की दुश्मन बनी हुई है.

दरअसल, इस दिन तंत्र साधना करने वाले तांत्रिक भी उल्लू की पूजा करते हैं और इसके लिए वह जिंदा उल्लू का इस्तेमाल करते हैं. मान्यता है कि दीपावली के दिन अगर एक खास मुहूर्त में उल्लू की पूजा की जाए तो व्यक्ति को कई तरह की सिद्धियां प्राप्त होती हैं. मगर ज्योतिष शास्त्रों में जिंदा उल्लू के बजाए लकड़ी के बने उल्लू की पूजा करने को सर्वोपरि बताया है.

पढे़ं- बाजार में बढ़ रही पीतल, कांसे से बने बर्तनों की डिमांड, प्लास्टिक से तौबा कर रहे लोग

ज्योतिषाचार्य प्रतीक मिश्रपुरी का कहना है शास्त्रों में दीपावली पर उल्लू की पूजा करने के पीछे कुछ कथाएं जुड़ी हुई हैं. वे कहते हैं कि एक बार गौतम ऋषि को अपनी आने वाली संतानों की चिंता हुई. जिसके बाद उन्होंने उल्लू तंत्र की रचना की. ज्योतिषाचार्य प्रतीक मिश्र पूरी का कहना है कि गौतम ऋषि के वंशज विशेष तौर पर दीपावली के दिन उल्लू की पूजा करते हैं.

इस पूजा को करने से उनके पास भी कभी धन की कमी नहीं होती. लेकिन वे कहते हैं कि गौतम गोत्र के लोग जिंदा उल्लू की पूजा नहीं करते हैं, वे काष्ठ की लकड़ी से बने उल्लू की पूजा करते हैं. लेकिन कुछ तांत्रिक इस दिन उल्लू की तंत्र पूजा करते हैं. उल्लू के अलग-अलग अंगों से तांत्रिक कर्मकांड किया जाता है. बताया जाता है कि उल्लू अपनी गर्दन 360 डिग्री पूरी घुमा लेता है, ऐसा करने वाला उल्लू पूरे संसार में अकेला जीव है. कुछ तांत्रिक दीपावली की रात मनोकामनाओं या फिर सिद्धियों के लिए उल्लू की बली देते हैं.

दीपावली में मंडराता है उल्लुओं की जान पर खतरा

ज्योतिषाचार्य प्रतीक मिश्रपुरी का कहना है कि पूजा के लिए उल्लू को मारना उचित नहीं है. तंत्र-मंत्र और पूजा के लिए काष्ठ यानी लकड़ी के बने उल्लू की पूजा की जानी चाहिए. काष्ठ के उल्लू की पूजा से भी व्यक्ति की हर तरह की मनोकामना की पूर्ति होती है. वे कहते हैं कि उल्लू की पूजा सिर्फ दीपावली के दिन ही होती है. दीपावली की रात को इसमें असीम शक्ति उत्पन्न हो जाती हैं. लेकिन इसका तामसिक प्रयोग नहीं करना चाहिए.

वे बताते हैं कि अगर कहीं उल्लू दिख जाए तो उसको प्रणाम करना चाहिए, उसको पकड़कर नहीं लाना चाहिए. कहा जाता है कि उल्लू कई भाषाओं में बोल सकता है. जिस कारण लोग सोचते हैं कि इसकी भाषा को समझकर उनको कोई बड़ा खजाना मिल जाएगा, लेकिन शास्त्रों में ऐसा कुछ भी नहीं है. वे कहते हैं कि गौतम गोत्र के लोग आज भी दीपावली के दिन उल्लू की पूजा करते हैं. लेकिन उनके द्वारा जिंदा उल्लू की पूजा नहीं की जाती, बल्कि दीपावली के दिन काष्ठ या लकड़ी के बने उल्लू की पूजा की जाती है.

हरिद्वार: हिंदू शास्त्रों में दीपावली के दिन महालक्ष्मी की पूजा करने का विशेष महत्व है. इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने के साथ ही उनकी सवारी उल्लू की भी पूजा होती है. मान्यता है कि दीपावली के दिन उल्लू की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और धन-धान्य की भी प्राप्ति होती है. यही मान्यता आज उल्लुओं की जान की दुश्मन बनी हुई है.

दरअसल, इस दिन तंत्र साधना करने वाले तांत्रिक भी उल्लू की पूजा करते हैं और इसके लिए वह जिंदा उल्लू का इस्तेमाल करते हैं. मान्यता है कि दीपावली के दिन अगर एक खास मुहूर्त में उल्लू की पूजा की जाए तो व्यक्ति को कई तरह की सिद्धियां प्राप्त होती हैं. मगर ज्योतिष शास्त्रों में जिंदा उल्लू के बजाए लकड़ी के बने उल्लू की पूजा करने को सर्वोपरि बताया है.

पढे़ं- बाजार में बढ़ रही पीतल, कांसे से बने बर्तनों की डिमांड, प्लास्टिक से तौबा कर रहे लोग

ज्योतिषाचार्य प्रतीक मिश्रपुरी का कहना है शास्त्रों में दीपावली पर उल्लू की पूजा करने के पीछे कुछ कथाएं जुड़ी हुई हैं. वे कहते हैं कि एक बार गौतम ऋषि को अपनी आने वाली संतानों की चिंता हुई. जिसके बाद उन्होंने उल्लू तंत्र की रचना की. ज्योतिषाचार्य प्रतीक मिश्र पूरी का कहना है कि गौतम ऋषि के वंशज विशेष तौर पर दीपावली के दिन उल्लू की पूजा करते हैं.

इस पूजा को करने से उनके पास भी कभी धन की कमी नहीं होती. लेकिन वे कहते हैं कि गौतम गोत्र के लोग जिंदा उल्लू की पूजा नहीं करते हैं, वे काष्ठ की लकड़ी से बने उल्लू की पूजा करते हैं. लेकिन कुछ तांत्रिक इस दिन उल्लू की तंत्र पूजा करते हैं. उल्लू के अलग-अलग अंगों से तांत्रिक कर्मकांड किया जाता है. बताया जाता है कि उल्लू अपनी गर्दन 360 डिग्री पूरी घुमा लेता है, ऐसा करने वाला उल्लू पूरे संसार में अकेला जीव है. कुछ तांत्रिक दीपावली की रात मनोकामनाओं या फिर सिद्धियों के लिए उल्लू की बली देते हैं.

दीपावली में मंडराता है उल्लुओं की जान पर खतरा

ज्योतिषाचार्य प्रतीक मिश्रपुरी का कहना है कि पूजा के लिए उल्लू को मारना उचित नहीं है. तंत्र-मंत्र और पूजा के लिए काष्ठ यानी लकड़ी के बने उल्लू की पूजा की जानी चाहिए. काष्ठ के उल्लू की पूजा से भी व्यक्ति की हर तरह की मनोकामना की पूर्ति होती है. वे कहते हैं कि उल्लू की पूजा सिर्फ दीपावली के दिन ही होती है. दीपावली की रात को इसमें असीम शक्ति उत्पन्न हो जाती हैं. लेकिन इसका तामसिक प्रयोग नहीं करना चाहिए.

वे बताते हैं कि अगर कहीं उल्लू दिख जाए तो उसको प्रणाम करना चाहिए, उसको पकड़कर नहीं लाना चाहिए. कहा जाता है कि उल्लू कई भाषाओं में बोल सकता है. जिस कारण लोग सोचते हैं कि इसकी भाषा को समझकर उनको कोई बड़ा खजाना मिल जाएगा, लेकिन शास्त्रों में ऐसा कुछ भी नहीं है. वे कहते हैं कि गौतम गोत्र के लोग आज भी दीपावली के दिन उल्लू की पूजा करते हैं. लेकिन उनके द्वारा जिंदा उल्लू की पूजा नहीं की जाती, बल्कि दीपावली के दिन काष्ठ या लकड़ी के बने उल्लू की पूजा की जाती है.

Intro:हिंदू शास्त्रों में दीपावली के दिन महालक्ष्मी की पूजा करने का विशेष महत्व माना जाता है इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने का अलग विधान है मगर दीपावली के दिन ही मां लक्ष्मी की सवारी उल्लू की भी पूजा की जाती है कहा जाता है दीपावली के दिन उल्लू की पूजा करने से सभी मनोकामना सिद्ध हो जाते हैं और धन-धान्य की प्राप्ति होती है दीपावली पर उल्लू की पूजा करने को लेकर अंधविश्वास भी है क्योंकि इस दिन तंत्र साधना करने वाले तांत्रिक भी उल्लू की पूजा करते हैं और इसके लिए वह जिंदा उल्लू का इस्तेमाल करते हैं मगर ज्योतिष शास्त्रों में जिंदा उल्लू की पूजा नहीं काष्ठ की लकड़ी के बने उल्लू की पूजा करने को सर्वोपरि बताया है आखिर क्यों की जाती है दीपावली के दिन उल्लू की पूजा देखे हमारी यह खास रिपोर्टBody:हिन्दू शास्त्रों में दीपावली के दिन एक विशेष मुहूर्त में उल्लुओं की पूजा और उल्लू के विभिन्न अंगों का तंत्र मंत्र में प्रयोग बताया गया है ऐसा अंधविश्वास है कि दीपावली के दिन यदि खास मुहूर्त में उल्लू की पूजा की जाए और उसके अलग अलग अंगों के साथ तांत्रिक पूजा की जाए तो व्यक्ति को लक्ष्य के साथ साथ कई तरह की सिद्धियां प्राप्त होती है भारतीय ज्योतिष में भी उल्लू पूजा का विधान बताया गया है ज्योतिषाचार्य प्रतीक मिश्रपुरी का कहना है कि दीपावली पर उल्लू की पूजा के पीछे एक कहानी है जब भरगु ऋषि ने दक्ष प्रजापति का यज्ञ संपन्न कराया भगवान शिव उनसे नाराज हो गए भरगु ऋषि भगवान विष्णु के भी सीने पर लात मारी इससे भगवान विष्णु और लक्ष्मी भी उनसे नाराज हो गई भरघू संगीता की रचना की और कहा कि जिसकी ब्राह्मण के पास यह भरघू संगीता होगी वह लक्ष्मी संपन्न होगा वही एक कहानी यह भी है कि गौतम ऋषि को अपनी आने वाली संतानों की चिंता हुई तब गौतम ऋषि के पुत्र प्रथू उन्होंने उल्लू तंत्र की संरचना की उन्होंने कहा कि जो भी उल्लू की पूजा मेरे गोत्र के लोग करेंगे उनके पास कभी भी धन की कमी नहीं होगी इसी लिए गौतम गोत्र के लोग दिवाली की रात को उल्लू की पूजा करते हैं मगर हम जिंदा उल्लू की पूजा नहीं करते हैं काष्ठ की लकड़ी से बने उल्लू की पूजा करते है मगर तांत्रिक लोग इस दिन उल्लू की तंत्र पूजा करते हैं आंख से वशीकरण उल्लू के पंजे से मारण पंखों से स्तंभन और उल्लू के कई अंगों से सठकर्म का प्रयोग करते हैं कहा जाता है उल्लू अपनी गर्दन 360 डिग्री पर पूरी घुमा लेता है ऐसा जंतु सिर्फ उल्लू है पूरे संसार में और कोई नहीं है मां लक्ष्मी का यह वाहन कहलाया जाता है दिवाली की रात को तांत्रिक लोग उल्लू की बली देते है मगर इस तरीके से धन अर्जित किया जाए तो वह धन किसी काम नहीं आता

बाइट--प्रतीक मिश्रपुरी----ज्योतिषचार्य

उलूक़ तंत्र में गौतम ऋषि द्वारा दीपावली के दिन उल्लू की पूजा का विधान बताया गया है इसी तरह तंत्र शास्त्र में भी अलग अलग मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए उल्लू की अलग अलग तरह से पूजा का विधान है ज्योतिषाचार्य प्रतीक मिश्रपुरी का कहना है कि पूजा के लिए उल्लू को मारना उचित नही है तंत्र मंत्र और पूजा के लिए काष्ठ यानी लकड़ी के बने उल्लू की पूजा की जानी चाहिए काष्ठ के उल्लू की पूजा से भी व्यक्ति की हर तरह की मनोकामना की पूर्ति होती है उल्लू की पूजा सिर्फ दीपावली के दिन ही होती है क्योंकि यह रात्रि और तामसिक प्राणी है इसलिए किसी व्यक्ति को यह दिख भी जाता है तो अपशकुन माना जाता है दीपावली की रात को इसमें असीम शक्ति उत्पन्न हो जाती है कि आपके द्वारा की गई पूजा से आपकी सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है मगर इसका तामसिक प्रयोग ना करें अगर आपको कहीं उल्लू दिख जाए तो उसको प्रणाम करें लेकिन उसको पकड़कर नहीं लाना चाहिए उल्लू कई भाषाओं में बोल सकता है और लोग सोचते हैं इसकी भाषा को समझ कर उनको खजाना मिल जाएगा मगर ऐसा कुछ भी नहीं है सिर्फ लक्ष्मी पूजा मैं उल्लू की पूजा करने का विधान कहां गया है मगर वह भी दूर से पूजा करने का

बाइट--प्रतीक मिश्रपुरी----ज्योतिषचार्य Conclusion:मां लक्ष्मी की सवारी उल्लू रात्रि और तामसिक प्राणी होता है उल्लू को देखना लोग अपशगुन मानते हैं मगर दीपावली के दिन उल्लू में असीम शक्ति उत्पन्न हो जाती है और इसी को देखते हुए दीपावली के दिन उल्लू की पूजा करने का विधान है मगर तंत्र साधना करने वाले तांत्रिक उल्लू को पकड़कर उसके अंगों की अलग-अलग पूजा करते हैं गौतम ऋषि के पुत्र द्वारा उल्लू तंत्र की रचना सिर्फ अपने आने वाले भविष्य को उज्जवल बनाने को लेकर की गई थी ना कि उल्लू को तंत्र सिद्धि करने के लिए मारने की तभी तो गौतम गोत्र के लोग आज भी दीपावली के दिन उल्लू की पूजा करते हैं मगर उनके द्वारा जिंदा उल्लू की पूजा नहीं की जाती अगर जिंदा उल्लू दिख भी जाए तो उनको प्रणाम करते है और दीपावली के दिन काष्ठ की लकड़ी के बने उल्लू की पूजा करते हैं
Last Updated : Oct 25, 2019, 4:04 PM IST
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