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उत्तराखंडः प्रमोशन में आरक्षण का मुद्दा बना गले की फांस, कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य निशाने पर

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Published : Sep 15, 2019, 1:53 PM IST

उत्तराखंड के सैकड़ों कर्मचारी प्रदेश भर में कैबिनेट मंत्री के पुतले जलाएंगे. प्रमोशन में आरक्षण का मुद्दा सरकार के लिए पेचीदा हो गया है. आरक्षित वर्ग का समर्थन करने वाले कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य जनरल ओबीसी एम्प्लाइज एसोशिएशन के निशाने पर हैं.

प्रमोशन में आरक्षण का मुद्दा

देहरादूनः राज्य में अब तक दो वर्गों की लड़ाई सरकार के गिरेबान तक पहुंच गई है. प्रमोशन में आरक्षण पर कर्मचारियों ने निर्णय लिया है कि वो सरकार के कद्दावर मंत्री यशपाल आर्य का प्रदेश भर में पुतला जलाएंगे. जानिए यशपाल आर्य क्यों सैकड़ों कर्मचारियों के लिए विलेन बन चुके हैं. पढ़िए Etv भारत की खास रिपोर्ट.

प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे को लेकर सियासी पारा बढ़ा.

प्रमोशन में आरक्षण पर नए आदेश की चिंगारी ऐसी सुलगी कि सत्तासीनों को भी जल्द इसकी आंच महसूस होने लगी. करीब एक माह पहले हाई कोर्ट के आदेश से खफा कर्मियों का रुख अब सियासत चलाने वालों की तरफ है.

नाराजगी ऐसी कि कैबिनेट मंत्री के चौक-चौराहों पर पुतले जलाने तक का प्लान तैयार कर लिया गया है. दरअसल प्रमोशन में आरक्षण को लेकर आरक्षित वर्ग का समर्थन करने वाले कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य जनरल ओबीसी एम्प्लाइज एसोशिएशन के निशाने पर हैं.

ये है पूरा मामला

प्रदेश सरकार की नींद उड़ा देने वाला प्रमोशन में आरक्षण मामला सीधे तौर पर कर्मचारियों के प्रमोशन से जुड़ा है. जिसको लेकर सामान्य वर्ग और आरक्षित वर्ग के कर्मचारी आमने-सामने हैं.इसी साल अगस्त माह में हाई कोर्ट ने ज्ञानचंद बनाम उत्तराखंड शासन के मामले पर सुनवाई करते हुए प्रमोशन में आरक्षण व्यवस्था को बहाल कर दिया था.

इसके बाद राज्य सरकार ने हाई कोर्ट के इस आदेश को चुनौती देते हुए पुनर्विचार याचिका दाखिल की. हालांकि इस बीच सरकार ने अंतिम निर्णय होने तक राज्य में इस पर पूरी तरह से रोक लगा दी. प्रमोशन में आरक्षण को लेकर कब क्या हुआ यह भी जानिए.

  • साल 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए sc-st को प्रमोशन में आरक्षण देने से पहले इस वर्ग के आंकड़े जुटाने के आदेश दिए.
  • 10 जुलाई 2012 में हाई कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के 2006 के आदेशों को आधार बनाते हुए प्रमोशन में आरक्षण देने पर रोक लगा दी.
  • उत्तराखंड सरकार ने 5 सितंबर 2012 को प्रमोशन में आरक्षण को हाई कोर्ट के संबंधित आदेश के आधार पर समाप्त करने का शासनादेश कर दिया.
  • इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में 2018 में प्रमोशन में आरक्षण पर एक बार फिर मोहर लगा दी.
  • सुप्रीम कोर्ट के इसी जजमेंट को आधार बनाते हुए रुद्रपुर निवासी ज्ञानचंद ने हाई कोर्ट में याचिका लगाई. जिस पर इसी साल अगस्त माह में हाई कोर्ट ने निर्णय देते हुए उत्तराखंड सरकार के 2012 के उस शासनादेश को निरस्त कर दिया जिसमें प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था को खत्म की गई थी.
  • हाई कोर्ट के इस फैसले पर राज्य सरकार ने पुनर्विचार याचिका दायर की है. साथ ही अंतिम निर्णय आने तक प्रमोशन पर रोक लगाने के आदेश भी दिए हैं.

प्रमोशन में आरक्षण को लेकर चल रहे विवाद के बीच सरकार ने सीधी भर्ती में नई रोस्टर व्यवस्था को भी मंजूरी दे दी है. जिससे एक बार फिर कर्मचारियों के बीच आपसी सर-फुटव्वल तेज हो गया है. अब जानिए आरक्षण में रोस्टर व्यवस्था क्या है.

यह भी पढ़ेंः अल्मोड़ाः बोल्डर की चपेट में आने से मासूम की मौत

कर्मचारियों के लिए आरक्षण की रोशनी व्यवस्था भर्ती के बाद प्रमोशन में तय की गई नीति है. जिसके आधार पर ही कर्मियों को प्रमोशन दिए जाते हैं अब तक आरक्षण में रोस्टर व्यवस्था के तहत आरक्षित वर्ग को पहले, छंठवे और 11 वें पद पर आरक्षण का लाभ मिलता था, लेकिन 24 जुलाई को कैबिनेट ने नया रोस्टर तय किए जाने को मंजूरी दी.

नया रोस्टर तय करने के लिए एक सब कमेटी बनाई गई जिसमें तीन कैबिनेट मंत्री शामिल थे. सब कमेटी के अध्यक्ष के तौर पर यशपाल आर्य जबकि सुबोध उनियाल और अरविंद पांडे इसके सदस्य थे.

इस कमेटी ने 13 अगस्त को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी, जबकि 28 अगस्त को कैबिनेट ने रिपोर्ट के आधार पर नए रोस्टर को मंजूरी दे दी. कैबिनेट की मंजूरी के बाद इसी महीने 11 सितंबर को रोस्टर का शासनादेश भी जारी हो गया.

नए रोस्टर के तहत आरक्षित वर्ग को पहले पद पर आरक्षण का लाभ नहीं दिए जाने का प्रावधान रखा गया जिसको लेकर आरक्षित वर्ग से जुड़े कर्मचारी सरकार से खफा हो गए. इसके बाद खबर है कि कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य ने भी इस पर नाराजगी जताते हुए मुख्यमंत्री से नए रोस्टर को लागू नहीं करने की मांग की.

यह भी पढ़ेंः राजधानी में धड़ल्ले से चल रहा नशे का कारोबार, DG लॉ एंड ऑर्डर ने दिए कार्रवाई के आदेश

जानकार बताते हैं कि ऐसा नहीं होने पर कैबिनेट मंत्री ने इस्तीफे तक की धमकी भी दी. हालांकि कैबिनेट मंत्री ने अभी फिलहाल इसको लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है. माना जा रहा है कि कैबिनेट मंत्री के इसी दबाव के चलते मुख्यमंत्री ने पदोन्नति में आरक्षण मामले पर सब कमेटी गठित करने की बात कही है.

कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य का सरकार पर आरक्षित वर्ग को फायदा दिलाने का दबाव बनाने से ओबीसी और सामान्य वर्ग से जुड़े कर्मचारी उनसे खफा हैं और उन्होंने 17 सितंबर को कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य का जिला मुख्यालय पर पुतला जलाने का निर्णय लिया है.

खास बात यह है कि कर्मचारियों के इस रुख के बाद सरकार के लिए यह मामला न तो निगलते बन रहा है और न ही उगलते. जनरल ओबीसी एंप्लाइज यूनियन ने इस मामले को लेकर अब कोर्ट में जाने की बात कही है.

देहरादूनः राज्य में अब तक दो वर्गों की लड़ाई सरकार के गिरेबान तक पहुंच गई है. प्रमोशन में आरक्षण पर कर्मचारियों ने निर्णय लिया है कि वो सरकार के कद्दावर मंत्री यशपाल आर्य का प्रदेश भर में पुतला जलाएंगे. जानिए यशपाल आर्य क्यों सैकड़ों कर्मचारियों के लिए विलेन बन चुके हैं. पढ़िए Etv भारत की खास रिपोर्ट.

प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे को लेकर सियासी पारा बढ़ा.

प्रमोशन में आरक्षण पर नए आदेश की चिंगारी ऐसी सुलगी कि सत्तासीनों को भी जल्द इसकी आंच महसूस होने लगी. करीब एक माह पहले हाई कोर्ट के आदेश से खफा कर्मियों का रुख अब सियासत चलाने वालों की तरफ है.

नाराजगी ऐसी कि कैबिनेट मंत्री के चौक-चौराहों पर पुतले जलाने तक का प्लान तैयार कर लिया गया है. दरअसल प्रमोशन में आरक्षण को लेकर आरक्षित वर्ग का समर्थन करने वाले कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य जनरल ओबीसी एम्प्लाइज एसोशिएशन के निशाने पर हैं.

ये है पूरा मामला

प्रदेश सरकार की नींद उड़ा देने वाला प्रमोशन में आरक्षण मामला सीधे तौर पर कर्मचारियों के प्रमोशन से जुड़ा है. जिसको लेकर सामान्य वर्ग और आरक्षित वर्ग के कर्मचारी आमने-सामने हैं.इसी साल अगस्त माह में हाई कोर्ट ने ज्ञानचंद बनाम उत्तराखंड शासन के मामले पर सुनवाई करते हुए प्रमोशन में आरक्षण व्यवस्था को बहाल कर दिया था.

इसके बाद राज्य सरकार ने हाई कोर्ट के इस आदेश को चुनौती देते हुए पुनर्विचार याचिका दाखिल की. हालांकि इस बीच सरकार ने अंतिम निर्णय होने तक राज्य में इस पर पूरी तरह से रोक लगा दी. प्रमोशन में आरक्षण को लेकर कब क्या हुआ यह भी जानिए.

  • साल 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए sc-st को प्रमोशन में आरक्षण देने से पहले इस वर्ग के आंकड़े जुटाने के आदेश दिए.
  • 10 जुलाई 2012 में हाई कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के 2006 के आदेशों को आधार बनाते हुए प्रमोशन में आरक्षण देने पर रोक लगा दी.
  • उत्तराखंड सरकार ने 5 सितंबर 2012 को प्रमोशन में आरक्षण को हाई कोर्ट के संबंधित आदेश के आधार पर समाप्त करने का शासनादेश कर दिया.
  • इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में 2018 में प्रमोशन में आरक्षण पर एक बार फिर मोहर लगा दी.
  • सुप्रीम कोर्ट के इसी जजमेंट को आधार बनाते हुए रुद्रपुर निवासी ज्ञानचंद ने हाई कोर्ट में याचिका लगाई. जिस पर इसी साल अगस्त माह में हाई कोर्ट ने निर्णय देते हुए उत्तराखंड सरकार के 2012 के उस शासनादेश को निरस्त कर दिया जिसमें प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था को खत्म की गई थी.
  • हाई कोर्ट के इस फैसले पर राज्य सरकार ने पुनर्विचार याचिका दायर की है. साथ ही अंतिम निर्णय आने तक प्रमोशन पर रोक लगाने के आदेश भी दिए हैं.

प्रमोशन में आरक्षण को लेकर चल रहे विवाद के बीच सरकार ने सीधी भर्ती में नई रोस्टर व्यवस्था को भी मंजूरी दे दी है. जिससे एक बार फिर कर्मचारियों के बीच आपसी सर-फुटव्वल तेज हो गया है. अब जानिए आरक्षण में रोस्टर व्यवस्था क्या है.

यह भी पढ़ेंः अल्मोड़ाः बोल्डर की चपेट में आने से मासूम की मौत

कर्मचारियों के लिए आरक्षण की रोशनी व्यवस्था भर्ती के बाद प्रमोशन में तय की गई नीति है. जिसके आधार पर ही कर्मियों को प्रमोशन दिए जाते हैं अब तक आरक्षण में रोस्टर व्यवस्था के तहत आरक्षित वर्ग को पहले, छंठवे और 11 वें पद पर आरक्षण का लाभ मिलता था, लेकिन 24 जुलाई को कैबिनेट ने नया रोस्टर तय किए जाने को मंजूरी दी.

नया रोस्टर तय करने के लिए एक सब कमेटी बनाई गई जिसमें तीन कैबिनेट मंत्री शामिल थे. सब कमेटी के अध्यक्ष के तौर पर यशपाल आर्य जबकि सुबोध उनियाल और अरविंद पांडे इसके सदस्य थे.

इस कमेटी ने 13 अगस्त को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी, जबकि 28 अगस्त को कैबिनेट ने रिपोर्ट के आधार पर नए रोस्टर को मंजूरी दे दी. कैबिनेट की मंजूरी के बाद इसी महीने 11 सितंबर को रोस्टर का शासनादेश भी जारी हो गया.

नए रोस्टर के तहत आरक्षित वर्ग को पहले पद पर आरक्षण का लाभ नहीं दिए जाने का प्रावधान रखा गया जिसको लेकर आरक्षित वर्ग से जुड़े कर्मचारी सरकार से खफा हो गए. इसके बाद खबर है कि कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य ने भी इस पर नाराजगी जताते हुए मुख्यमंत्री से नए रोस्टर को लागू नहीं करने की मांग की.

यह भी पढ़ेंः राजधानी में धड़ल्ले से चल रहा नशे का कारोबार, DG लॉ एंड ऑर्डर ने दिए कार्रवाई के आदेश

जानकार बताते हैं कि ऐसा नहीं होने पर कैबिनेट मंत्री ने इस्तीफे तक की धमकी भी दी. हालांकि कैबिनेट मंत्री ने अभी फिलहाल इसको लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है. माना जा रहा है कि कैबिनेट मंत्री के इसी दबाव के चलते मुख्यमंत्री ने पदोन्नति में आरक्षण मामले पर सब कमेटी गठित करने की बात कही है.

कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य का सरकार पर आरक्षित वर्ग को फायदा दिलाने का दबाव बनाने से ओबीसी और सामान्य वर्ग से जुड़े कर्मचारी उनसे खफा हैं और उन्होंने 17 सितंबर को कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य का जिला मुख्यालय पर पुतला जलाने का निर्णय लिया है.

खास बात यह है कि कर्मचारियों के इस रुख के बाद सरकार के लिए यह मामला न तो निगलते बन रहा है और न ही उगलते. जनरल ओबीसी एंप्लाइज यूनियन ने इस मामले को लेकर अब कोर्ट में जाने की बात कही है.

Intro:reservation in promotion special.......

Summary- उत्तराखंड के सैकड़ों कर्मचारी प्रदेश भर में कैबिनेट मंत्री के पुतले जलाएंगे... प्रमोशन में आरक्षण का मुद्दा इस कदर पेचीदा हो गया है, कि लगता है...अब ये सरकार की फजीहत करवा कर रहेगा...देखिये ईटीवी भारत की ये स्पेशल रिपोर्ट...


राज्य में अब तक दो वर्गों की लड़ाई सरकार के गिरेबान तक पहुंच गई है... प्रमोशन में आरक्षण पर कर्मचारियों ने निर्णय लिया है, कि वो सरकार के कद्दावर मंत्री यशपाल आर्य का प्रदेश भर में पुतला जलाएंगे... जानिए यशपाल आर्य क्यों सैकड़ों कर्मचारियों के लिए विलेन बन चुके हैं....खास रिपोर्ट....




Body:प्रमोशन में आरक्षण पर नए आदेश की चिंगारी ऐसी सुलगी कि, सत्तासीनों को भी जल्द इसकी आंच महसूस होने लगी...करीब एक माह पहले हाईकोर्ट के आदेश से ख़फा कर्मियों का रुख अब सियासत चलाने वालों की तरफ है...नाराजगी ऐसी की कैबिनेट मंत्री के चौक-चौराहों पर पुतले जलाने तक का प्लान तैयार कर लिया गया है...दरअसल प्रमोशन में आरक्षण को लेकर आरक्षित वर्ग का समर्थन करने वाले कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य जनरल ओबीसी एम्प्लाइज एसोशिएशन के निशाने पर है...


बाइट सुभाष देवलीयाल वरिष्ठ उपाध्यक्ष जनरल ओबीसी इंप्लाइज एसोसिएशन



ऐसा क्यों है इसे जानने से पहले जानिए कि ये पूरा मामला है क्या.....


प्रदेश में सरकार की नींदें उड़ा देने वाला प्रमोशन में आरक्षण मामला सीधे तौर पर कर्मचारियों के प्रमोशन से जुड़ा है..जिसको लेकर सामान्य वर्ग और आरक्षित वर्ग के कर्मचारी आमने सामने हैं....इसी साल अगस्त माह में हाईकोर्ट ने ज्ञानचंद बनाम उत्तराखण्ड शासन के मामले पर सुनवाई करते हुए प्रमोशन में आरक्षण व्यवस्था को बहाल कर दिया था.... इसके बाद राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के इस आदेश को चुनौती देते हुए पुनर्विचार याचिकादाखिल की... हालांकि इस बीच सरकार ने अंतिम निर्णय होने तक राज्य में प्रमोशन पर पूरी तरह से रोक लगा दी... प्रमोशन में आरक्षण को लेकर कब क्या हुआ यह भी जानिए....


साल 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए sc-st को प्रमोशन में आरक्षण देने से पहले इस वर्ग के आंकड़े जुटाने के आदेश दिए...


10 जुलाई 2012 में हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के 2006 के आदेशों को आधार बनाते हुए प्रमोशन में आरक्षण देने पर रोक लगा दी....


उत्तराखंड सरकार ने 5 सितंबर 2012 को प्रमोशन में आरक्षण को हाईकोर्ट के संबंधित आदेश के आधार पर समाप्त करने का शासनादेश कर दिया...


इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में 2018 में प्रमोशन में आरक्षण पर एक बार फिर मोहर लगा दी....


सुप्रीम कोर्ट के इसी जजमेंट को आधार बनाते हुए रुद्रपुर निवासी ज्ञानचंद ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई... जिस पर इसी साल अगस्त माह में हाईकोर्ट ने निर्णय देते हुए उत्तराखंड सरकार के 2012 के उस शासनादेश को निरस्त कर दिया जिसमें प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था को खत्म की गई थी।।


हाईकोर्ट के इस फैसले पर राज्य सरकार ने पुनर्विचार याचिका दायर की है... साथ ही अंतिम निर्णय आने तक प्रमोशन पर रोक लगाने के आदेश भी दिए हैं....


प्रमोशन में आरक्षण को लेकर चल रहे विवाद के बीच सरकार ने सीधी भर्ती में नई रोस्टर व्यवस्था को भी मंजूरी दे दी है... जिससे एक बार फिर कर्मचारियों के बीच आपसी सर-फुटव्वल तेज हो गया है... अब जानिए आरक्षण में रोस्टर व्यवस्था क्या है...


कर्मचारियों के लिए आरक्षण की रोशनी व्यवस्था, भर्ती के बाद प्रमोशन में तय की गई नीति है...जिसके आधार पर ही कर्मियों को प्रमोशन दिए जाते हैं अबतक आरक्षण में रोस्टर व्यवस्था के तहत आरक्षित वर्ग को पहले, छटवे और 11 वे पद पर आरक्षण का लाभ मिलता था...लेकिन 24 जुलाई को कैबिनेट ने नया रोस्टर तय किए जाने को मंजूरी दी... नया रोस्टर तय करने के लिए एक सब कमेटी बनाई गई जिसमें तीन कैबिनेट मंत्री शामिल थे... सब कमेटी के अध्यक्ष के तौर पर यशपाल आर्य जबकि सुबोध उनियाल और अरविंद पांडे इसके सदस्य थे.... इस कमेटी ने 13 अगस्त को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी जबकि 28 अगस्त को कैबिनेट ने रिपोर्ट के आधार पर नए रोस्टर को मंजूरी दे दी... कैबिनेट की मंजूरी के बाद इसी महीने 11 सितंबर को रोस्टर का शासनादेश भी जारी हो गया... नए रोस्टर के तहत आरक्षित वर्ग को पहले पद पर आरक्षण का लाभ नहीं दिए जाने का प्रावधान रखा गया... जिसको लेकर आरक्षित वर्ग से जुड़े कर्मचारी सरकार से खफा हो गए... इसके बाद खबर है कि कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य ने भी इस पर नाराजगी जताते हुए... मुख्यमंत्री से नए रोस्टर को लागू नहीं करने की मांग की... जानकार बताते हैं कि ऐसा नहीं होने पर कैबिनेट मंत्री ने इस्तीफे तक की धमकी भी दी... हालांकि कैबिनेट मंत्री ने अभी फिलहाल इसको लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है।।।। माना जा रहा है कि कैबिनेट मंत्री के इसी दबाव के चलते मुख्यमंत्री ने पदोन्नति में आरक्षण मामले पर सब कमेटी गठित करने की बात कही है।


कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य का सरकार पर आरक्षित वर्ग को फायदा दिलाने का दबाव बनाने से ओबीसी और सामान्य वर्ग से जुड़े कर्मचारी उनसे खफा है,  और उन्होंने 17 सितंबर को कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य का जिला मुख्यालय पर पुतला जलाने का निर्णय लिया है... खास बात यह है कि कर्मचारियों के इस रुख के बाद सरकार के लिए यह मामला ना तो निगलते बन रहा है और ना ही उगलते.... जनरल ओबीसी एंप्लाइज यूनियन ने इस मामले को लेकर अब कोर्ट में जाने की बात कही है...


बाइट-/राजेश जोशी मुख्य प्रवक्ता जनरल ओबीसी एंप्लाइज एसोसिएशन


बाइट-- एके सिन्हा डिप्टी जनरल सेक्रेटरी अखिल भारतीय समानता मंच




Conclusion:
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