हरिद्वार: धर्मनगरी हरिद्वार में मां गंगा, चंडी देवी, मनसा देवी और यहां की अधिष्ठात्री मां माया देवी की बड़ी मान्यता है. दूर-दूर से लोग इन मंदिरों के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. लेकिन इनके अलावा भी हरिद्वार के पास राजाजी टाइगर रिजर्व से सटे गेंडी खाता गांव में मां काली का एक ऐसा मंदिर भी विद्यमान है जो बीते डेढ़ सदी से भी ज्यादा समय से एक बरगद के पेड़ में स्थापित है. कहा जाता है कि यह वही मंदिर है जहां कुख्यात डाकू सुल्ताना मां की पूजा-अर्चना करने आता था.
कहा जाता है कि सुल्ताना मां का ऐसा भक्त था जो एक तरफ मां मनसा की पूजा करने शिवालिक पर्वत माला पर स्थित मनसा देवी के मंदिर जाता था. तो वहीं, उस समय के घने जंगल में बरगद के पेड़ में स्थित मां काली की पूजा करने जाता था. जंगल में होने के कारण यह अनोखा मंदिर एक दशक पहले तक लोगों की नजरों से छिपा था. यह मंदिर कई दशकों से एक पेड़ के खोल में स्थापित है.
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हरिद्वार से करीब बीस किलोमीटर पर घने जंगल के किनारे श्यामपुर क्षेत्र के लाल ढांग इलाके में एक बरगद का विशालकाय पेड़ है. इस वृक्ष के बीच में मां काली की 150 साल पुरानी स्वयंभू मूर्ति स्थापित है. इसकी प्राचीनता और महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज तक इस मूर्ति को पेड़ के अंदर होने के बावजूद कुछ नहीं हुआ. आज दूर-दूर से लोग इस मंदिर में माथा टेकने पहुंचते हैं. कहा जाता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है.
सुल्ताना डाकू भी नवाता था सिर: अंग्रेजों के समय का कुख्यात डाकू सुल्ताना के बारे में तो आपने जरूर सुना होगा. हरिद्वार में मनसा देवी की पहाड़ियों पर उसके कई ठिकाने थे, यहां ठिकाना बनाने के पीछे का कारण मां मनसा के दर्शन के साथ बरगद के पेड़ में स्थित इस मां काली का दर्शन करना था. कहा जाता है कि डाकू सुल्ताना मां का परम भक्त था.
शिव शक्ति का स्वरूप: हिंदू धर्म में बरगद के पेड़ को शिव का स्वरूप भी माना जाता है. बरगद में शक्ति स्वरूप मां काली का होना, शिव शक्ति के मिलन का स्वरूप है. यह एक बहुत बड़ा कारण है कि लोगों की इस स्थान के प्रति अपार आस्था एवं श्रद्धा है.
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क्या कहते हैं श्रद्धालु: श्रद्धालु हेम चंद गौड़ का कहना है कि वह बढ़ काली के इस मंदिर में काफी समय से आ रहे हैं. यहां आकर मन को काफी शांति मिलती है. यह एक सिद्ध पीठ और शिव शक्ति का अद्भुत स्थान है.
क्या कहते हैं महंत: दिगंबर नागा सूरज भारती महाराज का कहना है कि इस मंदिर की कथा मुगल काल के समय से है. बढ़ काली के इस मंदिर में शिव एवं शक्ति दोनों का स्वरूप है. इस तरह का शिव-शक्ति का कोई स्थान धरती पर कहीं और देखने को नहीं मिलेगा. 2010 के बाद इस मंदिर का काफी जीर्णोद्धार हुआ है. शारदीय नवरात्रि के दौरान यहां लगातार पूजा अर्चना और भंडारा कराया जाता है.