देहरादून: गढ़वाल में कहावत है कि गल्ला न पल्ला ब्यौ मंगण चला...मतलब जेब में पैसा नहीं और चले शादी करने...ये कहावत उत्तराखंड के नेताओं पर भी सटीक बैठती है. प्रदेश उधारी के दौर से गुजर रहा है और उत्तराखंड के नेता सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने के लिए इन दिनों मुफ्त की योजनाओं का ख्वाब दिखाकर जनता को बरगलाने में जुटे हैं.
जनता को फ्री की योजना का लालच देकर सत्ता की चाबी हासिल करना अब राजनीतिक दलों के लिए नया पैंतरा बन चुका है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी को भी इसी मुद्दे की बदौलत सत्ता पाने में कामयाब होता देख अब बाकी दल भी इसी ढर्रे पर चलने लगे हैं. इसी का नतीजा है कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी जनता को हसीन ख्वाब दिखाकर मुफ्त में बिजली और पानी देने की घोषणा कर दी.
लिहाजा चुनावी साल में आने वाले दिनों में बाकी राजनीतिक दलों और नेताओं की तरफ से भी कुछ इसी तरह की घोषणाएं जनता के सामने होती हुई दिखाई देंगी लेकिन इन घोषणाओं पर यकीन करने से पहले इस बात पर मंथन करना जरूरी है कि क्या वाकई राजनेताओं के यह वादे हकीकत में तब्दील हो सकते हैं?
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ईटीवी भारत कुछ इन्ही बातों को लेकर आंकड़ों के साथ आपके सामने राजनेताओं के इन वादों और उसकी हकीकत को रखने जा रहा है. सबसे पहले उत्तराखंड के मौजूदा हालात को जानना जरूरी है, जिसके जरिए प्रदेश के आर्थिक हालात को समझा जा सकता है.
आमदनी अट्ठनी खर्चा रुपैया
यह तो थी कर्ज की बात अब यदि हम उत्तराखंड में आमदनी की बात करें तो-
- राज्य करीब 40000 करोड़ की कमाई करता है जबकि खर्चा 48000 करोड़ का होता है.
- प्रदेश का बजट करीब 48663 करोड़ सलाना है.
- इसका करीब 42 प्रतिशत तो कर्ज के ब्याज और कर्मचारियों के वेतन व पेंशन में ही खर्च हो जाता है.
इन आंकड़ों को देखकर समझिए कि राजनेता मुफ्त की योजनाओं का जो वादा कर रहे हैं उसे पूरा करना इन हालात में करीब नामुमकिन है.
200 यूनिट बिजली मुफ्त देने टेढ़ी खीर
उत्तराखंड में बिजली-पानी मुफ्त देने की शुरुआत पूर्व सीएम हरीश रावत ने की है. हरीश रावत ने प्रदेश की जनता को कांग्रेस की सरकार आने पर 200 यूनिट बिजली और 25 लीटर पीने का पानी प्रतिदिन नि:शुल्क उपलब्ध करवाने का वादा किया है. 25 लीटर पानी का वादा तो शायद चल जाये, लेकिन 200 यूनिट बिजली मुफ्त देना सरकार के लिए टेढ़ी खीर होगा.
जानकारी के लिए बता दें कि उत्तराखंड में हर दिन 16 मेगावाट बिजली की जरूरत होती है, जिसे उत्तराखंड में न तो जल विद्युत निगम पूरा कर पाता है और न ही सौर ऊर्जा या पिरूल से बनने वाली बिजली से ही इसे पूरा किया गया सका है. नतीजतन प्रदेश को 52 प्रतिशत बिजली महंगी कीमत पर बाहर से खरीदनी पड़ती है. अंदाजा लगाइए कि जो प्रदेश मौजूदा स्थिति में भी जरूरत को पूरा करने के लिए बिजली बाहर से खरीद रहा हो वहां बिजली मुफ्त देने का वादा हसीन ख्वाब से ज्यादा और कुछ नहीं हो सकता है.
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मौजूदा स्थिति पर वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र जोशी कहते हैं कि चुनाव नजदीक आते ही तमाम राजनीतिक दल इस तरह के वायदे और घोषणाएं करते हैं. जिसे पूरा करना काफी मुश्किल होता है. हरीश रावत ने जो वादा किया है वह बेहद लुभावना है. मुख्यमंत्री रहते हुए हरीश रावत ने जो घोषणाएं की थी क्या वे योजनाएं पूरी हो पाई हैं? ऐसे में मुफ्त की योजनाओं को अमलीजामा पहनाना राज्य में मुश्किल है.
बहरहाल, जनता को 'उधार का घी' पिलाने की इस दौड़ में कांग्रेस के अलावा अन्य दल भी पीछे नहीं है. लेकिन जनता को यह जान लेना चाहिए कि नेताजी की के इस 'उधारी के घी' का मूल्य उन्हें ही चुकाना होगा. क्योंकि राज्य के ऊपर साल दर साल बढ़ते कर्ज में स्थिति आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया वाली हो चुकी है.