हरिद्वार : पितृ पक्ष की शुरुआत हो गई है. अब 16 दिनों तक मृत आत्माओं की शांति के लिए पिंडदान किया जाएगा, जिसे श्राद्ध कहते हैं. श्राद्ध के जरिए पितरों की तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है और पिंड दान और तर्पण कर उनकी आत्मा की शांति की कामना की जाती है.
हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व माना जाता है. हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद मृत व्यक्ति का श्राद्ध किया जाना बेहत जरूरी माना जाता है. माना जाता है कि यदि श्राद्ध न किया जाए तो मरने वाले व्यक्ति की आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है. इसीलिए पितृ पक्ष में मृत आत्माओं को जल, तिल, जौ, चावल, सफेद पुष्प से जलांजलि दी जाती है. श्राद्ध तिथि के दिन ब्राह्मण को भोजन कराने के साथ ही श्राद्ध के दिन गौ, श्वान (कुत्ता), काक (कौवा), पिपीलिका (चींटी) को भी खाना खिलाया जाता है.
पितृ पक्ष 16 दिन का होता है. वैसे श्राद्ध को मुक्ति का मार्ग भी माना जाता है. पितृ पक्ष के दौरान किये जाने वाले श्राद्ध का विशेष असर पड़ता है. पितृ पक्ष का श्राद्ध सभी मृत पूर्वजों के लिए किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष में सभी पितृ यमलोक से पृथ्वी लोक पर आ जाते हैं. इसीलिए श्राद्ध पक्ष में श्राद्ध करने का विशेष महत्व माना जाता है. इसके लिए हरिद्वार में नारायणी शिला मंदिर वो तीर्थ स्थान माना जाता है, जो पितृ तीर्थ और मुक्ति का बड़ा केंद्र हैं. हरिद्वार में तीर्थ करने और गंगा स्नान कर पुण्य कमाने के अलावा दुनिया भर से लोग अपने पितरों की मुक्ति के लिए भी यहां आते हैं.
बिहार के गया को सबसे बड़ा पितृ तीर्थ माना जाता है. गया में पितृ पक्ष के दिन पूर्ण गया करने से पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति मिल कर मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसी के साथ हरिद्वार में यही महत्व नारायणी शिला मंदिर का भी है. मान्यता है कि नारायणी शिला मंदिर पर पिण्डदान और श्राद्ध कर्म करने से गया जी का ही पुण्य फल मिलता है.
हरिद्वार के इस मंदिर में श्राद्ध करने का अधिक महत्व इसलिए भी है, क्योंकि माना जाता है कि गया में श्राद्ध करने मात्र से पितृ को मोक्ष मिलता है. मगर हरिद्वार में नारायणी शिला मंदिर में श्राद्ध करने से पितृ को मोक्ष मिलता है.
वायु पुराण के अनुसार
नारायणी शिला मंदिर के बारे में कहा जाता है कि गयासुर नाम का राक्षस देवलोक से भगवान विष्णु यानी नारायण का श्री विग्रह लेकर भागा था. भागते हुए नारायण के विग्रह का धड़ यानी मस्तक वाला हिस्सा बदरीनाथ धाम के बह्मकपाली नाम के स्थान पर गिरा. उनके कंठ से नाभि तक का हिस्सा हरिद्वार के नारायणी मंदिर में गिरा, जबकि चरण गया में गिरा. जहां नारायण के चरणों में गिरकर ही गयासुर की मौत हो गई. यानी वहीं, उसको मोक्ष प्राप्त हुआ था.
स्कंद पुराण के अनुसार
स्कंध पुराण के केदारखंड में लिखा है कि हरिद्वार में नारायण का साक्षात हृदय स्थान होने के कारण इसका महत्व अधिक इसलिए माना जाता है क्योंकि मां लक्ष्मी उनके हृदय में निवास करती हैं, इसलिए इस स्थान पर श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व माना जाता है. पितृ पक्ष में पितरों का उनके देहान्त की तिथि के दिन श्राद्ध करना जरूरी माना गया है. मान्यता है कि पितरों का श्राद्ध यदि श्रद्धापूर्वक यदि नहीं किया जाये तो पित्र नाराज हो जाते हैं और उनके श्राप से व्यक्ति पितृ दोष से ग्रसित हो जाता है. जिस घर में पितृ दोष होता है उस घर की सुख-शांति खत्म हो जाती है. तरह-तरह की समस्याएं आने लगती हैं.
पितृ दोष के निवारण के लिए देश में नारायणी शिला मंदिर को दूसरे नंबर पर सबसे खास स्थान माना जाता है. इसीलिए पितृ दोष की शांति के लिए पितृ पक्ष सबसे उपयुक्त दिन होते हैं. इन दिनों में पितरों को प्रसन्न कर पितृ दोष से भी मुक्ति पाई जा सकती है.
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हरि का द्वार यानी हरिद्वार धर्मनगरी हरिद्वार में यदि लोग गंगा में डुबकी लगाकर जन्म-जन्मान्तरों के पाप धोने आते हैं, तो हरिद्वार लोग अपने पितृ की आत्मा की शांति और उन्हें मोक्ष दिलाने की कामना लेकर भी आते हैं. हरिद्वार में गंगा जहां सबके पाप धो देती है वहीं मृत की आत्माओं को मोक्ष भी प्रदान करती है. हरिद्वार में आकर श्रद्धापूर्वक अपने पितरों का पिंडदान, गंगा जल से तर्पण करने से उन्हें मोक्ष मिल जाता है, लोगों की मान्यता है कि श्राद्ध करने से उनके पितृ प्रसन्न होते हैं. उनके ऊपर सुख-शांति और अपने आशीर्वाद की वर्षा करते हैं.