देहरादून: पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत एक बार फिर चर्चाओं में हैं. इस बार उनकी चर्चा बीजेपी नेताओं से मुलाकातों को लेकर हो रही है. चुनाव में मिली हार के बाद इन दिनों हरीश रावत मुख्यमंत्री से लेकर विधानसभा अध्यक्ष और मंत्रियों से लेकर भाजपा विधायकों से मिल रहे हैं. ऐसे में इन मुलाकातों के मायने राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बने हुए हैं.
राजनीति में हरीश रावत की हर गतिविधि किसी सोची समझी रणनीति के तहत मानी जाती है. इन दिनों हरीश रावत का मुख्यमंत्री मंत्री और विधायकों से मिलना भी इसी ऐसी ही रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. हालांकि, इसके पीछे क्या वजह है? यह कहना तो मुश्किल है, लेकिन राजनीतिक रूप से इसके पीछे उनके भविष्य की चिंता दिखाई देती है.
हरीश रावत अपनी उम्र के चलते भविष्य में राजनीतिक में धीरे-धीरे ज्यादा एक्टिव नहीं रह पाएंगे, लिहाजा उन्होंने अपनी बेटी को विरासत के रूप में राजनीति सौंप दी है. माना जा रहा है कि अपने सरल स्वभाव और बेहतर संवाद के जरिए हरीश रावत अपनी बेटी की राजनीति को सरल करना चाहते हैं. हालांकि, हरीश रावत अपनी हर मुलाकात को सामान्य मुलाकात करार दे रहे हैं और इन मुलाकातों पर किसी भी तरह के कयासबाजी नहीं करने की भी बात कह रहे हैं.
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हरीश रावत ने हरिद्वार ग्रामीण से अपनी बेटी अनुपमा को राजनीतिक शुरुआत तो दे दी है, लेकिन वह अपने क्षेत्र में बेहतर काम और बिना रुकावट विकास कार्यों के जरिए खुद को मजबूत कर सके, यह भी हरीश रावत की चिंता है. सब जानते हैं कि हरिद्वार ग्रामीण सीट से यतीश्वरानंद सरकार में मंत्री भी रहे हैं और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के बेहद करीबी भी है. जाहिर है कि हरीश रावत को भी यह चिंता होगी कि सरकार विधायक के रूप में अनुपमा को विकास कार्यों में शायद उतना सहयोग ना करें.
आपको बता दें कि हरीश रावत की मुलाकात मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी हुई है और अपने राजनीतिक विरोधी रहे सरकार में मंत्री सतपाल महाराज से भी. इसके अलावा हरीश रावत विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी से लेकर शैलारानी रावत और सरिता आर्य से भी मुलाकात कर चुके हैं. हालांकि, भाजपा हरीश रावत की इस गतिविधि पर चुटकी ले रही है.
बीजेपी प्रवक्ता शादाब शम्स कहते हैं कि हरीश रावत अपने राजनीति के बुरे दौर से गुजर रहे हैं और अपनी राजनीतिक जमीन भी वह बचाना चाहते हैं. इसके अलावा वह पार्टी के भीतर अपने ही नेताओं का निशाना भी बन रहे हैं. वह यह भी चाहते हैं कि उनकी बेटी नेता प्रतिपक्ष बन जाए. लिहाजा, पार्टी के भीतर चल रही नूरा कुश्ती से त्रस्त हरीश रावत भाजपा की तरफ देख रहे हैं.