हरिद्वार: हिंदू शास्त्रों में दीपावली के दिन महालक्ष्मी की पूजा करने का विशेष महत्व है. इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने के साथ ही उनकी सवारी उल्लू की भी पूजा होती है. मान्यता है कि दीपावली के दिन उल्लू की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और धन-धान्य की भी प्राप्ति होती है. यही मान्यता आज उल्लुओं की जान की दुश्मन बनी हुई है.
दरअसल, इस दिन तंत्र साधना करने वाले तांत्रिक भी उल्लू की पूजा करते हैं और इसके लिए वह जिंदा उल्लू का इस्तेमाल करते हैं. मान्यता है कि दीपावली के दिन अगर एक खास मुहूर्त में उल्लू की पूजा की जाए तो व्यक्ति को कई तरह की सिद्धियां प्राप्त होती हैं. मगर ज्योतिष शास्त्रों में जिंदा उल्लू के बजाए लकड़ी के बने उल्लू की पूजा करने को सर्वोपरि बताया है.
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ज्योतिषाचार्य प्रतीक मिश्रपुरी का कहना है शास्त्रों में दीपावली पर उल्लू की पूजा करने के पीछे कुछ कथाएं जुड़ी हुई हैं. वे कहते हैं कि एक बार गौतम ऋषि को अपनी आने वाली संतानों की चिंता हुई. जिसके बाद उन्होंने उल्लू तंत्र की रचना की. ज्योतिषाचार्य प्रतीक मिश्र पूरी का कहना है कि गौतम ऋषि के वंशज विशेष तौर पर दीपावली के दिन उल्लू की पूजा करते हैं.
इस पूजा को करने से उनके पास भी कभी धन की कमी नहीं होती. लेकिन वे कहते हैं कि गौतम गोत्र के लोग जिंदा उल्लू की पूजा नहीं करते हैं, वे काष्ठ की लकड़ी से बने उल्लू की पूजा करते हैं. लेकिन कुछ तांत्रिक इस दिन उल्लू की तंत्र पूजा करते हैं. उल्लू के अलग-अलग अंगों से तांत्रिक कर्मकांड किया जाता है. बताया जाता है कि उल्लू अपनी गर्दन 360 डिग्री पूरी घुमा लेता है, ऐसा करने वाला उल्लू पूरे संसार में अकेला जीव है. कुछ तांत्रिक दीपावली की रात मनोकामनाओं या फिर सिद्धियों के लिए उल्लू की बली देते हैं.
ज्योतिषाचार्य प्रतीक मिश्रपुरी का कहना है कि पूजा के लिए उल्लू को मारना उचित नहीं है. तंत्र-मंत्र और पूजा के लिए काष्ठ यानी लकड़ी के बने उल्लू की पूजा की जानी चाहिए. काष्ठ के उल्लू की पूजा से भी व्यक्ति की हर तरह की मनोकामना की पूर्ति होती है. वे कहते हैं कि उल्लू की पूजा सिर्फ दीपावली के दिन ही होती है. दीपावली की रात को इसमें असीम शक्ति उत्पन्न हो जाती हैं. लेकिन इसका तामसिक प्रयोग नहीं करना चाहिए.
वे बताते हैं कि अगर कहीं उल्लू दिख जाए तो उसको प्रणाम करना चाहिए, उसको पकड़कर नहीं लाना चाहिए. कहा जाता है कि उल्लू कई भाषाओं में बोल सकता है. जिस कारण लोग सोचते हैं कि इसकी भाषा को समझकर उनको कोई बड़ा खजाना मिल जाएगा, लेकिन शास्त्रों में ऐसा कुछ भी नहीं है. वे कहते हैं कि गौतम गोत्र के लोग आज भी दीपावली के दिन उल्लू की पूजा करते हैं. लेकिन उनके द्वारा जिंदा उल्लू की पूजा नहीं की जाती, बल्कि दीपावली के दिन काष्ठ या लकड़ी के बने उल्लू की पूजा की जाती है.