हरिद्वार: नेपाल की तरह धर्मनगरी हरिद्वार में भी पशुपतिनाथ का विशाल मंदिर हैं, जहां हर साल लाखों श्रद्धालु भगवान भोले के दर्शन करने के लिए आते हैं. यह मंदिर हुबहू नेपाल स्थित पशुपतिनाथ मंदिर के तर्ज पर बनाया गया है, जो करीब 200 साल पुराना है. विश्व में पशुपति के दो ही चतुर्मुखी मंदिर हैं, जिनमें से एक हरिद्वार में है. हरिद्वार की शिव प्रतिमा कसौटी के उसी पत्थर से बनी है, जिससे नेपाल के पशुपतिनाथ बनाए गए थे.
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हरिद्वार में पशुपतिनाथ का यह मंदिर हर की पौड़ी से कुछ ही दूर पर मोती बाजार के बीचो-बीच स्थित है. ऐसा माना जाता है 200 साल पुराने इस मंदिर में दर्शन करने से फल प्राप्त होते हैं.
1819 में हुआ था निर्माण
हरिद्वार में स्थित पशुपतिनाथ मंदिर का निर्माण 200 साल पहले सन 1819 (पूर्व संवत 1896) में नेपाल के तत्कालीन राजा राजेंद्र विक्रम सिंह ने अपने गुरु श्रवण नाथ मठ के स्वामी श्री श्रवण नाथ गिरी जी की प्रेरणा से करवाया था.
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ऐसा माना जाता है कि भगवान केदारनाथ के दर्शन तब तक पूर्ण नहीं होते हैं जब तक उनके दूसरे अर्ध रूप नेपाल स्थित भगवान पशुपतिनाथ के दर्शन न कर लिया जाए, लेकिन दोनों मंदिरों के बीच की दूर बहुत अधिक है ऐसे में अधिकतर श्रद्धालु दोनों मंदिरों के दर्शन नहीं कर पाते है.
पशुपतिनाथ मंदिर के बिना पूरी नहीं होती केदारनाथ यात्रा
इसी बात को ध्यान में रखते हुए तत्कालीन नेपाल के राजा ने धर्मनगरी हरिद्वार में नेपाल स्थित पशुपतिनाथ मंदिर का प्रतिरूप बनाया था. ताकि इस मंदिर में दर्शन करने के बाद श्रद्धालु केदारनाथ यात्रा पूर्ण कर सकें.
विश्व में ऐसा कोई भी तीसरा मंदिर मौजूद नहीं है
हरिद्वार स्थित पशुपतिनाथ मंदिर में विराजमान शिवलिंग भी नेपाल में विराजमान पशुपतिनाथ महादेव के शिवलिंग की ही तरह पंचमुखी है. साथ ही शिवलिंग को बनाने में भी उसी कसौटी के पत्थर का प्रयोग किया गया है जैसा नेपाल स्थित पशुपतिनाथ मंदिर में है. हरिद्वार स्थित पशुपतिनाथ मंदिर एकमात्र ऐसा दूसरा मंदिर है जो पूर्ण रूप से नेपाल स्थित पशुपतिनाथ महादेव मंदिर का प्रतिरूप है. इसके अलावा विश्व में कोई भी ऐसा तीसरा मंदिर मौजूद नहीं है.
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यहां भी शिवलिंग पर चारों दिशाओं में भगवान महादेव का एक-एक मुख और ऊपर की दिशा में एक मुख है. बता दें सभी मुखों के अपने एक विशेष नाम भी हैं, पूर्व की ओर के मुख को तत्पुरुषा, दक्षिण की ओर मुख को अघोरा, पश्चिम की ओर मुख को साधयोजटा, उत्तर के मुख को वामदेव और ऊपर की दिशा में विराजमान मुख को ईशान कहा जाता है. मान्यता है कि शिवलिंग में बने चारों दिशाओं के मुख चार वेदों के रूप है.
मेवाड़ के राजा रतन सिंह ने भी दिया था साथ
मंदिर में लगा एक प्राचीन अभिलेख भारत-नेपाल की मित्रता का सबूत देता भी दिखता है. जिसमें मंदिर के निर्माण के समय में हुए घटनाक्रमों का जिक्र मिलता है. प्राचीन अभिलेख में लिखा हुआ है कि जब सन 1819 में नेपाल के तत्कालीन राजा राज राजेंद्र विक्रम सिंह इस मंदिर का निर्माण करा रहे थे तब इस पुण्य काम में मेवाड़ के राजा रतन सिंह ने भी उनका साथ दिया था. मेवाड़ के राजा रतन सिंह ने मंदिर निर्माण के लिए 5 हाथी, 5 घोड़े, 5 दुशाला और 10 सोने के कड़े दान दिए थे.