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हरिद्वार: साध्वी की तरह 'पवनकली' का हुआ षोडशी संस्कार - हथिनी पवनकली की बीमार के चलते मौत

श्री निर्मल पंचायती अखाड़े की हथिनी पवनकली की बीमारी के चलते मौत हो गई है. जिसे साधु-संतों ने श्रद्धांजलि दी और इस मौके पर भंडारे का आयोजन भी किया गया.

हरिद्वार
हथिनी पवनकली की षोडशी
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Published : Mar 18, 2020, 6:33 PM IST

Updated : Mar 18, 2020, 7:40 PM IST

हरिद्वार : श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा में चार कुंभ मेलों में आकर्षण का केंद्र रही हथिनी पवनकली की मौत के बाद उसकी आज षोडशी कराई गयी. जिसमें हथिनी पवनकली को शोकसभा कर साधु-संतों ने श्रद्धांजलि दी और साथ ही भंडारे का आयोजन भी गई. हरिद्वार में निर्मल पंचायती अखाड़े की बुजुर्ग हथिनी की पिछले दिनों बीमारी के चलते मौत हो गई थी. पवनकली की मौत के बाद उसके मृतकर्म संस्कार ठीक उसी तरह से किए गए जैसे किसी साध्वी की मौत के बाद किए जाते हैं.

हथिनी पवनकली का हुआ षोडशी संस्कार.

निर्मल पंचायती अखाड़े के श्री महंत का कहना है कि पवनकली अखाड़े के लिए केवल एक हथिनी नहीं थी बल्कि वह अखाड़े की साध्वी थी. अखाड़े ने हमेशा ही उसे एक साध्वी की तरह रखा और साध्वी की तरह ही उसको अखाड़े में हमेशा सम्मान दिया गया. इसीलिए पवनकली की मौत के बाद एक साध्वी की तरह उसके सभी मृतकर्म संस्कार किए गए. पवनकली कुंभ मेलों में आकर्षण का केंद्र रही है.

ये भी पढ़ें: स्वामी चिदानंद बोले- कोरोना को हराना है तो करना होगा प्राणायाम और बनाना होगा शाकाहारी

बता दें कि पवनकली सबसे पहले साल 1974 के कुंभ मेले में निर्मल पंचायती अखाड़े में आई थी. उसके बाद से पवनकली चार कुंभ मेलों में अखाड़े की पेशवाईयों में शामिल रही है. वन विभाग के सभी अधिकारियों से मांग करते हैं कि हमें पवनकली के स्थान पर दूसरा हाथी के बच्चे को देने की कृपा करें. जिससे हम पवनकली के स्थान पर उसे विराजमान कर सकें यदि ऐसा होता है तो हम बड़े ही धूमधाम से उसके आगमन पर भंडारा कराएंगे. वहीं, पवनकली की देखभाल करने वाले महावत और उसके बेटे को पवनकली की याद सता रही है.

हरिद्वार : श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा में चार कुंभ मेलों में आकर्षण का केंद्र रही हथिनी पवनकली की मौत के बाद उसकी आज षोडशी कराई गयी. जिसमें हथिनी पवनकली को शोकसभा कर साधु-संतों ने श्रद्धांजलि दी और साथ ही भंडारे का आयोजन भी गई. हरिद्वार में निर्मल पंचायती अखाड़े की बुजुर्ग हथिनी की पिछले दिनों बीमारी के चलते मौत हो गई थी. पवनकली की मौत के बाद उसके मृतकर्म संस्कार ठीक उसी तरह से किए गए जैसे किसी साध्वी की मौत के बाद किए जाते हैं.

हथिनी पवनकली का हुआ षोडशी संस्कार.

निर्मल पंचायती अखाड़े के श्री महंत का कहना है कि पवनकली अखाड़े के लिए केवल एक हथिनी नहीं थी बल्कि वह अखाड़े की साध्वी थी. अखाड़े ने हमेशा ही उसे एक साध्वी की तरह रखा और साध्वी की तरह ही उसको अखाड़े में हमेशा सम्मान दिया गया. इसीलिए पवनकली की मौत के बाद एक साध्वी की तरह उसके सभी मृतकर्म संस्कार किए गए. पवनकली कुंभ मेलों में आकर्षण का केंद्र रही है.

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बता दें कि पवनकली सबसे पहले साल 1974 के कुंभ मेले में निर्मल पंचायती अखाड़े में आई थी. उसके बाद से पवनकली चार कुंभ मेलों में अखाड़े की पेशवाईयों में शामिल रही है. वन विभाग के सभी अधिकारियों से मांग करते हैं कि हमें पवनकली के स्थान पर दूसरा हाथी के बच्चे को देने की कृपा करें. जिससे हम पवनकली के स्थान पर उसे विराजमान कर सकें यदि ऐसा होता है तो हम बड़े ही धूमधाम से उसके आगमन पर भंडारा कराएंगे. वहीं, पवनकली की देखभाल करने वाले महावत और उसके बेटे को पवनकली की याद सता रही है.

Last Updated : Mar 18, 2020, 7:40 PM IST
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