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चमोली आपदा के बाद वैज्ञानिक अलर्ट, डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने बनाई गाइडलाइन - चमोली आपदा

डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने ग्लेशियर और झीलों के टूटने से आने वाली तबाही और बचाव के लिए राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच) के वैज्ञानिकों की मदद 10 चेप्टर की गाइडलाइन तैयार की है. इसमें स्विटजरलैंड की सिवस एजेंसी ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

NIH
राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान
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Published : Feb 16, 2021, 8:05 PM IST

रुड़की: उत्तराखंड के चमोली जिले में आई आपदा के बाद से ही वैज्ञानिक ग्लेशियरों को लेकर अलग-अलग तरीके से अध्ययन करने में जुटे हुए है. आईआईटी रुड़की की राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच) के वैज्ञानिकों ने ग्लेशियर के साथ उस जगह की घाटी और क्षेत्र का भी अध्ययन करने पर जोर दिया है. ताकि समय रहते आने वाले खतरे का अनुमान लगाया जा सके और उसके बचने के तरीकों पर काम किया जा सके.

चमोली आपदा के बाद वैज्ञानिक अलर्ट.

डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने ग्लेशियर और झीलों के टूटने से आने वाली तबाही और बचाव के लिए एनआईएच के वैज्ञानिकों की मदद 10 चेप्टर की गाइडलाइन तैयार की है. इसमें स्विटजरलैंड की सिवस एजेंसी ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

पढ़ें- EXCLUSIVE: ऋषिगंगा वैली में बनी झील को खाली कराएगी सरकार, इस प्लान के तहत होगा काम

एनआईएच के वैज्ञानिकों का कहना है कि गाइडलाइन के अनुसार हिमालयी झीलों की रोजाना सैटेलाइट और अन्य तकनीक के माध्यम से मॉनिटरिंग होनी चाहिए. जिसका डाटा रोज सार्वजनिक किया जाना चाहिए. जिन जगहों पर ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं, वहां पर फोकस कर झीलों में पानी कम करने के लिए पम्पिंग को अमल में लाया जाए.

वहीं उन्होंने कहा कि गाइडलाइन के अनुसार स्थनीय प्रशासन और आपदा तंत्र से जुड़े लोगों को भी प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, ताकि जानमाल के खतरे से बचा जा सके. एक बात तो जरूर है चमोली जिले में हुए जल प्रलय के बाद से वैज्ञानिक भी अब सतर्क नज़र आने लगे हैं. लोगों को जागरूक करना का लगातार प्रयास कर रहे है

रुड़की: उत्तराखंड के चमोली जिले में आई आपदा के बाद से ही वैज्ञानिक ग्लेशियरों को लेकर अलग-अलग तरीके से अध्ययन करने में जुटे हुए है. आईआईटी रुड़की की राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच) के वैज्ञानिकों ने ग्लेशियर के साथ उस जगह की घाटी और क्षेत्र का भी अध्ययन करने पर जोर दिया है. ताकि समय रहते आने वाले खतरे का अनुमान लगाया जा सके और उसके बचने के तरीकों पर काम किया जा सके.

चमोली आपदा के बाद वैज्ञानिक अलर्ट.

डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने ग्लेशियर और झीलों के टूटने से आने वाली तबाही और बचाव के लिए एनआईएच के वैज्ञानिकों की मदद 10 चेप्टर की गाइडलाइन तैयार की है. इसमें स्विटजरलैंड की सिवस एजेंसी ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

पढ़ें- EXCLUSIVE: ऋषिगंगा वैली में बनी झील को खाली कराएगी सरकार, इस प्लान के तहत होगा काम

एनआईएच के वैज्ञानिकों का कहना है कि गाइडलाइन के अनुसार हिमालयी झीलों की रोजाना सैटेलाइट और अन्य तकनीक के माध्यम से मॉनिटरिंग होनी चाहिए. जिसका डाटा रोज सार्वजनिक किया जाना चाहिए. जिन जगहों पर ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं, वहां पर फोकस कर झीलों में पानी कम करने के लिए पम्पिंग को अमल में लाया जाए.

वहीं उन्होंने कहा कि गाइडलाइन के अनुसार स्थनीय प्रशासन और आपदा तंत्र से जुड़े लोगों को भी प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, ताकि जानमाल के खतरे से बचा जा सके. एक बात तो जरूर है चमोली जिले में हुए जल प्रलय के बाद से वैज्ञानिक भी अब सतर्क नज़र आने लगे हैं. लोगों को जागरूक करना का लगातार प्रयास कर रहे है

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