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यूपी-उत्तराखंड परिसंपत्ति विवाद में राज्य पुनर्गठन अधिनियम बना रोड़ा, जानें पूरी कहानी

18 नवंबर को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ के बीच गुरुवार को लखनऊ में बैठक हुई. इस दौरान दोनों राज्यों की परिसंपत्ति के लंबित मुद्दों को लेकर काफी देर तक चर्चा हुई, जिसमें कई मुद्दों पर दोनों राज्यों की सहमति बनी है. लेकिन कई मुद्दे ऐसे हैं, जिनका हल नहीं निकला है. उत्तर प्रदेश से अलग एक पहाड़ी राज्य के गठन को लेकर तत्कालिक वाजपेयी सरकार ने राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 को लागू किया था. ताकि राज्य गठन के बाद परिसंपत्तियों का बंटवारा किया जा सके. लेकिन पुनर्गठन अधिनियम में कुछ ऐसे प्रावधान भी किए गए जिसके चलते उत्तराखंड का अपने जल संसाधन पर मालिकाना हक नहीं रहा.

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यूपी-उत्तराखंड परिसंपति विवाद में राज्य पुनर्गठन अधिनियम बना रोड़ा
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Published : Sep 16, 2021, 10:37 PM IST

Updated : Nov 18, 2021, 2:48 PM IST

देहरादून: 18 नवंबर को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ के बीच गुरुवार को लखनऊ में बैठक हुई. इस दौरान दोनों राज्यों की परिसंपत्ति के लंबित मुद्दों को लेकर काफी देर तक चर्चा हुई, जिसमें कई मुद्दों पर दोनों राज्यों की सहमति बनी है. लेकिन कई मुद्दे ऐसे हैं, जिनका हल नहीं निकला है.

बैठक के दौरान वीवीआइपी गेस्ट हाउस में पत्रकारों से बातचीत के दौरान सीएम धामी ने कहा कि दोनों राज्यों के बीच संपत्ति के स्थानांतरण को लेकर बात हुई है. 21 साल से जो मामले लंबित पड़े थे, उस पर सहमति बनी है. सिंचाई विभाग की 5700 हेक्टेयर भूमि पर दोनों राज्यों का संयुक्त रूप से सर्वे होगा, जो जमीन उत्तर प्रदेश के काम की है, वह उत्तर प्रदेश को मिल जाएगी. उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के दोनों एक-दूसरे के साथ खड़े हैं.

ये है मामला: उत्तराखंड की संपत्ति पर आज भी उत्तर प्रदेश का हक बरकरार है. चुनाव में हर घोषणापत्र में पार्टियों का ये दावा रहता है कि उनके कार्यकाल में संपत्ति विवाद निपटा लिया जाएगा, लेकिन उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड को अलग हुए 21 साल गुजर गए मगर नये राज्य को अपने हक की पूरी परिसम्पत्तियां पैतृक राज्य उत्तर प्रदेश से ही नहीं मिल पाईं. इन सम्पत्तियों के लिये दोनों राज्यों के अधिकारियों के बीच खानापूर्ति के लिये कई मीटिंग होती रही. मगर, आज तक नतीजा सिफर ही निकला. इसका सबसे बड़ा कारण राज्य पुनर्गठन अधिनियम है. जब तक उत्तर प्रदेश राज्य पुनर्गठन अधिनियम में धारा 79, 80, 81 एवं 82 रहेंगी, तब तक परिसंपत्तियों का निपटारा नहीं होगा.

यूपी-उत्तराखंड परिसंपति विवाद.

उत्तर प्रदेश से अलग एक पहाड़ी राज्य के गठन को लेकर तत्कालिक वाजपेयी सरकार ने राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 को लागू किया था. ताकि राज्य गठन के बाद परिसंपत्तियों का बंटवारा किया जा सके, लेकिन पुनर्गठन अधिनियम में कुछ ऐसे प्रावधान भी किए गए जिसके चलते उत्तराखंड का अपने जल संसाधन पर मालिकाना हक नहीं रहा. यही वजह है कि उत्तर प्रदेश, नहरों और जलाशयों पर उत्तराखंड को मालिकाना हक नहीं दे रहा है. यही नहीं, रामगंगा जलविद्युत परियोजना में पावर हाउस उत्तराखंड का है. उसे चलाने वाला पानी (बांध) उत्तर प्रदेश का है.

पढ़ें-यूपी-उत्तराखंड के बीच अब कोई परिसंपत्ति विवाद नहीं: CM योगी

वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत के अनुसार, संयुक्त मोर्चा सरकार के गृहमंत्री इन्द्रजीत गुप्त ने राज्य गठन के लिए जो एक्ट बनाया था उसमें ऐसे उत्तराखण्ड विरोधी प्रावधान नहीं थे. लेकिन, उत्तर प्रदेश पुनर्गठन एक्ट में उत्तराखंड विरोधी प्रावधान किए गए. जिसके तहत उत्तराखंड को उसकी जायज संपत्तियां ना मिल सकी. इसके लिए उत्तर प्रदेश पुनर्गठन एक्ट की धारा 79 और 80 में ऐसा प्रावधान किया गया.

यह प्रावधान तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री ने अपनी उत्तर प्रदेश की डबल इंजन की सरकार के दबाव में रखी थीं. जिसके कई कारण हैं. जिसमें मुख्य कारण उत्तराखंड का राजनीतिक नेतृत्व शुरू से ही अवसरवादी और पदलोलुप रहा जिसके कारण इन धाराओं का तब विरोध नहीं हुआ.

पढ़ें- उत्तराखंड से बिना पूछे यूपी ने गंग नहर से लिया 2500 क्यूसेक पानी, निशंक ने दिखाई सख्ती

उत्तर प्रदेश पुनर्गठन एक्ट से राज्य का छिन जाएगा स्वामित्व: उत्तर प्रदेश पुनर्गठन एक्ट की धारा 79 और 80 के अनुसार जल प्रबंधन के लिए गंगा जल प्रबंधन बोर्ड बनना है. ऐसे में उत्तराखंड में मौजूद नदियों से राज्य का स्वामित्व नहीं रह जाएगा. बल्कि इन नदियों पर स्वामित्व बोर्ड का हो जाएगा. अभी तक बोर्ड का गठन नहीं हुआ है, लेकिन भविष्य में अगर गंगा जल प्रबंधन बोर्ड बन गया तो उत्तराखण्ड से उसकी नदियां भी छिन जाएंगी. नदियों पर चल रही जलविद्युत परियोजनाओं समेत समस्त गतिविधियां उस बोर्ड के हाथों में चली जाएगी. उस बोर्ड का उत्तराखंड मात्र एक सदस्य होगा.

पढ़ें- परिसंपत्ति विवाद सुलझने से बदलेगी वन विकास निगम की सूरत, मिलेंगे 177 करोड़ रुपए

तमाम संपत्तियों पर निर्णय होना बाकी: सचिव पुनर्गठन डॉ. रणजीत सिन्हा के अनुसार सिंचाई विभाग उत्तराखंड को जिला उधमसिंह नगर, हरिद्वार एवं चम्पावत में कुल 379.385 हेक्टेयर भूमि के हस्तांतरण, जिला हरिद्वार में आवासीय/अनावासीय भवनों का हस्तांतरण गंग नहर से 665 क्यूसेक जल उपलब्ध कराने, जिला उधमसिंह नगर तथा हरिद्वार की नहरों को राज्य को दिये जाने, नानक सागर, धौरा तथा बेंगुल जलाशय को पर्यटन एवं जल क्रीड़ा के लिए उपलब्ध कराये जाने के साथ टीएचडीसी में उत्तर प्रदेश की अंश पूंजी उत्तराखण्ड को हस्तांतरित करने, मनेरी भाली जल विद्युत परियोजना हेतु, लिए गये ऋण के समाधान के साथ परिवहन, वित्त, आवास, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति, वन, कृषि से सम्बन्धित तमाम विषयों पर निर्णय लिया जाना बाकी है.

पढ़ें- परिसंपत्ति बंटवारे को लेकर किशोर उपाध्याय ने बोला हमला, लगाए कई गंभीर आरोप

कई संपत्तियों पर उत्तर प्रदेश के कब्जा बरकरार: उत्तराखंड सिंचाई विभाग की करीब 13,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि, 4,000 से अधिक भवनों पर अभी भी उत्तर प्रदेश का ही कब्जा बरकरार है. बड़ी मशक्कत में बाद उत्तर प्रदेश सिर्फ बीस प्रतिशत भवनों को उत्तराखंड को देने पर सहमति हुई है.

यही नहीं, हरिद्वार में जहां कुंभ मेला, कांवड़ मेला लगता है. वहां की 697.576 हेक्टेयर भूमि पर यूपी सिंचाई विभाग ने कब्जा जमाया हुआ है. बावजूद इसके राज्य सरकार हमेशा से ही इस बात का दावा करती रही है कि परिसंपत्तियों का मामला सुलट गया है.

पढ़ें- बदरीनाथ में 11 करोड़ की लागत से बनेगा यूपी पर्यटक आवास गृह, योगी करेंगे शिलान्यास

यही नहीं, उत्तराखंड की नदियों का जल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड को देने को तैयार नहीं है. उत्तराखंड के अंदर आवास विकास की भूमि को, उत्तराखंड को देने के बजाय उत्तर प्रदेश खुद उस भूमि का मालिक बने रहना चाहता है. हरिद्वार का भीमगौड़ा बैराज, बनबसा का लोहियाहैड बैराज, कालाकढ़ का रामगंगा बैराज अभी भी यूपी के कब्जे में है.

टिहरी डैम का जिस हिस्से का मालिक उत्तराखंड को होना चाहिए, यूपी उसका मालिक बना हुआ है. करीब एक हजार करोड़ रुपये सालाना राजस्व ले रहा है. इतना ही नहीं ग्यारह विभागों की भूमि, भवन तथा अन्य परिसंपत्तियों पर उत्तराखंड की सीमा में उत्तर प्रदेश का कब्जा है.

उत्तर प्रदेश राज्य पुनर्गठन एक्ट में क्या है प्रावधान: उत्तर प्रदेश राज्य पुनर्गठन एक्ट में ही उत्तराखण्ड विरोधी प्रावधान हैं, क्योकि, केन्द्रीय सरकार निम्नलिखित प्रयोजन में से किसी एक या उनके समुच्चय के लिए धारा 79 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट परियोजनाओं के प्रशासन, सन्निमार्ण, अनुरक्षण और परिचालन के लिए नदी बोर्ड का गठन करेगी. जिसका नाम गंगा प्रबन्ध बोर्ड होगा. जिसके तहत, सिंचाई, ग्रामीण और शहरी जल प्रदाय, जल विद्युत उत्पादन, नौचालन, उद्योग, और कोई अन्य प्रयोजन, जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करें.

गंगा जल प्रबंधन बोर्ड में इन बातों का रखा जाएगा ध्यान

  • एक पूर्णकालिक अध्यक्ष (जो केन्द्रीय सरकार उत्तरवर्ती राज्यों के परामर्श से नियुक्त किया जायेगा) नियुक्त किया जाएगा.
  • दो पूर्णकालिक सदस्य (जिनमें से एक-एक प्रत्येक उत्तरवर्ती राज्य से संबंधित राज्य सरकारों द्वारा नाम निर्दिष्ट किये जायेंगे) चयनित किये जायेंगे.
  • चार अंशकालिक सदस्य (जिनमें से दो-दो प्रत्येक उत्तरवर्ती राज्यों से संबंधित राज्य सरकार द्वारा नाम निर्दिष्ट किये जायेंगे) बनाये जाएंगे.
  • केन्द्रीय सरकार के दो प्रतिनिधि (जो उस सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किये जाएंगे) नामित किये जायेंगे.

बोर्ड के कार्यो का ऐसा रहेगा प्रावधान

  • उत्तरवर्ती राज्यों को निम्नलिखित को ध्यान में रखते हुये धारा 79 की उपधारा (1) के खंड (1) निर्दिष्ट परियोजनाओं से जल प्रदाय का विनियमन
  • विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य और किसी अन्य राज्य की सरकार या संघ राज्य क्षेत्र के बीच किया गया कोई करार या ठहराव, और धारा 79 की उपधारा (2) में निर्दिष्ट करार या आदेश
  • धारा 79 की उपधारा (1) के खंड (प) में निर्दिष्ट परियोजनाओं में उत्पादित विद्युत के किसी विद्युत बोर्ड या विद्युत के वितरण के भारसाधक अन्य प्राधिकारी को ध्यान में रखते हुए प्रदाय का विनियमन, विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य और किसी अन्य राज्य की सरकार या संघ राज्य क्षेत्र के बीच किया गया कोई करार या ठहराव, और धारा 79 की उपधारा (2) में निर्दिष्ट करार या आदेश.
  • नदियों और उनकी सहायक नदियों से संबंधित जल श्रोतों की परियोजनाओं के विकास से संबंधित ऐसे शेष चालू या नए संकर्मों का निमार्ण जो केन्द्रीय सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करें.
  • ऐसे अन्य कृत्य, जिन्हें केन्द्रीय सरकार उत्तरवर्ती राज्यों से परामर्श के बाद उसे सौंप दें.

परिसंपत्तियों को लेकर उत्तराखंड पुनर्गठन विभाग पहले ही जारी कर चुका है पत्र: परिसंपत्तियों के बंटवारे को लेकर मार्च 2020 में उत्तराखंड पुनर्गठन विभाग की ओर से पत्र जारी किया गया था. पत्र उत्तराखंड पुनर्गठन विभाग के अपर सचिव अतुल कुमार गुप्ता ने जारी किया गया था. जिसमें दोनों राज्यों के बीच परिसंपत्तियों का विवाद निपटने संबंधी 6 बिंदु दिए गए थे. उन 6 बिंदुओं में परिसंपत्तियों के बंटवारे को लेकर हुई कई दौर की बैठकों के साथ ही दोनों राज्यों के बीच बनी सहमतियों की जानकारियां दी गई हैं.

  • उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड राज्य के मध्य परिसंपत्तियों एवं दायित्वों के विभाजन के संबंध में दोनों प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के बीच 10 अप्रैल 2017 को लखनऊ में आयोजित बैठक में अधिकांश लंबित प्रकरणों के विभाजन पर सहमति बन गई है. इस संबंध में मुख्य सचिव स्तर की बैठकें 7 अप्रैल 2018, 28 जून 2018 और 17 अगस्त 2019 को देहरादून में आयोजित हुई.
  • पेंशन दायित्वों के प्रभाजन के संबंध में उत्तराखंड राज्य के सृजन तिथि से 31 मार्च 2016 तक 7965.495 करोड़ रुपये उत्तराखंड को प्राप्त हो चुके हैं. अवशेष धनराशि के भुगतान उत्तर प्रदेश द्वारा वित्तीय वर्ष 2019-20 में कर दिया जाएगा, यह राशि 3,000 करोड़ रुपये है.
  • उत्तराखंड राज्य गठन के उपरांत नानक सागर, बौर व हरिपुरा, धौर, बैंगुल एवं तुमड़िया में उत्तर प्रदेश राज्य के शिकारमाही से संबंधित राजस्व के संबंध दोनों राज्यों की सहमति के उपरांत 31 मार्च 2017 की तिथि को अर्जित राजस्व एवं अर्जित ब्याज की दो तिहाई धनराशि उत्तराखंड राज्य को प्राप्त हो गई है. अवशेष एक तिहाई के संबंध में दोनों राज्यों में सहमति हो गई है.
  • 17 अगस्त 2019 की बैठक के अनुसार अस्थायी एवं दायित्वों के विभाजन के संबंध में अधिकांश प्रकरणों पर दोनों राज्यों में सहमति हो गई है. सहमति के बिंदुओं पर मंत्रिमंडल के अनुमोदन के उपरांत अग्रेत्तर कार्यवाही के संबंध में संबंधित ग्यारह विभागों को निर्देशित करते हुए निर्णयों के समयबद्ध अनुपालन हेतु उत्तर प्रदेश शासन से भी अनुरोध किया गया है.
  • दोनों राज्यों के मध्य कार्मिकों के पुनरावंटन से संबंधित अधिकांश प्रकरणों का निस्तारण हो चुका है. अवशेष लंबित प्रकरणों पर निर्णय हेतु कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग, भारत सरकार के स्तर पर राज्य परामर्शीय समिति की बैठक भविष्य में संभावित है. उक्त बैठक हेतु राज्य पुनर्गठन विभाग, उत्तराखंड द्वारा संबंधित विभागों की सूचनाएं संकलित कर राज्य परामर्शीय समिति एवं उत्तर प्रदेश पुनर्गठन समन्वय विभाग, उत्तर प्रदेश शासन को प्रेषित कर चुकी है.
  • 25 जुलाई 2018 को संपन्न मंत्रिमंडल की बैठक में लिए गए निर्णय के क्रम में उत्तराखंड शासन द्वारा पुनर्गठन आयुक्त कार्यालय, लखनऊ को बंद कर दिया गया है.


बंटवारे को लेकर जल्द उत्तर प्रदेश जाएंगे सीएम और सिंचाई मंत्री: सिंचाई मंत्री सतपाल महाराज ने कहा परिसंपत्तियों के मामले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से बात हुई है. ऐसे में वह जल्द ही मुख्यमंत्री के साथ लखनऊ जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि परिसंपत्तियों का बंटवारा हो चुका है. उस पर केवल उत्तर प्रदेश कैबिनेट की मुहर लगना बाकी है. ऐसे में मुख्यमंत्री और वह खुद लखनऊ जाकर परिसंपत्तियों के बंटवारे पर मुहर लगाकर आएंगे. उत्तराखंड राज्य में उत्तर प्रदेश की जो जमीनें हैं उस पर कब्जा हो रहा है. ऐसे में परिसंपत्तियों के बंटवारे पर निर्णय जल्द होना आवश्यक है. वहीं, उत्तर प्रदेश राज्य पुनर्गठन एक्ट के सवाल पर सतपाल महाराज ने कहा इसका परीक्षण कराया जाएगा, उसके बाद ही वह कुछ कह पाएंगे.

पढ़ें- उत्तराखंड : धनौल्टी विधायक प्रीतम सिंह पंवार भाजपा में शामिल

पद के लालच में बनाया गया आधा-अधूरा उत्तराखंड: वहीं, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने कहा परिसंपत्तियों के बंटवारे के मामले में जब राज्य पुनर्गठन एक्ट बना था, उस समय भाजपा के नेताओं को बस यही लगा रहा कि किसी भी तरह से उत्तराखंड में सत्ता हासिल की जा सके. लिहाजा परिसंपत्तियों के बंटवारे को लेकर जो गंभीर चर्चा होनी चाहिए थी वह नहीं की गई. उस समय उत्तर प्रदेश सरकार ने जो भी शर्ते रखी उन शर्तों को उत्तराखंड के अंतरिम सरकार ने मान लिया. गोदियाल ने कहा कि वर्तमान समय में राज्य सरकार के पास एक अच्छा मौका था क्योंकि उत्तराखंड उत्तर प्रदेश और केंद्र, तीनों जगहों पर बीजेपी की ही सरकार है, ऐसे में राज्य सरकार अपनी बातों को पूरी मजबूती के साथ रखकर इसका निपटारा कर सकती है.

देहरादून: 18 नवंबर को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ के बीच गुरुवार को लखनऊ में बैठक हुई. इस दौरान दोनों राज्यों की परिसंपत्ति के लंबित मुद्दों को लेकर काफी देर तक चर्चा हुई, जिसमें कई मुद्दों पर दोनों राज्यों की सहमति बनी है. लेकिन कई मुद्दे ऐसे हैं, जिनका हल नहीं निकला है.

बैठक के दौरान वीवीआइपी गेस्ट हाउस में पत्रकारों से बातचीत के दौरान सीएम धामी ने कहा कि दोनों राज्यों के बीच संपत्ति के स्थानांतरण को लेकर बात हुई है. 21 साल से जो मामले लंबित पड़े थे, उस पर सहमति बनी है. सिंचाई विभाग की 5700 हेक्टेयर भूमि पर दोनों राज्यों का संयुक्त रूप से सर्वे होगा, जो जमीन उत्तर प्रदेश के काम की है, वह उत्तर प्रदेश को मिल जाएगी. उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के दोनों एक-दूसरे के साथ खड़े हैं.

ये है मामला: उत्तराखंड की संपत्ति पर आज भी उत्तर प्रदेश का हक बरकरार है. चुनाव में हर घोषणापत्र में पार्टियों का ये दावा रहता है कि उनके कार्यकाल में संपत्ति विवाद निपटा लिया जाएगा, लेकिन उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड को अलग हुए 21 साल गुजर गए मगर नये राज्य को अपने हक की पूरी परिसम्पत्तियां पैतृक राज्य उत्तर प्रदेश से ही नहीं मिल पाईं. इन सम्पत्तियों के लिये दोनों राज्यों के अधिकारियों के बीच खानापूर्ति के लिये कई मीटिंग होती रही. मगर, आज तक नतीजा सिफर ही निकला. इसका सबसे बड़ा कारण राज्य पुनर्गठन अधिनियम है. जब तक उत्तर प्रदेश राज्य पुनर्गठन अधिनियम में धारा 79, 80, 81 एवं 82 रहेंगी, तब तक परिसंपत्तियों का निपटारा नहीं होगा.

यूपी-उत्तराखंड परिसंपति विवाद.

उत्तर प्रदेश से अलग एक पहाड़ी राज्य के गठन को लेकर तत्कालिक वाजपेयी सरकार ने राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 को लागू किया था. ताकि राज्य गठन के बाद परिसंपत्तियों का बंटवारा किया जा सके, लेकिन पुनर्गठन अधिनियम में कुछ ऐसे प्रावधान भी किए गए जिसके चलते उत्तराखंड का अपने जल संसाधन पर मालिकाना हक नहीं रहा. यही वजह है कि उत्तर प्रदेश, नहरों और जलाशयों पर उत्तराखंड को मालिकाना हक नहीं दे रहा है. यही नहीं, रामगंगा जलविद्युत परियोजना में पावर हाउस उत्तराखंड का है. उसे चलाने वाला पानी (बांध) उत्तर प्रदेश का है.

पढ़ें-यूपी-उत्तराखंड के बीच अब कोई परिसंपत्ति विवाद नहीं: CM योगी

वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत के अनुसार, संयुक्त मोर्चा सरकार के गृहमंत्री इन्द्रजीत गुप्त ने राज्य गठन के लिए जो एक्ट बनाया था उसमें ऐसे उत्तराखण्ड विरोधी प्रावधान नहीं थे. लेकिन, उत्तर प्रदेश पुनर्गठन एक्ट में उत्तराखंड विरोधी प्रावधान किए गए. जिसके तहत उत्तराखंड को उसकी जायज संपत्तियां ना मिल सकी. इसके लिए उत्तर प्रदेश पुनर्गठन एक्ट की धारा 79 और 80 में ऐसा प्रावधान किया गया.

यह प्रावधान तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री ने अपनी उत्तर प्रदेश की डबल इंजन की सरकार के दबाव में रखी थीं. जिसके कई कारण हैं. जिसमें मुख्य कारण उत्तराखंड का राजनीतिक नेतृत्व शुरू से ही अवसरवादी और पदलोलुप रहा जिसके कारण इन धाराओं का तब विरोध नहीं हुआ.

पढ़ें- उत्तराखंड से बिना पूछे यूपी ने गंग नहर से लिया 2500 क्यूसेक पानी, निशंक ने दिखाई सख्ती

उत्तर प्रदेश पुनर्गठन एक्ट से राज्य का छिन जाएगा स्वामित्व: उत्तर प्रदेश पुनर्गठन एक्ट की धारा 79 और 80 के अनुसार जल प्रबंधन के लिए गंगा जल प्रबंधन बोर्ड बनना है. ऐसे में उत्तराखंड में मौजूद नदियों से राज्य का स्वामित्व नहीं रह जाएगा. बल्कि इन नदियों पर स्वामित्व बोर्ड का हो जाएगा. अभी तक बोर्ड का गठन नहीं हुआ है, लेकिन भविष्य में अगर गंगा जल प्रबंधन बोर्ड बन गया तो उत्तराखण्ड से उसकी नदियां भी छिन जाएंगी. नदियों पर चल रही जलविद्युत परियोजनाओं समेत समस्त गतिविधियां उस बोर्ड के हाथों में चली जाएगी. उस बोर्ड का उत्तराखंड मात्र एक सदस्य होगा.

पढ़ें- परिसंपत्ति विवाद सुलझने से बदलेगी वन विकास निगम की सूरत, मिलेंगे 177 करोड़ रुपए

तमाम संपत्तियों पर निर्णय होना बाकी: सचिव पुनर्गठन डॉ. रणजीत सिन्हा के अनुसार सिंचाई विभाग उत्तराखंड को जिला उधमसिंह नगर, हरिद्वार एवं चम्पावत में कुल 379.385 हेक्टेयर भूमि के हस्तांतरण, जिला हरिद्वार में आवासीय/अनावासीय भवनों का हस्तांतरण गंग नहर से 665 क्यूसेक जल उपलब्ध कराने, जिला उधमसिंह नगर तथा हरिद्वार की नहरों को राज्य को दिये जाने, नानक सागर, धौरा तथा बेंगुल जलाशय को पर्यटन एवं जल क्रीड़ा के लिए उपलब्ध कराये जाने के साथ टीएचडीसी में उत्तर प्रदेश की अंश पूंजी उत्तराखण्ड को हस्तांतरित करने, मनेरी भाली जल विद्युत परियोजना हेतु, लिए गये ऋण के समाधान के साथ परिवहन, वित्त, आवास, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति, वन, कृषि से सम्बन्धित तमाम विषयों पर निर्णय लिया जाना बाकी है.

पढ़ें- परिसंपत्ति बंटवारे को लेकर किशोर उपाध्याय ने बोला हमला, लगाए कई गंभीर आरोप

कई संपत्तियों पर उत्तर प्रदेश के कब्जा बरकरार: उत्तराखंड सिंचाई विभाग की करीब 13,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि, 4,000 से अधिक भवनों पर अभी भी उत्तर प्रदेश का ही कब्जा बरकरार है. बड़ी मशक्कत में बाद उत्तर प्रदेश सिर्फ बीस प्रतिशत भवनों को उत्तराखंड को देने पर सहमति हुई है.

यही नहीं, हरिद्वार में जहां कुंभ मेला, कांवड़ मेला लगता है. वहां की 697.576 हेक्टेयर भूमि पर यूपी सिंचाई विभाग ने कब्जा जमाया हुआ है. बावजूद इसके राज्य सरकार हमेशा से ही इस बात का दावा करती रही है कि परिसंपत्तियों का मामला सुलट गया है.

पढ़ें- बदरीनाथ में 11 करोड़ की लागत से बनेगा यूपी पर्यटक आवास गृह, योगी करेंगे शिलान्यास

यही नहीं, उत्तराखंड की नदियों का जल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड को देने को तैयार नहीं है. उत्तराखंड के अंदर आवास विकास की भूमि को, उत्तराखंड को देने के बजाय उत्तर प्रदेश खुद उस भूमि का मालिक बने रहना चाहता है. हरिद्वार का भीमगौड़ा बैराज, बनबसा का लोहियाहैड बैराज, कालाकढ़ का रामगंगा बैराज अभी भी यूपी के कब्जे में है.

टिहरी डैम का जिस हिस्से का मालिक उत्तराखंड को होना चाहिए, यूपी उसका मालिक बना हुआ है. करीब एक हजार करोड़ रुपये सालाना राजस्व ले रहा है. इतना ही नहीं ग्यारह विभागों की भूमि, भवन तथा अन्य परिसंपत्तियों पर उत्तराखंड की सीमा में उत्तर प्रदेश का कब्जा है.

उत्तर प्रदेश राज्य पुनर्गठन एक्ट में क्या है प्रावधान: उत्तर प्रदेश राज्य पुनर्गठन एक्ट में ही उत्तराखण्ड विरोधी प्रावधान हैं, क्योकि, केन्द्रीय सरकार निम्नलिखित प्रयोजन में से किसी एक या उनके समुच्चय के लिए धारा 79 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट परियोजनाओं के प्रशासन, सन्निमार्ण, अनुरक्षण और परिचालन के लिए नदी बोर्ड का गठन करेगी. जिसका नाम गंगा प्रबन्ध बोर्ड होगा. जिसके तहत, सिंचाई, ग्रामीण और शहरी जल प्रदाय, जल विद्युत उत्पादन, नौचालन, उद्योग, और कोई अन्य प्रयोजन, जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करें.

गंगा जल प्रबंधन बोर्ड में इन बातों का रखा जाएगा ध्यान

  • एक पूर्णकालिक अध्यक्ष (जो केन्द्रीय सरकार उत्तरवर्ती राज्यों के परामर्श से नियुक्त किया जायेगा) नियुक्त किया जाएगा.
  • दो पूर्णकालिक सदस्य (जिनमें से एक-एक प्रत्येक उत्तरवर्ती राज्य से संबंधित राज्य सरकारों द्वारा नाम निर्दिष्ट किये जायेंगे) चयनित किये जायेंगे.
  • चार अंशकालिक सदस्य (जिनमें से दो-दो प्रत्येक उत्तरवर्ती राज्यों से संबंधित राज्य सरकार द्वारा नाम निर्दिष्ट किये जायेंगे) बनाये जाएंगे.
  • केन्द्रीय सरकार के दो प्रतिनिधि (जो उस सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किये जाएंगे) नामित किये जायेंगे.

बोर्ड के कार्यो का ऐसा रहेगा प्रावधान

  • उत्तरवर्ती राज्यों को निम्नलिखित को ध्यान में रखते हुये धारा 79 की उपधारा (1) के खंड (1) निर्दिष्ट परियोजनाओं से जल प्रदाय का विनियमन
  • विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य और किसी अन्य राज्य की सरकार या संघ राज्य क्षेत्र के बीच किया गया कोई करार या ठहराव, और धारा 79 की उपधारा (2) में निर्दिष्ट करार या आदेश
  • धारा 79 की उपधारा (1) के खंड (प) में निर्दिष्ट परियोजनाओं में उत्पादित विद्युत के किसी विद्युत बोर्ड या विद्युत के वितरण के भारसाधक अन्य प्राधिकारी को ध्यान में रखते हुए प्रदाय का विनियमन, विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य और किसी अन्य राज्य की सरकार या संघ राज्य क्षेत्र के बीच किया गया कोई करार या ठहराव, और धारा 79 की उपधारा (2) में निर्दिष्ट करार या आदेश.
  • नदियों और उनकी सहायक नदियों से संबंधित जल श्रोतों की परियोजनाओं के विकास से संबंधित ऐसे शेष चालू या नए संकर्मों का निमार्ण जो केन्द्रीय सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करें.
  • ऐसे अन्य कृत्य, जिन्हें केन्द्रीय सरकार उत्तरवर्ती राज्यों से परामर्श के बाद उसे सौंप दें.

परिसंपत्तियों को लेकर उत्तराखंड पुनर्गठन विभाग पहले ही जारी कर चुका है पत्र: परिसंपत्तियों के बंटवारे को लेकर मार्च 2020 में उत्तराखंड पुनर्गठन विभाग की ओर से पत्र जारी किया गया था. पत्र उत्तराखंड पुनर्गठन विभाग के अपर सचिव अतुल कुमार गुप्ता ने जारी किया गया था. जिसमें दोनों राज्यों के बीच परिसंपत्तियों का विवाद निपटने संबंधी 6 बिंदु दिए गए थे. उन 6 बिंदुओं में परिसंपत्तियों के बंटवारे को लेकर हुई कई दौर की बैठकों के साथ ही दोनों राज्यों के बीच बनी सहमतियों की जानकारियां दी गई हैं.

  • उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड राज्य के मध्य परिसंपत्तियों एवं दायित्वों के विभाजन के संबंध में दोनों प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के बीच 10 अप्रैल 2017 को लखनऊ में आयोजित बैठक में अधिकांश लंबित प्रकरणों के विभाजन पर सहमति बन गई है. इस संबंध में मुख्य सचिव स्तर की बैठकें 7 अप्रैल 2018, 28 जून 2018 और 17 अगस्त 2019 को देहरादून में आयोजित हुई.
  • पेंशन दायित्वों के प्रभाजन के संबंध में उत्तराखंड राज्य के सृजन तिथि से 31 मार्च 2016 तक 7965.495 करोड़ रुपये उत्तराखंड को प्राप्त हो चुके हैं. अवशेष धनराशि के भुगतान उत्तर प्रदेश द्वारा वित्तीय वर्ष 2019-20 में कर दिया जाएगा, यह राशि 3,000 करोड़ रुपये है.
  • उत्तराखंड राज्य गठन के उपरांत नानक सागर, बौर व हरिपुरा, धौर, बैंगुल एवं तुमड़िया में उत्तर प्रदेश राज्य के शिकारमाही से संबंधित राजस्व के संबंध दोनों राज्यों की सहमति के उपरांत 31 मार्च 2017 की तिथि को अर्जित राजस्व एवं अर्जित ब्याज की दो तिहाई धनराशि उत्तराखंड राज्य को प्राप्त हो गई है. अवशेष एक तिहाई के संबंध में दोनों राज्यों में सहमति हो गई है.
  • 17 अगस्त 2019 की बैठक के अनुसार अस्थायी एवं दायित्वों के विभाजन के संबंध में अधिकांश प्रकरणों पर दोनों राज्यों में सहमति हो गई है. सहमति के बिंदुओं पर मंत्रिमंडल के अनुमोदन के उपरांत अग्रेत्तर कार्यवाही के संबंध में संबंधित ग्यारह विभागों को निर्देशित करते हुए निर्णयों के समयबद्ध अनुपालन हेतु उत्तर प्रदेश शासन से भी अनुरोध किया गया है.
  • दोनों राज्यों के मध्य कार्मिकों के पुनरावंटन से संबंधित अधिकांश प्रकरणों का निस्तारण हो चुका है. अवशेष लंबित प्रकरणों पर निर्णय हेतु कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग, भारत सरकार के स्तर पर राज्य परामर्शीय समिति की बैठक भविष्य में संभावित है. उक्त बैठक हेतु राज्य पुनर्गठन विभाग, उत्तराखंड द्वारा संबंधित विभागों की सूचनाएं संकलित कर राज्य परामर्शीय समिति एवं उत्तर प्रदेश पुनर्गठन समन्वय विभाग, उत्तर प्रदेश शासन को प्रेषित कर चुकी है.
  • 25 जुलाई 2018 को संपन्न मंत्रिमंडल की बैठक में लिए गए निर्णय के क्रम में उत्तराखंड शासन द्वारा पुनर्गठन आयुक्त कार्यालय, लखनऊ को बंद कर दिया गया है.


बंटवारे को लेकर जल्द उत्तर प्रदेश जाएंगे सीएम और सिंचाई मंत्री: सिंचाई मंत्री सतपाल महाराज ने कहा परिसंपत्तियों के मामले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से बात हुई है. ऐसे में वह जल्द ही मुख्यमंत्री के साथ लखनऊ जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि परिसंपत्तियों का बंटवारा हो चुका है. उस पर केवल उत्तर प्रदेश कैबिनेट की मुहर लगना बाकी है. ऐसे में मुख्यमंत्री और वह खुद लखनऊ जाकर परिसंपत्तियों के बंटवारे पर मुहर लगाकर आएंगे. उत्तराखंड राज्य में उत्तर प्रदेश की जो जमीनें हैं उस पर कब्जा हो रहा है. ऐसे में परिसंपत्तियों के बंटवारे पर निर्णय जल्द होना आवश्यक है. वहीं, उत्तर प्रदेश राज्य पुनर्गठन एक्ट के सवाल पर सतपाल महाराज ने कहा इसका परीक्षण कराया जाएगा, उसके बाद ही वह कुछ कह पाएंगे.

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पद के लालच में बनाया गया आधा-अधूरा उत्तराखंड: वहीं, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने कहा परिसंपत्तियों के बंटवारे के मामले में जब राज्य पुनर्गठन एक्ट बना था, उस समय भाजपा के नेताओं को बस यही लगा रहा कि किसी भी तरह से उत्तराखंड में सत्ता हासिल की जा सके. लिहाजा परिसंपत्तियों के बंटवारे को लेकर जो गंभीर चर्चा होनी चाहिए थी वह नहीं की गई. उस समय उत्तर प्रदेश सरकार ने जो भी शर्ते रखी उन शर्तों को उत्तराखंड के अंतरिम सरकार ने मान लिया. गोदियाल ने कहा कि वर्तमान समय में राज्य सरकार के पास एक अच्छा मौका था क्योंकि उत्तराखंड उत्तर प्रदेश और केंद्र, तीनों जगहों पर बीजेपी की ही सरकार है, ऐसे में राज्य सरकार अपनी बातों को पूरी मजबूती के साथ रखकर इसका निपटारा कर सकती है.

Last Updated : Nov 18, 2021, 2:48 PM IST
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