देहरादून: उत्तराखंड में धामी सरकार ने पहली ही कैबिनेट बैठक में यूनिफॉर्म सिविल कोड के विषय पर मुहर लगा दी है. आने वाले दिनों में इस मामले पर विचार के लिए कमेटी का गठन किया जाएगा. धामी सरकार के इस कदम से एक बार फिर यूनिफॉर्म सिविल कोड पर बहस तेज हो गई है. यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर क्या कहते हैं विशेषज्ञ आइये आपको बतातें हैं.
समान नागरिक संहिता देश में कोई नया विषय नहीं है. सालों साल से देश में इस मामले पर बहस भी होती रही है. भाजपा इसे कई बार अपने घोषणापत्र में भी शामिल कर चुकी है. इसके बावजूद भी अब तक देश में समान नागरिक संहिता लागू नहीं हो पाई है. एक बार फिर यह मामला इसलिए बहस की वजह बन गया है क्योंकि उत्तराखंड सरकार ने इस मामले पर पहली ही कैबिनेट में एक कमेटी गठित करने का फैसला लिया है. राज्य सरकार की इस कदम के बाद फिर इस मामले में कानूनी पेचीदगियों से लेकर धार्मिक अधिकारों तक पर चर्चा शुरू हो गई है.
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पुष्कर धामी ने किया था वादा: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विधानसभा चुनाव प्रचार-प्रसार के दौरान आचार संहिता से ठीक पहले प्रदेश में समान नागरिक संहिता लागू करने का वादा किया था. इसी के तहत पहली ही कैबिनेट में इस मामले में समिति का गठन करने का फैसला कर लिया गया है. कैबिनेट के सदस्यों ने रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में इसके लिए एक कमेटी गठित करने पर मुहर लगाई है.
क्या राज्य सरकार को यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने का है अधिकार: समान नागरिक संहिता पर जब भी बहस हुई है तो इस मामले में कानूनी पेचीदगियों का हमेशा जिक्र हुआ है. कानून के कुछ जानकार राज्य सरकारों के पास इस मामले में इसे लागू करने का अधिकार नहीं होने की बात कहते रहे हैं. हालांकि, अधिकतर जानकार राज्य सरकारों के पास भी अधिकार होने की बात बताते हैं. दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता का जिक्र है. इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता चंद्रशेखर तिवारी कहते हैं कि शादी, तलाक और उत्तराधिकार और संपत्ति अधिकारों जैसे मामले संविधान की संयुक्त सूची में आते हैं, इसलिए केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकार भी इससे जुड़े कानून बनाने का अधिकार रखती हैं.
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केंद्र की ओर से इस मामले पर नहीं है कोई कानून: चंद्रशेखर तिवारी कहते हैं कि क्योंकि अब तक भारत सरकार की तरफ से इस मामले में कोई कानून नहीं बनाया गया है लिहाजा, कोई भी राज्य सरकार अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए इस कानून को बना सकती है. वह कहते हैं कि यदि भारत सरकार की तरफ से इस कानून को बाद में बनाया जाता है तो राज्य सरकार द्वारा बनाए गए कानून को उसमें मर्ज कर दिया जाएगा, लेकिन जब तक केंद्र इस कानून को नहीं बनाता राज्य अपने हिसाब से इस कानून को बना सकता हैं.
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड करता आया है विरोध: इस मामले में यह भी कहा जाता रहा है कि इससे धर्म विशेष के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हनन हो सकता है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध किया जाता रहा है. इस मामले में समुदाय विशेष पर कानून ठोकने की बात कही जाती रही है. इसमें यह भी कहा गया कि अनुच्छेद 25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का इससे हनन होगा. एक धर्म विशेष के कानूनों को बाकी धर्मों पर थोप दिया जाएगा.
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धर्म के अधिकारों का हनन नहीं करता यूनिफॉर्म सिविल कोड: वरिष्ठ अधिवक्ता संजीव कहते हैं कि समान नागरिक संहिता किसी भी धर्म के अधिकारों पर कोई भी हनन नहीं कर सकती. ऐसा इसलिए क्योंकि इसका निर्धारण करने से पहले इस पर पूरा विचार और राय ली जाएगी. लिहाजा, किसी को भी इस पर किसी तरह का कोई संशय नहीं होना चाहिए.
भाजपा के घोषणा पत्र में दो बार शामिल हुआ ये मुद्दा: वैसे यह पहली बार नहीं है जब समान नागरिक संहिता को लेकर विवाद हुआ हो. भाजपा के घोषणा पत्र में दो बार इसे सम्मिलित किया जा चुका है, लेकिन अब तक इसे लागू नहीं किया जा सका है. वैसे यह मामला लॉ कमीशन में भी दिया गया था, लेकिन लॉ कमीशन की तरफ से भी इस पर कोई रिपोर्ट नहीं दी गई है.
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गोवा में पहले से ही यूनिफॉर्म सिविल कोड: उधर, गोवा में पहले से ही यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है. इसको लेकर भी अलग-अलग बात कही जाती है. बताया जाता है कि 1961 से ही गोवा में इसे लागू कर दिया गया था, जबकि इसके बाद गोवा भारत का हिस्सा बना था. लिहाजा, यह कानून यहां पहले से ही लागू है.
सभी तरह के कानूनों को एक करने में मदद: समान नागरिक संहिता के मामले में जानकार यह भी कहते हैं कि इससे सभी तरह के कानूनों को एक समान करने में मदद मिलेगी जो भी का रूप बनाया जाएगा. सभी धर्मों के लोगों पर वही कानून लागू होगा. इससे खासतौर पर शादी, तलाक, प्रॉपर्टी और गोद लेने जैसे मामले पर एक तरह का कानून बन सकेगा.
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राजनीति हुई तेज: इस मामले में पुष्कर सिंह धामी ने जो कदम उठाया है उससे उन्होंने अपने उस वादे को पूरा करने की कोशिश की है, जो उन्होंने चुनाव से ठीक पहले किया था. उन्होंने इस फैसले के जरिए एक खास राजनीतिक संदेश देने की भी कोशिश की है. हालांकि, इस मामले पर राजनीति भी तेज हो गई है. कांग्रेस की तरफ से प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा प्रदेश सरकार को आज बेरोजगारों की चिंता करनी चाहिए लेकिन हमारी सरकार जिन्हें लोगों ने चुना है. उन्होंने बेरोजगारी को मुद्दा चुनने के बजाए समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दे को प्राथमिकता देने का फैसला किया है.