देहरादून: कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले करीब एक महीने से दिल्ली में किसानों का आंदोलन जारी है. वहीं, उत्तराखंड में भी कुछ क्षेत्रों में ना सिर्फ किसानों का आंदोलन देखा गया, बल्कि कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी पार्टियों ने भी कृषि कानून के खिलाफ जमकर केंद्र सरकार पर हमला बोला. वर्तमान समय में देश भर में किसानों का मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि साल 2022 में उत्तराखंड विधानसभा चुनाव होना है. तो क्या आगामी चुनाव में इसका असर देखने को मिलेगा. आखिर क्या है इसके पीछे की वास्तविकता, प्रदेश के किन क्षेत्रों पर पड़ सकता है किसानों आंदोलन का असर? देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.
भारत की कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा आज भी किसानी करता है. ऐसे में केंद्र सरकार ने किसानों के हितों के संरक्षण को लेकर कृषि कानूनों को लागू किया, लेकिन कृषि कानून लागू होने के बाद से ही देश भर के कई हिस्सों में किसान इस कानून का विरोध कर रहे हैं. यही नहीं, केंद्र सरकार द्वारा कानूनों में बदलाव न किए जाने पर दिल्ली पहुंचे किसान पिछले 28 दिनों से कृषि कानून के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं. हालांकि कई दौर की वार्ता होने के साथ ही केंद्र सरकार ने किसान नेताओं को बातचीत के लिए कई बार पत्राचार भी कर चुकी है. ताकि बैठकर इस मामले का हल निकाला जा सके, लेकिन अभी तक किसान आंदोलन की स्थिति स्पष्ट नहीं हो पायी है.
राज्य सरकार ने कृषि कानूनों के समर्थन में रैलियां भी निकाली थी. भाजपा सरकार द्वारा कई हिस्सों में रैली निकाली गई और किसानों को कृषि कानून को हितकारी बताने की कोशिश की. वहीं, इन रैलियों का विपक्षी नेताओं ने बड़ा विरोध किया. भाजपा ने कृषि कानूनों के समर्थन में 17 दिसंबर को रुद्रपुर से किसान रैली निकालकर रैलियों की शुरूआत की थी. रैली के दौरान भाजपा कार्यकर्ता और किसानों को कई जगह विरोध का भी सामना करना पड़ा. यही नहीं, गदरपुर में कैबिनेट मंत्री अरविंद पांडेय की कार पर चूड़ियां तक फेंकी गयी. साथ ही रुद्रपुर में विधायक राजकुमार ठुकराल के वाहन पर संतरे फेंके गए.
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वहीं, वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत का कहना है कि सबसे पहले उत्तराखंड का भूगोल समझना बेहद जरूरी है. क्योंकि उत्तराखंड राज्य की स्थिति अन्य राज्यों से बेहद भिन्न है. खासतौर पर उत्तराखंड राज्य के मात्र 13 फीसदी भूभाग पर ही खेती होती है. यह खेती मुख्य रूप से मैदानी जिलों में ही होती हैं. हालांकि, पर्वतीय क्षेत्रों में अभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रभाव है. राज्य सरकार पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि कानून को किसानों के पक्ष में तो बता रही है, लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि है ही नहीं. अगर पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि होती तो वहां से पलायन भी नहीं होता. लिहाजा कुल मिलाकर देखें तो इस कृषि कानून का असर मुख्य रूप से प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में देखने को मिलेगा. ऐसे में आगामी साल 2022 विधानसभा चुनाव में भाजपा को इस कृषि कानून से नुकसान होने की संभावना है.
क्या कहते हैं सियासतदान
साल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में कृषि कानून के असर के सवाल पर कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना का कहना है कि प्रदेश के जो मैदानी जिले हैं, जहां उपज ज्यादा होती है. उन क्षेत्रों में कृषि कानून का काफी असर देखा जाएगा. इसके साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों के लोग भी इस बात को समझ रहे हैं कि किसानों के साथ भाजपा सरकार गलत कर रही है. ऐसे में उत्तराखंड की राजनीति में इन कृषि कानूनों का असर साफ तौर पर देखा जायेगा.
वहीं, कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने कृषि कानून का उत्तराखंड की राजनीति पर पड़ने वाले असर को सिरे से नकार दिया. साथ ही उन्होंने कहा कि अमेरिका में भी इसी तरह का बिल आया है और अमेरिका के निवासियों को इस बिल का फायदा हो रहा है. ऐसे में लोगों को मिलकर सहयोग देने की जरूरत है. वही, भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष देवेंद्र भसीन ने बताया कि कांग्रेस जिस तरह से कृषि कानून का विरोध कर रही है. आने वाले समय में उन्हें इसका नुकसान उठाना पड़ेगा. क्योंकि देश का किसान अब इस बात को समझने लगा है कि ये कृषि कानून उनके हित में है, लेकिन कांग्रेस बिचौलियों का साथ देते हुए किसानों को भ्रमित करने का काम कर रही है.
अगर ऐसे ही किसान आंदोलन चलता रहा तो आगामी साल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान इसका असर देखा जा सकता है. उत्तराखंड राज्य की परिस्थितियां अन्य राज्यों से भिन्न है लेकिन उत्तराखंड राज्य में भी करीब 13 फीसदी भू-भाग पर खेती की जाती है. यह खेती मुख्य रूप से प्रदेश के मैदानी जिलों देहरादून, हरिद्वार और उधमसिंह नगर में होती है. ऐसे में अगर किसान आंदोलन का मामला शांत नहीं होता है तो आने वाले विधानसभा चुनाव पर इसका असर पड़ सकता है.