देहरादून: अपनी शांत और सुरक्षित आबो हवा के लिए जाने वाले पर्वतीय प्रदेश उत्तराखंड में भी साल दर साल महिला उत्पीड़न से जुड़े मामलों में इजाफा होता जा रहा है. राज्य महिला आयोग में इस साल अप्रैल माह से अभी तक 1,052 महिला उत्पीड़न से जुड़े मामले दर्ज हो चुके हैं. वहीं अगर बात साल 2018-19 की जाए तो पिछले वित्तीय वर्ष में प्रदेश के विभिन्न जनपदों से 1474 महिला उत्पीड़न से जुड़े मामले राज्य महिला आयोग में दर्ज हुए थे. गौरतलब है कि ये सभी मामले महिलाओं के मानसिक उत्पीड़न, घरेलू हिंसा, शारीरिक उत्पीड़न और जान-माल की सुरक्षा से जुड़े हैं. इन मामलों को लेकर जनपद देहरादून पहले स्थान पर काबिज है.
बता दें कि इस साल जनपद देहरादून से महिलाओं के मानसिक उत्पीड़न के 120 मामले अब तक राज्य महिला आयोग में दर्ज कराए जा चुके हैं. वहीं दूसरे स्थान पर धर्मनगरी हरिद्वार का नाम है, जहां से महिलाओं के मानसिक उत्पीड़न के 25 मामले दर्ज हुए हैं. वहीं तीसरे स्थान पर उधम सिंह नगर जनपद है, जहां से महिलाओं के मानसिक उत्पीड़न के 21 मामले दर्ज हुए हैं. वही चौथा स्थान सरोवर नगरी नैनीताल का है, जहां से महिलाओं के मानसिक उत्पीड़न के 21 मामले राज्य महिला आयोग में दर्ज कराए गए हैं.
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प्रदेश में साल दर साल बढ़ रहे महिला उत्पीड़न से जुड़े मामलों को लेकर उत्तराखंड राज्य महिला आयोग की अध्यक्षा विजया बड़थ्वाल ने भी चिंता जाहिर की है. उन्होंने बताया कि किसी भी रिश्ते के टूटने की एक बड़ी वजह सामंजस्य की कमी और शक की बीमारी होती है. आज लोग सोशल मीडिया में जान- पहचान बढ़ा कर शादी के बंधन में बंध रहे रहें हैं. लेकिन विश्वास की कमी के चलते यह रिश्ते कम समय में ही टूट रहे हैं.
साथ ही कहा कि महिला हो या पुरुष दोनों के लिए ही यह बेहद जरूरी है कि वे रिश्ते के शुरुआती दौर में ही अपनी आर्थिक और पारिवारिक स्थिति का सही तौर पर खुलासा करें. लोग शुरुआती दौर में एक दूसरे से अपनी वास्तविक स्थिति को छुपाते हैं. जो रिश्ते में बंधने के बाद आगे चलकर लड़ाई झगड़े और मानसिक उत्पीड़न का रूप ले लेती हैं.
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साथ ही बताया कि जिस तरह से आज 1 साल पूरा होने से पहले ही शादियां टूट रही है. उसे देखते हुए राज्य महिला आयोग जल्द ही प्री- मैरिज काउंसलिंग शुरू कराने जा रहा है. जिसके लिए शासन को जल्द ही प्रस्ताव भेजा जाएगा.