हरिद्वारः रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध से सिडकुल इंडस्ट्रीज और फार्मा सेक्टर को करारा झटका लगा है. कच्चा माल 15 फीसदी महंगा होने के साथ कच्चे माल की सप्लाई भी बाधित हो रही है. सिडकुल स्थित सभी कंपनियों एवं अधिकांश कंपनियां दवाओं के रसायन और पैकेजिंग के कच्चे माल के लिए रूस-यूक्रेन समेत सीआइएस (कॉमनवेल्थ ऑफ इंडिपेंडेंट स्टेट्स) पर निर्भर है.
युद्ध के चलते बीते 10 दिन में एल्युमिनियम फॉइल (पैकेजिंग) के भाव 100 रुपये प्रति किलो से अधिक बढ़ गया है. एल्युमिनियम फॉइल कोरोना काल में 265 रुपये प्रति किलो और उसके बाद बढ़कर 335 रुपये किलो हो गया. जबकि अब सप्ताह भर से युद्ध के दौरान 470 रुपये प्रति किलो पहुंच गया है.
रूस और यूक्रेन से आता है कच्चा मालः इसके अलावा कच्चे माल के दाम बढ़ने से दवाओं की पैकिंग और दामों पर भी असर देखने को मिलेगा. फार्मा इकाइयां रूस और यूक्रेन से बड़े पैमाने पर दवाओं के कच्चे माल और पैकेजिंग के रूप में विभिन्न रसायन और एल्युमिनियम फॉइल का आयात करती हैं. मौजूदा हालात के चलते कच्चा माल जगह-जगह फंस गया है. युद्ध से पहले ही देश में कच्चे माल को डंप कर दिया गया है.
पैकेजिंग पर भी पड़ेगा असरः इसके अलावा उत्तराखंड सिडकुल मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के प्रदेश महासचिव राज अरोड़ा और उत्तराखंड फार्मा एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. अनिल शर्मा का कहना है कि कच्चे माल के अलावा पैकेजिंग पर भी इसका विपरीत असर देखने को मिल रहा है. फार्मा संचालकों का कहना है कि 3 माह पहले कार्टन (पैकेजिंग) में 20 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी.
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हरिद्वार में 200 से अधिक फार्मा कंपनीः प्रिन्टेड फॉइल 500 रुपये प्रति किलो से बढ़कर 600 रुपये प्रति किलो पहुंच गया है. कच्चा माल सेप्टिक जेल, पीवीसी 10 फीसदी महंगा हो गया है. इसी तरह अन्य कच्चे सामान पर भी युद्ध का असर पड़ा और वह सब महंगे दरों में मिल रहे हैं. अकेले हरिद्वार जिले में लगभग 200 से अधिक छोटी-बड़ी फार्मा इकाइयों साथ ही अन्य उद्योग भी हैं.
फार्मा सेक्टर को झटकाः रूस और यूक्रेन समेत सीआइएस (कॉमनवेल्थ ऑफ इंडिपेंडेंट स्टेट्स) दवाओं के सबसे बड़े खरीददार हैं. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि युद्ध के चलते फार्मा इकाइयों का कितना बड़ा कारोबार प्रभावित हो रहा है.
फार्मा कंपनी संचालकों का कहना है कि यदि हालात जल्द सामान्य नहीं हुए तो फार्मा सेक्टर को बड़ा झटका लगेगा. जिससे उभरने में लंबा समय भी लग सकता है. पहले कोरोना काल में फार्मा को मिलने वाला कच्चा माल महंगा कर दिया गया है. कोरोना की दूसरी व तीसरी लहर समाप्त होने के बाद भी कच्चे माल के दाम कम नहीं हुए. अब अगर रूस और यूक्रेन का युद्ध लंबा चला तो तमाम दवा कंपनियों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.