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ABVP का BJP से कोई संबंध नहीं, DAV हंगामे के बाद पार्टी ने किया किनारा - आरएसएस एक्टिविस्ट बलराज मधोक की सोच

उत्तराखंड बीजेपी के प्रवक्ता नवीन ठाकुर का कहना है कि 'एबीवीपी का बीजेपी से कोई संबंध नहीं है. एबीवीपी प्रदर्शन करने के लिए स्वतंत्र है'.

एबीवीपी का बीजेपी से कोई संबंध नहीं
एबीवीपी का बीजेपी से कोई संबंध नहीं
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Published : Sep 9, 2021, 4:31 PM IST

देहरादून: अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद देश की छात्र राजनीति का एक अहम नाम है. ये संगठन अक्सर चर्चा में रहता है. देहरादून डीएवी कॉलेज में विद्यार्थी परिषद के छात्रों के हंगामे के बाद ये संगठन एक बार फिर चर्चा में है. दरअसल, बीते दिनों डीएवी कॉलेज में विद्यार्थी परिषद के छात्रों ने कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी का विरोध किया था. जिसके बाद उत्तराखंड बीजेपी ने संगठन से किनारा काट लिया है.

उत्तराखंड बीजेपी के प्रवक्ता नवीन ठाकुर का कहना है कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद बीजेपी का छात्र विंग नहीं है. बल्कि दोनों संगठनों के विचार मिलते हैं और विद्यार्थी परिषद भाजपा को समर्थन देता है. इसका मतलब यह नहीं है कि विद्यार्थी परिषद भाजपा का संगठन है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी द्वारा लगातार अपने क्षेत्र में बेहतर कार्य किया जा रहा है. ऐसे में एबीवीपी एक स्वतंत्र छात्र संगठन है और अगर विद्यार्थी परिषद के छात्र संगठन से बात करते हैं तो उनकी बातें सुनीं जाएंगी. अन्यथा वह किसी भी तरह का विरोध करने के लिए स्वतंत्र हैं.

'एबीवीपी का बीजेपी से कोई संबंध नहीं'

क्या है मामला: अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्र नेताओं ने मंत्री गणेश जोशी के खिलाफ जमकर नारेबाजी की थी और उनका पुतला भी फूंका था. छात्रों का कहना है कि गणेश जोशी छात्रसंघ चुनाव में दखल दे रहे हैं और उनके द्वारा संगठन की उपेक्षा की जा रही है. इसके साथ ही गणेश जोशी अवांछनीय तत्वों को भी संरक्षण दे रहे हैं.

पढ़ें: उत्तराखंड में सियासी समीकरण बदल सकते हैं हरक सिंह रावत, क्या दोहराएंगे इतिहास

AVBP का इतिहास: कहा जाता है कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना 1948 में हुई थी. इसके पीछे आरएसएस एक्टिविस्ट बलराज मधोक की सोच थी. लेकिन इसका औपचारिक रजिस्ट्रेशन 9 जुलाई 1949 को हुआ. इस संगठन का मकसद देश के विश्वविद्यालयों में पनप रही वामपंथी विचारधारा की काट तैयार करना था. बॉम्बे यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर यशवंतराव केलकर 1958 में इसके मुख्य ऑर्गेनाइजर बने. केलकर को ही इस संगठन को खड़ा करने के पीछे का मुख्य चेहरा बताया जाता है.

1974 में देशभर के 790 कॉलेज कैंपसों में एबीवीपी के 1 लाख 60 हजार सदस्य थे. धीरे-धीरे इस संगठन ने देश के कई यूनिवर्सिटी के छात्र संगठनों पर अपना कब्जा जमा लिया. 1983 के दिल्ली यूनिवर्सिटी के चुनाव में एबीवीपी ने पहली बार वहां परचम लहराया था. नब्बे के दशक आते-आते एबीवीपी की 1,100 ब्रांच बन चुकी थी और देशभर में इसके करीब ढाई लाख सदस्य थे. फिलहाल देश में 35 लाख से अधिक एबीवीपी के कार्यकर्ता मौजूद हैं.

देहरादून: अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद देश की छात्र राजनीति का एक अहम नाम है. ये संगठन अक्सर चर्चा में रहता है. देहरादून डीएवी कॉलेज में विद्यार्थी परिषद के छात्रों के हंगामे के बाद ये संगठन एक बार फिर चर्चा में है. दरअसल, बीते दिनों डीएवी कॉलेज में विद्यार्थी परिषद के छात्रों ने कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी का विरोध किया था. जिसके बाद उत्तराखंड बीजेपी ने संगठन से किनारा काट लिया है.

उत्तराखंड बीजेपी के प्रवक्ता नवीन ठाकुर का कहना है कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद बीजेपी का छात्र विंग नहीं है. बल्कि दोनों संगठनों के विचार मिलते हैं और विद्यार्थी परिषद भाजपा को समर्थन देता है. इसका मतलब यह नहीं है कि विद्यार्थी परिषद भाजपा का संगठन है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी द्वारा लगातार अपने क्षेत्र में बेहतर कार्य किया जा रहा है. ऐसे में एबीवीपी एक स्वतंत्र छात्र संगठन है और अगर विद्यार्थी परिषद के छात्र संगठन से बात करते हैं तो उनकी बातें सुनीं जाएंगी. अन्यथा वह किसी भी तरह का विरोध करने के लिए स्वतंत्र हैं.

'एबीवीपी का बीजेपी से कोई संबंध नहीं'

क्या है मामला: अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्र नेताओं ने मंत्री गणेश जोशी के खिलाफ जमकर नारेबाजी की थी और उनका पुतला भी फूंका था. छात्रों का कहना है कि गणेश जोशी छात्रसंघ चुनाव में दखल दे रहे हैं और उनके द्वारा संगठन की उपेक्षा की जा रही है. इसके साथ ही गणेश जोशी अवांछनीय तत्वों को भी संरक्षण दे रहे हैं.

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AVBP का इतिहास: कहा जाता है कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना 1948 में हुई थी. इसके पीछे आरएसएस एक्टिविस्ट बलराज मधोक की सोच थी. लेकिन इसका औपचारिक रजिस्ट्रेशन 9 जुलाई 1949 को हुआ. इस संगठन का मकसद देश के विश्वविद्यालयों में पनप रही वामपंथी विचारधारा की काट तैयार करना था. बॉम्बे यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर यशवंतराव केलकर 1958 में इसके मुख्य ऑर्गेनाइजर बने. केलकर को ही इस संगठन को खड़ा करने के पीछे का मुख्य चेहरा बताया जाता है.

1974 में देशभर के 790 कॉलेज कैंपसों में एबीवीपी के 1 लाख 60 हजार सदस्य थे. धीरे-धीरे इस संगठन ने देश के कई यूनिवर्सिटी के छात्र संगठनों पर अपना कब्जा जमा लिया. 1983 के दिल्ली यूनिवर्सिटी के चुनाव में एबीवीपी ने पहली बार वहां परचम लहराया था. नब्बे के दशक आते-आते एबीवीपी की 1,100 ब्रांच बन चुकी थी और देशभर में इसके करीब ढाई लाख सदस्य थे. फिलहाल देश में 35 लाख से अधिक एबीवीपी के कार्यकर्ता मौजूद हैं.

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