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शहरी विकास विभाग की वजह से रोडवेज को लगा 75 लाख रुपए का चूना, जानिए कैसे ? - उत्तराखंड लेटेस्ट न्यूज

उत्तराखंड में सरकारी विभाग की आपसी तालमेल का खामियाजा उत्तराखंड परिवहन निगम का भुगतान पड़ रहा है. आलम यह है कि शहरी विकास विभाग की मनमर्जी के चलते घाटे में चल रहे उत्तराखंड रोडवेज को हर महीने करीब 1.5 लाख रुपए का चूना लग रहा है. वहीं, पांच सालों में निगम 75 लाख रुपए का नुकसान झेल चुका है.

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Published : Nov 18, 2022, 5:16 PM IST

ऋषिकेश: उत्तराखंड परिवहन निगम का देहरादून-ऋषिकेश मार्ग स्थित डीजल पंप पांच साल बाद भी चालू नहीं हो पाया है. शासन में पंप भूमि के सर्किल रेट के हिसाब से करीब दो करोड़ रुपए माफ किए जाने संबंधी चिट्ठी शहरी आवास सचिव के कार्यालय में धूल फांक रही है, जिसके चलते पहले से ही घाटे में चल रहे निगम को एक से डेढ़ लाख को नुकसान उठाना पड़ रहा है.

दरअसल, साल 2017 में परिवहन निगम ने इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के माध्यम से देहरादून-ऋषिकेश मार्ग स्थित ऋषिकेश रोडवेज डिपो की वर्कशॉप भूमि पर डीजल पंप स्थापित किया गया था. वहीं, पंप संचालित करने के लिए निगम ने पांच विभागों से अनापति प्रमाण पत्र हासिल किया, लेकिन तत्कालीन हरिद्वार-रूड़की विकास प्राधिकरण (HRDA) ने वर्कशॉप भूमि कुंभ क्षेत्र होने के चलते लैंड यूज चेंज कराने के पत्र के साथ एनओसी को पत्र लौटा दिया, जिसके बाद यह लैंड यूज चेंज का यह मामला शासन और फिर कैबिनेट पहुंचा.

रोडवेज को हुआ 75 लाख रुपये का नुकसान.
पढ़ें- CM धामी की बैठक छोड़ गाली देते हुए सर्किट हाउस से बाहर निकले कांग्रेस विधायक, पुलिस से भी उलझे

कैबिनेट ने वर्कशॉप में डीजल पंप की भूमि का लैंड यूज चेंज करने का प्रस्ताव पारित किया, लेकिन इसपर सचिव आवास ने यह शर्ते अंकित कर शासनादेश जारी कर दिया कि संबंधित भूमि का 100 प्रतिशत सर्किल के मुताबिक रकम निगम को जमा करानी होगी. ऐसे में करीब दो करोड़ रुपए जमा कराने की चिट्ठी निगम मुख्यालय पहुंची, तो साल 2017 में तत्कालीन एमडी बृजेश कुमार संत ने फिर से एक पत्र सचिव शहरी आवास को लिखकर यह धनराशि भी माफ करने के लिए कहा. बावजूद, पांच साल बाद भी सचिव शहरी आवास इसपर कोई एक्शन ने ले पाए हैं. लिहाजा, निगम के ऋषिकेश डिपो 70 बसों को रोजाना प्राइवेट पेट्रोल पंप से डीजल बाजार मूल्य पर खरीदना पड़ रहा है.

वहीं, बसों की मासिक डीजल खपत करीब डेढ़ लाख लीटर है. प्राइवेट पंप से डीजल खरीदारी के चलते निगम को हर महीने एक से दो लाख रुपए अधिक चुकाने पड़ रहे हैं. यह रकम भी तब इतनी है कि जब संबंधित पंप संचालक प्रति लीटर पर निगम को करीब एक रुपए प्रति लीटर का सब्सिडी खुद से दे रहा है.
पढ़ें- योजनाओं के बजट खर्च के लिए तैयार होगा मॉनिटरिंग सिस्टम, मुख्य सचिव ने दिये ये निर्देश

क्या कहते हैं मंत्री: शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने बताया कि इस मामले को दिखवाया जाएगा. संबंधित अधिकारियों से फीडबैक लेकर कार्रवाई के लिए भी दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे. सरकारी विभागों के नुकसान को बचाने के लिए कोई भी कदम उसे उठाया जाएगा.

शासन में डीजल पंप की एनओसी का मामला सचिव आवास के पास लंबित है. शासन की ओर से सर्किल रेट से जुड़ी रकम को लेकर स्वीकृति का इंतजार किया जा रहा है. संबंधित रकम को लेकर मंजूरी मिलने पर डीजल पंप संचालित करने के दिशा में कार्रवाई की जाएगी.

ऋषिकेश: उत्तराखंड परिवहन निगम का देहरादून-ऋषिकेश मार्ग स्थित डीजल पंप पांच साल बाद भी चालू नहीं हो पाया है. शासन में पंप भूमि के सर्किल रेट के हिसाब से करीब दो करोड़ रुपए माफ किए जाने संबंधी चिट्ठी शहरी आवास सचिव के कार्यालय में धूल फांक रही है, जिसके चलते पहले से ही घाटे में चल रहे निगम को एक से डेढ़ लाख को नुकसान उठाना पड़ रहा है.

दरअसल, साल 2017 में परिवहन निगम ने इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के माध्यम से देहरादून-ऋषिकेश मार्ग स्थित ऋषिकेश रोडवेज डिपो की वर्कशॉप भूमि पर डीजल पंप स्थापित किया गया था. वहीं, पंप संचालित करने के लिए निगम ने पांच विभागों से अनापति प्रमाण पत्र हासिल किया, लेकिन तत्कालीन हरिद्वार-रूड़की विकास प्राधिकरण (HRDA) ने वर्कशॉप भूमि कुंभ क्षेत्र होने के चलते लैंड यूज चेंज कराने के पत्र के साथ एनओसी को पत्र लौटा दिया, जिसके बाद यह लैंड यूज चेंज का यह मामला शासन और फिर कैबिनेट पहुंचा.

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कैबिनेट ने वर्कशॉप में डीजल पंप की भूमि का लैंड यूज चेंज करने का प्रस्ताव पारित किया, लेकिन इसपर सचिव आवास ने यह शर्ते अंकित कर शासनादेश जारी कर दिया कि संबंधित भूमि का 100 प्रतिशत सर्किल के मुताबिक रकम निगम को जमा करानी होगी. ऐसे में करीब दो करोड़ रुपए जमा कराने की चिट्ठी निगम मुख्यालय पहुंची, तो साल 2017 में तत्कालीन एमडी बृजेश कुमार संत ने फिर से एक पत्र सचिव शहरी आवास को लिखकर यह धनराशि भी माफ करने के लिए कहा. बावजूद, पांच साल बाद भी सचिव शहरी आवास इसपर कोई एक्शन ने ले पाए हैं. लिहाजा, निगम के ऋषिकेश डिपो 70 बसों को रोजाना प्राइवेट पेट्रोल पंप से डीजल बाजार मूल्य पर खरीदना पड़ रहा है.

वहीं, बसों की मासिक डीजल खपत करीब डेढ़ लाख लीटर है. प्राइवेट पंप से डीजल खरीदारी के चलते निगम को हर महीने एक से दो लाख रुपए अधिक चुकाने पड़ रहे हैं. यह रकम भी तब इतनी है कि जब संबंधित पंप संचालक प्रति लीटर पर निगम को करीब एक रुपए प्रति लीटर का सब्सिडी खुद से दे रहा है.
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क्या कहते हैं मंत्री: शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने बताया कि इस मामले को दिखवाया जाएगा. संबंधित अधिकारियों से फीडबैक लेकर कार्रवाई के लिए भी दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे. सरकारी विभागों के नुकसान को बचाने के लिए कोई भी कदम उसे उठाया जाएगा.

शासन में डीजल पंप की एनओसी का मामला सचिव आवास के पास लंबित है. शासन की ओर से सर्किल रेट से जुड़ी रकम को लेकर स्वीकृति का इंतजार किया जा रहा है. संबंधित रकम को लेकर मंजूरी मिलने पर डीजल पंप संचालित करने के दिशा में कार्रवाई की जाएगी.

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