देहरादूनः त्रिवेंद्र सरकार उत्तराखंड विधानसभा का बजट सत्र 3 से 6 मार्च तक आहूत करने जा रही है. यह बजट सत्र खासतौर पर गैरसैंण में किया जा रहा है. नियमानुसार साल में विधानसभा सत्र की कम से कम 60 बैठकें होनी चाहिएं, लेकिन उत्तराखंड के इतिहास में जबसे राज्य गठन हुआ है, तबसे आजतक एक भी बार ऐसा नहीं हो सका है. वहीं, जनता की इच्छा के अनुरूप सत्र आहूत न होना, इन दिनों प्रदेश में चर्चा का विषय बना हुआ है. आपको बताते हैं कि आखिर राज्य गठन के बाद से किस शासनकाल में सत्र की बैठकों की संख्या कितना रही और क्या कहती है विधानसभा की कार्य संचालन की नियमावली?
अकसर उम्मीद की जाती है कि जब भी राज्य में विधानसभा का सत्र आहूत होगा तो सत्र पूरी तरह शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न होगा. उत्तराखंड विधानसभा के सत्र में न सिर्फ विपक्षी विधायकों के विकास से जुड़े सवालों पर सत्ता पक्ष के विधायक और मंत्री जवाब देंगे, बल्कि जनहित के मुद्दों पर भी विस्तार से चर्चा हो सके. यही नहीं, विपक्ष के विधायक, सत्ता पक्ष से सत्र के दौरान जनता से सरोकार रखने वाले जिन विकास कार्यों पर सवाल करना चाहते हैं उनका माकूल जवाब मिल सके. लेकिन सत्र के दौरान ऐसा कम ही देखने को मिलता है.
सत्र के दौरान या तो विपक्ष सदन में हंगामा कर सत्ता पक्ष की मंशा पर सवाल खड़े कर सुर्खियां बनने पर ज्यादा फोकस करता दिखाई देता है, या फिर सदन की कार्यवाही नियमानुसार कम से कम समय अवधि तक संचालित नहीं हो पाती है.
चार दिन चर्चा का है नियमावली में प्रावधान
उत्तराखंड विधानसभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमावली, 2005 के अनुसार जब किसी भी सरकार के कार्यकाल में साल का पहला सत्र आहूत होता है तो उसमें राज्यपाल के अभिभाषण का प्रावधान है. राज्यपाल के अभिभाषण के बाद उस दिन सदन की कार्रवाई में शाम के वक्त विधानसभा अध्यक्ष राज्यपाल के अभिभाषण को संक्षिप्त रूप में पढ़ते हैं, जिसके बाद राज्यपाल का अभिभाषण सदन की प्रॉपर्टी के रूप में मान लिया जाता है. इसके साथ ही अगले 4 दिनों तक सदन में राज्यपाल के अभिभाषण पर सदन के सदस्य चर्चा कर धन्यवाद प्रस्ताव पारित करते हैं.
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बजट पर चार दिन चर्चा का है नियम
विधानसभा कार्य संचालन नियमावली के नियम अनुसार जब प्रदेश सरकार बजट सत्र आहूत करती है तो इसके लिए कम से कम 4 दिन चर्चा होनी चाहिए. लिहाजा जिस दिन बजट को सदन के पटल पर पेश किया जाता है नियमानुसार उस दिन बजट से जुड़े तमाम पहलुओं पर चर्चा नहीं की जा सकती. लिहाजा, अगले दिन से सदन में बजट से जुड़े पहलुओं पर चर्चा की जाती है और इस चर्चा की समय अवधि काम से कम 4 दिन होनी चाहिए, जिसमें पक्ष और विपक्ष के विधायक विधानसभा अध्यक्ष से अनुरोध करते हैं कि स्पीकर, उनको बजट पर होने वाली चर्चा में बोलने की अनुमति प्रदान करें. इसके साथ ही सदन के पटल पर बजट पेश किये जाने के बाद कम से कम 15 दिनों तक विभागवार बजट पर चर्चा किए जाने का भी नियमावली में प्रावधान है. हालांकि, नियमावली के तहत अभीतक सत्र संचालित नहीं हो पाया है.
ऐसे में बजट सत्र के क्या मायने निकाले जाएं, इसको बहुत ही आसानी से समझा जा सकता है. हालांकि, नियमावली के अनुसार ज्यादा विधायकों वाले विधानसभा में अकसर बजट सत्र की समय अवधि अधिकांश लंबी आयोजित की जाती है जबकि छोटे यानी कम विधायकों की संख्या वाली विधानसभा में बजट सत्र की अवधि कम हो सकती है. लेकिन, नियमावली के अनुसार कम से कम बजट सत्र की जो भी समय अवधि निर्धारित है उतने वक्त तक बजट सत्र संचालित होना चाहिए, लेकिन उत्तराखंड के इतिहास में अंतरिम गवर्नमेंट से निर्वाचित हुई चौथी विधानसभा के कार्यकाल में अभी तक ऐसा नहीं हो पाया है.
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पहले निर्वाचित शासनकाल में सबसे अधिक रही सत्र की समयावधि
- साल 2000 में राज्य गठन के बाद बीजेपी की अंतरिम सरकार के कार्यकाल 2001 में आहूत हुए सत्र में 19 बैठकें हुई थीं, जिसमें 107 घंटे 37 मिनट सत्र चला और 1 घंटा बाधित रहा.
- वहीं कांग्रेस की पहली निर्वाचित सरकार के कार्यकाल में आहूत हुए सभी सत्र में 83 बैठकें हुई थीं, जिसमे 367 घंटे 29 मिनट तक सत्र चला और 61 घंटे 52 मिनट तक बाधित रहा.
- इसके बाद बीजेपी के शासनकाल में आहूत हुए सभी सत्र में 81 बैठकें हुई थीं, जिसमें 341 घंटे 43 मिनट तक सत्र चला और 75 घंटे 39 मिनट तक बाधित रहा.
- कांग्रेस के शासनकाल में आहूत हुए सभी सत्र में 72 बैठकें हुई थीं, जिसमे 251 घंटे 09 मिनट तक सत्र चला और 82 घंटे 18 मिनट तक बाधित रहा.
- साल 2017 में सत्ता पर काबिज हुई भाजपा के शासनकाल में साल 2019 तक आहूत हुए सभी सत्र में 44 बैठकें हुई थीं, जिसमें 202 घंटे 45 मिनट तक सत्र चला और 06 घंटे 37 मिनट तक बाधित रहा.
कांग्रेस की पहली निर्वाचित सरकार के कार्यकाल में
- कांग्रेस की पहली निर्वाचित सरकार के कार्यकाल में 2002 में आहूत हुए सत्र में 17 बैठकें हुई थीं, जिसमें 77 घंटे 52 मिनट सत्र चला और 15 घंटे 21 मिनट तक बाधित रहा.
- 2003 में आहूत हुए सत्र में 23 बैठकें हुई थीं, जिसमें 93 घंटे 23 मिनट सत्र चला और 12 घंटे 44 मिनट तक बाधित रहा.
- 2004 में आहूत हुए सत्र में 07 बैठकें हुई थीं, जिसमें 28 घंटे 22 मिनट सत्र चला और 07 घंटे 39 मिनट तक बाधित रहा.
- 2005 में आहूत हुए सत्र में 21 बैठकें हुई थीं, जिसमे 94 घंटे 22 मिनट सत्र चला और 18 घंटे 24 मिनट तक बाधित रहा.
- 2006 में आहूत हुए सत्र में 15 बैठकें हुई थीं, जिसमे 82 घंटे 30 मिनट सत्र चला और 07 घंटे 44 मिनट तक बाधित रहा.
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बीजेपी सरकार के कार्यकाल में-
- बीजेपी सरकार के कार्यकाल में 2007 में आहूत हुए सत्र में 16 बैठकें हुई थीं, जिसमे 58 घंटे 31 मिनट सत्र चला और 12 घंटे 04 मिनट तक बाधित रहा.
- 2008 में आहूत हुए सत्र में 20 बैठकें हुई थीं, जिसमें 63 घंटे 36 मिनट सत्र चला और 11 घंटे 26 मिनट तक बाधित रहा.
- 2009 में आहूत हुए सत्र में 18 बैठकें हुई थीं, जिसमे 89 घंटे 43 मिनट सत्र चला और 18 घंटे 29 मिनट तक बाधित रहा.
- 2010 में आहूत हुए सत्र में 13 बैठकें हुई थीं, जिसमें 59 घंटे 53 मिनट सत्र चला और 11 घंटे 27 मिनट तक बाधित रहा.
- 2011 में आहूत हुए सत्र में 14 बैठकें हुई थीं, जिसमे 70 घंटे 00 मिनट सत्र चला और 22 घंटे 13 मिनट तक बाधित रहा.
कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में
- कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में 2012 में आहूत हुए सत्र में 20 बैठकें हुई थीं, जिसमें 50 घंटे 22 मिनट सत्र चला और 27 घंटे 44 मिनट तक बाधित रहा.
- 2013 में आहूत हुए सत्र में 08 बैठकें हुई थीं, जिसमें 16 घंटे 38 मिनट सत्र चला और 15 घंटे 27 मिनट तक बाधित रहा.
- 2014 में आहूत हुए सत्र में 19 बैठकें हुई थीं, जिसमें 71 घंटे 09 मिनट सत्र चला और 24 घंटे 53 मिनट तक बाधित रहा.
- 2015 में आहूत हुए सत्र में 12 बैठकें हुई थीं, जिसमें 54 घंटे 52 मिनट सत्र चला और 08 घंटे 33 मिनट तक बाधित रहा.
- 2016 में आहूत हुए सत्र में 13 बैठकें हुई थीं, जिसमें 58 घंटे 08 मिनट सत्र चला और 05 घंटे 41 मिनट तक बाधित रहा.
बीजेपी सरकार के कार्यकाल में
- बीजेपी सरकार के कार्यकाल में 2017 में आहूत हुए सत्र में 13 बैठकें हुई थीं, जिसमे 70 घंटे 28 मिनट सत्र चला और 01 घंटे 30 मिनट तक बाधित रहा.
- 2018 में आहूत हुए सत्र में 14 बैठकें हुई थीं, जिसमें 62 घंटे 00 मिनट सत्र चला और 02 घंटे 25 मिनट तक बाधित रहा.
- 2019 में आहूत हुए सत्र में 17 बैठकें हुई थीं, जिसमें 70 घंटे 17 मिनट सत्र चला और 02 घंटे 42 मिनट तक बाधित रहा.
बजट में प्रदेश के जनमानस की इच्छा के अनुरूप विकास के मुद्दे से जुड़े हुए तमाम पहलुओं पर पक्ष-विपक्ष के विधायक आखिर कितना गंभीर है इसका अंदाजा सत्र के नियमानुसार समय अवधि से कम अवधि का सत्र होने को बहुत ही आसानी से समझा जा सकता है. उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में जो भी उत्तराखंड विधानसभा के सत्र आहूत होंगे, वो सत्र कम से कम नियमानुसार समय अवधि को पूरा करने वाले होंगे.