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'अनिश्चितकाल के लिए अवैध बांग्लादेशियों को वापस भेजने के बजाए हिरासत में क्यों रखा' सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा - SC ON ILLEGAL BANGLADESHI

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा है कि, अनिश्चित काल के लिए सैकड़ों अवैध बांग्लादेशी अप्रवासियों को हिरासत शिविरों में रखने का क्या मतलब है.

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सुप्रीम कोर्ट (ETV Bharat)
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By Sumit Saxena

Published : Feb 3, 2025, 9:43 PM IST

Updated : Feb 3, 2025, 10:06 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि, वह रिकॉर्ड में लाए कि विदेशी अधिनियम के तहत दोषी ठहराए जाने और पूरी सजा काट लेने के बाद आज की तारीख में कितने अवैध अप्रवासी विभिन्न हिरासत शिविरों, सुधार गृहों में हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अवैध अप्रवासी होने के लिए दोषी ठहराए जाने के बाद भी सैकड़ों अवैध बांग्लादेशी अप्रवासियों को हिरासत केंद्रों में रखने के उद्देश्य पर भी सवाल उठाया.

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने 30 जनवरी को पारित आदेश में सरकार से पूछा कि वह अपने स्वयं के दिशानिर्देश का पालन क्यों नहीं कर रही है कि, उन्हें भारत में अनधिकृत रूप से रहते हुए पाए जाने की तारीख से 30 दिनों के भीतर निर्वासित किया जाना चाहिए. भारत सरकार द्वारा 25 नवंबर, 2009 को जारी परिपत्र के खंड 2(v) का हवाला देते हुए, बेंच ने कहा कि, इसे पढ़ने से यह स्पष्ट है कि निर्वासन, सत्यापन आदि की पूरी प्रक्रिया 30 दिनों की अवधि के भीतर पूरी की जानी है.

बेंच ने पूछा, "हम आज की तारीख तक के आंकड़े जानना चाहेंगे. कितने अवैध अप्रवासी आज की तारीख तक विभिन्न हिरासत शिविरों, सुधार गृहों में हैं, जिन्हें दोषी ठहराया गया है और जिन्होंने विदेशी अधिनियम के तहत पूरी सजा काट ली है?"

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि वह सरकार से यह जानना चाहेगी कि एक बार बांग्लादेश से आए अवैध अप्रवासी को कथित अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने के बाद, क्या यह स्थापित नहीं हो जाता कि वह भारत का नागरिक नहीं है. "ऐसे सैकड़ों अवैध अप्रवासियों को अनिश्चित काल के लिए हिरासत शिविरों,सुधार गृहों में रखने का क्या मतलब है?"

सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाई कोर्ट द्वारा दर्ज एक स्वप्रेरणा मामले की सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया, जिसे बाद में उसके पास ट्रांसफर कर दिया गया था. यह मामला उन अप्रवासियों के मुद्दे पर था, जो विदेशी अधिनियम, 1946 के तहत दोषी ठहराए जाने के बाद भी हिरासत गृहों में सड़ रहे थे. पीठ ने आलोचना की कि लगभग 12 साल पहले यह मामला उसके पास स्थानांतरित कर दिया गया था, "लेकिन आज तक कोई और प्रगति नहीं हुई है."

बेंच ने कहा, "प्रासंगिक समय पर, जब याचिका दायर की गई थी, ऐसा प्रतीत होता है कि सुधार गृहों में लगभग 850 अवैध अप्रवासी हिरासत में थे." पीठ ने कहा कि, महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि, यदि बांग्लादेश से अवैध अप्रवासी को "विदेशी अधिनियम, 1946 की धारा 14ए(बी) के तहत गिरफ्तार करके कार्यवाही की जाती है और उसे दोषी ठहराया जाता है और उसे कारावास की एक विशेष अवधि की सजा सुनाई जाती है.

ऐसे में सजा की अवधि पूरी होने के बाद उसे तुरंत अपने देश वापस भेज दिया जाना चाहिए या उसे भारत में सुधार गृहों में अनिश्चित काल के लिए रखा जाना चाहिए." पीठ ने आगे पूछा, एक बार जब किसी अवैध अप्रवासी पर मुकदमा चलाया जाता है और उसे दोषी ठहराया जाता है, तो विदेश मंत्रालय के स्तर पर उसकी राष्ट्रीयता के आगे सत्यापन की क्या आवश्यकता है?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, वह जानना चाहता है कि, इस खंड 2(v) का सख्ती से अनुपालन क्यों नहीं किया जा रहा है. अदालत ने कहा, "हम पश्चिम बंगाल राज्य से यह भी जानना चाहेंगे कि क्या इस मुकदमे में उनकी कोई भूमिका है. हम भारत संघ से यह भी जानना चाहेंगे कि इस प्रकार के मामलों में पश्चिम बंगाल राज्य से क्या अपेक्षा की जाती है." सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और पश्चिम बंगाल सरकार दोनों को मामले के सभी प्रासंगिक पहलुओं को स्पष्ट करते हुए एक उचित रिपोर्ट या हलफनामे के माध्यम से अपना रुख रिकॉर्ड पर रखने का एक आखिरी अवसर दिया.

ये भी पढ़ें: PG मेडिकल प्रवेश में राज्य कोटे का आरक्षण समाप्त: सुप्रीम कोर्ट ने बताया असंवैधानिक

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि, वह रिकॉर्ड में लाए कि विदेशी अधिनियम के तहत दोषी ठहराए जाने और पूरी सजा काट लेने के बाद आज की तारीख में कितने अवैध अप्रवासी विभिन्न हिरासत शिविरों, सुधार गृहों में हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अवैध अप्रवासी होने के लिए दोषी ठहराए जाने के बाद भी सैकड़ों अवैध बांग्लादेशी अप्रवासियों को हिरासत केंद्रों में रखने के उद्देश्य पर भी सवाल उठाया.

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने 30 जनवरी को पारित आदेश में सरकार से पूछा कि वह अपने स्वयं के दिशानिर्देश का पालन क्यों नहीं कर रही है कि, उन्हें भारत में अनधिकृत रूप से रहते हुए पाए जाने की तारीख से 30 दिनों के भीतर निर्वासित किया जाना चाहिए. भारत सरकार द्वारा 25 नवंबर, 2009 को जारी परिपत्र के खंड 2(v) का हवाला देते हुए, बेंच ने कहा कि, इसे पढ़ने से यह स्पष्ट है कि निर्वासन, सत्यापन आदि की पूरी प्रक्रिया 30 दिनों की अवधि के भीतर पूरी की जानी है.

बेंच ने पूछा, "हम आज की तारीख तक के आंकड़े जानना चाहेंगे. कितने अवैध अप्रवासी आज की तारीख तक विभिन्न हिरासत शिविरों, सुधार गृहों में हैं, जिन्हें दोषी ठहराया गया है और जिन्होंने विदेशी अधिनियम के तहत पूरी सजा काट ली है?"

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि वह सरकार से यह जानना चाहेगी कि एक बार बांग्लादेश से आए अवैध अप्रवासी को कथित अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने के बाद, क्या यह स्थापित नहीं हो जाता कि वह भारत का नागरिक नहीं है. "ऐसे सैकड़ों अवैध अप्रवासियों को अनिश्चित काल के लिए हिरासत शिविरों,सुधार गृहों में रखने का क्या मतलब है?"

सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाई कोर्ट द्वारा दर्ज एक स्वप्रेरणा मामले की सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया, जिसे बाद में उसके पास ट्रांसफर कर दिया गया था. यह मामला उन अप्रवासियों के मुद्दे पर था, जो विदेशी अधिनियम, 1946 के तहत दोषी ठहराए जाने के बाद भी हिरासत गृहों में सड़ रहे थे. पीठ ने आलोचना की कि लगभग 12 साल पहले यह मामला उसके पास स्थानांतरित कर दिया गया था, "लेकिन आज तक कोई और प्रगति नहीं हुई है."

बेंच ने कहा, "प्रासंगिक समय पर, जब याचिका दायर की गई थी, ऐसा प्रतीत होता है कि सुधार गृहों में लगभग 850 अवैध अप्रवासी हिरासत में थे." पीठ ने कहा कि, महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि, यदि बांग्लादेश से अवैध अप्रवासी को "विदेशी अधिनियम, 1946 की धारा 14ए(बी) के तहत गिरफ्तार करके कार्यवाही की जाती है और उसे दोषी ठहराया जाता है और उसे कारावास की एक विशेष अवधि की सजा सुनाई जाती है.

ऐसे में सजा की अवधि पूरी होने के बाद उसे तुरंत अपने देश वापस भेज दिया जाना चाहिए या उसे भारत में सुधार गृहों में अनिश्चित काल के लिए रखा जाना चाहिए." पीठ ने आगे पूछा, एक बार जब किसी अवैध अप्रवासी पर मुकदमा चलाया जाता है और उसे दोषी ठहराया जाता है, तो विदेश मंत्रालय के स्तर पर उसकी राष्ट्रीयता के आगे सत्यापन की क्या आवश्यकता है?

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, वह जानना चाहता है कि, इस खंड 2(v) का सख्ती से अनुपालन क्यों नहीं किया जा रहा है. अदालत ने कहा, "हम पश्चिम बंगाल राज्य से यह भी जानना चाहेंगे कि क्या इस मुकदमे में उनकी कोई भूमिका है. हम भारत संघ से यह भी जानना चाहेंगे कि इस प्रकार के मामलों में पश्चिम बंगाल राज्य से क्या अपेक्षा की जाती है." सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और पश्चिम बंगाल सरकार दोनों को मामले के सभी प्रासंगिक पहलुओं को स्पष्ट करते हुए एक उचित रिपोर्ट या हलफनामे के माध्यम से अपना रुख रिकॉर्ड पर रखने का एक आखिरी अवसर दिया.

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Last Updated : Feb 3, 2025, 10:06 PM IST
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