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Bhagat Singh Koshiyari: उत्तराखंड की सत्ता में होंगे दो केंद्र बिंदु‍‍! अभी थकने वाले नहीं भगत दा

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Published : Feb 14, 2023, 9:19 PM IST

Updated : Feb 15, 2023, 6:25 PM IST

जब से भगत सिंह कोश्यारी ने महाराष्ट्र राज्यपाल के पद से इस्तीफा दिया है. तब से उत्तराखंड की सियासी गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म है. जानकारों का कहना है कि अगर भगत दा उत्तराखंड आते हैं तो यहां कुछ ना कुछ नया जरूर होगा. जानकारों का मानना है कि भगत दा की वापसी से देहरादून में सत्ता के दो केंद्र बिंदु हो जाएंगे.

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देहरादून: उत्तराखंड राज्य जबसे अस्तित्व में आया है, तब से यहां की राजनीतिक घटनाक्रम में उठा पटक चलती आ रही है. पहली सरकार यानी स्वामी नित्यानंद के मुख्यमंत्री बनने से लेकर मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कार्यकाल तक जितनी भी सरकारें बनी हैं, किसी भी सरकार के कार्यकाल में मुख्यमंत्री को बदलना, मंत्रियों का नाराज होना लगता है कि उत्तराखंड की राजनीति में चोली दामन का साथ हो गया हो.

कोश्यारी के इस्तीफे से प्रदेश में हलचल: वर्तमान में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपना एक साल का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं. कुछ घटनाओं या विवादों को अगर एक तरफ रख दें तो, कोई बड़ी राजनीतिक घटनाक्रम अब तक देखने के लिए नहीं मिला है. हां इतना जरूर है कि मंत्री रहते हुए हरक सिंह रावत और यशपाल आर्य ने जरूर बीजेपी को अलविदा कह दिया था. अब जानकार मान रहे हैं कि महाराष्ट्र में राज्यपाल पद छोड़ने के बाद भगत सिंह कोश्यारी उत्तराखंड की राजधानी देहरादून या फिर हल्द्वानी में बैठकर कुछ ना कुछ ऐसा जरूर करेंगे, जो चर्चाओं में रहेगा. उत्तराखंड में राजनीति के जानकार अब इस बात पर नजर बनाए हुए हैं कि भगत सिंह कोश्यारी राज्यपाल पद से हटने के बाद आगे की यात्रा अपनी किस दिशा में तय करने वाले हैं?

राजनीति के माहिर खिलाड़ी भगत दा: उत्तराखंड में भगत सिंह कोश्यारी को राजनीति का माहिर खिलाड़ी माना जाता है. माहिर इसलिए क्योंकि उत्तराखंड बनने के बाद वह पहली सरकार में साल 2000 में ऊर्जा मंत्री रहे और इसके बाद बीजेपी ने उन्हें साल 2001 में ही उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बना दिया. हालांकि, मुख्यमंत्री का कार्यकाल उनका ज्यादा समय तक नहीं रहा. राज्य में चुनाव हुए तो इन चुनावों में बीजेपी हार गई, लेकिन भगत सिंह कोश्यारी का दबदबा उत्तराखंड की राजनीति में कम नहीं हुआ. उत्तराखंड में बीजेपी के मजबूत करने में उस दौरान भगत सिंह कोश्यारी की अहम भूमिका रही. एक साल के कार्यकाल में उन्होंने भले ही ज्यादा कुछ ना किया हो, लेकिन साल 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से बीजेपी सत्ता में आ गई.
ये भी पढ़ें: Bhagat Singh Koshyari Resignation: इस्तीफ से बीजेपी को होगी टेंशन? उत्तराखंड में बढ़ी सियासी गर्मी

2001 में सीएम बने कोश्यारी: साल 2000 में उत्तराखंड राज्य की स्थापना के बाद नित्यानंद स्वामी के सीएम रहते उनको सिंचाई, ऊर्चा, कानून और विधायी मामलों का मंत्री बनाया गया. साल 2001 में उन्होंने नित्यानंद स्वामी का स्थान लिया और प्रदेश के दूसरे मुख्यमंत्री बने. साल 2002 में राज्य का पहला विधानसभा चुनाव हुआ जिसमें बीजेपी की हार के बाद उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दिया और और साल 2007 तक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद संभाला. साल 2004 से 2007 तक भगत सिंह कोश्यारी बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष पद पर भी रहे. साल 2007 में बीजेपी की सत्ता में वापसी हुई. तब पार्टी ने भुवन चंद खंडूड़ी को सीएम चुना. साल 2008 से 2014 तक वो उत्तराखंड से राज्यसभा सांसद रहे. 2014 में नैनीताल-उधम सिंह नगर सीट से लोकसभा चुनाव जीतकर फिर सदन पहुंचे.

2019 में महाराष्ट्र के राज्यपाल बनें: साल 2019 में कोश्यारी को महाराष्ट्र का राज्यपाल बना दिया गया. इसके बाद यही कहा जाने लगा कि भगत सिंह कोश्यारी का राजनीतिक सफर लगभग खत्म हो गया है, लेकिन महाराष्ट्र की अघाड़ी सरकार हो या उत्तराखंड में नए मुख्यमंत्री का पदार्पण, वह महाराष्ट्र से ही खूब राजनीतिक सुर्खियों में रहे.

बीजेपी में कोश्यारी का सिक्का: ऐसा नहीं है कि राज्यपाल बनने के बाद भगत सिंह कोश्यारी उत्तराखंड की राजनीति में सक्रिय नहीं रहे. जब त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाने की बात चल रही थी, तब पुष्कर सिंह धामी के लिए पूरी की पूरी लॉबिंग भगत सिंह कोश्यारी ने ही की थी. भगत सिंह कोश्यारी जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे. उस वक्त पुष्कर सिंह धामी उनके ओएसडी हुआ करते थे. परिवार जैसा संबंध और गुरु का दर्जा देने वाले पुष्कर सिंह धामी विधायक बनने के बाद लगातार कोश्यारी के संपर्क में रहे और जैसे ही नए मुख्यमंत्री का नाम उत्तराखंड में तय हुआ तो साफ हो गया. आज भी भगत सिंह कोश्यारी का सिक्का बीजेपी में खूब चलता है.

सीएम धामी के गुरु भगत दा: उत्तराखंड के मुद्दों पर पुष्कर सिंह धामी लगातार अपने गुरु भगत सिंह कोश्यारी से सलाह मशवरा करते दिखाई दिए. इतना ही नहीं उत्तराखंड में मौजूदा समय में कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य, चंदन रामदास हो या फिर सांसद तीरथ सिंह रावत सहित ना जाने कितने विधायक उनसे लगातार मुंबई में जाकर संपर्क करते रहे. भगत सिंह कोश्यारी इस दौरान कई बार मुंबई से सीधे चलकर देहरादून भी पहुंचे. उनके देहरादून पहुंचने पर न केवल सत्ता पक्ष, बल्कि विपक्ष के कई बड़े नेताओं ने भी उनसे मुलाकात की. हरक सिंह रावत हो या यशपाल आर्य भगत सिंह कोश्यारी को अपना पारिवारिक सदस्य बता चुके हैं. ऐसे में भगत सिंह कोशियारी का महाराष्ट्र के महामहिम पद से मुक्त होने के लिए जब राष्ट्रपति को उन्होंने अपना त्याग पत्र लिखा, तभी से यह चर्चा शुरू होने लगी की भगत सिंह कोश्यारी का आगे का सफर क्या होने वाला है ?
ये भी पढ़ें: Bhagat singh Koshyari : विवादों के कारण सुर्खियों में रहे कोश्यारी, इस्तीफे से विपक्ष खुश

भगत दा की फिर से सीएम बनने की चाह: अपने इस्तीफे पर भगत सिंह कोश्यारी ने कहा कि वो अब अध्ययन और चिंतन करना चाहते हैं, लेकिन जिस तरह से भगत दा ने महाराष्ट्र के राज्यपाल रहते हुए सुर्खियां बटोरी है. उसके बाद जानकार यही मान रहे है कि एक बार देहरादून उनको आने दीजिए, फिर देखिए की उत्तराखंड में होता क्या है? वरिष्ठ पत्रकार गजेंद्र रावत ने कहा भगत सिंह कोश्यारी का हमेशा से ये सपना रहा है कि वो एक बार सीएम जरूर बनें. पहले वो अधिक समय तक सीएम नहीं रह पाए. भगत दा का उस वक्त इस्तीफा होना, जब सरकार जोशीमठ, उत्तराखंड भर्ती परीक्षा मामले को लेकर घिरी हुई है.

देहरादून में इतनी अधिक भीड़ आज तक किसी आंदोलन में नहीं हुई. ये सब सरकार के पक्ष में तो बिल्कुल नहीं है. इतना ही नहीं भगत दा ने जोशीमठ को लेकर आंदोलनकारी अतुल सती को फोन किया है. वो चाहते तो सीएम से भी बात कर सकते थे. इससे तो इतना तय है कि वो भले ये कह रहे हो कि मैं चिंतन और अध्ययन करूंगा, लेकिन आप उत्तराखंड में देखना मंत्री विधायक कितने रोज वहां जाते हैं और क्या गुल खिलाते हैं ?

देहरादून में होंगे सत्ता के दो केंद्र: वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत भी भगत सिंह कोश्यारी के इस्तीफे को अलग नजरिए से देखते हैं. वह कहते हैं कि जब-जब मेरी बात महाराष्ट्र में किसी पत्रकार से होती है या फिर मुझे किसी कार्यक्रम में बुलाया जाता था तो, महाराष्ट्र के अमूमन लोग यही कहते थे कि उत्तराखंड के लोग महाराष्ट्र राजभवन में ज्यादा दिखाई देते हैं. कोई ना कोई अपने काम के सिलसिले में महामहिम से मिलने आता रहता था. लेकिन अब उत्तराखंड के लोगों को उत्तराखंड के राजनेताओं को महाराष्ट्र के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे. आप इस बात को इस तरह से समझ सकते हैं कि अब राजधानी देहरादून में सत्ता के दो केंद्र बिंदु हो जाएंगे.

भगत दा नहीं होंगे राजनीति से दूर: जय सिंह रावत ने कहा जो लोग यह समझ रहे हैं कि महाराष्ट्र गवर्नर पद से हटने के बाद भगत सिंह कोश्यारी राजनीति से दूर हो जाएंगे तो ऐसा कभी नहीं हो सकता. जिस व्यक्ति ने राजनीति को खाया हो, राजनीति को पिया हो और राजनीति को ओढ़कर सोया हो. वह राजनीति से दूर नहीं हो सकता और भगत सिंह कोश्यारी जैसा राजनेता तो बिल्कुल भी नहीं. अब लोगों को राजधानी देहरादून की यमुना कॉलोनी में आप आने वाले समय में देख लेंगे. वहां पर जितने लोगों की भीड़ लगेगी, आप उससे अंदाजा लगा लेंगे कि अभी भी उत्तराखंड की राजनीति में भगत सिंह कोश्यारी का कितना दबदबा है और कितनी संभावनाएं हैं?
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कोश्यारी के लिए हमेशा रहेंगी संभावनाएं: जय सिंह रावत कहते हैं कि भगत सिंह कोश्यारी के लिए संभावनाएं हमेशा अवेलेबल रहेंगे और भविष्य में उत्तराखंड की राजनीति में क्या कुछ हो सकता है. इस बात को बच्चा-बच्चा जानता है. क्योंकि उत्तराखंड में 21 सालों में जो कुछ भी हुआ है. उस बात से हर कोई कल्पना लगा सकता है कि आने वाला समय उत्तराखंड की राजनीति का क्या कुछ होगा ? इसलिए भगत सिंह कोश्यारी ने इस्तीफा दिया नहीं है, दरअसल महाराष्ट्र में बीजेपी थोड़ी कमजोर पड़ रही है. उसमें एक बहुत बड़ा तबका महाराष्ट्र के गवर्नर रहते हुए भगत सिंह कोश्यारी के बयानों से नाखुश है. उन्होंने बीते दिनों कई ऐसे बयान दिए जो महाराष्ट्र के लोगों को रास नहीं आए. आने वाले समय में महाराष्ट्र में नगर पालिका और नगर निगम के के चुनाव हैं, ऐसे में बीजेपी इनमें भी बढ़त लेना चाहती है.

भगत दा पर हरदा और हरक की राय: भगत सिंह कोश्यारी को लेकर कांग्रेस नेता हरक सिंह रावत का कहना है कि उनसे मेरे पारिवारिक संबंध हैं. उनसे इस्तीफा लेने के पीछे कहीं ना कहीं महाराष्ट्र का दबाव होगा. अब उनके उत्तराखंड आने के बाद आगे क्या होगा, ये तो वक्त ही बताएगा. वही हरीश रावत भी इसे उत्तराखंड के लिए सही नहीं बता रहे हैं. उनका कहना है कि भगत दा और उन्होंने एक साथ राजनीति की है. भले अलग-अलग पार्टी के साथ की हो, लेकिन अचानक से उनको हटाना पहले निशंक को मंत्री पद से हटाना कहीं ना कहीं बीजेपी ये ठीक नहीं कर रही है.

देहरादून: उत्तराखंड राज्य जबसे अस्तित्व में आया है, तब से यहां की राजनीतिक घटनाक्रम में उठा पटक चलती आ रही है. पहली सरकार यानी स्वामी नित्यानंद के मुख्यमंत्री बनने से लेकर मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कार्यकाल तक जितनी भी सरकारें बनी हैं, किसी भी सरकार के कार्यकाल में मुख्यमंत्री को बदलना, मंत्रियों का नाराज होना लगता है कि उत्तराखंड की राजनीति में चोली दामन का साथ हो गया हो.

कोश्यारी के इस्तीफे से प्रदेश में हलचल: वर्तमान में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपना एक साल का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं. कुछ घटनाओं या विवादों को अगर एक तरफ रख दें तो, कोई बड़ी राजनीतिक घटनाक्रम अब तक देखने के लिए नहीं मिला है. हां इतना जरूर है कि मंत्री रहते हुए हरक सिंह रावत और यशपाल आर्य ने जरूर बीजेपी को अलविदा कह दिया था. अब जानकार मान रहे हैं कि महाराष्ट्र में राज्यपाल पद छोड़ने के बाद भगत सिंह कोश्यारी उत्तराखंड की राजधानी देहरादून या फिर हल्द्वानी में बैठकर कुछ ना कुछ ऐसा जरूर करेंगे, जो चर्चाओं में रहेगा. उत्तराखंड में राजनीति के जानकार अब इस बात पर नजर बनाए हुए हैं कि भगत सिंह कोश्यारी राज्यपाल पद से हटने के बाद आगे की यात्रा अपनी किस दिशा में तय करने वाले हैं?

राजनीति के माहिर खिलाड़ी भगत दा: उत्तराखंड में भगत सिंह कोश्यारी को राजनीति का माहिर खिलाड़ी माना जाता है. माहिर इसलिए क्योंकि उत्तराखंड बनने के बाद वह पहली सरकार में साल 2000 में ऊर्जा मंत्री रहे और इसके बाद बीजेपी ने उन्हें साल 2001 में ही उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बना दिया. हालांकि, मुख्यमंत्री का कार्यकाल उनका ज्यादा समय तक नहीं रहा. राज्य में चुनाव हुए तो इन चुनावों में बीजेपी हार गई, लेकिन भगत सिंह कोश्यारी का दबदबा उत्तराखंड की राजनीति में कम नहीं हुआ. उत्तराखंड में बीजेपी के मजबूत करने में उस दौरान भगत सिंह कोश्यारी की अहम भूमिका रही. एक साल के कार्यकाल में उन्होंने भले ही ज्यादा कुछ ना किया हो, लेकिन साल 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से बीजेपी सत्ता में आ गई.
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2001 में सीएम बने कोश्यारी: साल 2000 में उत्तराखंड राज्य की स्थापना के बाद नित्यानंद स्वामी के सीएम रहते उनको सिंचाई, ऊर्चा, कानून और विधायी मामलों का मंत्री बनाया गया. साल 2001 में उन्होंने नित्यानंद स्वामी का स्थान लिया और प्रदेश के दूसरे मुख्यमंत्री बने. साल 2002 में राज्य का पहला विधानसभा चुनाव हुआ जिसमें बीजेपी की हार के बाद उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दिया और और साल 2007 तक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद संभाला. साल 2004 से 2007 तक भगत सिंह कोश्यारी बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष पद पर भी रहे. साल 2007 में बीजेपी की सत्ता में वापसी हुई. तब पार्टी ने भुवन चंद खंडूड़ी को सीएम चुना. साल 2008 से 2014 तक वो उत्तराखंड से राज्यसभा सांसद रहे. 2014 में नैनीताल-उधम सिंह नगर सीट से लोकसभा चुनाव जीतकर फिर सदन पहुंचे.

2019 में महाराष्ट्र के राज्यपाल बनें: साल 2019 में कोश्यारी को महाराष्ट्र का राज्यपाल बना दिया गया. इसके बाद यही कहा जाने लगा कि भगत सिंह कोश्यारी का राजनीतिक सफर लगभग खत्म हो गया है, लेकिन महाराष्ट्र की अघाड़ी सरकार हो या उत्तराखंड में नए मुख्यमंत्री का पदार्पण, वह महाराष्ट्र से ही खूब राजनीतिक सुर्खियों में रहे.

बीजेपी में कोश्यारी का सिक्का: ऐसा नहीं है कि राज्यपाल बनने के बाद भगत सिंह कोश्यारी उत्तराखंड की राजनीति में सक्रिय नहीं रहे. जब त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाने की बात चल रही थी, तब पुष्कर सिंह धामी के लिए पूरी की पूरी लॉबिंग भगत सिंह कोश्यारी ने ही की थी. भगत सिंह कोश्यारी जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे. उस वक्त पुष्कर सिंह धामी उनके ओएसडी हुआ करते थे. परिवार जैसा संबंध और गुरु का दर्जा देने वाले पुष्कर सिंह धामी विधायक बनने के बाद लगातार कोश्यारी के संपर्क में रहे और जैसे ही नए मुख्यमंत्री का नाम उत्तराखंड में तय हुआ तो साफ हो गया. आज भी भगत सिंह कोश्यारी का सिक्का बीजेपी में खूब चलता है.

सीएम धामी के गुरु भगत दा: उत्तराखंड के मुद्दों पर पुष्कर सिंह धामी लगातार अपने गुरु भगत सिंह कोश्यारी से सलाह मशवरा करते दिखाई दिए. इतना ही नहीं उत्तराखंड में मौजूदा समय में कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य, चंदन रामदास हो या फिर सांसद तीरथ सिंह रावत सहित ना जाने कितने विधायक उनसे लगातार मुंबई में जाकर संपर्क करते रहे. भगत सिंह कोश्यारी इस दौरान कई बार मुंबई से सीधे चलकर देहरादून भी पहुंचे. उनके देहरादून पहुंचने पर न केवल सत्ता पक्ष, बल्कि विपक्ष के कई बड़े नेताओं ने भी उनसे मुलाकात की. हरक सिंह रावत हो या यशपाल आर्य भगत सिंह कोश्यारी को अपना पारिवारिक सदस्य बता चुके हैं. ऐसे में भगत सिंह कोशियारी का महाराष्ट्र के महामहिम पद से मुक्त होने के लिए जब राष्ट्रपति को उन्होंने अपना त्याग पत्र लिखा, तभी से यह चर्चा शुरू होने लगी की भगत सिंह कोश्यारी का आगे का सफर क्या होने वाला है ?
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भगत दा की फिर से सीएम बनने की चाह: अपने इस्तीफे पर भगत सिंह कोश्यारी ने कहा कि वो अब अध्ययन और चिंतन करना चाहते हैं, लेकिन जिस तरह से भगत दा ने महाराष्ट्र के राज्यपाल रहते हुए सुर्खियां बटोरी है. उसके बाद जानकार यही मान रहे है कि एक बार देहरादून उनको आने दीजिए, फिर देखिए की उत्तराखंड में होता क्या है? वरिष्ठ पत्रकार गजेंद्र रावत ने कहा भगत सिंह कोश्यारी का हमेशा से ये सपना रहा है कि वो एक बार सीएम जरूर बनें. पहले वो अधिक समय तक सीएम नहीं रह पाए. भगत दा का उस वक्त इस्तीफा होना, जब सरकार जोशीमठ, उत्तराखंड भर्ती परीक्षा मामले को लेकर घिरी हुई है.

देहरादून में इतनी अधिक भीड़ आज तक किसी आंदोलन में नहीं हुई. ये सब सरकार के पक्ष में तो बिल्कुल नहीं है. इतना ही नहीं भगत दा ने जोशीमठ को लेकर आंदोलनकारी अतुल सती को फोन किया है. वो चाहते तो सीएम से भी बात कर सकते थे. इससे तो इतना तय है कि वो भले ये कह रहे हो कि मैं चिंतन और अध्ययन करूंगा, लेकिन आप उत्तराखंड में देखना मंत्री विधायक कितने रोज वहां जाते हैं और क्या गुल खिलाते हैं ?

देहरादून में होंगे सत्ता के दो केंद्र: वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत भी भगत सिंह कोश्यारी के इस्तीफे को अलग नजरिए से देखते हैं. वह कहते हैं कि जब-जब मेरी बात महाराष्ट्र में किसी पत्रकार से होती है या फिर मुझे किसी कार्यक्रम में बुलाया जाता था तो, महाराष्ट्र के अमूमन लोग यही कहते थे कि उत्तराखंड के लोग महाराष्ट्र राजभवन में ज्यादा दिखाई देते हैं. कोई ना कोई अपने काम के सिलसिले में महामहिम से मिलने आता रहता था. लेकिन अब उत्तराखंड के लोगों को उत्तराखंड के राजनेताओं को महाराष्ट्र के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे. आप इस बात को इस तरह से समझ सकते हैं कि अब राजधानी देहरादून में सत्ता के दो केंद्र बिंदु हो जाएंगे.

भगत दा नहीं होंगे राजनीति से दूर: जय सिंह रावत ने कहा जो लोग यह समझ रहे हैं कि महाराष्ट्र गवर्नर पद से हटने के बाद भगत सिंह कोश्यारी राजनीति से दूर हो जाएंगे तो ऐसा कभी नहीं हो सकता. जिस व्यक्ति ने राजनीति को खाया हो, राजनीति को पिया हो और राजनीति को ओढ़कर सोया हो. वह राजनीति से दूर नहीं हो सकता और भगत सिंह कोश्यारी जैसा राजनेता तो बिल्कुल भी नहीं. अब लोगों को राजधानी देहरादून की यमुना कॉलोनी में आप आने वाले समय में देख लेंगे. वहां पर जितने लोगों की भीड़ लगेगी, आप उससे अंदाजा लगा लेंगे कि अभी भी उत्तराखंड की राजनीति में भगत सिंह कोश्यारी का कितना दबदबा है और कितनी संभावनाएं हैं?
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कोश्यारी के लिए हमेशा रहेंगी संभावनाएं: जय सिंह रावत कहते हैं कि भगत सिंह कोश्यारी के लिए संभावनाएं हमेशा अवेलेबल रहेंगे और भविष्य में उत्तराखंड की राजनीति में क्या कुछ हो सकता है. इस बात को बच्चा-बच्चा जानता है. क्योंकि उत्तराखंड में 21 सालों में जो कुछ भी हुआ है. उस बात से हर कोई कल्पना लगा सकता है कि आने वाला समय उत्तराखंड की राजनीति का क्या कुछ होगा ? इसलिए भगत सिंह कोश्यारी ने इस्तीफा दिया नहीं है, दरअसल महाराष्ट्र में बीजेपी थोड़ी कमजोर पड़ रही है. उसमें एक बहुत बड़ा तबका महाराष्ट्र के गवर्नर रहते हुए भगत सिंह कोश्यारी के बयानों से नाखुश है. उन्होंने बीते दिनों कई ऐसे बयान दिए जो महाराष्ट्र के लोगों को रास नहीं आए. आने वाले समय में महाराष्ट्र में नगर पालिका और नगर निगम के के चुनाव हैं, ऐसे में बीजेपी इनमें भी बढ़त लेना चाहती है.

भगत दा पर हरदा और हरक की राय: भगत सिंह कोश्यारी को लेकर कांग्रेस नेता हरक सिंह रावत का कहना है कि उनसे मेरे पारिवारिक संबंध हैं. उनसे इस्तीफा लेने के पीछे कहीं ना कहीं महाराष्ट्र का दबाव होगा. अब उनके उत्तराखंड आने के बाद आगे क्या होगा, ये तो वक्त ही बताएगा. वही हरीश रावत भी इसे उत्तराखंड के लिए सही नहीं बता रहे हैं. उनका कहना है कि भगत दा और उन्होंने एक साथ राजनीति की है. भले अलग-अलग पार्टी के साथ की हो, लेकिन अचानक से उनको हटाना पहले निशंक को मंत्री पद से हटाना कहीं ना कहीं बीजेपी ये ठीक नहीं कर रही है.

Last Updated : Feb 15, 2023, 6:25 PM IST
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