देहरादून: उत्तराखंड पुलिस मुख्यालय की पारदर्शी ट्रांसफर पॉलिसी तमाम प्रयासों के बावजूद भी धरातल पर नहीं उतरना दुर्भाग्यपूर्ण है. लंबी जद्दोजहद के बाद प्रदेश में 2017 में ट्रांसफर एक्ट बनने के बावजूद राज्य गठन के 21 साल बाद भी इन नियमों की अनदेखी की जा रही है.
इसका सबसे ताजा उदाहरण बीते अप्रैल माह में गढ़वाल और कुमाऊं रेंज द्वारा जारी वो आदेश है, जिसमें 21 साल से मैदानी जिलों में तैनात दारोगा-इंस्पेक्टर शामिल हैं. इन लोगों को पारदर्शी ट्रांसफर पॉलिसी के नाम पर पहाड़ी जनपद भेजने का दावा किया गया था. वहीं दूसरी ओर पहाड़ में वर्षों से तैनात दारोगाओं और इंस्पेक्टरों को राहत देते हुए मैदानी जिलों में नियुक्ति देने की कवायद थी, लेकिन आदेश जारी होने के एक माह के उपरांत भी इसे लागू नहीं किया जा सका है.
इसकी सबसे बड़ी वजह कोरोना काल को माना जा रहा है, जिसका हवाला देकर पहले मौजूदा मुख्यमंत्री और फिर मुख्य सचिव ने फरमान जारी कर ट्रांसफर पॉलिसी को लागू नहीं किया है.
क्या कहते हैं कानून के जानकार?
कानून जानकारों के मुताबिक ट्रांसफर एक्ट प्रावधान के मुताबिक बिना अध्यादेश या कैबिनेट मंजूरी के कोई भी सत्ताधारी राजनेता या सरकार का अधिकारी यह निर्णय नहीं ले सकता है कि पहले से जारी ट्रांसफर आदेश को रोकने का फरमान सुना दें, लेकिन उत्तराखंड में ऐसा भी हो रहा है. कानून के जानकारों के मुताबिक यह पूरी तरह से ट्रांसफर एक्ट का माखौल है.
![पुलिस मुख्यालय उत्तराखंड](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/uk-deh-04-exclusive-story-police-transfer-policy-failed-vis-7200628_29052021185118_2905f_1622294478_829.jpg)
कानूनी जानकारों का मानना है कि एक्ट बनने के बावजूद अगर पुलिस विभाग सहित अन्य विभागों में ट्रांसफर पॉलिसी को पारदर्शी रूप में लागू नहीं किया गया तो यह मानना गलत न होगा कि अब भी ट्रांसफर मामले में जुगाड़ का खेल राजनीतिक संरक्षण में बदस्तूर खूब फल-फूल रहा है.
वहीं, दूसरी तरफ वे मातहत अपने चहेते पुलिसकर्मियों के ट्रांसफर पोस्टिंग को रुकवाने के लिए बनाए गए एक्ट (अधिनियम) को दरकिनार कर कानून को रद्दी के ढेर में डाल रहे हैं, वह प्रदेश के लिए चिंताजनक हैं. इतना ही नहीं उनका यह कारनामा उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ भी षड्यंत्र जैसा है, जो वर्षों से दुर्गम जनपदों पर यह आस लगाए बैठे हैं कि कभी तो उनकी पोस्टिंग सुगम मैदानी जनपद में होगी.
![अधिकारी दे रहे हैं कोरोना काल का हवाला](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/uk-deh-04-exclusive-story-police-transfer-policy-failed-vis-7200628_29052021185118_2905f_1622294478_515.jpg)
उत्तराखंड बार काउंसिल के सदस्य अधिवक्ता चंद्रशेखर तिवारी का भी साफ तौर पर मानना है कि जिस तरह से कोरोना काल का हवाला देकर पुलिस के ट्रांसफर एक्ट को लागू करने में व्यवधान डाला गया है. वह सरासर कानूनी रूप से गलत है.
भले कोविड महामारी में हर पुलिसकर्मी फ्रंटलाइन वॉरियर्स बनकर पब्लिक की सेवा कर रहा है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि कोविड का हवाला देकर वर्षों से जद्दोजहद करने वाले लोगों का ट्रांसफर रोक दिया जाए.
![आदेश जारी होने के बाद भी नहीं किया जा सका है लागू](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/uk-deh-04-exclusive-story-police-transfer-policy-failed-vis-7200628_29052021185118_2905f_1622294478_620.jpg)
अधिकारी दे रहे कोविड काल का हवाला
जिस तरह से कोविड शून्य सत्र का हवाला देकर ट्रांसफर रोका गया है, वह वर्षों से ट्रांसफर का इंतजार कर रहे कर्मियों पर अत्याचार है. नए सत्र के बावजूद पिछले दिनों हुए 100 से अधिक न्यायिक अधिकारियों के तबादले किए गए थे, जबकि वह भी पिछले वर्ष शून्य सत्र की तर्ज पर चल रहे थे, लेकिन बावजूद उसके न्यायिक कर्मियों के तबादले हाईकोर्ट ने लागू कर दिए हैं. इसी तर्ज पर सरकारी विभागों पर ट्रांसफर पॉलिसी को भी अपनाया जा सकता है. राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2017 में बनाए गए ट्रांसफर एक्ट और 2018 में संशोधित किए गए एक्ट का अगर पालन नहीं कराया जा सकता तो, हाई कोर्ट के ट्रांसफर पॉलिसी को अपनाया जा सकता है.
10 साल से ज्यादा नहीं रह सकते एक जगह
वर्ष 2017 ट्रांसफर एक्ट के मुताबिक एक कर्मचारी अधिकतम 10 साल तक एक जगह रह सकता है उसके बाद उसका ट्रांसफर निश्चित होना तय है. ऐसे में ट्रांसफर अधिनियम का अनुपालन कराने में राजनेताओं और कार्यपालिका को क्या समस्या आ रही है ये सबके समझ से परे है. इसका कारण हो सकता है कि दारोगा-इंस्पेक्टर का वर्चस्व सरकार में इतना प्रभावशाली हो चुका है कि वह कई अन्य दारोगा-इंस्पेक्टर कर्मचारियों का वर्षों से हक मारने में जुटे हैं. उच्च अधिकारी चाहकर भी उनका खेल नहीं रोक सकते हैं.
![पुलिसकर्मियों में है निराशा](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/uk-deh-04-exclusive-story-police-transfer-policy-failed-vis-7200628_29052021185118_2905f_1622294478_948.jpg)
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ट्रांसफर एक्ट लागू ना होने से पुलिसकर्मियों में निराशा है. उधर दो दशकों से पहाड़ी जनपदों में कठिन परिस्थितियों में पुलिस सेवा देने वाले कर्मचारियों की मैदानी जनपदों में आने की उम्मीद एक बार फिर सरकार के हस्तक्षेप के ठंडे बस्ते में नजर आ रही है. ऐसे में इन पुलिसकर्मियों का कहना है कि वह कैसे अपने उच्चाधिकारियों के आदेश और आश्वासन पर भरोसा कर अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें? जबकि हर बार की तरह इस बार भी मैदान में तैनात रसूखदार दारोगा-इंस्पेक्टर की ही सरकार में चल रही है.
क्या कह रहे अधिकारी
ट्रांसफर एक्ट लागू ना होने पर पूर्व डीजीपी एबी लाल का भी मानना है कि शुरूआती समय से ही राज्य में कई दारोगा-इंस्पेक्टर का प्रभाव नजर आया है, लेकिन इसके बावजूद ट्रांसफर पॉलिसी को पारदर्शी तरीके से धरातल पर लागू करने की आवश्यकता है. ताकि पुलिस में अनुशासन और मनोबल बना रहे. पूर्व डीजीपी ए बी लाल के मुताबिक नियुक्तियों में पारदर्शिता की कमी कई बार साफ झलकती है. ऐसे में नियत स्पष्ट होना सबसे जरूरी है, तभी कर्मचारियों उच्च अधिकारियों में भरोसा बना रहेगा.
पूर्व डीजीपी लाल ने यह भी माना कि भले ही कोविड-19 काल के दौरान ट्रांसफर आदेश रोका जाना कुछ मायने में सही है, लेकिन सामान्य परिस्थितियों में इस पॉलिसी को ईमानदारी से लागू कर मजबूत और ठोस कदम उठाने होंगे. तभी बेहतर पुलिसिंग को बढ़ावा दिया जा सकता है. आईपीएस लाल ने कहा कि मेरी सहानुभूति उन पुलिसकर्मियों के साथ है जो वर्षों से पहाड़ों से सुगम क्षेत्र में आने की आस लगाए बैठे हैं.