ETV Bharat / state

साल 1915 के महाकुंभ में हरिद्वार आए थे बापू, लोगों की आस्था को बताया था अद्भुत - महात्मा गांधी 1915 में हरिद्वार कुंभ में शामिल

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी साल 1915 के महाकुंभ में हरिद्वार आए थे. जहां उन्होंने महाकुंभ में लोगों की आस्था को अद्भुत बताया था. जबकि, बापू हरिद्वार में गंदगी से बहुत दुखी हुए थे.

mahatma Gandhi
महात्मा गांधी
author img

By

Published : Apr 14, 2021, 2:01 AM IST

हरिद्वारः राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का उत्तराखंड से गहरा लगाव था. उन्होंने कई बार उत्तराखंड की यात्रा की और यहां असीम मानसिक शांति का अनुभव किया. उस समय हरिद्वार तक आने का साधन रेल था. इस कारण बापू जब-जब गढ़वाल या कुमायूं गए तो हरिद्वार आए. महात्मा गांधी जब विदेश से वापस आए तो वो कलकत्ता से हरिद्वार पहुंचे थे. उस वक्त यहां कुंभ मेला चल रहा था. जहां उन्होंने अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी संग कई दिन बिताए.

mahatma Gandhi
हरिद्वार में महात्मा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरू.

साल 1915 और उसके बाद महात्मा गांधी की हरिद्वार यात्राओं के कई वृतांत इतिहास में दर्ज हैं. खुद गांधी जी ने अपनी आत्मकथा में यहां आने और अपनी मुलाकातों का जिक्र किया. अपने विदेशी प्रवास के दौरान गुरूकुल कांगड़ी के संस्थापन स्वामी श्रद्धानंद के कहने पर यहां के ब्रह्मचारियों की ओर से उन्हें भेजी गई. मदद से वह गहरे प्रभावित हुए थे. उन दिनों वैसे भी स्वामी श्रद्धानंद शैक्षिक क्रांति का बिगुल बजा चुके थे और कांगड़ी गांव में गुरूकुल की स्थापना हो चुकी थी.

mahatma Gandhi
महात्मा गांधी.

ये भी पढ़ेंः दूसरे शाही स्नान पर हरिद्वार में उमड़ा आस्था का सैलाब, दिखा आलौकिक नजारा

साल 1915 में जब गांधी जी हरिद्वार पहुंचे तो वो सर्वप्रथम गुरूकुल गए और स्वामी श्रद्धानंद से मुलाकात कर गुरूकुल को देखा. वहां से वापसी के उपरांत उन्होंने हरिद्वार कुंभ में अपना कैंप किया और इसी बीच स्वामी विवेकानंद की प्रेरणा से बने रामकृष्ण मिशन चिकित्सालय भी गए. जहां उन्होंने सेवा प्रकल्पों को देखा. महाकुंभ में हरिद्वार आए महात्मा गांधी यह देखकर आश्चर्य चकित रह गए कि आवागमन के बहुत कम साधनों के बावजूद लाखों श्रद्धालु हरिद्वार पहुंचे.

बापू ने आत्मकथा में लिखा है कि वो उस समय धर्म-कर्म पर विश्वास नहीं करते थे. अपने राजनीतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले के बुलावे पर वह भारत लौटे थे. गोखले ने उन्हें हरिद्वार जाकर स्वामी श्रद्धानंद से मिलने का निर्देश दिया था. आत्मकथा में बापू ने लिखा है कि भले वे खुद धर्मकर्म में विश्वास नहीं रखते थे. लेकिन कुंभ का पुण्य लेने आए 17 लाख श्रद्धालुओं की आस्था गलत नहीं हो सकती. बहुत से कुंभ स्नानार्थी ऊंट, घोड़ों और बैलगाड़ियों पर सवार होकर आए थे. तब आवागमन का एकमात्र साधन रेलगाड़ियां थीं. वो भी काफी कम संख्या में चलती थीं.

हरिद्वार में गंदगी से बहुत दुखी थे महात्मा गांधी

बापू ने लिखा कि तीर्थ और गंगा के प्रति लोगों की आस्था अद्भुत है. कुंभ की भीड़ ने ही महात्मा को एक स्थान पर लघु भारत का दर्शन करा दिया था. कहते हैं कि जहां बापू ठहरे थे. वहां उनके दर्शन करने भारी तादाद में लोग आते थे. गांधी जी हरिद्वार में गंदगी से बहुत दुखी थे. उन्होने लिखा है कि यहां गंदगी बहुत है, संकरी गलियां हैं और पतनालों पर पाइप नहीं लगे हैं. लोग गंगा स्नान कर जब इन संकरी गलियों से निकलते हैं तो खुले पतनाले का गंदा पानी उन पर गिरता रहता है.

हरिद्वारः राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का उत्तराखंड से गहरा लगाव था. उन्होंने कई बार उत्तराखंड की यात्रा की और यहां असीम मानसिक शांति का अनुभव किया. उस समय हरिद्वार तक आने का साधन रेल था. इस कारण बापू जब-जब गढ़वाल या कुमायूं गए तो हरिद्वार आए. महात्मा गांधी जब विदेश से वापस आए तो वो कलकत्ता से हरिद्वार पहुंचे थे. उस वक्त यहां कुंभ मेला चल रहा था. जहां उन्होंने अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी संग कई दिन बिताए.

mahatma Gandhi
हरिद्वार में महात्मा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरू.

साल 1915 और उसके बाद महात्मा गांधी की हरिद्वार यात्राओं के कई वृतांत इतिहास में दर्ज हैं. खुद गांधी जी ने अपनी आत्मकथा में यहां आने और अपनी मुलाकातों का जिक्र किया. अपने विदेशी प्रवास के दौरान गुरूकुल कांगड़ी के संस्थापन स्वामी श्रद्धानंद के कहने पर यहां के ब्रह्मचारियों की ओर से उन्हें भेजी गई. मदद से वह गहरे प्रभावित हुए थे. उन दिनों वैसे भी स्वामी श्रद्धानंद शैक्षिक क्रांति का बिगुल बजा चुके थे और कांगड़ी गांव में गुरूकुल की स्थापना हो चुकी थी.

mahatma Gandhi
महात्मा गांधी.

ये भी पढ़ेंः दूसरे शाही स्नान पर हरिद्वार में उमड़ा आस्था का सैलाब, दिखा आलौकिक नजारा

साल 1915 में जब गांधी जी हरिद्वार पहुंचे तो वो सर्वप्रथम गुरूकुल गए और स्वामी श्रद्धानंद से मुलाकात कर गुरूकुल को देखा. वहां से वापसी के उपरांत उन्होंने हरिद्वार कुंभ में अपना कैंप किया और इसी बीच स्वामी विवेकानंद की प्रेरणा से बने रामकृष्ण मिशन चिकित्सालय भी गए. जहां उन्होंने सेवा प्रकल्पों को देखा. महाकुंभ में हरिद्वार आए महात्मा गांधी यह देखकर आश्चर्य चकित रह गए कि आवागमन के बहुत कम साधनों के बावजूद लाखों श्रद्धालु हरिद्वार पहुंचे.

बापू ने आत्मकथा में लिखा है कि वो उस समय धर्म-कर्म पर विश्वास नहीं करते थे. अपने राजनीतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले के बुलावे पर वह भारत लौटे थे. गोखले ने उन्हें हरिद्वार जाकर स्वामी श्रद्धानंद से मिलने का निर्देश दिया था. आत्मकथा में बापू ने लिखा है कि भले वे खुद धर्मकर्म में विश्वास नहीं रखते थे. लेकिन कुंभ का पुण्य लेने आए 17 लाख श्रद्धालुओं की आस्था गलत नहीं हो सकती. बहुत से कुंभ स्नानार्थी ऊंट, घोड़ों और बैलगाड़ियों पर सवार होकर आए थे. तब आवागमन का एकमात्र साधन रेलगाड़ियां थीं. वो भी काफी कम संख्या में चलती थीं.

हरिद्वार में गंदगी से बहुत दुखी थे महात्मा गांधी

बापू ने लिखा कि तीर्थ और गंगा के प्रति लोगों की आस्था अद्भुत है. कुंभ की भीड़ ने ही महात्मा को एक स्थान पर लघु भारत का दर्शन करा दिया था. कहते हैं कि जहां बापू ठहरे थे. वहां उनके दर्शन करने भारी तादाद में लोग आते थे. गांधी जी हरिद्वार में गंदगी से बहुत दुखी थे. उन्होने लिखा है कि यहां गंदगी बहुत है, संकरी गलियां हैं और पतनालों पर पाइप नहीं लगे हैं. लोग गंगा स्नान कर जब इन संकरी गलियों से निकलते हैं तो खुले पतनाले का गंदा पानी उन पर गिरता रहता है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.