हमारे देश में महिलाओं के स्वास्थ्य की मौजूदा स्थिति को लेकर एक अध्ययन में चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है. 2015-16 के दौरान कलेक्ट किए गए आंकड़ों के विश्लेषण के मुताबिक, भारत में लगभग 5 फीसदी महिलाओं ने हिस्टेरेक्टॉमी (गर्भाशय को हटाने की सर्जरी) करवाई है, जिसमें भारी मासिक धर्म के दौरान भारी रक्तस्राव इस प्रोसेस से गुजरने वाली महिलाओं में सबसे कॉमन स्थिति है. मुंबई स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज और नई दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर के शोधकर्ताओं ने नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के चौथे फेज के दौरान इकठ्ठा किए गए 25-49 साल की आयु की 4.5 लाख से ज्यादा ग्रामीण और शहरी महिलाओं के आंकड़ों का विश्लेषण किया.
साफ शब्दों मे समझें तो, जर्नल ऑफ मेडिकल एविडेंस में प्रकाशित एक हालिया स्टडी में पाया गया कि 25 से 49 साल की एज की 4.8 फीसदी भारतीय महिलाएं हिस्टेरेक्टॉमी (गर्भाशय को हटाने की सर्जरी) कराती हैं, जो यह दर्शाता है कि 25 से 49 साल की आयु की प्रतेक 100 भारतीय महिलाओं में से लगभग 5 ने हिस्टेरेक्टॉमी करवाई है. इस स्टडी में यह भी पाया गया कि कृषि कार्य से जुड़ी महिलाओं में अन्य व्यवसायों की महिलाओं की तुलना में सर्जरी करवाने की संभावना 32 फीसदी ज्यादा थी.
ग्रामीण इलाकों में महिलाएं अधिक प्रभावित क्यों हैं?
अध्ययनों के मुताबिक आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और बिहार जैसे राज्यों में हिस्टेरेक्टोमी की करना का प्रतिशत सबसे ज्यादा था. यह चिंताजनक प्रवृत्ति सामाजिक-आर्थिक और व्यावसायिक असमानता को उजागर करती है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में या जहां कई महिलाएं सीमित ज्ञान के साथ, बिना यह जाने कि क्या हिस्टेरेक्टॉमी उनके लिए सही है, हिस्टेरेक्टॉमी कराती हैं.
शोध से पता चला है कि महिलाएं कभी-कभी मासिक धर्म के दौरान अचानक अत्यधिक रक्तस्राव (55.4 फीसदी), फाइब्रॉएड (19.6 फीसदी), या गर्भाशय (13.9 फीसदी) जैसी स्थितियों के समाधान के लिए इस विकल्प को चुनती हैं. इसमें यह भी कहा गया कि महिलाओं की एक बड़ी संख्या, खासकर जो गरीब परिवारों से आती हैं और शिक्षित भी नहीं होती हैं, उनपर हिस्टेरेक्टॉमी का विकल्प चुनने का दबाव डाला जाता है जो उनकी जिंदगी और सेहत पर लंबा और स्थायी असर डालने वाला होता है.
शोधकर्ताओं ने कहा कि भारत भर में गर्भाशय निकालने की लगभग दो-तिहाई सर्जरी निजी स्वास्थ्य सुविधाओं में की गई, जिससे पता चलता है कि लाभ की मंशा भी इस बढ़ती प्रवृत्ति में योगदान दे सकती है.
बिना किसी कारण के सर्जरी
अध्ययन में कहा गया है कि समस्या देश के विभिन्न हिस्सों में काफी बढ़ गई है, दक्षिणी राज्यों आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में सबसे अधिक प्रसार दर क्रमशः 12.6 फीसदी और 11.1 फीसदी है, इसके बाद असम में 1.4 फीसदी और मिजोरम में 1.5 फीसदी है. इसके अलावा रिपोर्ट में कहा गया है कि, 67.5 फीसदी सर्जरी देश में विभिन्न निजी अस्पतालों में की जाती हैं और ये संस्थान महिलाओं की सुरक्षा के बजाय खुद के फायदे के लिए यह कदम उठाते हैं. इससे अब कमजोर वर्ग की महिलाओं के शोषण के बारे में नैतिक चिंताएं बढ़ गई हैं.
बिहार, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में गर्भाशय हटाने की दर में वृद्धि का कारण कम पारिवारिक आय है. वहीं, देश में ऐसे कई राज्य हैं, जहां इन स्वास्थ्य योजनाओं का दुरुपयोग किया जा रहा है. केंद्र सरकार ने देश के लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए विभिन्न योजनाएं जारी की हैं, लेकिन इसका योजनाओं का दुरुपयोग किया जा रहा है.
क्या होता है हिस्टेरेक्टॉमी
हमारे देश की महिलाओं में भी गर्भाशय निकलवाने का चलन धीरे धीरे तेजी से बढ़ रहा है. पहले तो यह स्वास्थ्य कारणों से किया जा रहा था, लेकिन अब इसके पीछे कई और भी कारण बढ़ते जा रहे हैं. हिस्टेरेक्टॉमी, गर्भाशय को निकालने की शल्यक्रिया है. इसमें गर्भाशय के साथ-साथ आस-पास के अंगों और ऊतकों को भी हटाया जा सकता है. हिस्टेरेक्टॉमी के बाद मासिक धर्म नहीं आता और गर्भधारण नहीं किया जा सकता.
हिस्टेरेक्टॉमी यानी गर्भाशय को हटाने की सर्जरी के कुछ साइड इफेक्ट ये हो सकते हैं, जैसे कि...
- सर्जरी के बाद आपको कुछ दिनों तक योनि से खून स्राव की संभावना होने की संभावना होती है. जबकि सर्जरी के बाद ये समस्या काफी सामान्य कही जाती है.
- कुछ दिनों तक सर्जरी वाली जगह पर अधिक तेजी से दर्द भी होता है.
- प्रभावित हिस्से में सूजन या चोट जैसा महसूस होता है.
- सर्जरी के आसपास जलन या खुजली के लक्षण दिखायी देते हैं.
- निचले शरीर के कुछ हिस्सों में सुन्न पड़ने जैसे लक्षण दिखते हैं.
- इस सर्जरी के बाद महिला के गर्भवती होने की संभावनाएं खत्म हो जाती हैं.
- महिलाओं के मासिक धर्म भी रुक जाते हैं.
- महिला की योनि में सूखापन महसूस होने लगता है.
- सेक्स के दौरान दर्द अधिक हो सकता है.
- सेक्स ड्राइव में कमी आने की संभावना होती है.
ऐसी हैं भविष्य की चिंताएं
इन सभी कारणों से स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में बहुत कम उम्र की महिलाओं में भी गर्भाशय निकलवाने के मामले बहुत अधिक सामने आ रहे हैं, जो महिलाओं के शारीरिक, सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य का बोझ डाल सकते हैं. इसलिए परिवारों को ऐसे मुद्दों के बारे में जागरूक करने की जरूरत है ताकि महिलाओं को बेहतर चिकित्सा सलाह मिलने में मदद मिल सके.
सोर्स-https://pmc.ncbi.nlm.nih.gov/articles/PMC10854047/
(डिस्क्लेमर: यहां, आपको प्रदान की गई सभी जानकारी और सिफारिशें केवल आपकी समझ के लिए हैं. हम यह जानकारी वैज्ञानिक अनुसंधान, अध्ययन, चिकित्सा और स्वास्थ्य पेशेवर सलाह के आधार पर प्रदान करते हैं. हमारा सुझाव है कि आप इनका पालन करने से पहले अपने निजी चिकित्सक से परामर्श लें.)