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गिरता गया UKD का सियासी ग्राफ, क्या 2022 का चुनाव देगा राजनीतिक 'ऑक्सीजन'

उत्तराखंड क्रांति दल को महज 0.7% यानी 37,039 वोट ही पड़े. उत्तराखंड क्रांति दल के इस खराब अनुभव के बावजूद भी पार्टी के नेता अब भी मानते हैं कि राज्य की स्थापना में अहम योगदान देने वाली यूकेडी जरूर अपने पांव पर खड़ी होगी.

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उत्तराखंड में साल दर साल गिरता जा रहा यूकेडी का सियासी ग्राफ
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Published : Feb 9, 2021, 6:16 PM IST

Updated : Feb 9, 2021, 6:57 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड का सबसे पुराना क्षेत्रीय दल आज हाशिए पर पहुंच गया है. जिस दल की भूमिका नए राज्य के निर्माण की लड़ाई में बेहद अहम रही, वो दल राज्य के 3 विधानसभा चुनाव के आते-आते अपनी सबसे खराब हालत में पहुंच गया. मगर आज भी प्रदेश के लोगों के दिलों में उत्तराखंड क्रांति दल को लेकर अपनत्व की भावना है. मगर आने वाले विधानसभा चुनावों में ये अपनत्व की भावना कितने वोटों में तब्दील हो पाती है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

उत्तराखंड एक बार फिर विधानसभा चुनाव की दहलीज पर है. चुनावी सरगर्मियों के बीच हर 5 साल में उठने वाला वही पुराना सवाल एक बार फिर जनमानस के सामने खड़ा हो गया है. यह सवाल उत्तराखंड क्रांति दल के अस्तित्व से जुड़ा हुआ है. उत्तर प्रदेश से अलग एक पहाड़ी राज्य की कल्पना करने वाला उत्तराखंड क्रांति दल राजनीति में राष्ट्रीय दलों से काफी पिछड़ गया है.

उत्तराखंड में साल दर साल गिरता जा रहा यूकेडी का सियासी ग्राफ

पढ़ें- जोशीमठ रेस्क्यू LIVE: मरने वालों की संख्या हुई 31, राज्यसभा में मृतकों को दी गई श्रद्धांजलि

साल 2002 में प्रदेश के पहले विधानसभा चुनाव में ही उत्तराखंड क्रांति दल उम्मीद से बेहद कम चार विधानसभा सीटों को जीतने में कामयाब हो पाया था. उम्मीद थी कि आने वाले विधानसभा चुनाव में यह संख्या बढ़ पाएगी. मगर 2007 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड क्रांति दल महज 3 विधानसभा सीटों तक ही सीमित हो गई. इस तरह यूकेडी पहले की तुलना में अपनी एक सीट और गवां गई. 2012 के चुनाव में यूकेडी का प्रदर्शन और भी कमजोर हुआ. इस बार ये केवल एक ही सीट जीत पाई. इसके बाद 2017 के चुनाव में तो यूकेडी का सूपड़ा ही साफ हो गया. आज हालात यह है कि यूकेडी के अस्तित्व पर ही संकट गहराते हुए दिखाई दे रहे हैं.

पढ़ें- जोशीमठ रेस्क्यू LIVE: युद्ध स्तर पर जुटी सेना-NDRF, मौत का आंकड़ा पहुंचा 28

एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में साल 2017 के चुनाव के दौरान बीजेपी कुल 46.5% मत हासिल करने में कामयाब रही. कांग्रेस भले ही 11 सीटें जीती लेकिन उनका मत प्रतिशत 33.5% रहा. उत्तराखंड क्रांति दल की हालत यह रही कि उसका मत प्रतिशत नोटा में डाले गए वोटों से भी कम रहा. जानकारी के अनुसार उत्तराखंड क्रांति दल को महज 0.7% यानी 37,039 वोट ही पड़े. उत्तराखंड क्रांति दल के इस खराब अनुभव के बावजूद भी पार्टी के नेता अब भी मानते हैं कि राज्य की स्थापना में अहम योगदान देने वाली यूकेडी जरूर अपने पांव पर खड़ी होगी.

पढ़ें- EXCLUSIVE: ड्रोन से टनल का जियोग्राफिकल मैपिंग कर रहा NDRF, मिलेगी जिंदा लोगों की जानकारी


उत्तराखंड क्रांति दल ने राज्य में राजनीति करने में कई बड़ी भूल की हैं. इसी का नतीजा है कि आज यह क्षेत्रीय दल अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. क्षेत्रीय दल की सबसे बड़ी गलती सत्ताधारी राष्ट्रीय पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बनाना रहा. उत्तराखंड क्रांति दल ने भाजपा की सरकार आने पर इस राष्ट्रीय दल को भी सरकार बनाने में समर्थन दिया. जरूरत पड़ने पर कांग्रेस की सत्ता के दौरान उन्हें भी समर्थन देकर सत्ता सुख लिया. बस यहीं से लोगों में उत्तराखंड क्रांति दल को लेकर विचार बदला. यूकेडी सत्ता सुख भोगने वाली पार्टी के रूप में लोगों के बीच प्रचारित हुई.

यूकेडी की कमियां

  • उत्तराखंड क्रांति दल में कमजोर संगठन उसकी एक बड़ी कमजोरी है. संगठन की कमान संभालने के लिए नेताओं ने एक दूसरे की खूब टांग खींची. मौका पड़ने पर पार्टी के दो फाड़ भी कर दिए गये.
  • उत्तराखंड क्रांति दल की दूसरी सबसे बड़ी कमी उसके पास आर्थिक रूप से संसाधन ना होना है. पार्टी में चुनाव लड़ने के लिए भी बजट की भारी कमी है. इसी कारण विधानसभाओं में उनके प्रत्याशी काफी पिछड़े हुए भी नजर आते हैं.
  • उत्तराखंड क्रांति दल ने जिस तरह से लोगों के बीच अपनी ख्याति को खोया है उसके बाद इस दल में किसी भी बड़े चेहरे ने आने की हिम्मत नहीं जुटाई. पार्टी के अंदर कोई बड़ा चेहरा न होना भी इसकी एक बड़ी कमजोरी है.

उत्तराखंड क्रांति दल राज्य में अपनी एक एजेंडे पर भी कायम नहीं रह पाई. गैरसैंण को राजधानी बनाने की बात तो कही गई लेकिन सत्ता में शामिल होने के दौरान उस पर खुलकर मोर्चा नहीं खोला गया. हालांकि इस सबसे इतर अब पार्टी के नेता कांग्रेस और भाजपा से हटकर राज्य में यूकेडी को ही एक भरोसेमंद पार्टी मान रहे हैं. उधर आम आदमी पार्टी का राज्य में अस्तित्व ही नहीं होने की बात कहकर यूकेडी के कुछ हद तक चुनावी मैदान में खड़े रहने को लेकर भी पार्टी के नेता आश्वस्त हैं.

देहरादून: उत्तराखंड का सबसे पुराना क्षेत्रीय दल आज हाशिए पर पहुंच गया है. जिस दल की भूमिका नए राज्य के निर्माण की लड़ाई में बेहद अहम रही, वो दल राज्य के 3 विधानसभा चुनाव के आते-आते अपनी सबसे खराब हालत में पहुंच गया. मगर आज भी प्रदेश के लोगों के दिलों में उत्तराखंड क्रांति दल को लेकर अपनत्व की भावना है. मगर आने वाले विधानसभा चुनावों में ये अपनत्व की भावना कितने वोटों में तब्दील हो पाती है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

उत्तराखंड एक बार फिर विधानसभा चुनाव की दहलीज पर है. चुनावी सरगर्मियों के बीच हर 5 साल में उठने वाला वही पुराना सवाल एक बार फिर जनमानस के सामने खड़ा हो गया है. यह सवाल उत्तराखंड क्रांति दल के अस्तित्व से जुड़ा हुआ है. उत्तर प्रदेश से अलग एक पहाड़ी राज्य की कल्पना करने वाला उत्तराखंड क्रांति दल राजनीति में राष्ट्रीय दलों से काफी पिछड़ गया है.

उत्तराखंड में साल दर साल गिरता जा रहा यूकेडी का सियासी ग्राफ

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साल 2002 में प्रदेश के पहले विधानसभा चुनाव में ही उत्तराखंड क्रांति दल उम्मीद से बेहद कम चार विधानसभा सीटों को जीतने में कामयाब हो पाया था. उम्मीद थी कि आने वाले विधानसभा चुनाव में यह संख्या बढ़ पाएगी. मगर 2007 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड क्रांति दल महज 3 विधानसभा सीटों तक ही सीमित हो गई. इस तरह यूकेडी पहले की तुलना में अपनी एक सीट और गवां गई. 2012 के चुनाव में यूकेडी का प्रदर्शन और भी कमजोर हुआ. इस बार ये केवल एक ही सीट जीत पाई. इसके बाद 2017 के चुनाव में तो यूकेडी का सूपड़ा ही साफ हो गया. आज हालात यह है कि यूकेडी के अस्तित्व पर ही संकट गहराते हुए दिखाई दे रहे हैं.

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एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में साल 2017 के चुनाव के दौरान बीजेपी कुल 46.5% मत हासिल करने में कामयाब रही. कांग्रेस भले ही 11 सीटें जीती लेकिन उनका मत प्रतिशत 33.5% रहा. उत्तराखंड क्रांति दल की हालत यह रही कि उसका मत प्रतिशत नोटा में डाले गए वोटों से भी कम रहा. जानकारी के अनुसार उत्तराखंड क्रांति दल को महज 0.7% यानी 37,039 वोट ही पड़े. उत्तराखंड क्रांति दल के इस खराब अनुभव के बावजूद भी पार्टी के नेता अब भी मानते हैं कि राज्य की स्थापना में अहम योगदान देने वाली यूकेडी जरूर अपने पांव पर खड़ी होगी.

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उत्तराखंड क्रांति दल ने राज्य में राजनीति करने में कई बड़ी भूल की हैं. इसी का नतीजा है कि आज यह क्षेत्रीय दल अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. क्षेत्रीय दल की सबसे बड़ी गलती सत्ताधारी राष्ट्रीय पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बनाना रहा. उत्तराखंड क्रांति दल ने भाजपा की सरकार आने पर इस राष्ट्रीय दल को भी सरकार बनाने में समर्थन दिया. जरूरत पड़ने पर कांग्रेस की सत्ता के दौरान उन्हें भी समर्थन देकर सत्ता सुख लिया. बस यहीं से लोगों में उत्तराखंड क्रांति दल को लेकर विचार बदला. यूकेडी सत्ता सुख भोगने वाली पार्टी के रूप में लोगों के बीच प्रचारित हुई.

यूकेडी की कमियां

  • उत्तराखंड क्रांति दल में कमजोर संगठन उसकी एक बड़ी कमजोरी है. संगठन की कमान संभालने के लिए नेताओं ने एक दूसरे की खूब टांग खींची. मौका पड़ने पर पार्टी के दो फाड़ भी कर दिए गये.
  • उत्तराखंड क्रांति दल की दूसरी सबसे बड़ी कमी उसके पास आर्थिक रूप से संसाधन ना होना है. पार्टी में चुनाव लड़ने के लिए भी बजट की भारी कमी है. इसी कारण विधानसभाओं में उनके प्रत्याशी काफी पिछड़े हुए भी नजर आते हैं.
  • उत्तराखंड क्रांति दल ने जिस तरह से लोगों के बीच अपनी ख्याति को खोया है उसके बाद इस दल में किसी भी बड़े चेहरे ने आने की हिम्मत नहीं जुटाई. पार्टी के अंदर कोई बड़ा चेहरा न होना भी इसकी एक बड़ी कमजोरी है.

उत्तराखंड क्रांति दल राज्य में अपनी एक एजेंडे पर भी कायम नहीं रह पाई. गैरसैंण को राजधानी बनाने की बात तो कही गई लेकिन सत्ता में शामिल होने के दौरान उस पर खुलकर मोर्चा नहीं खोला गया. हालांकि इस सबसे इतर अब पार्टी के नेता कांग्रेस और भाजपा से हटकर राज्य में यूकेडी को ही एक भरोसेमंद पार्टी मान रहे हैं. उधर आम आदमी पार्टी का राज्य में अस्तित्व ही नहीं होने की बात कहकर यूकेडी के कुछ हद तक चुनावी मैदान में खड़े रहने को लेकर भी पार्टी के नेता आश्वस्त हैं.

Last Updated : Feb 9, 2021, 6:57 PM IST
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