देहरादून: उत्तराखंड में राजनीतिक पार्टियों में यूं तो सूरमाओं की भरमार है, लेकिन इनमें एक भी ऐसा नहीं है जिस पर पार्टी चुनाव को लेकर दांव खेल सके. राज्य के इतिहास में अब तक केवल भाजपा में बीसी खंडूरी के चेहरे पर ही एक बार चुनाव लड़ा गया, लेकिन तब पार्टी हार गई थी. हालांकि इससे पहले और ना ही इसके बाद किसी भी दल ने चेहरे पर चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटाई.
उत्तराखंड में राजनीतिक रूप से भाजपा और कांग्रेस बारी-बारी सत्ता का सुख भोगती रही हैं. ऐसे कम ही मौके आए हैं जब दिग्गजों की भरमार रखने वाले इन दोनों दलों ने किसी को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया हो. ऐसा नहीं है कि इन दलों के पास प्रदेश स्तरीय साख रखने वाले नेताओं की कमी हो. लेकिन राजनीति में बेहद ज्यादा महत्वकांक्षा रखने वाले नेताओं की वजह से इन दोनों ही दलों ने ऐसा करने से परहेज किया है.
साल 2022 में उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव हैं. एक बार फिर चर्चा इस बात पर है कि राज्य की मुख्य तीन पार्टियां भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में चुनावी चेहरा कौन होगा. या पार्टी अपने किस नेता को सीएम के रूप में प्रोजेक्ट करेगी.
बीजेपी ने संसदीय कमेटी पर छोड़ी बात
राज्य में सत्ता भाजपा की है. लिहाजा सबसे पहली चर्चा भाजपा से ही निकल कर आई है. यूं तो मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ही राज्य में भाजपा की राजनीतिक रूप से कमान संभाल रहे हैं. लेकिन इसके बावजूद भी अब तक यह तय नहीं है कि आने वाले चुनाव में उत्तराखंड भाजपा का चेहरा त्रिवेंद्र सिंह रावत ही होंगे. हालांकि पार्टी के नेता यह कहते हैं कि उन्हें पूरी उम्मीद है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत को ही पार्टी चेहरा बनाएगी, लेकिन संसदीय कमेटी के निर्णय के बाद ही इस पर अंतिम फैसला होगा.
पुराने इतिहास से डरी है बीजेपी
पुराना इतिहास देखकर लगता नहीं कि राज्य में त्रिवेंद्र सिंह रावत भाजपा का चेहरा होंगे. क्योंकि इससे पहले बीसी खंडूरी को चेहरा बनाकर भाजपा चुनावी मैदान में परास्त हो चुकी है. उधर त्रिवेंद्र सिंह रावत राज्य में अपने चेहरे पर जीत दिला पाएंगे यह भी कहना मुश्किल है.
हरीश रावत ने उठा रखा है झंडा लेकिन कानाफूसी भी है !
इन सब चर्चाओं के बीच पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का कांग्रेस की तरफ से नाम सामने आता रहा है. यूं तो प्रदेश में सबसे अनुभवी नेता के रूप में हरीश रावत जाने जाते हैं, लेकिन कानाफूसी में कांग्रेसी यह कहने से भी नहीं चूकते कि जिस व्यक्ति के नेतृत्व में राज्य में कांग्रेस का सबसे खराब प्रदर्शन हुआ हो, पार्टी की महज 11 सीटें आई हों उसके चेहरे पर कांग्रेस कैसे चुनाव लड़ सकती है. इन सब से बेफिक्र हरीश रावत मैदान में डटे हुए हैं. उधर प्रीतम सिंह भी अपनी लॉबी का नेतृत्व करते हुए कमान अपने हाथ में रखना चाहते हैं.
आम आदमी पार्टी के पास नहीं बड़ा चेहरा
राज्य में तीसरा नाम आम आदमी पार्टी का है जो पिछले कुछ समय से काफी चर्चाओं में है. खासतौर पर दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के उत्तराखंड दौरे के बाद तो पार्टी ने काफी ज्यादा गेन किया है. हालांकि यह सब सोशल मीडिया पर हुए प्रचार के लिहाज से ही माना जा रहा है. वैसे आम आदमी पार्टी के नेताओं की मानें तो उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी चेहरे पर ही चुनाव लड़ेगी. इसके लिए किसी बड़े और ईमानदार चेहरे की तलाश की जा रही है. हालांकि मौजूदा स्थितियों में उम्मीद कम ही है कि आम आदमी पार्टी को सर्वमान्य रूप से कोई चेहरा मिल पाएगा जो जीत दिलाने का माद्दा रखता हो. बावजूद इसके आम आदमी पार्टी पहली बार बड़े स्तर पर राज्य में चुनाव लड़ने जा रही है. ऐसे में आने वाला समय ही तय करेगा कि पार्टी क्या वाकई किसी चेहरे पर चुनाव लड़ेगी. हालांकि इससे इत्तेफाक ना रखने वाले आम आदमी पार्टी के नेता मानते हैं कि पार्टी के बड़े नेताओं की तरफ से यह तय कर लिया गया है कि चुनाव तो चेहरे पर ही लड़ा जाएगा.
चुनाव को सिर्फ साल भर बचा है. बीजेपी और कांग्रेस की ओर से नहीं लगता कि वो किसी एक नेता को चेहरा घोषित कर गुटबाजी को और बढ़वा दें. रही बात आम आदमी पार्टी की तो उसे इस चुनाव में दिखाना है कि वो बीजेपी और कांग्रेस के मुकाबले खड़ी हो सकती है. इसके लिये वो किसी नेता को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बताकर पार्टी का चेहरा बना सकते हैं.