देहरादूनः उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं पूरी तरह से बदहाल हैं. सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर लाख दावा करे लेकिन हकीकत धरातल के विपरीत है. आश्चर्य की बात यह है कि स्वास्थ्य विभाग स्वयं सीएम त्रिवेंद्र संभाल रहे हैं, ऐसे में नागरिकों को स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधा न मिल पाना चिंता का विषय है. नीति आयोग की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड स्वास्थ्य सेवाओं में फिसड्डी साबित हुआ है. 23 अलग-अलग मानकों पर तैयार नीति आयोग की रिपोर्ट बता रही है कि राज्य में तो स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार ही नहीं हो रहा.
उत्तराखंड में जमीन पर डिलीवरी, वक्त पर एंबुलेंस न मिलना, इलाज में देरी जैसी खबरें आम हैं और खराब स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर कई बार सवाल भी उठते रहे हैं. खुद मुख्यमंत्री भी यह स्वीकार कर चुके हैं कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. लेकिन अब नीति आयोग की रिपोर्ट ने इस सच्चाई पर मुहर लगा दी है कि उत्तराखंड में स्वास्थ्य व्यवस्था लचर है.
स्वास्थ्य उन 40 से अधिक विभागों में से एक है जिसकी जिम्मेदारी खुद मुख्यमंत्री संभाल रहे हैं. स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली का मुद्दा अब मीडिया, विधानसभा से निकलकर नीति आयोग तक पहुंच गया है. नीति आयोग की रिपोर्ट ने स्वास्थ्य व्यवस्था पर राज्य सरकार को आईना दिखा दिया है देशभर के सभी राज्यों में सर्वेक्षण के आधार पर तैयार रिपोर्ट में उत्तराखंड उन राज्यों में शामिल है जहां हालात खराब हैं.
वहीं नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिसा, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड में हेल्थ सेक्टर पूरी तरह खस्ताहाल है. केरल, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र गुजरात और पंजाब में स्वास्थ्य व्यवस्था सबसे बेहतर हैं. जिन 21 राज्यों में स्वास्थ्य सेवाएं सुधर रहीं हैं उनमें भी उत्तराखंड 19वें नंबर पर है. यह चिंताजनक इसलिए भी है क्योंकि खराब स्वास्थ्य सेवाओं को पहाड़ों से पलायन की बड़ी वजह माना जाता है.
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वहीं अब उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग की महानिदेशक अमिता उप्रेती का कहना है कि नीति आयोग ने दो आकांक्षी जिले घोषित किए हैं जिनमें हरिद्वार और उधम सिंह नगर हैं, लेकिन स्वास्थ्य को लेकर जो कमियां नजर आ रहीं हैं उनको समय रहते पूरा किया जा रहा है. हालांकि स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने की बात भी उप्रेती ने कही, जिससे कि आमजन को समय पर इलाज मिल सके.