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फुटपाथ पर जीवन बिताने वालों का मोल नहीं समझती सरकार, असंवेदनशील बने नेता और अधिकारी

ऋषिकेश में हुए दर्दनाक हादसे ने एक बुजुर्ग की बुढ़ापे की लाठी छीन ली, तो किसी के सर से बाप का साया उठ गया. फुटपाथ पर पैदाइश से लेकर बुढ़ापे तक की जिंदगी गुजारने वाले परिवारों के साथ हादसे को लेकर ऋषिकेश के लोग भी स्तब्ध हैं.

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फुटपाथ पर जीवन बिताने वालों का कोई मोल नहीं समझती सरकार
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Published : Oct 25, 2020, 5:05 PM IST

ऋषिकेश: फुटपाथ पर जीवन बिताने वालों का जीवन अपने आप में बड़ा चुनौती भरा होता है. जीवन यापन करने के लिए कमरतोड़ मेहनत, रोजमर्रा के कामों के लिए मीलों की भागदौड़ और न जाने ऐसी कितनी ही चीजें हैं जिनसे इन्हें हर रोज जूझना पड़ता है. ऐसे में अगर इनके साथ कोई दुर्घटना हो जाये तो इनकी परेशानियां बढ़ना लाजमि है. इनके इन हालातों में इन्हें अकेले ही सारी चीजें झेलनी पड़ती हैं. इनके हालातों का दर्द न कोई जनप्रतिनिधि समझता है और न कोई सरकार. हाल ही में तीर्थननगरी में इस तरह की कई घटनाएं हुई, जिसमें फुटपाथ पर रहने वाले कई लोगों को अलग-अलग दुर्घटनाओं में जान गंवानी पड़ी. मगर इनके दर्द को साझा करने के लिए ये अकेले ही खड़े दिखाई दिये.

शुक्रवार को ऋषिकेश में एक भीषण सड़क हादसे ने लोगों को हिला कर रख दिया. देहरादून रोड पर फुटपाथ पर सोए नाबालिग समेत चार लोगों को बेकाबू डंपर ने कुचल दिया. इस हादसे में 2 लोगों की मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गई. जबकि, नाबालिग ने अस्पताल में उपचार के दौरान दम तोड़ा. चौथा युवक की भी इस वक्त अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा है.

फुटपाथ पर जीवन बिताने वालों का कोई मोल नहीं समझती सरकार

पढ़ें- आगामी 15 और 16 नवंबर को बंद होंगे गंगोत्री-यमुनोत्री धाम के कपाट

इस दर्दनाक हादसे ने एक बुजुर्ग की बुढ़ापे की लाठी छीन ली, तो किसी के सर से बाप का साया उठ गया. फुटपाथ पर पैदाइश से लेकर बुढ़ापे तक की जिंदगी गुजारने वाले परिवारों के साथ हादसे को लेकर ऋषिकेश के लोग भी स्तब्ध हैं.

पढ़ें- उत्तराखंड का पहला 'रामसर साइट' बना आसन कंजर्वेशन रिजर्व, पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा


वहीं, घटना की जानकारी के बाद शहर की मेयर पीड़ित परिजनों को ढांढस बंधाने के लिए पहुंची. मगर उनके अलावा न तो कोई सरकारी नुमाइंदा और न ही राजनीतिक दल से जुड़ा सफेदपोश इस परिवार के दर्द को साझा करने नहीं पहुंचा. यह परिवार ऋषिकेश के वोटर भी है, बावजूद इसके जनप्रतिनिधियों ने यहां तक आना भी काफी नहीं समझा. यहां तक कि इनकी सहायता के लिए अभी किसी भी तरह की कोई मुआवजा की राशि भी घोषित नहीं की गई है.

पढ़ें- हरिद्वार: ओवरलोडिंग वाहनों के खिलाफ पुलिस ने चलाया अभियान, काटा चालान

जनप्रतिनिधि, स्थानीय प्रशासन और सरकारें इस तरह के मामलों में कितनी सवेंदशील हैं, ये इस परिवार के दर्द को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है. एक परिवार जिसने एक दुर्घटना में अपना सब कुछ खो दिया, उसे घटना के दो दिन बाद भी अभी तक किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली है. जनप्रतिनिधि, नेता मंचों से बड़े-बड़े दावे और वादे करते हैं. गरीबों और बेसहारा लोगों को लेकर भी तमाम कागजी वायदे किये जाते हैं. जिनकी पोल इस तरह की घटनाएं खोलती हैं.

ऋषिकेश: फुटपाथ पर जीवन बिताने वालों का जीवन अपने आप में बड़ा चुनौती भरा होता है. जीवन यापन करने के लिए कमरतोड़ मेहनत, रोजमर्रा के कामों के लिए मीलों की भागदौड़ और न जाने ऐसी कितनी ही चीजें हैं जिनसे इन्हें हर रोज जूझना पड़ता है. ऐसे में अगर इनके साथ कोई दुर्घटना हो जाये तो इनकी परेशानियां बढ़ना लाजमि है. इनके इन हालातों में इन्हें अकेले ही सारी चीजें झेलनी पड़ती हैं. इनके हालातों का दर्द न कोई जनप्रतिनिधि समझता है और न कोई सरकार. हाल ही में तीर्थननगरी में इस तरह की कई घटनाएं हुई, जिसमें फुटपाथ पर रहने वाले कई लोगों को अलग-अलग दुर्घटनाओं में जान गंवानी पड़ी. मगर इनके दर्द को साझा करने के लिए ये अकेले ही खड़े दिखाई दिये.

शुक्रवार को ऋषिकेश में एक भीषण सड़क हादसे ने लोगों को हिला कर रख दिया. देहरादून रोड पर फुटपाथ पर सोए नाबालिग समेत चार लोगों को बेकाबू डंपर ने कुचल दिया. इस हादसे में 2 लोगों की मौके पर ही दर्दनाक मौत हो गई. जबकि, नाबालिग ने अस्पताल में उपचार के दौरान दम तोड़ा. चौथा युवक की भी इस वक्त अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा है.

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इस दर्दनाक हादसे ने एक बुजुर्ग की बुढ़ापे की लाठी छीन ली, तो किसी के सर से बाप का साया उठ गया. फुटपाथ पर पैदाइश से लेकर बुढ़ापे तक की जिंदगी गुजारने वाले परिवारों के साथ हादसे को लेकर ऋषिकेश के लोग भी स्तब्ध हैं.

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वहीं, घटना की जानकारी के बाद शहर की मेयर पीड़ित परिजनों को ढांढस बंधाने के लिए पहुंची. मगर उनके अलावा न तो कोई सरकारी नुमाइंदा और न ही राजनीतिक दल से जुड़ा सफेदपोश इस परिवार के दर्द को साझा करने नहीं पहुंचा. यह परिवार ऋषिकेश के वोटर भी है, बावजूद इसके जनप्रतिनिधियों ने यहां तक आना भी काफी नहीं समझा. यहां तक कि इनकी सहायता के लिए अभी किसी भी तरह की कोई मुआवजा की राशि भी घोषित नहीं की गई है.

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जनप्रतिनिधि, स्थानीय प्रशासन और सरकारें इस तरह के मामलों में कितनी सवेंदशील हैं, ये इस परिवार के दर्द को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है. एक परिवार जिसने एक दुर्घटना में अपना सब कुछ खो दिया, उसे घटना के दो दिन बाद भी अभी तक किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली है. जनप्रतिनिधि, नेता मंचों से बड़े-बड़े दावे और वादे करते हैं. गरीबों और बेसहारा लोगों को लेकर भी तमाम कागजी वायदे किये जाते हैं. जिनकी पोल इस तरह की घटनाएं खोलती हैं.

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