विकासनगर: जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र में नगऊ गांव में साल 1884 में बना मकान आज भी बरकरार है. यह मकान लकड़ी और पत्थरों से तैयार किया गया है, जिसकी काष्ठ कला देखते ही बनती है. तीन मंजिल के इस मकान की बुनियाद पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है, जबकि ऊपरी ढांचा लकड़ी का बना है. करीब 137 साल जब इस तीन मंजिला इमारत का निर्माण हुआ, उस समय देश में अंग्रेजों का शासन था.
भवन स्वामी हरदेव सिंह तोमर बताते हैं कि उनके दादा-नाना ने साल 1884 में यह भवन बनाया था. लकड़ी का यह भवन 3 मंजिला है. इस मकान के दरवाजे काफी छोटे हैं. वो इतने छोटे कि मकान के अंगर कोई आसानी प्रवेश न कर पाए. ऐसे में अगर चोर अंदर चला भी जाए तो उसे आसानी से पकड़ लिया जाए. हरदेव बताते हैं कि उस समय चोरों का भय रहता था इसलिए इस मकान के दरवाजे छोटे बनाए गए थे.
भूकंप रोधी है मकान
हरदेव बताते हैं कि लकड़ी का यह मकान भूकंप रोधी है. यही वजह है कि 137 साल बाद भी यह मकान वैसा ही है. उन्होंने बताया कि सातवीं पीढ़ी मकान की देखभाल कर रही है. उन्होंने बताया कि बरसात के समय मकान में एक बूंद पानी नीचे नहीं आता. इसीलिए वो इस मकान में ज्यादातर आनाज रखते हैं. मकान में अनाज रखने के लिए कोठार भी बनाए गए है.
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इस मकान में चारों ओर पत्थरों के पिलर व लकड़ी की बल्लियों लगी हैं, जबकि छत में देवदार की लकड़ी का इस्तेमाल किया गया है, जिससे कि मकान की भव्यता देखते ही बनती है. साथ ही इन दरवाजों में पुरानी तकनीकी से लॉक लगता है, जिसमें एक टेढ़ी सरिया (चाबी) का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में तावा कहा जाता है.
लकड़ी पर बनी है खूबसूरत डिजाइन
इस भवन में लगी लकड़ी पर बेहद खूबसूरत डिजाइन बनाई गई है. मकान के मालिक हरदेव सिंह तोमर कहते हैं कि परिवार काफी बड़ा होने के चलते उन्होंने गांव में रहने के लिए और मकान बनाए हैं. लेकिन इस मकान को हमने धरोहर के रूप में संजोए रखा है.