ETV Bharat / state

उत्तराखंड के सरकारी विभागों की पिक एंड चूज पॉलिसी बनी सिरदर्द, नियम कानून में एकरूपता की दिख रही कमी - उत्तराखंड में विभागों की मनमर्जी आदेश

Arbitrary orders of departments in Uttarakhand उत्तराखंड में कर्मचारियों को लेकर विभागों की 'पिक एंड चूज' पॉलिसी न केवल कर्मचारी बल्कि सरकार के लिए भी सिर दर्द बन गई है. स्थिति ये है कि इसके कारण आउटसोर्स पर आने वाले कर्मचारियों को लेकर नियमों में एकरूपता नहीं लाई जा पा रही है. उधर इन हालातों में जहां कुछ कर्मचारी खूब फायदा ले रहे हैं, तो वहीं कुछ कर्मचारियों को नियमों का हवाला देकर उनकी मांगें ठंडे बस्ते में डाल दी जाती हैं. देखिए स्पेशल रिपोर्ट...

Arbitrary orders of departments in Uttarakhand
उत्तराखंड में विभागों की मनमर्जी आदेश
author img

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Dec 9, 2023, 2:43 PM IST

Updated : Dec 9, 2023, 4:40 PM IST

उत्तराखंड के सरकारी विभागों की पिक एंड चूज पॉलिसी बनी सिरदर्द.

देहरादूनः उत्तराखंड में वित्त विभाग कर्मचारियों को वेतन देने से लेकर उनके सभी भत्तों पर करीब से नजर रखता है. आउटसोर्स कर्मचारियों को लेकर भी तय नियम कानून के आधार पर कई आदेश जारी होते रहे हैं. लेकिन हैरानी की बात यह है कि समय-समय पर जारी हुए आदेशों के बावजूद विभागों ने पिक एंड चूज की ऐसी पॉलिसी अपनाई, जिसने आउटसोर्स कर्मचारियों में भिन्नता पैदा कर दी. अब हालात ये हैं कि कहीं तो कर्मचारियों को अलग-अलग कई लाभ दिए जा रहे हैं और कहीं शासन स्तर पर तय किए गए नियम कानून का हवाला देकर लाभ देने से रोक दिया जाता है.

सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत ली गई जानकारी ने कुछ ऐसे ही तथ्यों को सामने रखा है, जिसने अब शासन के उन पुराने आदेशों के साथ ही विभागों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं. दरअसल, उपनल कर्मचारियों के लिए न केवल उनके वेतन की सीमा तय की गई है, बल्कि विभागों में उनके पदों की स्थिति को भी स्पष्ट किया गया है. आरटीआई में सामने आए तथ्यों से उपनल कर्मचारी भी हैरान हैं.

विभाग जारी कर रहा मनमर्जी आदेश: उत्तराखंड विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष विनोद कवि के मुताबिक सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत जो तथ्य सामने आए हैं. उससे ये साफ हो गया है कि प्रदेश में नियमों से हटकर विभाग मनमर्जी के आदेश कर रहे हैं. इन स्थितियों में सबसे ज्यादा नुकसान ऊर्जा निगम में तैनात उपनल कर्मचारीयों को हो रहा है. क्योंकि ऊर्जा निगमों में उपनल को लेकर तय नियम का हवाला देकर संभावित फायदों से दूर रखा जा रहा है.
ये भी पढ़ेंः उपनल कर्मचारियों के वेतनमान में विभागवार विसंगति, कहीं नियम से ज्यादा तो कही नियम से कम दिया जा रहा वेतन

उत्तराखंड में नियम कानून और आदेशों को धता बताकर फैसले लिए जा रहे हैं. आउटसोर्स कर्मचारियों को लेकर समय-समय पर नए आदेश भी होते रहे, लेकिन हर आदेश नियमों की जानकारी तो देता है, लेकिन इसका पालन नहीं किया जाता. उत्तराखंड में आउटसोर्स कर्मचारी खासतौर पर उपनल कर्मियों को लेकर किस तरह की मनमर्जी चल रही है, ये हैं मुख्य बिंदु.

  1. ऊर्जा के तीनों निगमों में दस-दस पन्द्रह-पन्द्रह सालों से कार्यरत संविदा कर्मचारियों को बीडीए (पर्वतनीय महंगाई भत्ता) देने के लिए बोर्ड से पास प्रस्ताव पर ऊर्जा सचिव द्वारा जारी शासनादेश को 24 घंटे के भीतर स्थगित कर दिया गया.
  2. एनएचएम जिला उद्यान विभाग, महिला सशक्तिकरण निदेशालय, महिला कल्याण निदेशालय, कोषागार, वीर माधो सिंह भंडारी, उत्तराखंड प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उत्तराखंड जैव प्रौद्योगिकी परिषद, सूचना एवं विज्ञान प्रौद्योगिकी विभाग, निदेशालय सैनिक कल्याण एवं पुर्नवास विभाग सहित ऐसे तमाम विभाग हैं जिनके द्वारा उत्तराखंड शासन के शासनादेश संख्या 735/XVII-5/2020-09(17)/2004-TC-1 में निर्धारित वेतन से इतर अधिक वेतनमान दिया जाता है.
  3. राज्य के ऐसे भी तमाम विभाग हैं जिनके द्वारा उत्तराखंड शासन के शासनादेश संख्या 735/XVII-5/2020-09(17)/2004-TC-1 में दिए गए पदों से इतर पदों पर (जैसे वैज्ञानिक, सहायक अभियंता, अवर अभियंता, अकाउंटेंट, पीए इत्यादि पद) नियुक्तियां देते हुए अपने मनमर्जी से अधिक वेतनमान दिया जा रहा है.
  4. निदेशालय सैनिक कल्याण एवं उत्तराखंड स्टेट सीड एंड प्रोडक्शन सर्टिफिकेशन एजेंसी में तो साल-2021 में न केवल उपनल के कर्मचारियों को सीधे विभाग में समायोजित कर दिया गया है, बल्कि हॉक कमांडोज नाम की प्राइवेट फर्म के कर्मचारियों को इंटरव्यू के आधार पर बीज प्रमाणीकरण निरीक्षक, वैयक्तिक सहायक, सहायक लेखाकार, कनिष्ठ सहायक, प्रयोगशाला सहायक जैसे पदों पर सीधे विभाग में समायोजित कर दिया गया.
  5. ऊर्जा के तीनों निगमों में उपनल के माध्यम से कार्यरत संविदा कर्मचारियों के संबंध में औद्योगिक न्यायाधिकरण, हल्द्वानी व उच्च न्यायालय, नैनीताल के स्पष्ट आदेश होने के बावजूद न तो नियमितीकरण किया गया और न ही समान वेतन दिया गया. उल्टा औद्योगिक न्यायाधिकरण के आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय, नैनीताल में अपील दायर की गई.

मनमर्जी से नियुक्तियां होने की भी आशंका: साफ है शासन के स्तर पर आदेश के बावजूद तय सीमा से अधिक वेतन भी मिल रहा है और नियम से हटकर नियुक्तियां भी करवाई जा रही हैं. जाहिर है पिक एंड चूज की इस प्रक्रिया में अपनों को भी एडजस्ट किया जा रहा होगा. हालांकि, इसका पता तो जांच के बाद ही चल सकता है. मामले पर वरिष्ठ पत्रकार नीरज कोहली कहते हैं कि आउटसोर्स से भर्ती होने वाले कर्मचारियों के लिए भी एक नियम और एक कानून होना चाहिए. ऐसा नहीं होने पर विभागों में मनमर्जी से नियुक्तियां होने की संभावना रहती है. उधर इससे नुकसान उन कर्मचारियों का होता है जिनका कोई बैकअप नहीं होता.
ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड में उपनल कर्मियों की बड़ी मांग पूरी, अब हर महीने मिलेगी प्रोत्साहन राशि

उपनल से बाहर के अधिकारी तैनात: उपनल के माध्यम से विभिन्न विभागों में कर्मचारियों की कमी को पूरा किया जाता है. इसके लिए नियम तो एक हैं लेकिन विभिन्न विभागों में मानदेय अलग-अलग दिया जा रहा है. चिंताजनक बात ये है कि विभिन्न पद जो उपनल के दायरे में नहीं हैं, उनके नाम से भी विभागों में अधिकारी तैनात किए जा रहे हैं. ये सब धड़ल्ले से हो रहा है. लेकिन ना तो इस पर विभागों या उपनल का ध्यान है और ना ही विभिन्न मामलों में वित्तीय अड़ंगा लगाने वाले वित्त विभाग का.

उत्तराखंड के सरकारी विभागों की पिक एंड चूज पॉलिसी बनी सिरदर्द.

देहरादूनः उत्तराखंड में वित्त विभाग कर्मचारियों को वेतन देने से लेकर उनके सभी भत्तों पर करीब से नजर रखता है. आउटसोर्स कर्मचारियों को लेकर भी तय नियम कानून के आधार पर कई आदेश जारी होते रहे हैं. लेकिन हैरानी की बात यह है कि समय-समय पर जारी हुए आदेशों के बावजूद विभागों ने पिक एंड चूज की ऐसी पॉलिसी अपनाई, जिसने आउटसोर्स कर्मचारियों में भिन्नता पैदा कर दी. अब हालात ये हैं कि कहीं तो कर्मचारियों को अलग-अलग कई लाभ दिए जा रहे हैं और कहीं शासन स्तर पर तय किए गए नियम कानून का हवाला देकर लाभ देने से रोक दिया जाता है.

सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत ली गई जानकारी ने कुछ ऐसे ही तथ्यों को सामने रखा है, जिसने अब शासन के उन पुराने आदेशों के साथ ही विभागों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं. दरअसल, उपनल कर्मचारियों के लिए न केवल उनके वेतन की सीमा तय की गई है, बल्कि विभागों में उनके पदों की स्थिति को भी स्पष्ट किया गया है. आरटीआई में सामने आए तथ्यों से उपनल कर्मचारी भी हैरान हैं.

विभाग जारी कर रहा मनमर्जी आदेश: उत्तराखंड विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष विनोद कवि के मुताबिक सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत जो तथ्य सामने आए हैं. उससे ये साफ हो गया है कि प्रदेश में नियमों से हटकर विभाग मनमर्जी के आदेश कर रहे हैं. इन स्थितियों में सबसे ज्यादा नुकसान ऊर्जा निगम में तैनात उपनल कर्मचारीयों को हो रहा है. क्योंकि ऊर्जा निगमों में उपनल को लेकर तय नियम का हवाला देकर संभावित फायदों से दूर रखा जा रहा है.
ये भी पढ़ेंः उपनल कर्मचारियों के वेतनमान में विभागवार विसंगति, कहीं नियम से ज्यादा तो कही नियम से कम दिया जा रहा वेतन

उत्तराखंड में नियम कानून और आदेशों को धता बताकर फैसले लिए जा रहे हैं. आउटसोर्स कर्मचारियों को लेकर समय-समय पर नए आदेश भी होते रहे, लेकिन हर आदेश नियमों की जानकारी तो देता है, लेकिन इसका पालन नहीं किया जाता. उत्तराखंड में आउटसोर्स कर्मचारी खासतौर पर उपनल कर्मियों को लेकर किस तरह की मनमर्जी चल रही है, ये हैं मुख्य बिंदु.

  1. ऊर्जा के तीनों निगमों में दस-दस पन्द्रह-पन्द्रह सालों से कार्यरत संविदा कर्मचारियों को बीडीए (पर्वतनीय महंगाई भत्ता) देने के लिए बोर्ड से पास प्रस्ताव पर ऊर्जा सचिव द्वारा जारी शासनादेश को 24 घंटे के भीतर स्थगित कर दिया गया.
  2. एनएचएम जिला उद्यान विभाग, महिला सशक्तिकरण निदेशालय, महिला कल्याण निदेशालय, कोषागार, वीर माधो सिंह भंडारी, उत्तराखंड प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उत्तराखंड जैव प्रौद्योगिकी परिषद, सूचना एवं विज्ञान प्रौद्योगिकी विभाग, निदेशालय सैनिक कल्याण एवं पुर्नवास विभाग सहित ऐसे तमाम विभाग हैं जिनके द्वारा उत्तराखंड शासन के शासनादेश संख्या 735/XVII-5/2020-09(17)/2004-TC-1 में निर्धारित वेतन से इतर अधिक वेतनमान दिया जाता है.
  3. राज्य के ऐसे भी तमाम विभाग हैं जिनके द्वारा उत्तराखंड शासन के शासनादेश संख्या 735/XVII-5/2020-09(17)/2004-TC-1 में दिए गए पदों से इतर पदों पर (जैसे वैज्ञानिक, सहायक अभियंता, अवर अभियंता, अकाउंटेंट, पीए इत्यादि पद) नियुक्तियां देते हुए अपने मनमर्जी से अधिक वेतनमान दिया जा रहा है.
  4. निदेशालय सैनिक कल्याण एवं उत्तराखंड स्टेट सीड एंड प्रोडक्शन सर्टिफिकेशन एजेंसी में तो साल-2021 में न केवल उपनल के कर्मचारियों को सीधे विभाग में समायोजित कर दिया गया है, बल्कि हॉक कमांडोज नाम की प्राइवेट फर्म के कर्मचारियों को इंटरव्यू के आधार पर बीज प्रमाणीकरण निरीक्षक, वैयक्तिक सहायक, सहायक लेखाकार, कनिष्ठ सहायक, प्रयोगशाला सहायक जैसे पदों पर सीधे विभाग में समायोजित कर दिया गया.
  5. ऊर्जा के तीनों निगमों में उपनल के माध्यम से कार्यरत संविदा कर्मचारियों के संबंध में औद्योगिक न्यायाधिकरण, हल्द्वानी व उच्च न्यायालय, नैनीताल के स्पष्ट आदेश होने के बावजूद न तो नियमितीकरण किया गया और न ही समान वेतन दिया गया. उल्टा औद्योगिक न्यायाधिकरण के आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय, नैनीताल में अपील दायर की गई.

मनमर्जी से नियुक्तियां होने की भी आशंका: साफ है शासन के स्तर पर आदेश के बावजूद तय सीमा से अधिक वेतन भी मिल रहा है और नियम से हटकर नियुक्तियां भी करवाई जा रही हैं. जाहिर है पिक एंड चूज की इस प्रक्रिया में अपनों को भी एडजस्ट किया जा रहा होगा. हालांकि, इसका पता तो जांच के बाद ही चल सकता है. मामले पर वरिष्ठ पत्रकार नीरज कोहली कहते हैं कि आउटसोर्स से भर्ती होने वाले कर्मचारियों के लिए भी एक नियम और एक कानून होना चाहिए. ऐसा नहीं होने पर विभागों में मनमर्जी से नियुक्तियां होने की संभावना रहती है. उधर इससे नुकसान उन कर्मचारियों का होता है जिनका कोई बैकअप नहीं होता.
ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड में उपनल कर्मियों की बड़ी मांग पूरी, अब हर महीने मिलेगी प्रोत्साहन राशि

उपनल से बाहर के अधिकारी तैनात: उपनल के माध्यम से विभिन्न विभागों में कर्मचारियों की कमी को पूरा किया जाता है. इसके लिए नियम तो एक हैं लेकिन विभिन्न विभागों में मानदेय अलग-अलग दिया जा रहा है. चिंताजनक बात ये है कि विभिन्न पद जो उपनल के दायरे में नहीं हैं, उनके नाम से भी विभागों में अधिकारी तैनात किए जा रहे हैं. ये सब धड़ल्ले से हो रहा है. लेकिन ना तो इस पर विभागों या उपनल का ध्यान है और ना ही विभिन्न मामलों में वित्तीय अड़ंगा लगाने वाले वित्त विभाग का.

Last Updated : Dec 9, 2023, 4:40 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.