देहरादून: किसी भी सड़क दुर्घटना में घायलों के बचाव के लिए नजदीकी अस्पताल और एंबुलेंस की एक अहम भूमिका होती है. दुर्घटना में घायल मरीज को तत्काल अस्पताल पहुंचाने के लिए एंबुलेंस की पर्याप्त व्यवस्था के साथ ही ट्रॉमा सेंटर एक अहम भूमिका अदा करते हैं. जिसको लेकर सड़क सुरक्षा समिति लगातार सड़क सुरक्षा से जुड़े नियमों के साथ आदेश पारित करती है. साथ ही सड़क दुर्घटना के दौरान राहत और बचाव कार्यों के लिए व्यवस्था मुकम्मल करने पर भी जोर देती रहती है. आखिर क्या है प्रदेश में ट्रॉमा सेंटर और एंबुलेंस की स्थिति देखिए इस रिपोर्ट में...
बचाव और राहत कार्य में देरी
उत्तराखंड अपनी विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते अन्य राज्यों से भिन्न है. यही वजह है कि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में दुर्घटना के बाद राहत बचाव कार्य करने में थोड़ा ज्यादा समय लगता है. सड़क दुर्घटना के बाद तत्काल एंबुलेंस उपलब्ध कराने के साथ ही चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने में भी एक लंबा वक्त लग जाता है. जिसके चलते वक्त रहते स्वास्थ्य सुविधा न मिलने के चलते मरीज अपना दम तोड़ देते हैं. वहीं, सड़क सुरक्षा समिति अपनी बोर्ड की बैठक में स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने के आदेश देता रहता है. ताकि तत्काल प्रभाव से मरीजों को स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध हो सके.
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कई जिलों में ट्रॉमा सेंटर नहीं
वर्तमान समय में प्रदेश की स्थिति बेहद गंभीर है. क्योंकि मौजूदा समय में प्रदेश भर में कुल 13 ट्रॉमा केयर सेंटर हैं. इसके साथ ही कुछ जिले ऐसे हैं जहां एक भी ट्रॉमा सेंटर मौजूद नहीं है. इनमें टिहरी, रुद्रप्रयाग, नैनीताल और पिथौरागढ़ जिले ऐसे हैं, जहां पर एक भी ट्रॉमा केयर सेंटर मौजूद नहीं है. जिसके चलते इन क्षेत्रों में होने वाली दुर्घटनाओं में मरीजों को तत्काल ट्रॉमा केयर सेंटर पहुंचाने में काफी समय लग जाता है. जिसकी वजह से इन मरीजों को अन्य जिलों के ट्रॉमा केयर सेंटर में भर्ती कराया जाता है.
एंबुलेंस की भी किल्लत
वहीं, प्रदेश के भीतर 108 एंबुलेंस की कुल 139 गाड़ियां ही हैं. जिन्हें क्षेत्रवार तैनात किया गया है, ताकि उन क्षेत्रों में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं के दौरान मरीजों को तत्काल अस्पताल तक पहुंचाया जा सके. चिकित्सा विभाग द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़े के अनुसार 108 एंबुलेंस से अतिरिक्त प्रदेश भर में कुल 133 एंबुलेंस संचालित हो रही है. जो स्वास्थ्य विभाग के अधीन संचालित की जा रही हैं. लिहाजा सड़क सुरक्षा समिति का यह निर्देश है कि सरकारी एंबुलेंस के साथ ही निजी एंबुलेंस को भी 108 के तहत जोड़ा जाए.
हर जिले में होना चाहिए ट्रॉमा सेंटर
उप परिवहन आयुक्त सनत कुमार सिंह ने बताया कि उच्च न्यायालय द्वारा गठित सड़क सुरक्षा समिति ने निर्देश दिए थे कि हर जिले में एक ट्रॉमा केयर सेंटर होना चाहिए, जिसमें डॉक्टरों के साथ ही सारी व्यवस्थाएं उपलब्ध हों. हालांकि, तत्काल प्रभाव से ट्रॉमा केयर सेंटर बनाना काफी मुश्किल है, लेकिन मौजूदा समय में प्रदेश में कुल 13 ट्रॉमा केयर सेंटर मौजूद हैं, जिनमें से कुछ जिले ऐसे हैं जहां ट्रॉमा सेंटर मौजूद नहीं हैं. जिन जिलों में ट्रॉमा केयर सेंटर मौजूद नहीं है, उन जिलों में चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधीन मेडिकल कॉलेज का इस्तेमाल किया जा रहा है.
प्रदेश में ट्रॉमा केयर सेंटरों की स्थिति
- देहरादून जिले में 3 ट्रॉमा केयर सेंटर
- हरिद्वार जिले में एक ट्रॉमा केयर सेंटर
- पौड़ी जिले में एक ट्रॉमा केयर सेंटर
- उत्तरकाशी जिले में एक ट्रॉमा केयर सेंटर
- चमोली जिले में दो ट्रॉमा केयर सेंटर
- उधम सिंह नगर जिले में एक ट्रॉमा केयर सेंटर
- चंपावत जिले में दो ट्रॉमा केयर सेंटर
- बागेश्वर जिले में एक ट्रॉमा केयर सेंटर
- अल्मोड़ा जिले में दो ट्रॉमा केयर सेंटर