देहरादून: एक वक्त था जब पूरे उत्तर भारत को उत्तराखंड की नदियां पानी देती थी और इन नदियों के मुख्य स्रोत पहाड़ों के गाड़-गधेरे होते थे, लेकिन पिछले कुछ दशकों से लगातार प्राकृतिक जलस्रोत सूखते जा रहे हैं. जिस वजह से कई छोटी नदियां खत्म हो गई हैं. तो कुछ के अस्तिव पर खतरा मंडरा रहा है. आखिर जल संकट की मुख्य वजह क्या है, देखिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.
जिस उत्तराखंड की नदियों पहले देश के कई राज्यों को पानी देती आज उसी प्रदेश में लोग पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहे हैं. पहाड़ों के कई इलाके ऐसे है जहां गर्मियों में भारी जल संकट देखने को मिलता है. वैज्ञानिकों ने इसे गंभीर समस्या बताया है. हालांकि, भविष्य में इस समस्या को देखने को लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार जल शक्ति मंत्रालय का गठन किया है. ताकि जल शक्ति अभियान चलाकर प्राकृतिक स्रोतों का रिचार्ज किया जा सके.
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दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन एक गंभीर समस्या बनती जा रही है और इसका असर अन्य देशों के साथ-साथ भारत में भी देखने को मिल रहा है. खासतौर पर हिमालयी क्षेत्रों में जहां तेजी से ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं, वहीं, प्राकृतिक जलस्रोत भी तेजी से सूख रहे हैं. उत्तराखंड में बीते कुछ दशकों की बात करें तो यहां भी हजारों प्राकृतिक जलस्रोत सूख चुके हैं. आलम यह है की आज प्रदेश में पानी की किल्लत तेजी से बढ़ती जा रही है.
पानी का दुरुपयोग
जिस तरह से आज पानी का दोहन किया जा रहा है, उस असर भविष्य में नाकारात्मक मिलेगा. वैज्ञानिक भी इस पर चिंता जाहिर कर चुके हैं. वैज्ञानिकों की मानें तो शहरों को डेवेलप करने के लिए हजारों पेड़ काट दिए जाते हैं. इसके साथ ही नदी-नालों को भी समाप्त किया जा रहा है. जितनी तेजी से शहरीकरण हो रहा है उतनी ही तेजी से पानी के स्रोत कम होते जा रहे हैं. शहरीकरण होने के चलते स्प्रिंग्स रिचार्ज नहीं हो पर रहे है. ऐसे में आने वाले समय में आम लोगों को पानी मिलना बंद हो जाएगा.
एक हजार साल पहले का पानी पी रहे हम
पहाड़ी क्षेत्रों को छोड़ दिया जाए तो सभी राज्य भूमिगत जल पर निर्भर है. बावजूद इसके लोग धड़ल्ले से भू-जल का इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसे में आने वाले समय में भू-जल लगभग समाप्त हो जाएगा. वैज्ञानिक की मानें तो हम एक हजार साल पुराना पानी पी रहे है. ऐसे में अगर अभी से भू-जल का इस्तेमाल कम नहीं किया गया तो, आने वाले कुछ ही सालों में इसका नतीजा लोगों को भुगतना पड़ेगा.
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बारिश के चक्र में परिवर्तन
सभी राज्यों में लगभग बिजली उत्पाद करने के लिए डैम बना दिए गए हैं. जिस वजह से नदियों में पानी का प्रवाह बेहद कम हो गया है, तो वहीं कुछ छोटी-नदियां पूरी तरह समाप्त हो गई है. अब जब नदिया ही नहीं रहेंगी तो स्प्रिंग्स रिचार्ज कैसे हो पाएगा? यह एक बड़ी गंभीर समस्या बनती जा रही है. अगर इस पर जल्द से जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो आने वाले समय में जो थोड़ा बहुत स्प्रिंग्स रिचार्ज हो रहा है, वह भी न के बराबर हो जाएगा. ऐसे में भू-जल लगभग समाप्त हो जाएगा
यही नहीं जलवायु परिवर्तन होने की वजह से बारिश के चक्र में भी अच्छा खासा प्रभावित हुआ है. आलम यह है पहले मॉनसून सीजन में रुक-रुककर लगातार बारिश होती थी. जिससे स्प्रिंग्स रिचार्ज होते रहते थे. लेकिन जलवायु परिवर्तन की वजह से अब बारिश पहले से ज्यादा होती है और वो भी एक साथ. जिस कारण सारा पानी बह जाता है.
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वर्षा जल को संरक्षित करने की दरकार
जिस तरह से लगातार जल के स्रोत समाप्त होते जा रहे हैं. ऐसे में अब मात्र एक ही विकल्प बचा है कि वर्षा के जल को ज्यादा से ज्यादा संरक्षित किया जाए. क्योंकि वर्षा के जल की वजह से ही हिमालयी क्षेत्रों में गाड़-गधेरे तैयार होते हैं. इन्हीं से छोटी-छोटी नदियां तैयार होती है. इस पर अब सरकार को कोई ठोस कदम उठाने की जरूरत है, ताकि ज्यादा से ज्यादा वर्षाजल को संरक्षित किया जा सके. जितनी ज्यादा वर्षाजल संरक्षित होगा, उतना ही स्प्रिंग्स रिचार्ज होंगे.
केंद्र सरकार ने नैनीताल को किया चिन्हित
केंद्र सरकार ने देश के 256 जिलों को चिन्हित किया है, जहां वाटर लेवल कम है. इसमें उत्तराखंड का नैनीताल जिला भी शामिल है. इस जिले में फोकस्ड तरीके से जल संरक्षण और संवर्धन के काम होने हैं. इसे साथ ही चिन्हित किये गए अन्य जिलों में भी अलग-अलग तरीके से काम किए जाने हैं.
जल नीति से दूर होगी समस्याएं- सीएम
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बताया कि उत्तराखंड में पानी का जलस्तर घटता जा रहा है. इसके साथ ही पानी जहरीला भी होता जा रहा है. इसके लिए जल नीति की बेहद आवश्यकता है. क्योंकि 60 फ़ीसदी बीमारियां अशुद्ध पानी पीने से होती है. इसीलिए अगर साफ पानी की व्यवस्था हो जाती है तो काफी बीमारियां दूर हो जाएंगी. इसी दिशा में जल नीति को लाया गया है. साथ ही बताया कि उत्तराखंड देश की वाटर टावर है. क्योंकि यहां से तमाम नदियां निकलती हैं. उत्तराखंड प्राणवायु के साथ-साथ जलदाता भी है. इसलिए उत्तराखंड राज्य की जिम्मेदारी ज्यादा है. इसी वजह से राज्य में जल नीति ला रहे हैं. इसके साथ ही कुछ वैकल्पिक चीजें वैज्ञानिकों द्वारा खोजी गई हैं. उस पर भी राज्य सरकार काम कर रही है.
बारिश के पानी को संरक्षित करने का किया जा रहा है काम
जल संस्थान से जुड़े संबंधित विभाग की इस पर ज्यादा काम कर रहे है. पेयजल सचिव अरविंद सिंह हयांकी ने बताया कि राज्य सरकार ने प्रदेश के कई जिलों में तीन चार प्रकार के काम किए जा रहे हैं. जिसमें बारिश के पानी को रोकने के लिए जगह-जगह चेक डैम बनाना, वॉटर पोट बनाना, खेती वाली जमीनों में कुएं बनाना आदि काम किया जा रहा है. बड़ी-बड़ी बिल्डिंग में रेन वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर बनाए जा रहे है. ताकि बारिश के पानी को एकत्र कर इमरजेंसी के समय उपयोग में लाया जा सके.
इसके साथ ही राज सरकार जन जागरूक अभियान चलाने जा रही है. जिसके तहत लोगों को बताया जाएगा कि किस तरीके से पानी की बजत की जाए. इसके साथ ही सिंचाई विभाग के माध्यम से जिस क्षेत्र में पानी की समस्या ज्यादा है उन क्षेत्रों में बड़े रिजर्व वायर बनवाया जाए, जहां पर नदी नालों और बारिश के पानी को रोका जा सके. इससे भू-जल रिचार्ज होगा, साथ ही आने वाले समय लो हाइट पर बने गांव को पानी भी दे पाएंगे. इसके साथी इस जलाशय के आसपास पर्यटन स्थल भी विकसित हो जाएगा.
केंद्र सरकार और प्रदेश सरकार मिलकर अगर जल बचाने को अभियान को सफलता पूर्वक आगे बढ़ाती है तो भविष्य में उत्तराखंड को जल संकट का सामना नहीं करपा पडे़गा. साथ ही उत्तर भारत के बड़ी जनसंख्या को भी पानी मिल पायेगा.