विकासनगरः जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर अपनी परंपरा, त्योहार और संस्कृति के लिए जाना जाता है. यहां पर समय-समय पर कई तरह के धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है. जिसमें जौनसार-बावर की एक पौराणिक परंपरा थाती-माटी देवी की पूजा भी शामिल है. इसी कड़ी में कोरूवा गांव के महासू मंदिर परिसर में करीब 45 सालों के बाद पांच दिवसीय थाती-माटी का पूजन और महायज्ञ किया गया. जिसमें गांव के प्रत्येक परिवार के एक सदस्य ने 5 दिनों तक व्रत रखा. वहीं, इस पूजन में लोगों की भीड़ उमड़ी रही.
जौनसार-बावर के कोरूवा गांव के महासू मंदिर परिसर में करीब 45 साल बाद बीते 30 अक्टूबर से शुरू हुई थाती-माटी महायज्ञ पूजा पांचवें दिन विधि विधान के साथ समाप्त हो गई है. इस पूजा विधान के दौरान 5 पंडितों ने ज्योति प्रज्ज्वलित की. जिसमें गांव के प्रत्येक परिवार के एक सदस्य ने 5 दिनों तक व्रत रखा और हर दिन 5 बार हवन कुंड में आहुति देकर पूजा अर्चना की. जिसमें सबसे पहले महासू देवता और उसके बाद थाती-माटी देवी समेत पांडवों की पूजा की गई. इस दौरान ग्रामीणों ने महासू देवता और थाती-माटी देवी की आराधना कर सुख समृद्धि की कामना की.
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पंडित संतराम जोशी और स्थानीय ग्रामीण चंद्र सिंह तोमर ने बताया कि जनजाति समाज के लोग थाती-माटी की पूजा करते हैं. करीब 45 से 50 साल बाद कोरूवा गांव में 5 दिनों तक यह पूजा की गई. उन्होंने कहा कि इस पूजा करने से रोग, कष्ट, बीमारियां सभी दूर होती है. साथ ही फसल, पशु, धन, संपदा में बढ़ोतरी होती है. पारंपारिक थाती-माटी का पूजन सुख समृद्धि और खुशहाली के लिए मनाया जाता है. जिसमें व्रती और ग्रामीण देवी-देवताओं का आह्वान कर नृत्य करते हैं.
पर्व के बारे में लोगों की मान्यता
मान्यता के अनुसार जौनसार की भूमि को स्थानीय लोगों देवारा थाती कहा जाता है. जिसकी पूजा वे 15 या बीस साल में करते हैं. जबकि की कोरूवा गांव में ये पूजा 45 साल बाद आयोजित की गई. लोगों का मानना है कि इस पूजा के करने से गांव में आने वाली विपदा दूर हो जाती है और सुख-समृद्धि बनी रहती है. जिसे फसल की अच्छी पैदावार और पशु धन के लिए अच्छा माना जाता है. इस पर्व में गांव के चारों ओर बंधन बांधा जाता है. लोगों द्वारा माना जाता है कि ऐसा करने से गांव को नुकसान नहीं होता है और पूरे गांव में खुशहाली बनी रहती है.