विकासनगर: उत्तराखंड में कोरोना का कहर जारी है. इसी क्रम में विकासनगर में शहीद केसरी चंद मेला को स्थगित कर दिया गया है. बता दें कि, उत्तराखंड के लोगों द्वारा वीर शहीद केसरी चंद की पुण्य स्मृति में चकराता के पास रामताल गार्डन में प्रतिवर्ष एक मेला लगाया जाता है. मेले में हजारों लोग अपने वीर सपूत को नमन करने आते हैं. लेकिन, इस वर्ष कोरोना महामारी के चलते मेला समिति ने 3 मई को लगने वाले मेले को स्थगित कर दिया है.
शहीद केसरी चंद का इतिहास
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हजारों की संख्या में देशभक्तों ने अपने त्याग और बलिदान से इतिहास में अपना स्थान बनाया है. उत्तराखंड राज्य का भी स्वतंत्रता संग्राम में स्वर्णिम इतिहास रहा है. नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी द्वारा जब आजाद हिंद फौज की स्थापना की गई तो उत्तराखंड के अधिसंख्य रणबांकुरों ने इस सेना की सदस्यता लेकर देश की रक्षा करने की ठानी. जौनसार बावर के वीर सपूत शहीद केसरी चंद ने स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देकर उत्तराखंड का नाम राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास में स्वर्ण शब्दों में अंकित कर दिया.
वीर केसरी चंद का कैसा रहा बचपन और शिक्षा
अमर शहीद वीर केसरी चंद का जन्म 1 नवंबर 1920 को जौनसार बावर के क्यावा गांव में पंडित शिवदत्त के घर पर हुआ था. इनकी प्रारंभिक शिक्षा विकासनगर में हुई. 1938 में डीएवी कॉलेज देहरादून से हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण कर इसी कॉलेज में इंटरमीडिएट की भी पढ़ाई की. केसरी चंद बचपन से ही निर्भीक और साहसी थे. खेलकूद में भी इनकी विशेष रुचि थी. इस कारण वह टोली नायक रहा करते थे.
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इंटर की पढ़ाई पूरी करने के बाद केसरी चंद 10 अप्रैल 1941 को रॉयल इंडिया आर्मी सर्विस कोर में नायब सूबेदार के पद पर भर्ती हो गए. उन दिनों द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था. 29 अक्टूबर 1941 को मलाया के युद्ध के मोर्चे पर तैनात किया गया. जहां पर जापानी फौज द्वारा उन्हें बंदी बना लिया गया.
नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी के नारे 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' से प्रभावित होकर केसरी चंद आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए. उनके भीतर अदम्य साहस, अद्भुत पराक्रम, जोखिम उठाने की क्षमता, संकल्प शक्ति का ज्वार देखकर आजाद हिंद फौज में जोखिम भरे कार्य सौंपे गए. केसरी ने उन्हें कुशलता से संपादित किया.