देहरादून: उत्तराखंड की टिहरी विधानसभा सीट पर इस बार बड़ी ही असमंजस की स्थिति रही. नामांकन की अंतिम तारीख के कुछ घंटे पहले तक भी बीजेपी और कांग्रेस अपने प्रत्याशियों का नाम तय नहीं कर पाई. दरअसल, इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल एक दूसरे को राजनीतिक मात देने की रणनीति बना रहे थे. यही वजह रही कि इस सीट से जुड़े भाजपा और कांग्रेस के संभावित दावेदार एक ही दिन अपनी-अपनी पार्टियों को छोड़कर विपक्षी दलों में शामिल हो गए. टिहरी विधानसभा सीट पर क्या हैं राजनीतिक समीकरण ? इस बार यह सीट चुनाव से पहले कैसे राजनीति का अखाड़ा बन गई ? समझिए.
प्रत्याशियों ने की दलों की अदला-बदली: टिहरी जिले की टिहरी विधानसभा एक सामान्य सीट है, जहां साल 2017 में बीजेपी ने बड़ी जीत हासिल की थी. बीजेपी अब उसी परफॉर्मेंस को दोहराने की कोशिश करेगी. इस बार चुनाव से ठीक पहले जो उलटफेर हुआ है, उससे इस सीट पर सभी राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल गए हैं. चुनाव से ठीक पहले एक तरफ बीजेपी विधायक धन सिंह नेगी ने कांग्रेस का दामन थाम लिया, तो कांग्रेस के इस सीट पर दो बार विधायक रह चुके पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने भी बीजेपी का दामन थाम लिया.
बड़ी बात यह है कि जिस सीट पर पिछले एक महीने से मंथन के बाद प्रत्याशियों के नाम तय नहीं हो पा रहे थे, उस पर एक ही दिन में दल बदल के बाद इन दोनों को ही प्रत्याशी तय करते हुए सिंबल भी दे दिया गया. इस सीट पर मौजूदा समीकरण को जानने से पहले 2017 के उस परिणाम को समझना जरूरी है, जिसमें भाजपा ने इस सीट पर जीत हासिल की थी.
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साल 2017 में टिहरी विधानसभा सीट में 80,194 मतदाता थे और कुल 54.65 फीसदी मतदान हुआ था. इस सीट पर तब 41,592 पुरुष मतदाता थे, तो 38,601 महिला मतदाता थीं. यानी यहां आधी आबादी करीब आधे के ही आंकड़े में मौजूद थी. महिलाओं के वोट निर्णायक भूमिका में थे. सर्विस मतदाताओं की संख्या यहां 973 थी. साल 2017 में कुल 11 प्रत्याशियों ने चुनाव मैदान में उतर कर अपना भाग्य आजमाया. इसमें बीजेपी ने धन सिंह नेगी को टिकट दिया. उन्होंने 20,896 मत पाकर निर्दलीय प्रत्याशी दिनेश धनै को 6,840 वोट से हरा दिया. कांग्रेस के प्रत्याशी नरेंद्र रमोला इस सीट पर जमानत भी नहीं बचा पाए.
अब टिहरी विधानसभा सीट पर लड़ाई बेहद रोचक होगी. ऐसा इसलिए क्योंकि अब भाजपा के वही विधायक धन सिंह नेगी कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं. इस सीट पर वो अब कांग्रेस के प्रत्याशी हैं. उधर, साल 2002 और 2007 में कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से विधायक बनने वाले किशोर उपाध्याय ने पार्टी छोड़कर अब भाजपा का दामन थाम लिया है. वह भाजपा के टिकट पर इस बार चुनाव मैदान में हैं. इन सबसे अलग इस बार दिनेश धनै भी इसी सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं और काफी मजबूत स्थिति में हैं. इस तरह देखा जाए तो इस विधानसभा सीट पर दो ठाकुर चेहरे और एक ब्राह्मण चेहरे के बीच में सीधी लड़ाई देखने को मिलेगी.
पहले साल 2012 में इस सीट पर 71,961 मतदाता थे, जहां निर्दलीय रूप से दिनेश धनै ने चुनाव 377 वोट से जीत कर निर्दलीय विधायक बनने में कामयाबी हासिल की थी. उसके बाद सरकार को समर्थन देते हुए कैबिनेट मंत्री भी बने थे. इस साल कुल 56.10 फीसदी मतदान हुआ था. किशोर उपाध्याय कांग्रेस से 11,649 वोट पाकर दूसरे नंबर पर थे. मौजूदा विधायक धन सिंह नेगी 2012 में तीसरे स्थान पर रहे थे.
साल 2007 में इस सीट पर 76,851 मतदाता थे और 58.10 फीसदी मतदान हुआ था. इस सीट पर 2007 में किशोर उपाध्याय ने कांग्रेस के टिकट से 15,755 वोट पाकर जीत हासिल की. उन्होंने भाजपा के खेम सिंह को 3,198 वोट से हराया, जबकि निर्दलीय दिनेश धनै तीसरे स्थान पर रहे थे.
राज्य के पहले चुनाव साल 2002 में किशोर उपाध्याय ने 15,631 वोट लाकर कांग्रेस के रतन सिंह गुनसोला को 3,928 वोट से हराया था. साल 2002 में इस सीट पर 86,364 मतदाता थे और 43.20 फीसदी मतदान हुआ था.
क्या कहते हैं टिहरी सीट से समीकरण: टिहरी विधानसभा सीट पर मौजूदा स्थिति को देखें तो निर्दलीय प्रत्याशी दिनेश धनै एक तेजतर्रार नेता के रूप में उभरे हैं. वहीं, धन सिंह और किशोर उपाध्याय ने पार्टी बदल कर क्षेत्र में नए समीकरणों को पैदा कर दिया है. साल 2017 में मोदी लहर की बदौलत विधानसभा तक पहुंचने वाले धन सिंह इस बार उतने मजबूत नहीं दिखाई दे रहे, जबकि त्रिकोणीय मुकाबला होने के बावजूद इस सीट पर किशोर उपाध्याय और दिनेश धनै के बीच में लड़ाई दिखाई दे रही है.