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धरती का स्वर्ग है सिद्ध स्रोत, सबसे पहले यहीं सुनाई गई थी भागवत कथा - केदारखंड

हरिद्वार में नील पर्वतों की तलहटी में बेहद दुर्गम घने जंगलों के बीच सिद्ध स्रोत वह स्थान हैं जहां पर धरती पर सबसे पहले भागवत कथा का ज्ञान मनुष्यों को प्राप्त हुआ. सिद्ध स्रोत का वर्णन महाभारत के केदारखंड में भी है. सिद्ध स्रोत को धरती का स्वर्ग भी माना जाता है.

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श्रीमद्भागवत कथा
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Published : Oct 4, 2020, 5:03 AM IST

Updated : Oct 4, 2020, 5:22 PM IST

हरिद्वार: कर्म किए जा, फल की चिंता मत कर ए इंसान... ये ज्ञान भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था. यही ज्ञान भागवत कथा का सार है. भागवत कथा में जीवन की वास्तविकता का दर्शन है. कहा जाता है कि भागवत कथा सुनने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, पर क्या आप जानते हैं कि हिन्दू धर्म के 18 पुराणों में से एक भागवत पुराण की कथा को सबसे पहले किसने और किस स्थान पर सुनाया था ? तो हम आपको आज वह जगह भी बताएंगे और दिखाएंगे भी जहां सबसे पहले पृथ्वी पर भागवत कथा को सुनाया गया था.

सामाजिक, धार्मिक और लौकिक मर्यादाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण भागवत पुराण को माना गया है. भागवत को ज्ञान और भक्ति, वैराग्य का सबसे महान ग्रंथ माना जाता है. यह भी कहा जाता है कि भागवत पुराण में कलयुग में होने वाली घटनाओं की भविष्यवाणी की गई है. काल की गणना तक भागवत में की गई है.

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सिद्ध स्रोत मंदिर परिसर.

केदारखंड में है सिद्ध स्रोत का वर्णन

सिद्ध स्रोत मंदिर के मुख्य पुजारी का बतातें है कि इस स्थान का इतिहास अनादि काल से है. महाभारत के केदारखंड में इसका वर्णन है. भगवान शिव के गण नंदी द्वारा यहां पर तप किया गया और ब्रह्मा के पुत्र मरीचि ऋषि ने तप किया. उसके बाद सनकादिक ऋषियों ने ज्ञान बैरागी और भक्ति को श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण कराया. उसके बाद सुखदेव मुनि जी द्वारा यहां पर तप किया गया. इसी स्थान से जाकर उनके द्वारा शुक्रताल में महाराजा परीक्षित को कथा सुनाई थी. तब से आज तक यहां कोई न कोई संत तप करता रहा है. यहां पर जिनके द्वारा भी तप किया गया, वह सभी सिद्ध पुरुष हुए.

इसी स्थान पर सबसे पहले भागवत कथा का ज्ञान मनुष्यों को प्राप्त हुआ था.

सनकादिक ऋषियों ने बैरागी और भक्ति को सुनाई थी श्रीमद्भागवत की कथा

मंदिर के पुजारी ने बताया कि सर्वप्रथम ज्ञान बैरागी और भक्ति को श्रीमद्भागवत की कथा सनकादिक ऋषियों ने इसी स्थान पर सुनाई थी. उसके बाद सुखदेव जी ने 200 साल बाद शुक्रताल पर महाराजा परीक्षित को सुनाई. बाद में 88 हजार ऋषियों को सूत जी महाराज ने नैमिषारण्य में कथा सुनाई. तब से आज तक श्रीमद्भागवत कथा सुनाई जा रही है. यही वो स्थान है, जहां पर सबसे पहले कथा सुनाई गई. यह भागवत कथा के प्रचार-प्रसार का स्थान बन गया. इस स्थान पर भगवान शिव के भक्तों ने तब किया नंदी शिव के गाने हैं.

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सिद्ध स्रोत में हर मन्नत होती है पूरी.

महार्षि ऋषि भी शिव के ही भक्त हैं. सुखदेव जी भगवान शिव के शिष्य हैं, क्योंकि उन्होंने सर्वप्रथम श्रीमद्भागवत की कथा भगवान शिव के मुख से सुनी इसलिए. इस स्थान पर भगवान शिव की आराधना की जाती है. इसका पुराणों में वर्णन है. महाभारत में वर्णन है. इस स्थान का इतिहास उससे भी पुराना है. यहां के स्रोतों का अलग ही महत्व है. इनको आनंद गंगा के नाम से जानते हैं. यह आनंद गंगा के संगम पर स्थान बना हुआ है और यहां पर जप-तप करने से उसका फल सौ गुना प्राप्त होता है.

धरती का स्वर्ग सिद्ध स्रोत

इस स्थान को धरती का स्वर्ग भी माना जाता है. सिद्ध स्रो हरिद्वार नजीबाद राष्ट्रीय राजमार्ग पर पर्वतों की तलहटी में बसा हुआ है. यह स्थान बेहद ही रमणीक है. इस स्थान पर कई पर बहुत ही खूबसूरत स्रोत और नदिया बहती हैं. यंहा आनंद गंगा नाम की भी एक नदी बहती है. जो वास्तव में आनंददायक है. मान्यता है कि इस स्थान पर पर पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

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सनकादिक ऋषियों ने बैरागी और भक्ति को सुनाई थी श्रीमद्भागवत की कथा.

सिद्ध स्रोत में हर मन्नत होती है पूरी

भक्तों का मानना है कि यहां आकर मन को असीम शांति का अनुभव होता है. यह पौराणिक स्थान जितना खूबसूरत है उतना ही दुर्गम यहां तक पंहुचना भी है. मुख्य मार्ग से करीब 3 किलोमीटर अंदर जंगल में बेहद पथरीले और रेतीले रास्ते से होकर मंदिर तक पंहुचना पड़ता है. मगर भक्त तमाम कष्ट उठाकर भी इस सिद्ध स्थान पर आते हैं और मन्नत मांगते हैं. मान्यता है कि यहां पर भगवान शिव का रुद्राभिषेक करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

भागवत कथा सुनने मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है. हरिद्वार में नील पर्वतों की तलहटी में बेहद दुर्गम घने जंगलों के बीच सिद्ध स्रोत वह स्थान हैं जहां पर धरती पर सबसे पहले भागवत कथा का ज्ञान मनुष्यों को प्राप्त हुआ. इस स्थान पर आकर लोग अलग ही अनुभूति प्राप्त करते हैं. जो एक बार इस स्थान के दर्शन करता है. उसके मन में बार-बार यहां आने की प्रेरणा जागती रहती है. इसीलिए इस स्थान का इतना महत्व है.

हरिद्वार: कर्म किए जा, फल की चिंता मत कर ए इंसान... ये ज्ञान भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था. यही ज्ञान भागवत कथा का सार है. भागवत कथा में जीवन की वास्तविकता का दर्शन है. कहा जाता है कि भागवत कथा सुनने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, पर क्या आप जानते हैं कि हिन्दू धर्म के 18 पुराणों में से एक भागवत पुराण की कथा को सबसे पहले किसने और किस स्थान पर सुनाया था ? तो हम आपको आज वह जगह भी बताएंगे और दिखाएंगे भी जहां सबसे पहले पृथ्वी पर भागवत कथा को सुनाया गया था.

सामाजिक, धार्मिक और लौकिक मर्यादाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण भागवत पुराण को माना गया है. भागवत को ज्ञान और भक्ति, वैराग्य का सबसे महान ग्रंथ माना जाता है. यह भी कहा जाता है कि भागवत पुराण में कलयुग में होने वाली घटनाओं की भविष्यवाणी की गई है. काल की गणना तक भागवत में की गई है.

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सिद्ध स्रोत मंदिर परिसर.

केदारखंड में है सिद्ध स्रोत का वर्णन

सिद्ध स्रोत मंदिर के मुख्य पुजारी का बतातें है कि इस स्थान का इतिहास अनादि काल से है. महाभारत के केदारखंड में इसका वर्णन है. भगवान शिव के गण नंदी द्वारा यहां पर तप किया गया और ब्रह्मा के पुत्र मरीचि ऋषि ने तप किया. उसके बाद सनकादिक ऋषियों ने ज्ञान बैरागी और भक्ति को श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण कराया. उसके बाद सुखदेव मुनि जी द्वारा यहां पर तप किया गया. इसी स्थान से जाकर उनके द्वारा शुक्रताल में महाराजा परीक्षित को कथा सुनाई थी. तब से आज तक यहां कोई न कोई संत तप करता रहा है. यहां पर जिनके द्वारा भी तप किया गया, वह सभी सिद्ध पुरुष हुए.

इसी स्थान पर सबसे पहले भागवत कथा का ज्ञान मनुष्यों को प्राप्त हुआ था.

सनकादिक ऋषियों ने बैरागी और भक्ति को सुनाई थी श्रीमद्भागवत की कथा

मंदिर के पुजारी ने बताया कि सर्वप्रथम ज्ञान बैरागी और भक्ति को श्रीमद्भागवत की कथा सनकादिक ऋषियों ने इसी स्थान पर सुनाई थी. उसके बाद सुखदेव जी ने 200 साल बाद शुक्रताल पर महाराजा परीक्षित को सुनाई. बाद में 88 हजार ऋषियों को सूत जी महाराज ने नैमिषारण्य में कथा सुनाई. तब से आज तक श्रीमद्भागवत कथा सुनाई जा रही है. यही वो स्थान है, जहां पर सबसे पहले कथा सुनाई गई. यह भागवत कथा के प्रचार-प्रसार का स्थान बन गया. इस स्थान पर भगवान शिव के भक्तों ने तब किया नंदी शिव के गाने हैं.

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सिद्ध स्रोत में हर मन्नत होती है पूरी.

महार्षि ऋषि भी शिव के ही भक्त हैं. सुखदेव जी भगवान शिव के शिष्य हैं, क्योंकि उन्होंने सर्वप्रथम श्रीमद्भागवत की कथा भगवान शिव के मुख से सुनी इसलिए. इस स्थान पर भगवान शिव की आराधना की जाती है. इसका पुराणों में वर्णन है. महाभारत में वर्णन है. इस स्थान का इतिहास उससे भी पुराना है. यहां के स्रोतों का अलग ही महत्व है. इनको आनंद गंगा के नाम से जानते हैं. यह आनंद गंगा के संगम पर स्थान बना हुआ है और यहां पर जप-तप करने से उसका फल सौ गुना प्राप्त होता है.

धरती का स्वर्ग सिद्ध स्रोत

इस स्थान को धरती का स्वर्ग भी माना जाता है. सिद्ध स्रो हरिद्वार नजीबाद राष्ट्रीय राजमार्ग पर पर्वतों की तलहटी में बसा हुआ है. यह स्थान बेहद ही रमणीक है. इस स्थान पर कई पर बहुत ही खूबसूरत स्रोत और नदिया बहती हैं. यंहा आनंद गंगा नाम की भी एक नदी बहती है. जो वास्तव में आनंददायक है. मान्यता है कि इस स्थान पर पर पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

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सनकादिक ऋषियों ने बैरागी और भक्ति को सुनाई थी श्रीमद्भागवत की कथा.

सिद्ध स्रोत में हर मन्नत होती है पूरी

भक्तों का मानना है कि यहां आकर मन को असीम शांति का अनुभव होता है. यह पौराणिक स्थान जितना खूबसूरत है उतना ही दुर्गम यहां तक पंहुचना भी है. मुख्य मार्ग से करीब 3 किलोमीटर अंदर जंगल में बेहद पथरीले और रेतीले रास्ते से होकर मंदिर तक पंहुचना पड़ता है. मगर भक्त तमाम कष्ट उठाकर भी इस सिद्ध स्थान पर आते हैं और मन्नत मांगते हैं. मान्यता है कि यहां पर भगवान शिव का रुद्राभिषेक करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

भागवत कथा सुनने मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है. हरिद्वार में नील पर्वतों की तलहटी में बेहद दुर्गम घने जंगलों के बीच सिद्ध स्रोत वह स्थान हैं जहां पर धरती पर सबसे पहले भागवत कथा का ज्ञान मनुष्यों को प्राप्त हुआ. इस स्थान पर आकर लोग अलग ही अनुभूति प्राप्त करते हैं. जो एक बार इस स्थान के दर्शन करता है. उसके मन में बार-बार यहां आने की प्रेरणा जागती रहती है. इसीलिए इस स्थान का इतना महत्व है.

Last Updated : Oct 4, 2020, 5:22 PM IST
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