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पंचायत प्रतिनिधियों के संतानों का महकमा जुटा रहा जानकारी, 2 बच्चों वाला नियम से जुड़ा मामला - Breaking the rule with 2 kids

उत्तराखंड पंचायती राज विभाग पंचायत प्रतिनिधियों के बच्चों की जानकारी जुटा रहा है. विभाग को शिकायत मिल रही है कि की प्रतिनिधियों ने 2 बच्चों वाला नियम का उल्लंघन किया है. दूसरी तरफ कुछ विधायकों ने भी नियम का विरोध जताते हुए नियम को गलत बताया है.

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Published : Dec 1, 2022, 12:40 PM IST

देहरादूनः उत्तराखंड में पंचायतों पर लागू 2 से अधिक बच्चों के नियम को लेकर इन दिनों बहस तेज है. दरअसल, हाल ही में अल्मोड़ा जिले में बीडीसी मेंबर समेत दो प्रधानों को त्रिस्तरीय पंचायतों में लागू 2 से अधिक बच्चों के इस नियम के चलते अपनी सदस्यता खोनी पड़ी है. यही नहीं, पंचायत प्रतिनिधियों के 2 से अधिक बच्चे होने की भी शिकायतें समय-समय पर मिलती रही है. लिहाजा, अब पंचायती राज विभाग (Uttarakhand Panchayati Raj Department) ने प्रदेश भर से पंचायत प्रतिनिधियों की संतानों को लेकर जानकारी जुटाने शुरू कर दी है.

ये है नियमः उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायतों को लेकर एक खास नियम लागू किया गया है. इसमें 2 से अधिक बच्चे होने पर इन पंचायतों के लिए चुनाव नहीं लड़ा जा सकता है. दरअसल, 25 जुलाई 2019 के बाद तीन संतान वाले उम्मीदवार अयोग्य घोषित किए गए हैं. इस नियम के चलते कई लोगों को त्रिस्तरीय पंचायतों में नेतागिरी का मौका खोना पड़ा है. हालांकि, इसके बावजूद भी कई पंचायत प्रतिनिधियों को इसलिए अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी है क्योंकि चुनाव जीतने के बाद उनकी तीसरी संतान ने जन्म लिया.

पंचायत प्रतिनिधियों के संतानों का महकमा जुटा रहा जानकारी

उधर कुछ शिकायतें ऐसी भी आई हैं जिसमें पंचायत प्रतिनिधि ने चुनाव लड़ने के दौरान गलत जानकारी दी और बाद में शिकायत होने पर उसे अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी. हालांकि, जब यह नियम आया था उसके बाद से ही पंचायतों में चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वाले लोगों और जनप्रतिनिधियों ने इसका विरोध किया था. हालांकि उन्हें राहत नहीं मिली.
ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड में सरकारी नौकरी: UKPSC ने निकाली वैकेंसी, 12वीं पास भी कर सकते हैं अप्लाई

विधायक कर रहे विरोधः हाल ही में अल्मोड़ा में बीडीसी मेंबर और प्रधानों को इसी वजह से कुर्सी छोड़नी पड़ी तो एक बार फिर इस मामले पर बहस तेज हो गई है. मामले पर अब विधायकों ने भी विरोध करते हुए साफ किया है कि यह नियम गलत बनाए गए हैं और ऐसा करने से न केवल जनप्रतिनिधि बल्कि आम लोगों को भी आधे कार्यकाल में ही इस्तीफा होने से विकास कार्य नहीं होने की दिक्कतों से जूझना पड़ता है.

त्रिस्तरीय पंचायतों के प्रतिनिधियों को लेकर लगातार तीन संतानों से जुड़ी शिकायतें पंचायती राज विभाग को मिलती रही है और इसमें कई बार तथ्य छिपाने तक की भी शिकायतें मिली है. जिसके बाद विभाग की तरफ से ऐसे मामलों में न्याय संगत कार्रवाई भी की जाती है. उधर जिस तरह से शिकायतें मिल रही हैं उसके बाद पंचायती राज विभाग ने ऐसे मामलों के लिए प्रदेशभर से प्रतिनिधियों की जानकारी जुटाने का काम शुरू कर दिया है. इसके लिए महकमे की तरफ से विभागीय कर्मियों को ब्यौरा देने के लिए कहा गया है.

देहरादूनः उत्तराखंड में पंचायतों पर लागू 2 से अधिक बच्चों के नियम को लेकर इन दिनों बहस तेज है. दरअसल, हाल ही में अल्मोड़ा जिले में बीडीसी मेंबर समेत दो प्रधानों को त्रिस्तरीय पंचायतों में लागू 2 से अधिक बच्चों के इस नियम के चलते अपनी सदस्यता खोनी पड़ी है. यही नहीं, पंचायत प्रतिनिधियों के 2 से अधिक बच्चे होने की भी शिकायतें समय-समय पर मिलती रही है. लिहाजा, अब पंचायती राज विभाग (Uttarakhand Panchayati Raj Department) ने प्रदेश भर से पंचायत प्रतिनिधियों की संतानों को लेकर जानकारी जुटाने शुरू कर दी है.

ये है नियमः उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायतों को लेकर एक खास नियम लागू किया गया है. इसमें 2 से अधिक बच्चे होने पर इन पंचायतों के लिए चुनाव नहीं लड़ा जा सकता है. दरअसल, 25 जुलाई 2019 के बाद तीन संतान वाले उम्मीदवार अयोग्य घोषित किए गए हैं. इस नियम के चलते कई लोगों को त्रिस्तरीय पंचायतों में नेतागिरी का मौका खोना पड़ा है. हालांकि, इसके बावजूद भी कई पंचायत प्रतिनिधियों को इसलिए अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी है क्योंकि चुनाव जीतने के बाद उनकी तीसरी संतान ने जन्म लिया.

पंचायत प्रतिनिधियों के संतानों का महकमा जुटा रहा जानकारी

उधर कुछ शिकायतें ऐसी भी आई हैं जिसमें पंचायत प्रतिनिधि ने चुनाव लड़ने के दौरान गलत जानकारी दी और बाद में शिकायत होने पर उसे अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी. हालांकि, जब यह नियम आया था उसके बाद से ही पंचायतों में चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वाले लोगों और जनप्रतिनिधियों ने इसका विरोध किया था. हालांकि उन्हें राहत नहीं मिली.
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विधायक कर रहे विरोधः हाल ही में अल्मोड़ा में बीडीसी मेंबर और प्रधानों को इसी वजह से कुर्सी छोड़नी पड़ी तो एक बार फिर इस मामले पर बहस तेज हो गई है. मामले पर अब विधायकों ने भी विरोध करते हुए साफ किया है कि यह नियम गलत बनाए गए हैं और ऐसा करने से न केवल जनप्रतिनिधि बल्कि आम लोगों को भी आधे कार्यकाल में ही इस्तीफा होने से विकास कार्य नहीं होने की दिक्कतों से जूझना पड़ता है.

त्रिस्तरीय पंचायतों के प्रतिनिधियों को लेकर लगातार तीन संतानों से जुड़ी शिकायतें पंचायती राज विभाग को मिलती रही है और इसमें कई बार तथ्य छिपाने तक की भी शिकायतें मिली है. जिसके बाद विभाग की तरफ से ऐसे मामलों में न्याय संगत कार्रवाई भी की जाती है. उधर जिस तरह से शिकायतें मिल रही हैं उसके बाद पंचायती राज विभाग ने ऐसे मामलों के लिए प्रदेशभर से प्रतिनिधियों की जानकारी जुटाने का काम शुरू कर दिया है. इसके लिए महकमे की तरफ से विभागीय कर्मियों को ब्यौरा देने के लिए कहा गया है.

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