देहरादून: उत्तराखंड में फिलहाल सरकारी नौकरी का सपना पूरा होता नहीं दिख रहा है. कोविड-19 की वजह से सरकार ने सभी भर्तियों पर ब्रेक लगा दिया है. ऐसे में सरकारी नौकरी की उम्मीद पाले बैठे युवाओं के पास इंतजार के अलावा कोई और रास्ता नहीं है. जानिए क्या है वो तकनीकी पेचीदगियां है, जिसने उत्तराखंड में रोजगार के अवसरों को बंद किया है.
त्रिवेंद्र सरकार इस साल को रोजगार वर्ष के रूप में मना रही है. सरकार की मनसा चुनाव से पहले ऐसे हजारों पदों भरने की थी, जो सालों से खाली पड़े थे. इसको लेकर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत कई बार शासन के अधिकारियों को दिशा निर्देश भी दे चुके हैं. सीएम के निर्देश पर शासन ने भी सरकारी नौकरियों के लिए आदेश जारी कर चुका है, लेकिन रोजगार वर्ष पर लगे कोरोना के ग्रहण ने न केवल त्रिवेंद्र सरकार की सोच पर पानी फेरा, बल्कि युवाओं के सपनों को भी चकनाचूर कर दिया है.
बता दें कि प्रदेश में सरकारी, अर्द्ध सरकारी और निगम समेत तमाम सरकारी द्वारा संचालित संस्थाओं में 40 हज़ार से ज्यादा पद खाली पड़े हैं. इनमें कुछ विभागों के लिए विज्ञप्ति और परीक्षाओं को कराने तक की तैयारी कर ली गई थी, लेकिन कोरोना ने इन सभी प्रक्रियाओं की फाइलों में बंद कर दिया.
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पाइप लाइन में 2000 पदों की भर्तियां
उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग में अभी भी करीब 2000 पदों की भर्तियां पाइपलाइन में हैं. यह वे पद हैं जिनके लिए विज्ञप्ति जारी होने के साथ फार्म भी भरे जा चुके हैं, लेकिन अब कोविड-19 के चलते परीक्षाएं नहीं कराई जा रही है. इसमें कनिष्ठ सहायक में करीब 700 से ज्यादा पद, फॉरेस्ट वन दरोगा के 316 पद, जल निगम में जेई के करीब 221 पद, सहायक कृषि अधिकारी के 121 पद, आबकारी विभाग में प्रवर्तन सिपाही और पद नगर सहायक लेखाकार के पद शामिल हैं. इनमें से कुछ पदों के लिए तो परीक्षाएं कराई भी जा चुकी है, लेकिन टाइपिंग और स्टेनोग्राफी की परीक्षाएं न होने के कारण युवाओं को फिलहाल इंतजार ही करना पड़ रहा है. करीब 324 पदों के लिए भर्ती लंबित है.
उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग में फिलहाल पुलिस विभाग के रेडियो संचार पद के लिए भी परीक्षा परिणामों का आना बाकी है. हालांकि, 15 अगस्त के बाद इसके परिणाम घोषित हो सकते हैं.
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कई तकनीकी परेशानी में उलझा आयोग
यूं तो सरकार को करीब 40000 पदों को भरना है, लेकिन जिन पदों के लिए विज्ञप्ति जारी हो चुकी है, ऐसे पदों पर मौजूदा हालात में परीक्षाएं कराना भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं है.
आयोग के सामने चुनौतियां
- परीक्षाओं के लिए परीक्षा हॉल की व्यवस्था करना एक बड़ी चुनौती है. क्योंकि अब सोशल डिस्टेंसिंग के तहत एक कक्ष में सामान्य हालात की अपेक्षा आधे ही परीक्षार्थियों को बैठाया जा सकता है.
- दो से तीन लाख युवाओं के फॉर्म भरने की स्थिति में परीक्षा कक्ष की उपलब्धता कर पाना मुश्किल है.
- परीक्षा कक्ष और परीक्षार्थियों को सैनेटाइज कर सोशल डिस्टेंसिंग के साथ परीक्षा दिलवाना बड़ी चुनौती हैं.
- परीक्षार्थियों से दूरी बनाकर उनकी चेकिंग कर पाना भी नामुमकिन.
- कंटेनमेंट क्षेत्र के परीक्षार्थियों को परीक्षा में शामिल करने की कोई व्यवस्था नहीं है.
- प्रदेश के बाहर रह रहे परीक्षार्थियों को राज्य में आने की अनुमति और परीक्षा देने को लेकर अभी तय किसी तरह की गाइड लाइन नहीं है.
- ऑनलाइन परीक्षा पर विचार किया जा रहा है, लेकिन इस पर अमल करना थोड़ी मुश्किल है. क्योंकि इसमें कई तकनीकी पेचीदगियां हैं.
- ऑनलाइन परीक्षाओं के लिए प्रदेश में पर्याप्त कंप्यूटर की व्यवस्था नहीं है.
- इसके अलावा बड़े स्तर पर ऑनलाइन परीक्षा कराने का विभाग के पास कोई अनुभव नहीं है.
ऐसे हालात में आयोग के सामने परीक्षाएं कराना बेहद मुश्किल दिख रहा है, लेकिन परीक्षार्थियों के लिहाज से देखें तो उनके लिए यह एक मौका खोने जैसा है. दरअसल, परीक्षार्थी लंबे समय से प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयारी कर रहे हैं और अब इन परीक्षाओं के न होने से परीक्षार्थी मानिसक तनाव में आ जाएंगे.
कोविड-19 के चलते परीक्षार्थी कोचिंग या कोई क्लास नहीं ले पा रहे हैं. ऐसे में प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अपनी तैयारी को बेहतर बनाए रखना भी काफी मुश्किल है. कई परीक्षार्थी अधिकतम आयु सीमा के करीब भी है, जिससे आने वाले वक्त में उनका प्रतियोगी परीक्षाओं में हिस्सा ले पाना भी मुश्किल होता जाएगा. ऐसे भी युवा है जो चाहते है कि सरकार किसी बी तरीके से परीक्षाओं को करवाएं ताकि युवाओं को रोजगार मिले. ताकि कोविड-19 के इस दौर में वे मानसिक तनाव से मुक्त रहकर नौकरी पा सके.