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हरिद्वारः शिव की ससुराल दक्षेश्वर महादेव मंदिर में महाआरती का आयोजन, भक्तों की उमड़ी भारी भीड़

देशभर में शिवरात्रि को लेकर सभी शिवालय और मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना की जा रही है. ऐसे में शिवरात्रि की पूर्व संध्या पर हरिद्वार के दक्ष प्रजापति मंदिर में भगवान शिव की महाआरती का आयोजन किया गया. ऐसी मान्यता है कि दुनिया का यह पहला शिवलिंग है, जिसे भोले शंकर ने स्वयं स्थापित किया था.

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Published : Feb 21, 2020, 8:57 AM IST

haridwar
महाशिवरात्रि

हरिद्वार: महाशिवरात्रि की पूर्व संध्या पर हरिद्वार के कनखल स्थित दक्षेश्वर महादेव मंदिर में भोले शिव की विशेष आरती और पूजा का आयोजन किया गया. इस दौरान मंदिर के पुजारी ने पहले शिव के विग्रह का श्रृंगार किया. शिव भक्तों के लिए आज का दिन खास है. पुराणों के अनुसार शिव चतुर्दशी के दिन भगवान आशुतोष का विवाह माता पार्वती के साथ हुआ था. शिव के विवाह के इस दिन को शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है.

दक्षेश्वर महादेव मंदिर में महाआरती.

ऐसा मानना है कि कैलाश के बाद अगर शिव कहीं और विराजते हैं तो वह हरिद्वार की पावन धरती है. पुराणों और शास्त्रों के अनुसार शिव का ससुराल हरिद्वार के कनखल में स्थित है. हमारे शास्त्रों और पुराणों में वर्णन है कि कनखल में ब्रह्माजी के पुत्र और राजा दक्ष की पौराणिक नगरी स्थित थी. दक्षेश्वर महादेव मंदिर जिसे दक्ष प्रजापति मंदिर के नाम से भी जाना जाता है.

पौराणिक कथा अनुसार शिव के ससुर राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया था. इसमें उन्होंने सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया पर अपने दामाद शिव को आमंत्रण नहीं भेजा. दक्ष के यज्ञ के बारे में सती को पता चला तो वह शिव से यज्ञ में जाने की जिद करने लगी, लेकिन शिव ने कहा कि हमें निमंत्रण नहीं दिया गया है, इसलिए हमें वहां नहीं जाना चाहिए.

पिता प्रेम के कारण सती ने शिव की आज्ञा का उल्लंघन कर यज्ञ में चली गई. उनके वहां पहुंचने पर उन्होंने देखा कि सभी देवी-देवताओं का यज्ञ में स्थान तो है, लेकिन उनके पति को स्थान नहीं दिया गया है. वहीं उनके पिता शिव के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं. यह सब सती से सहन नहीं हुआ और सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर खुद को दाह कर लिया.

ये भी पढ़े: आज है महाशिवरात्रि, भोलेनाथ के मंदिरों में उमड़े भक्त

सती के यज्ञ कुंड में दाह कर लेने का शिव को पता चला तो वह क्रोध से भर उठे. उन्होंने वीरभद्र को दक्ष के यज्ञ को विध्वंस करने का आदेश दिया. शिव के आदेश पर वीरभद्र ने यज्ञ विध्वंस कर राजा दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया और उसी यह कुंड में डाल दिया. इससे समस्त देवलोक में हाहाकार मच गया.

इसके बाद स्वयं ब्रह्माजी ने शिव से दक्ष को क्षमादान देने का आग्रह किया. जिस पर शिव ने दक्ष को माफ तो कर दिया पर अब उनके सामने यह संकट खड़ा हो गया कि दक्ष का सिर तो यज्ञ कुंड में स्वाहा हो चुका है तो उन्हें कैसे जीवित किया जाए. तब बकरे का सिर लगाकर दक्ष को फिर से जीवित किया गया. इसके बाद दक्ष के आग्रह पर शिव ने यहीं पर एक शिवलिंग स्थापित किया और पूरे सावन मास और महाशिवरात्रि पर यहीं पर रहने का वचन दिया.

शिव को सबसे दयालु माना जाता है. कहा जाता है शिव ही एकमात्र ऐसे देवता है जो मात्र जल चढ़ाने से ही प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. वहीं ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त दक्ष प्रजापति मंदिर में सच्चे मन से माथा टेक गंगाजल से भगवान का जलाभिषेक करता है उसे हर कष्टों से मुक्ति मिलती है.

हरिद्वार: महाशिवरात्रि की पूर्व संध्या पर हरिद्वार के कनखल स्थित दक्षेश्वर महादेव मंदिर में भोले शिव की विशेष आरती और पूजा का आयोजन किया गया. इस दौरान मंदिर के पुजारी ने पहले शिव के विग्रह का श्रृंगार किया. शिव भक्तों के लिए आज का दिन खास है. पुराणों के अनुसार शिव चतुर्दशी के दिन भगवान आशुतोष का विवाह माता पार्वती के साथ हुआ था. शिव के विवाह के इस दिन को शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है.

दक्षेश्वर महादेव मंदिर में महाआरती.

ऐसा मानना है कि कैलाश के बाद अगर शिव कहीं और विराजते हैं तो वह हरिद्वार की पावन धरती है. पुराणों और शास्त्रों के अनुसार शिव का ससुराल हरिद्वार के कनखल में स्थित है. हमारे शास्त्रों और पुराणों में वर्णन है कि कनखल में ब्रह्माजी के पुत्र और राजा दक्ष की पौराणिक नगरी स्थित थी. दक्षेश्वर महादेव मंदिर जिसे दक्ष प्रजापति मंदिर के नाम से भी जाना जाता है.

पौराणिक कथा अनुसार शिव के ससुर राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया था. इसमें उन्होंने सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया पर अपने दामाद शिव को आमंत्रण नहीं भेजा. दक्ष के यज्ञ के बारे में सती को पता चला तो वह शिव से यज्ञ में जाने की जिद करने लगी, लेकिन शिव ने कहा कि हमें निमंत्रण नहीं दिया गया है, इसलिए हमें वहां नहीं जाना चाहिए.

पिता प्रेम के कारण सती ने शिव की आज्ञा का उल्लंघन कर यज्ञ में चली गई. उनके वहां पहुंचने पर उन्होंने देखा कि सभी देवी-देवताओं का यज्ञ में स्थान तो है, लेकिन उनके पति को स्थान नहीं दिया गया है. वहीं उनके पिता शिव के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं. यह सब सती से सहन नहीं हुआ और सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर खुद को दाह कर लिया.

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सती के यज्ञ कुंड में दाह कर लेने का शिव को पता चला तो वह क्रोध से भर उठे. उन्होंने वीरभद्र को दक्ष के यज्ञ को विध्वंस करने का आदेश दिया. शिव के आदेश पर वीरभद्र ने यज्ञ विध्वंस कर राजा दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया और उसी यह कुंड में डाल दिया. इससे समस्त देवलोक में हाहाकार मच गया.

इसके बाद स्वयं ब्रह्माजी ने शिव से दक्ष को क्षमादान देने का आग्रह किया. जिस पर शिव ने दक्ष को माफ तो कर दिया पर अब उनके सामने यह संकट खड़ा हो गया कि दक्ष का सिर तो यज्ञ कुंड में स्वाहा हो चुका है तो उन्हें कैसे जीवित किया जाए. तब बकरे का सिर लगाकर दक्ष को फिर से जीवित किया गया. इसके बाद दक्ष के आग्रह पर शिव ने यहीं पर एक शिवलिंग स्थापित किया और पूरे सावन मास और महाशिवरात्रि पर यहीं पर रहने का वचन दिया.

शिव को सबसे दयालु माना जाता है. कहा जाता है शिव ही एकमात्र ऐसे देवता है जो मात्र जल चढ़ाने से ही प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. वहीं ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त दक्ष प्रजापति मंदिर में सच्चे मन से माथा टेक गंगाजल से भगवान का जलाभिषेक करता है उसे हर कष्टों से मुक्ति मिलती है.

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