देहरादूनः उत्तराखंड मॉनसून सीजन (Uttarakhand Monsoon Season) के दौरान सबसे संवेदनशील राज्यों में शुमार है. यहां न केवल हिमालयी राज्यों के लिहाज से सबसे ज्यादा बारिश होती है, बल्कि बादल फटने की घटनाओं को भी बेहद ज्यादा रिकॉर्ड किया (Most cloudburst event in Uttarakhand) गया है. हर साल प्रदेश में अतिवृष्टि और बादल फटने के कारण जान और माल का भारी नुकसान हो रहा है. हैरानी की बात यह है कि पिछले कुछ समय में ऐसी घटनाओं की संख्या भी बढ़ती हुई दिखाई दी है. हालांकि, इसके लिए अनियोजित विकास को बड़ी वजह वैज्ञानिक मान रहे हैं.
साल 2013 में केदारनाथ की घटना देश-दुनिया के लिए एक बड़ा सबक थी. जल प्रलय की तस्वीरें इंसान को पर्यावरणीय दखल के हश्र भुगतने का संदेश दे रही थी. लेकिन देवभूमि के लिए ये आपदा कोई पहली या आखिरी नहीं थी. दरअसल, मॉनसून के दौरान उत्तराखंड के विभिन्न हिस्से आपदा का दंश झेलते रहे हैं. खासतौर पर बादल फटने या अतिवृष्टि के बाद तो तबाही की कई तस्वीरें हर साल वायरल होती है.
आपको जानकर हैरानी होगी कि उत्तराखंड में हर साल बादल फटने की घटनाएं होती है, जिसमें लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ती है. वैसे तो बादल फटने की सभी घटनाओं को मौसम विभाग रिकॉर्ड नहीं कर पाता. लेकिन, इसके बावजूद मौसम विभाग 1970 से अबतक तक ऐसी करीब 60 बड़ी घटनाएं रिकॉर्ड कर चुका है, जिनमें बादल फटने के कारण बेहद ज्यादा नुकसान हुआ.
ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड में बढ़ रही मल्टी क्लाउड बर्स्ट की घटनाएं, जानें कारण
मौसम विभाग मानता है कि हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड उन प्रदेशों में शामिल है, जहां मॉनसून के दौरान सबसे ज्यादा बारिश होती है. एक रिकॉर्ड के मुताबिक, मॉनसून सीजन में प्रदेश में करीब 1200 मिलीमीटर बारिश होती है. जबकि, पड़ोसी राज्य हिमाचल में यह आंकड़ा मॉनसून के दौरान करीब 800 मिलीमीटर ही रहता है. जम्मू कश्मीर से लेकर हरियाणा तक और दूसरे पड़ोसी राज्यों में बारिश का यह आंकड़ा और भी कम रहता है.
जाहिर है कि बेहद ज्यादा बारिश वाले उत्तराखंड में बादल फटने या अतिवृष्टि की संभावनाएं भी सबसे ज्यादा ही होती है. इस बात को मौसम विभाग के अधिकारी भी मानते हैं. मौसम विभाग के निदेशक विक्रम सिंह कहते हैं कि सबसे ज्यादा बादल फटने की घटनाएं पहाड़ी क्षेत्रों से लगी तलहटी पर होती है. ऐसे में इन जगहों पर मानव बस्ती होने की स्थिति में जानमाल के नुकसान की संभावना ज्यादा रहती है. वैसे प्रदेश में बादल फटने से जुड़े सटीक आंकड़े मौसम विभाग के पास नहीं है, लेकिन मौजूदा बारिश के आंकड़ों पर गौर करें तो उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाओं को लेकर चिंताएं बढ़ रही है.
क्या कहते हैं आंकड़ेः
- बादल फटने से जुड़ी साउथ एशियन नेटवर्क ऑन डैम, रिवर्स एंड पीपुल की रिपोर्ट में हिमालयी राज्यों में से उत्तराखंड में 2020 के दौरान सबसे ज्यादा बादल फटने का आंकड़ा बताया गया है.
- साल 2020 में कुल 29 बादल फटने की घटना 6 हिमालयी राज्यों में बताई गई. इनमें करीब आधी यानी 14 घटनाएं अकेले उत्तराखंड में हुई, इसके अलावा J&K में 9, हिमाचल में 3, मेघालय, सिक्किम और अरुणाचल में 1-1 बादल फटने की घटनाएं दर्ज की गई.
- उत्तराखंड में साल 2018 में कुल 7 बादल फटने या अतिवृष्टि की घटनाएं रिकॉर्ड हुई. इन घटनाओं में 10 लोगों की मौत हुई.
- साल 2019 में कुल 23 बादल फटने या अतिवृष्टि की घटनाएं रिकॉर्ड हुई. 31 लोगों की मौत भी हुई.
- साल 2020 में कुल 14 बादल फटने/अतिवृष्टि की घटनाएं हुई, जिसमें 19 लोगों की मौत हुई.
- साल 2021 में कुल 26 बादल फटने/अतिवृष्टि की घटना हुई. इसमें 11 लोगों की जान गई. 50 जानवरों की मौत भी हुई.
ये भी पढ़ेः उत्तराखंड में बार बार फट रहे बादल, सरकार चिंतित, वजह जानने में जुटे वैज्ञानिक
इसलिए फटते हैं बादलः अब सवाल यह आता है कि उत्तराखंड राज्य में है पिछले कुछ सालों में बादल फटने की घटनाएं क्यों हो रही है. इसका जवाब वैज्ञानिकों से बेहतर कौन दे सकता है. लिहाजा, ईटीवी भारत ने इसको लेकर वाडिया इंस्टीट्यूट के रिटायर्ड वैज्ञानिक डीपी डोभाल से बात की. उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में बड़ी और गहरी संकरी घाटियां है. जिसकी वजह से बादल ज्यादा घाटियों में ऊपर नहीं उठ पाते हैं और निचले हिस्सों में गर्म हवा और ठंडी हवा की वजह से दबाव इतना बढ़ जाता है कि घाटियों में बादल फटने की घटनाएं होती है.
सबसे बड़ी बात यह है कि क्लाउड बर्स्ट यानी बादल फटने की घटनाओं का सटीक डाटा अभी तक ना तो उत्तराखंड के पास है और ना ही दूसरे हिमालय राज्यों के पास है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके लिए डॉप्लर रडार (doppler radar) ज्यादा से ज्यादा लगाने होंगे. इससे मिलने वाले डाटा पर रिसर्च की जा सके.
बादल फटने की घटनाएं जिस तरीके से पिछले कुछ समय में उत्तराखंड राज्य में बड़ी है. उसकी वजह एक ओर जहां प्राकृतिक कारण जिम्मेदार हैं तो वहीं, इसकी सबसे बड़ी वजह पेड़ों का कटान और डेवलपमेंट भी है. क्योंकि लगातार कंस्ट्रक्शन होने से पॉल्यूशन बढ़ता है और हवा में धूल के कण ज्यादा हो जाते हैं साथ ही धरातल ज्यादा गर्म हो जाता है.