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जिस 'मिलेट्स' के पीछे आज भाग रही पूरी दुनिया, कभी उत्तराखंड का मुख्य भोजन था वो 'मोटा अनाज'

International Year of Millets 2023 में मोटे अनाजों पर चर्चा जोरों से चल रही है. मिलेट्स यानी मोटा अनाज दुनिया के सबसे पुराने उत्पादित अनाजों में से हैं. हजारों साल पहले पूरे अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया में मिलेट्स उगाए जाते थे. इनका उपयोग अनेक तरह के खाद्य और पेय पदार्थ बनाने में किया जाता था. उत्तराखंड में भी मिलेट्स यानी मोटा अनाज की समृद्ध परंपरा रही है.

International Year of Millets
उत्तराखंड मिलेट्स
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Published : Apr 14, 2023, 12:20 PM IST

Updated : Apr 14, 2023, 4:48 PM IST

उत्तराखंड में मोटे अनाज की खेती

देहरादून: पूरा विश्व आज मिलेट्स पर बात कर रहा है. आज UNO की घोषणा के बाद इस पूरे वर्ष को मिलेट्स वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है. आज जिन मोटे अनाजों को ले करके पूरी दुनिया इतनी गंभीर हुई है, यह मोटे अनाज कभी उत्तराखंड की परंपराओं में शामिल हुआ करते थे. उत्तराखंड में मोटे अनाज की क्या है पूरी कहानी है, आइए जानते हैं हमारी इस स्पेशल स्टोरी में.

हिमालयी राज्य उत्तराखंड की परंपराओं में था मोटा अनाज: हिमालय की गोद में बसे पर्वतीय राज्य उत्तराखंड तकरीबन 53,483 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. राज्य प्राकृतिक संपदा से ओतप्रोत और अपने आप में असीम जैव विविधता लिए हुए है. उत्तराखंड राज्य के पर्वतीय इलाके अपना समृद्ध इतिहास रखते हैं. उत्तराखंड के गांवों में बने सीढ़ीनुमा खेत आज भी कृषि कार्यों के लिए मौजूद हैं.

धार्मिक अनुष्ठानों में भी होता था मोटे अनाज का प्रयोग: एक दौर था जब इन गांवों में कई तरह की फसलें लहलहाती थीं. अनेकों प्रकार के मोटे अनाज इन खेतों में हुआ करते थे. पहाड़ों पर होने वाली खेती यहां की संस्कृति और परंपराओं का एक हिस्सा हुआ करती थी. पहाड़ों पर उगने वाला कोदा, झंगोरा, कोणी, चीणा, मारसा पहाड़ के धार्मिक पूजा पाठ और अनुष्ठानों का अहम हिस्सा हुआ करते थे. वहीं यही मोटे अनाज पहाड़ के हर एक व्यक्ति का भोजन हुआ करता था. यही पहाड़ के पहाड़ जैसे जीवन में संघर्ष की सामर्थ्य बनता था.

गरीबों का भोजन कहा जाने लगा मोटा अनाज: समय बीता और आधुनिकीकरण के चलते मोटे अनाज केवल गरीबों का खाना माने जाने लगे. ग्लैमर के इस युग में बाजारीकरण ने अपनी जगह बनाई. लिहाजा उत्तराखंड के पहाड़ी अंचलों में उगाए जाने वाला मोटा अनाज धीरे-धीरे विलुप्त होने लगा. आज ना तो पहाड़ों पर मोटा अनाज बचा है. ना ही लोगों के जीवन में इसकी परंपराएं बची हैं. ना ही इसको उगाने वाले वह पुराने लोग बचे हैं. लिहाजा अब जब लोगों में इस मोटे अनाज को लेकर के जागरूकता आई है, तो सरकार को वापस इस मोटे अनाज के प्रति मुहिम चलाने की जरूरत आन पड़ी है.

उत्तराखंड में तेजी से घटा है कृषि क्षेत्र: राज्य गठन के समय उत्तराखंड में कुल 7.70 लाख हेक्टेयर भूमि पर खेती की जाती थी जो कि इन 23 सालों में घटकर 1.49 लाख हेक्टेयर भूमि में सिमट कर रह गई है. यानी कि इस दौरान कई हेक्टेयर भूमि बंजर हुई है. उत्तराखंड में लगातार हुए पलायन और उजड़ते गांवों के कारण समाज के साथ-साथ यहां पर होने वाली खेती ने भी अपना अस्तित्व तकरीबन खोया है. खुद कृषि विभाग इस बात की तस्दीक करता है कि कृषि क्षेत्र में आई इस गिरावट में मैदानी इलाकों में आवासीय, शैक्षणिक संस्थाओं, उद्योगों, सड़कों आदि बुनियादी सुविधाओं के तेजी से विकास और पहाड़ी क्षेत्रों में पलायन के कारण ऐसा हुआ है. लगभग 70 फ़ीसदी वनों से आच्छादित हिमालयी राज्य उत्तराखंड में आज तकरीबन 6.21 लाख हेक्टेयर भूमि में खेती की जा रही है. अधिकतर पहाड़ी और थोड़े बहुत मैदानी भूभाग वाले उत्तराखंड राज्य में पहाड़ों पर तकरीबन 3.28 लाख हेक्टेयर भूमि पर खेती की जा रही है तो वहीं मैदानी इलाकों में तकरीबन 2.93 हेक्टेयर भूमि पर इस वक्त खेती की जा रही है.

कोविड 19 ने दुनिया को मोड़ा मिलेट्स की तरफ: पोषण से जुड़ी असुरक्षा दुनिया की पुरानी समस्या है. लेकिन वर्ष 2020 में अचानक आए कोविड-19 ने इस पुरानी समस्या को और कई गुना बड़ा कर दिया. पोषण के साथ-साथ इम्यूनिटी और स्वास्थ्य वर्धक पोषक तत्वों से भरे खाद्य पदार्थों पर एक बार पूरी दुनिया में जब बहस छिड़ी तो जवाब में मोटा अनाज ही सामने आया. यानी कि उसे आज मिलेट्स के नाम से जाना जा रहा है. मिलेट्स दुनिया के लिए एक बिल्कुल नया शब्द हो सकता है, लेकिन यह वही है जो कि उत्तराखंड की पुरानी फसलें हुआ करती थीं. इनमें मंडुवा, कांगनी, शामा, कुटकी, कोदो, झंगोरा, कोणी, चीणा इत्यादि शामिल हैं. भारत सरकार ने इन अनाजों को पौष्टिक अनाज का दर्जा दिया है. इन्हें पौष्टिक अनाज की श्रेणी में अनुसूचित किया है. यह सभी फसलें पर्वतीय इलाकों की मुख्य फसलें मानी जाती हैं. यही वजह है कि उत्तराखंड राज्य मिलेट्स में पूरे देश में सर्वश्रेष्ठ राज्य है.

मोटे अनाज में पाए जाने वाले पोषक तत्व: मोटे अनाज में अनेक पोषक तत्व पाए जाते हैं. अगर मोटे अनाजों में पाए जाने वाले प्रोटीन का डेटा देखा जाए तो वो इस प्रकार है-

  • - मंडुवा में 1.3% प्रोटीन, 1.3% फैट और 328 कैलोरी पाई जाती है
  • - झंगोरा में 6.2% प्रोटीन, 5.8% फैट और 309 कैलोरी प्रति 100 ग्राम में मिलती है
  • - रामदाना (मारासा) में 15.6% प्रोटीन, 6.3% फैट और 410 कैलोरी प्रति 100 ग्राम में मिलती है

उत्तराखंड में मिलेट्स की स्थिति: वैसे तो उत्तराखंड में मोटा अनाज परंपराओं में शामिल है, लेकिन समय के साथ साथ यह मोटा अनाज और इसकी परंपराएं काफी पुरानी हो चुकी हैं. आज की युवा पीढ़ी इसके बारे में उतना नहीं जानती है लेकिन उसके बावजूद भी सरकार के तमाम प्रयासों और कुछ पुराने लोगों के प्रयासों के जरिए उत्तराखंड में मोटे अनाज यानी मिलेट्स में ज्यादातर मंडुवा उगाया जाता है. मंडुवा राज्य के 13 जिलों में से तकरीबन 11 जिलों के पर्वतीय क्षेत्रों में उगाया जाता है. यह कुल कृषि का तकरीबन 9 फीसदी कृषि क्षेत्र है.

मंडुवा उगाने में पौड़ी अव्वल: जिलों में उगाए जाने वाले मंडुवे पर अगर नजर दौड़ाएं तो पौड़ी गढ़वाल में सबसे ज्यादा 25,430 हेक्टेयर भूमि पर 31,871 मीट्रिक टन मंडुवा का उत्पादन किया जा रहा है. वहीं दूसरे स्थान पर टिहरी में 15,802 हेक्टेयर भूमि पर 21,047 मीट्रिक टन मंडुवे का उत्पादन किया जा रहा है. तीसरे नंबर पर चमोली जिले में 10,639 हेक्टेयर भूमि पर 17,942 मीट्रिक टन मंडुवे का उत्पादन किया जा रहा है. इसी तरह से हरिद्वार और उधम सिंह नगर को छोड़कर सभी जिलों में तकरीबन 127,733 हेक्टेयर क्षेत्र में 162,286 मीट्रिक टन मंडुवे का उत्पादन किया जा रहा है.

उत्तराखंड में मोटे अनाज की खेती

देहरादून: पूरा विश्व आज मिलेट्स पर बात कर रहा है. आज UNO की घोषणा के बाद इस पूरे वर्ष को मिलेट्स वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है. आज जिन मोटे अनाजों को ले करके पूरी दुनिया इतनी गंभीर हुई है, यह मोटे अनाज कभी उत्तराखंड की परंपराओं में शामिल हुआ करते थे. उत्तराखंड में मोटे अनाज की क्या है पूरी कहानी है, आइए जानते हैं हमारी इस स्पेशल स्टोरी में.

हिमालयी राज्य उत्तराखंड की परंपराओं में था मोटा अनाज: हिमालय की गोद में बसे पर्वतीय राज्य उत्तराखंड तकरीबन 53,483 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. राज्य प्राकृतिक संपदा से ओतप्रोत और अपने आप में असीम जैव विविधता लिए हुए है. उत्तराखंड राज्य के पर्वतीय इलाके अपना समृद्ध इतिहास रखते हैं. उत्तराखंड के गांवों में बने सीढ़ीनुमा खेत आज भी कृषि कार्यों के लिए मौजूद हैं.

धार्मिक अनुष्ठानों में भी होता था मोटे अनाज का प्रयोग: एक दौर था जब इन गांवों में कई तरह की फसलें लहलहाती थीं. अनेकों प्रकार के मोटे अनाज इन खेतों में हुआ करते थे. पहाड़ों पर होने वाली खेती यहां की संस्कृति और परंपराओं का एक हिस्सा हुआ करती थी. पहाड़ों पर उगने वाला कोदा, झंगोरा, कोणी, चीणा, मारसा पहाड़ के धार्मिक पूजा पाठ और अनुष्ठानों का अहम हिस्सा हुआ करते थे. वहीं यही मोटे अनाज पहाड़ के हर एक व्यक्ति का भोजन हुआ करता था. यही पहाड़ के पहाड़ जैसे जीवन में संघर्ष की सामर्थ्य बनता था.

गरीबों का भोजन कहा जाने लगा मोटा अनाज: समय बीता और आधुनिकीकरण के चलते मोटे अनाज केवल गरीबों का खाना माने जाने लगे. ग्लैमर के इस युग में बाजारीकरण ने अपनी जगह बनाई. लिहाजा उत्तराखंड के पहाड़ी अंचलों में उगाए जाने वाला मोटा अनाज धीरे-धीरे विलुप्त होने लगा. आज ना तो पहाड़ों पर मोटा अनाज बचा है. ना ही लोगों के जीवन में इसकी परंपराएं बची हैं. ना ही इसको उगाने वाले वह पुराने लोग बचे हैं. लिहाजा अब जब लोगों में इस मोटे अनाज को लेकर के जागरूकता आई है, तो सरकार को वापस इस मोटे अनाज के प्रति मुहिम चलाने की जरूरत आन पड़ी है.

उत्तराखंड में तेजी से घटा है कृषि क्षेत्र: राज्य गठन के समय उत्तराखंड में कुल 7.70 लाख हेक्टेयर भूमि पर खेती की जाती थी जो कि इन 23 सालों में घटकर 1.49 लाख हेक्टेयर भूमि में सिमट कर रह गई है. यानी कि इस दौरान कई हेक्टेयर भूमि बंजर हुई है. उत्तराखंड में लगातार हुए पलायन और उजड़ते गांवों के कारण समाज के साथ-साथ यहां पर होने वाली खेती ने भी अपना अस्तित्व तकरीबन खोया है. खुद कृषि विभाग इस बात की तस्दीक करता है कि कृषि क्षेत्र में आई इस गिरावट में मैदानी इलाकों में आवासीय, शैक्षणिक संस्थाओं, उद्योगों, सड़कों आदि बुनियादी सुविधाओं के तेजी से विकास और पहाड़ी क्षेत्रों में पलायन के कारण ऐसा हुआ है. लगभग 70 फ़ीसदी वनों से आच्छादित हिमालयी राज्य उत्तराखंड में आज तकरीबन 6.21 लाख हेक्टेयर भूमि में खेती की जा रही है. अधिकतर पहाड़ी और थोड़े बहुत मैदानी भूभाग वाले उत्तराखंड राज्य में पहाड़ों पर तकरीबन 3.28 लाख हेक्टेयर भूमि पर खेती की जा रही है तो वहीं मैदानी इलाकों में तकरीबन 2.93 हेक्टेयर भूमि पर इस वक्त खेती की जा रही है.

कोविड 19 ने दुनिया को मोड़ा मिलेट्स की तरफ: पोषण से जुड़ी असुरक्षा दुनिया की पुरानी समस्या है. लेकिन वर्ष 2020 में अचानक आए कोविड-19 ने इस पुरानी समस्या को और कई गुना बड़ा कर दिया. पोषण के साथ-साथ इम्यूनिटी और स्वास्थ्य वर्धक पोषक तत्वों से भरे खाद्य पदार्थों पर एक बार पूरी दुनिया में जब बहस छिड़ी तो जवाब में मोटा अनाज ही सामने आया. यानी कि उसे आज मिलेट्स के नाम से जाना जा रहा है. मिलेट्स दुनिया के लिए एक बिल्कुल नया शब्द हो सकता है, लेकिन यह वही है जो कि उत्तराखंड की पुरानी फसलें हुआ करती थीं. इनमें मंडुवा, कांगनी, शामा, कुटकी, कोदो, झंगोरा, कोणी, चीणा इत्यादि शामिल हैं. भारत सरकार ने इन अनाजों को पौष्टिक अनाज का दर्जा दिया है. इन्हें पौष्टिक अनाज की श्रेणी में अनुसूचित किया है. यह सभी फसलें पर्वतीय इलाकों की मुख्य फसलें मानी जाती हैं. यही वजह है कि उत्तराखंड राज्य मिलेट्स में पूरे देश में सर्वश्रेष्ठ राज्य है.

मोटे अनाज में पाए जाने वाले पोषक तत्व: मोटे अनाज में अनेक पोषक तत्व पाए जाते हैं. अगर मोटे अनाजों में पाए जाने वाले प्रोटीन का डेटा देखा जाए तो वो इस प्रकार है-

  • - मंडुवा में 1.3% प्रोटीन, 1.3% फैट और 328 कैलोरी पाई जाती है
  • - झंगोरा में 6.2% प्रोटीन, 5.8% फैट और 309 कैलोरी प्रति 100 ग्राम में मिलती है
  • - रामदाना (मारासा) में 15.6% प्रोटीन, 6.3% फैट और 410 कैलोरी प्रति 100 ग्राम में मिलती है

उत्तराखंड में मिलेट्स की स्थिति: वैसे तो उत्तराखंड में मोटा अनाज परंपराओं में शामिल है, लेकिन समय के साथ साथ यह मोटा अनाज और इसकी परंपराएं काफी पुरानी हो चुकी हैं. आज की युवा पीढ़ी इसके बारे में उतना नहीं जानती है लेकिन उसके बावजूद भी सरकार के तमाम प्रयासों और कुछ पुराने लोगों के प्रयासों के जरिए उत्तराखंड में मोटे अनाज यानी मिलेट्स में ज्यादातर मंडुवा उगाया जाता है. मंडुवा राज्य के 13 जिलों में से तकरीबन 11 जिलों के पर्वतीय क्षेत्रों में उगाया जाता है. यह कुल कृषि का तकरीबन 9 फीसदी कृषि क्षेत्र है.

मंडुवा उगाने में पौड़ी अव्वल: जिलों में उगाए जाने वाले मंडुवे पर अगर नजर दौड़ाएं तो पौड़ी गढ़वाल में सबसे ज्यादा 25,430 हेक्टेयर भूमि पर 31,871 मीट्रिक टन मंडुवा का उत्पादन किया जा रहा है. वहीं दूसरे स्थान पर टिहरी में 15,802 हेक्टेयर भूमि पर 21,047 मीट्रिक टन मंडुवे का उत्पादन किया जा रहा है. तीसरे नंबर पर चमोली जिले में 10,639 हेक्टेयर भूमि पर 17,942 मीट्रिक टन मंडुवे का उत्पादन किया जा रहा है. इसी तरह से हरिद्वार और उधम सिंह नगर को छोड़कर सभी जिलों में तकरीबन 127,733 हेक्टेयर क्षेत्र में 162,286 मीट्रिक टन मंडुवे का उत्पादन किया जा रहा है.

Last Updated : Apr 14, 2023, 4:48 PM IST
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