देहरादून: जोशीमठ में हो रहे भू धंसाव को लेकर के आपदा प्रबंधन विभाग कितना गंभीर है इस बात का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि पिछले 6 महीनों से अब तक आपदा प्रबंधन विभाग जोशीमठ का एक बेस मैप (कंटूर मैप) नहीं बना पाया है. यह हालात तब हैं जब आपदा प्रबंधन विभाग के पास खुद की एक GIS लैब हुआ करती थी, लेकिन आज वो लैब कहां गायब हो गई इसका किसी को पता नहीं है. जोशीमठ आपदा के बीच अब आपदा प्रबंधन विभाग GIS लैब और बेस मैप के लिए इधर उधर भटक रहा है.
कहां गई आपदा प्रबंधन की डेडीकेटेड GIS लैब?: राज्य गठन के बाद हिमालय राज्य उत्तराखंड जो कि आपदा के दृष्टिकोण से बेहद संवेदनशील है, वहां GIS मैप प्रणाली आपदा प्रबंधन की रीढ़ है. जिसे देखते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने वर्ष 2004 में DMMC में एक बेहद हाई क्लास GIS लैब की स्थापना की. उस समय प्रदेश में आपदा प्रबंधन के लिए DMMC यानी डिजास्टर मैनेजमेंट एंड मिटिगेशन सेंटर अस्तित्व में था. उत्तराखंड में उत्तर भारत की सबसे बेहतरीन GIS लैब की स्थापना की गई. DMMC में मौजूद यह डेडिकेटेड GIS लैब कई सालों तक अस्तित्व में रही. इस दौरान उत्तराखंड के कई शहरों का बेस मैप या फिर कंटूर मैप भी बने. यहां तक की जोशीमठ का भी कंटूर मैप इसी GIS लैब में बना.
पढे़ं- उत्तराखंड से 9600 मीट्रिक टन मंडुआ खरीदेगी केंद्र सरकार, ₹3574 समर्थन मूल्य निर्धारित
इस GIS लैब में GIS ऑपरेटर के पद पर काम कर चुके सुनील बडोनी ने बताया DMMC में वर्ष 2004 में एसजीआईएस लैब की स्थापना की गई. वर्ष 2009 से 2019 तक लगातार उन्होंने इस लैब में जीआईएस ऑपरेटर के तौर पर काम किया. इस दौरान इस GIS लैब में काफी काम हुआ. उत्तराखंड के कई शहरों के कंटूर मैप तैयार किए गए. वर्ष 2019 के बाद DMMC के USDMA यानी उत्तराखंड स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के रूप में अपग्रेड होने के बाद इस डेडीकेटेड लैब को खत्म कर दिया गया. इस लैब में काम करने वाले टेक्निकल लोगों की भी सेवाएं समाप्त कर दी गई.
पढे़ं- Union Budget 2023: उत्तराखंड को नहीं मिला ग्रीन बोनस का तोहफा, फ्लोटिंग पॉपुलेशन से बढ़ी परेशानी
कमाल की बात यहां यह है कि उत्तराखंड आईटीडीए ने आज तक इस तरह का काम पहले कभी नहीं किये. वह पहली बार कंटूर मैप या फिर बेस मैप बनाने का काम कर रहा है. वह भी बिना GIS लैब की मदद के ये काम कर रहा है. आईटीडीए की निदेशक नितिका खंडेलवाल बताती हैं इस तरह के कंटूर मैप बनाने का काम सर्वे ऑफ इंडिया या फिर राज्य में उत्तराखंड स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (USAC) का है, लेकिन उनके कुछ लोगों द्वारा ड्रोन इमेजरी की मदद से इस मैप को बनाने का प्रयास किया जा रहा है.
आपदा में प्लानिंग के लिए कितना महत्वपूर्ण कंटूर मैप: राज्य में कंटूर मैप बनाने के लिए डेडीकेटेड उत्तराखंड स्पेस एप्लीकेशन सेंटर यानी USAC के पूर्व निदेशक प्रोफेसर एमपीएस बिष्ट बताते हैं कि किसी भी स्थान पर जब आपदा के लिए हादसे या फिर भौगोलिक परिक्षेत्र में काम किया जाता है या फिर काम करने की प्लानिंग की जाती है तो उसके लिए सबसे पहले बेस मैप यानी कंटूर मैप की जरूरत होती है. इसी मैप पर तमाम तरह के डाटा को इंटीग्रेट किया जाता है. प्रोफेसर एमपीएस बिष्ट बताते हैं कि कंटूर मैप की मदद से DEM और DTM मॉडल यानी एलिवेशन मॉडल और टरेन मॉडल को तैयार किया जाता है, जो कि भौगोलिक परिस्थितियों को बारीकी से प्रदर्शित करता है.
पढे़ं- Politics on Joshimath: महेंद्र भट्ट के माओवादी बयान को सीएम का समर्थन, कांग्रेस-वामपंथियों ने घेरा
6 महीने बाद क्यों बनाया जा रहा बेस मैप: जोशीमठ में लगातार हो रहे भूस्खलन का मामला बेहद पुराना है, लेकिन हाल ही में अगस्त में जब आपदा प्रबंधन की टीम ने जोशीमठ का दौरा किया था उसके बाद से जोशीमठ को लेकर के सुर्खियां ज्यादा बनने लगी. जब जनवरी के पहले हफ्ते में दरारें अचानक से बहुत ज्यादा बढ़ने लगी तो राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार ने भी जोशीमठ का संज्ञान लिया. उसके बाद प्रदेश और देश की तमाम बड़ी टेक्निकल एजेंसियां जोशीमठ में हो रहे इस भौगोलिक बदलाव को लेकर अपनी जांच में जुट गई. जनवरी पूरे माह की जांच पड़ताल के बाद टेक्निकल एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट सौंपी.
पढे़ं- Joshimath Sinking: NTPC का काम बंद होने से बेरोजगार हुए 300 से अधिक मजदूर, किया प्रदर्शन
हालांकि, जोशीमठ को लेकर के क्या कुछ प्लानिंग की जा रही है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिस मैप पर सब कुछ प्लान किया जाना है वही बेस मैप जनवरी माह के आखिरी तक नहीं बना. आनन-फानन में आईटीडीए जो कि इस तरह का काम नहीं करती है उसे कंटूर में बनाने को कहा गया है. वहीं, आपदा प्रबंधन विभाग की अपनी GIS लैब कहां है इस के सवाल पर आपदा प्रबंधन सचिव का कहना है कि उनके द्वारा आईटीडीए को मैप बनाने के लिए कहा गया है. मैप को और अधिक गुणवत्ता के साथ बनाया जाना है यानी कि कंटूर मैप को 2 मीटर इंटरवल पर बनाया जाना है, इसलिए ये काम आईटीडीए को दिया गया है.