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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: महिलाओं को आत्मनिर्भर होने की जरूरत

बीते कुछ सालों में हमारे समाज की महिलाओं के मौलिक अधिकारों को लेकर मानसिकता कितनी बदली है. इसको लेकर ईटीवी भारत ने अलग-अलग कार्य क्षेत्रों से जुड़ी महिलाओं से खास बातचीत की.

Dehradun Hindi News
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Published : Mar 8, 2020, 3:04 PM IST

देहरादून: विश्वभर में महिलाओं के सम्मान में महिला दिवस मनाया जा रहा है, लेकिन यह बड़ा सवाल है कि आखिर बीते कुछ सालों में हमारे समाज की महिलाओं के मौलिक अधिकारों को लेकर मानसिकता कितनी बदल पाई है. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर कुछ इन्हीं सवालों के साथ ईटीवी भारत में अलग-अलग कार्य क्षेत्रों से जुड़ी महिलाओं से खास बातचीत की. जिसमें बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष उषा नेगी समेत समाज सेवा और शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ी विभिन्न महिलाओं ने खुल कर अपनी बात रखी.

महिलाओं को आत्मनिर्भर होने की जरूरत.

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को लेकर उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष उषा नेगी का कहना था कि महिला दिवस मनाए जाने की वजह से आज महिलाओं को काफी हद तक समाज में सम्मान मिलने लगा है, लेकिन अभी भी महिलाओं को और अधिक आत्मनिर्भर होने की जरूरत है. यदि महिलाएं अपने आप में आत्मनिर्भर बनती हैं, तो वह अपने साथ हो रहे किसी भी तरह के शोषण का हिम्मत से सामना कर सकती हैं.

वहीं, दूसरी तरफ समाजसेवी साधना शर्मा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि भले ही महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की बात की जा रही है. महिलाएं अपने आप में आत्मनिर्भर बन भी रही है, लेकिन इसके बावजूद आज भी कई घरों में महिलाएं हिंसा का शिकार हो रही हैं. ऐसे में जरूरत है कि महिलाएं अपने अधिकारों को लेकर और अधिक जागरूक हो और अपने अधिकार के लिए खुद आवाज उठाएं.

कई महिलाओं ने ईटीवी भारत के साथ अपने अनुभव साझा किए. इस दौरान उन्होंने बताया कि वह खुद अपने घरों में घरेलू हिंसा का शिकार हुई हैं, लेकिन अपने सम्मान का ख्याल रखते हुए उन्होंने इसे सहने की बजाय इसके खिलाफ आवाज उठाना बेहतर समझा. अपने घरों में किसी भी तरह के हिंसा का शिकार हो रही अन्य महिलाओं के लिए इन महिलाओं ने यही संदेश दिया कि अपने घर में हिंसा का शिकार हो रही किसी भी महिला को समाज के बंधनों को तोड़कर अपने लिए खुद ही आवाज उठानी होगी. अन्यथा महिलाएं इसी तरह घरेलू हिंसा का आगे भी शिकार होती रहेंगी.

पढ़ें- अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर जानिए, उत्तराखंड की इन बेटियों की अनसुनी कहानियां

कब हुई शुरुआत

बता दें, विश्व स्तर पर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाए जाने की शुरुआत भी तभी हो पाई थी, जब महिलाओं ने अपने हकों के लिए आवाज बुलंद की थी. 19वीं सदी के आते-आते अमेरिका की महिलाओं ने अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता दिखानी शुरू कर दी थी. जिसके तहत यहां की 15000 महिलाओं ने अपने लिए मताधिकार की मांग की थी. साथ ही उन्होंने अपने अच्छे वेतन और काम के घंटे कम करने के लिए भी मार्च निकाला था । ऐसे में यूनाइटेड स्टेट्स में 28 फरवरी 1909 को पहली बार राष्ट्र महिला दिवस मनाया गया था, लेकिन साल 1975 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने 8 मार्च के दिन को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के तौर पर मनाने की शुरुआत की थी.

देहरादून: विश्वभर में महिलाओं के सम्मान में महिला दिवस मनाया जा रहा है, लेकिन यह बड़ा सवाल है कि आखिर बीते कुछ सालों में हमारे समाज की महिलाओं के मौलिक अधिकारों को लेकर मानसिकता कितनी बदल पाई है. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर कुछ इन्हीं सवालों के साथ ईटीवी भारत में अलग-अलग कार्य क्षेत्रों से जुड़ी महिलाओं से खास बातचीत की. जिसमें बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष उषा नेगी समेत समाज सेवा और शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ी विभिन्न महिलाओं ने खुल कर अपनी बात रखी.

महिलाओं को आत्मनिर्भर होने की जरूरत.

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को लेकर उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष उषा नेगी का कहना था कि महिला दिवस मनाए जाने की वजह से आज महिलाओं को काफी हद तक समाज में सम्मान मिलने लगा है, लेकिन अभी भी महिलाओं को और अधिक आत्मनिर्भर होने की जरूरत है. यदि महिलाएं अपने आप में आत्मनिर्भर बनती हैं, तो वह अपने साथ हो रहे किसी भी तरह के शोषण का हिम्मत से सामना कर सकती हैं.

वहीं, दूसरी तरफ समाजसेवी साधना शर्मा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि भले ही महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की बात की जा रही है. महिलाएं अपने आप में आत्मनिर्भर बन भी रही है, लेकिन इसके बावजूद आज भी कई घरों में महिलाएं हिंसा का शिकार हो रही हैं. ऐसे में जरूरत है कि महिलाएं अपने अधिकारों को लेकर और अधिक जागरूक हो और अपने अधिकार के लिए खुद आवाज उठाएं.

कई महिलाओं ने ईटीवी भारत के साथ अपने अनुभव साझा किए. इस दौरान उन्होंने बताया कि वह खुद अपने घरों में घरेलू हिंसा का शिकार हुई हैं, लेकिन अपने सम्मान का ख्याल रखते हुए उन्होंने इसे सहने की बजाय इसके खिलाफ आवाज उठाना बेहतर समझा. अपने घरों में किसी भी तरह के हिंसा का शिकार हो रही अन्य महिलाओं के लिए इन महिलाओं ने यही संदेश दिया कि अपने घर में हिंसा का शिकार हो रही किसी भी महिला को समाज के बंधनों को तोड़कर अपने लिए खुद ही आवाज उठानी होगी. अन्यथा महिलाएं इसी तरह घरेलू हिंसा का आगे भी शिकार होती रहेंगी.

पढ़ें- अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर जानिए, उत्तराखंड की इन बेटियों की अनसुनी कहानियां

कब हुई शुरुआत

बता दें, विश्व स्तर पर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाए जाने की शुरुआत भी तभी हो पाई थी, जब महिलाओं ने अपने हकों के लिए आवाज बुलंद की थी. 19वीं सदी के आते-आते अमेरिका की महिलाओं ने अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता दिखानी शुरू कर दी थी. जिसके तहत यहां की 15000 महिलाओं ने अपने लिए मताधिकार की मांग की थी. साथ ही उन्होंने अपने अच्छे वेतन और काम के घंटे कम करने के लिए भी मार्च निकाला था । ऐसे में यूनाइटेड स्टेट्स में 28 फरवरी 1909 को पहली बार राष्ट्र महिला दिवस मनाया गया था, लेकिन साल 1975 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने 8 मार्च के दिन को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के तौर पर मनाने की शुरुआत की थी.

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