देहरादून: आंदोलन की नींव पर वर्ष 2000 में उत्तरप्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ था. राज्य आंदोलनकारियों को उम्मीद थी कि राज्य गठन के बाद शिक्षा, स्वास्थ्य और बेरोजगारी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर कुछ राहत मिलेगी. वहीं, राज्य गठन के वक्त पलायन इतनी बड़ी समस्या नहीं थी. जितनी की आज हो चुकी है.
राज्य गठन के 20 सालों में उत्तराखंड में समस्याओं का अंबार खड़ा हो चुका है. प्रदेश में शिक्षा, स्वास्थ्य में बड़े सुधार की दरकार है. वहीं, पिछले कुछ सालों से पहाड़ पलायन का दर्द झेल रहा है. आज पलायन और बेरोजगारी ने राज्य बनने की उन सारी कल्पनाओं को धाराशायी कर दिया है, जो राज्य आंदोलनकारियों ने सपनों का उत्तराखंड बनाने की कल्पना की थी.
राज्य जब गठित हुआ तो उस समय प्रदेश में पलायन इतना ज्यादा नहीं था, लेकिन प्रदेश में अवस्थापना विकास शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर हालात बुरे थे. बेरोजगारी तो थी, लेकिन लोग अपने संसाधनों पर ज्यादा आश्रित थे. पिछले 20 सालों में उत्तराखंड से हुए बेरोजगारी की वजह से पलायन बढ़ा है. पलायन ने यह साबित कर दिया कि उत्तराखंड में बेरोजगारी अब एक सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है.
आज 20 साल बाद जब उत्तराखंड राज्य अपना स्थापना दिवस मना रहा है तो कुछ ऐसे आंकड़े हैं, जो राज्य गठन की अवधारणा और कल्पनाओं पर पानी फेरने का काम कर रहा हैं. प्रदेश में बेरोजगारी के आंकड़े और पलायन का दंश उत्तराखंड राज्य स्थापना के मौके पर अपनी एक अलग कहानी बयां कर रहा है.
बेरोजगारी और पलायन को लेकर कुछ चौंकाने वाले आंकड़े
- प्रदेश में बेरोजगारी की दर केंद्रीय श्रम आयोग के अनुसार 14.2 फीसदी तक जा पहुंची है.
- उत्तराखंड में आज की तारीख में 4 लाख 69 हजार 907 बेरोजगार रजिस्टर्ड हैं.
- प्रदेश में चिकित्सा अधिकारियों के 2735 स्वीकृत पदों में से 1072 पद खाली पड़ें हैं.
- प्रदेश में 80 गांव ऐसे हैं जंहा 50 फीसदी यानी आधे से ज्यादा गांव पलायन कर चुका है.
- 734 गांव ऐसे चिन्हित किये गए हैं जो कि पूरी तरह से 100 फीसदी खाली हो चुके हैं.
- 50 फीसदी रोजगार और 15 फीसदी शिक्षा के लिए हो रहा है पलायन.
- केवल 24.6 फीसदी स्कूलों में ही छात्र और शिक्षक का अनुपात है पूरा.
- प्रदेश में तीन लाख हेक्टेयर भूमि बंजरहो गयी है, केवल 7.41 लाख हेक्टेयर भूमि पर हो रही है खेती.
- पेयजल की स्थिति भी खराब है, 150 जलस्त्रोत सूख गए और 500 सूखने की कगार पर है.