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सड़कों पर दम तोड़ रहा है बचपन, जान जोखिम में डालकर तमाशा दिखा रही मासूम

सरकार बच्चों का भविष्य सुधारने के लिए विभिन्न योजनाएं बनाती है लेकिन यह सब कुछ कागजों तक सीमित है. इसकी बानगी रूड़की की सड़को पर देखी जा सकती है जहां एक 5 वर्षीय बेखौफ 12 फुट ऊपर बंधे रस्से पर चलकर जान जोखिम में डालकर लोगों को तमाशा दिखा रही है

तमाशा
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Published : Aug 25, 2019, 9:34 AM IST

Updated : Aug 25, 2019, 11:25 AM IST

रुड़कीः पांच साल की बच्ची की मजबूरी का तमाशा देखने के लिए सड़क पर भीड़ देखिए. पेट के खातिर मासूम का जान जोखिम में डालना भी देख लीजिए. ये बच्ची अपने बचपन को दरकिनार कर पेट की आग बुझाने के लिए करतब दिखा रही है. रूड़की की सड़कों पर स्कूल जाने की उम्र में दो जून की रोटी की जुगत में लगी ये मासूम इस समाज, सरकार और उसके तंत्र से कई सवाल पूछ रही है.

स्कूल जाने की उम्र में सड़कों पर करतब दिखा रही मासूम.

जी हां...उत्तराखंड के रूड़की में दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में पांच साल की मासूम अपनी जान जोखिम में डालकर करतब दिखाने को मजबूर है. जिस उम्र में बच्ची को स्कूल में पढ़ना-लिखना और खेलना चाहिए था. उस उम्र में ये बच्ची सड़कों पर करतब दिखा रही है. जिस उम्र में बच्चे जमीन पर चलने में ही लड़खड़ा जाते हैं. उस उम्र में ये मासूम बेखौफ12 फुट ऊपर बंधे रस्से पर चलकर लोगों को तमाशा दिखा रही है और उसके इस करतब को देखकर मुर्दा भीड़ तालियां पीट रही है.

माफ कीजिए.. मुर्दा इसलिये क्योंकि इन्हीं सड़कों से बड़े-बड़े समाजसेवी और प्रशासन के नुमाइंदे गुजरते हैं. लेकिन कोई भी इस बच्ची को रोककर ये नहीं पूछता कि आखिर क्यों वो मौत के इस खेल के साथ आंख मिचौली खेल रही है. चंद रुपयों की खातिर जीवन को खतरे में डालकर मौत की राह पर चलता ये बचपन बताता है कि जिन्दगी कितनी सस्ती है.

यह भी पढ़ेंः उत्तरकाशी के इस गांव के बच्चे नहीं जा पा रहे स्कूल, पूर्व विधायक ने बताया दुर्भाग्यपूर्ण

अपने और अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए पांच साल की एक मासूम बच्ची रोजाना रस्सी पर चलकर अपनी जान जोखिम में डाल कर लोगों को तमाशा दिखाती है. जिसका बचपन सड़क पर दम तोड़ रहा है. ये सब देखकर कुछ पंक्तियां याद आ जाती हैं.
ख्वाब टूटे हैं मगर हौंसलें ज़िन्दा हैं,
हम वो हैं जहां मुश्किलें शर्मिंदा हैं,

इस सड़क से होकर सरकार के नुमाइंदों से लेकर प्रशासन के अधिकारी भी गुजरते हैं. लेकिन कोई भी इन बच्चों की मासूमियत पर रहम नहीं खाता बल्कि आंखें फेरकर चलते बनते हैं. वहीं प्रदेश में गठित बाल श्रम विभाग की नजर भी इस ओर नहीं जाती. ऐसे में सरकारों की नीतियां भी इन्हीं सड़कों पर दम तोड़ती देखी जाती हैं.

केंद्र सरकार से लेकर प्रदेश सरकार बच्चों का भविष्य सुधारने के लिए विभिन्न योजनाएं बनाती है और करोड़ों रुपये खर्च करती है लेकिन क्या इन योजनाओं का हक उन्हें मिल रहा है जिन्हें मिलना चाहिए था. ये तस्वीर उन योजनाओं पर भी प्रश्नचिन्ह लगाती है. क्या सरकारों के दावे और वादे महज दिखावा होते हैं. सवाल कई हैं लेकिन जवाब शायद किसी के पास नहीं

रुड़कीः पांच साल की बच्ची की मजबूरी का तमाशा देखने के लिए सड़क पर भीड़ देखिए. पेट के खातिर मासूम का जान जोखिम में डालना भी देख लीजिए. ये बच्ची अपने बचपन को दरकिनार कर पेट की आग बुझाने के लिए करतब दिखा रही है. रूड़की की सड़कों पर स्कूल जाने की उम्र में दो जून की रोटी की जुगत में लगी ये मासूम इस समाज, सरकार और उसके तंत्र से कई सवाल पूछ रही है.

स्कूल जाने की उम्र में सड़कों पर करतब दिखा रही मासूम.

जी हां...उत्तराखंड के रूड़की में दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में पांच साल की मासूम अपनी जान जोखिम में डालकर करतब दिखाने को मजबूर है. जिस उम्र में बच्ची को स्कूल में पढ़ना-लिखना और खेलना चाहिए था. उस उम्र में ये बच्ची सड़कों पर करतब दिखा रही है. जिस उम्र में बच्चे जमीन पर चलने में ही लड़खड़ा जाते हैं. उस उम्र में ये मासूम बेखौफ12 फुट ऊपर बंधे रस्से पर चलकर लोगों को तमाशा दिखा रही है और उसके इस करतब को देखकर मुर्दा भीड़ तालियां पीट रही है.

माफ कीजिए.. मुर्दा इसलिये क्योंकि इन्हीं सड़कों से बड़े-बड़े समाजसेवी और प्रशासन के नुमाइंदे गुजरते हैं. लेकिन कोई भी इस बच्ची को रोककर ये नहीं पूछता कि आखिर क्यों वो मौत के इस खेल के साथ आंख मिचौली खेल रही है. चंद रुपयों की खातिर जीवन को खतरे में डालकर मौत की राह पर चलता ये बचपन बताता है कि जिन्दगी कितनी सस्ती है.

यह भी पढ़ेंः उत्तरकाशी के इस गांव के बच्चे नहीं जा पा रहे स्कूल, पूर्व विधायक ने बताया दुर्भाग्यपूर्ण

अपने और अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए पांच साल की एक मासूम बच्ची रोजाना रस्सी पर चलकर अपनी जान जोखिम में डाल कर लोगों को तमाशा दिखाती है. जिसका बचपन सड़क पर दम तोड़ रहा है. ये सब देखकर कुछ पंक्तियां याद आ जाती हैं.
ख्वाब टूटे हैं मगर हौंसलें ज़िन्दा हैं,
हम वो हैं जहां मुश्किलें शर्मिंदा हैं,

इस सड़क से होकर सरकार के नुमाइंदों से लेकर प्रशासन के अधिकारी भी गुजरते हैं. लेकिन कोई भी इन बच्चों की मासूमियत पर रहम नहीं खाता बल्कि आंखें फेरकर चलते बनते हैं. वहीं प्रदेश में गठित बाल श्रम विभाग की नजर भी इस ओर नहीं जाती. ऐसे में सरकारों की नीतियां भी इन्हीं सड़कों पर दम तोड़ती देखी जाती हैं.

केंद्र सरकार से लेकर प्रदेश सरकार बच्चों का भविष्य सुधारने के लिए विभिन्न योजनाएं बनाती है और करोड़ों रुपये खर्च करती है लेकिन क्या इन योजनाओं का हक उन्हें मिल रहा है जिन्हें मिलना चाहिए था. ये तस्वीर उन योजनाओं पर भी प्रश्नचिन्ह लगाती है. क्या सरकारों के दावे और वादे महज दिखावा होते हैं. सवाल कई हैं लेकिन जवाब शायद किसी के पास नहीं

Intro: (स्पेशल स्टोरी)

स्टोरी - मासूम जिंदगी का तमाशा  

ख़्वाब टूटे हैं मगर हौंसले ज़िन्दा हैं,
हम वो हैं जहां मुश्किलें शर्मिंदा हैं,

एंकर - जी हां उत्तराखण्ड के रूडकी में दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में पांच साल की मासूम अपनी जान जोखम में डालने को मजबूर है। जिस उम्र में बच्ची को स्कूल के आंगन में पढना और खेलना चाहिए था उस उम्र में ये बच्ची सडको पर करतब दिखा रही है। इस उम्र के पडाव में बच्चे जमीन पर चलने में लडखडा जाते है और ये मासूम बच्ची बिना डरे रस्से पर चलकर लोगो को तमाशा दिखा रही है, और लोगो का हुजूम बच्ची के करतब पर तालिया बजा रहे है। इन्ही सडको से बड़े बड़े समाजसेवी और प्रशासन के नुमाइंदे गुजरते है लेकिन कोई भी इन बच्चो को इस मुसीबत से निकालने की जहमत तक गवारा नही करता। सडको पर दम तोड़ता बचपन देश का भविष्य कैसे बनेगा, ये सवाल किसी के भी गले से निचे नही उतर रहा है।

(देखिय ये ख़ास रिपोर्ट) 

वीओ-1- पांच साल की मजबूरी का तमाशा देखने के लिए सडक पर भीड़ देखिय पेट की खातिर जाम जोखम में डालना भी देख लीजिए। ये बच्ची बचपन को दरकिनार कर पेट की आग बुझाने के लिए करतब दिखा रही है। रूडकी की सडको पर स्कुल जाने की उम्र में दो जून की रोटी की जुगत में बच्ची हमारे समाज से कई सवाल पूछ रही हैं।




Body:वीओ-2- जान जोखम में डालकर रस्सी पर चलना इनकी जिंदगी का हिस्सा बन गया है, चन्द रुपयों की खातिर जीवन को खतरे में डालकर मौत की राह पर चलता ये बचपन बताता है की जिन्दगी कितनी सस्ती है।अपने और अपने परिवार के लिए दो वक़्त की रोटी जुटाने के लिए पांच साल की एक मासूम बच्ची रोजाना रस्सी पर चल कर अपनी जान जोखिम में डाल कर लोगो को तमाशा दिखाती है पर कोई भी यह जानने की कौशिश नहीं करता की आखिरकार यह बच्ची ऐसा क्यों कर रही है।

वीओ-3-  जिन सडको पर ये बच्ची तमाशा दिखा रही है उन्ही सडको पर सरकार के नुमाइंदो से लेकर प्रशासन के अधिकारी भी गुजरते है लेकिन कोई भी इन बच्चो की मासूमियत पर रहम नही खाता बल्कि आँखे फेरकर चलते बनते है। वही प्रदेश में गठित बाल श्रम विभाग की नजर भी इस और नही जाती। सरकारों की नीतिया भी इन्ही सडको पर दम तोडती देखी जाती है। केंद्र सरकार से लेकर प्रदेश सरकार बच्चो का भविष्य सुघारने के लिए विभिन्न योजनाए बनाती है और करोड़ो रुपये खर्च करती है लेकिन क्या इन योजनाओ का हक़ उन्हें मिल रहा है, जिन्हें मिलना चाहिए था। ये तस्वीर उन योजनाओ पर भी प्रश्नचिन्ह लगाती है।   Conclusion:वीओ-4-  देश को डिजिटल बनाने के दावे जरा देख लीजिए पेट की भूख मिटाने के लिए मध्य प्रदेश के रहने वाले इस परिवार ने इस वक़्त रूडकी इलाके में अपनी झोपडी डाली हुई है और रोजाना यह परिवार अपने छोटे छोटे बच्चो सहित सडको पर निकल पडता है और कहीं भी जगह देख कर अपना जोखिम भरा खेल शुरू कर देते है, एक रस्से पर पांच साल की यह मासूम अलग अलग तरह के करतब दिखाती है कभी डंडा लेकर रस्से पर चलती है तो कभी पहिये के सहारे रस्से का खतरे वाला रास्ता पूरा करती है और लोगो की भीड़ उसके हैरत अंगेज स्टंड को देखकर दांतों तले ऊँगली दबा लेते है। करतब दिखाने के बाद लोगो से यह मासूम अपने और अपने परिवार के लिए पैसे भी इकठ्ठा करती है। यह खेल एक या दो दिन का नहीं बल्कि प्रति दिन का है क्योंकि पापी पेट का सवाल है इसलिय यह मासूम अपनी जान को रोजाना जोखिम में डालती है।

फाइनल वीओ— ये मासूम बचपन कई तरह के सवाल खड़े करता है। क्या इन जिंदगियो का कोई भविष्य नही है। आखिर कब तक हमारे देश के भविष्य को रस्सी के सहारे भूख मिटाने के लिए जान जोखम में डालनी पड़ेगी। क्या सरकारों के दावे और वादे महज दिखावा होते है। सवाल कई है लेकिन जवाब शायद किसी के पास नही।

बाइट - तमाशबीन बच्ची की माँ
बाइट - तमाशबीन बच्ची
Last Updated : Aug 25, 2019, 11:25 AM IST
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