देहरादून: पर्यटन राज्य उत्तराखंड में एक बड़ा तबका प्राइवेट टैक्सी संचालन का है. हर साल इस सेक्टर पर हजारों लोग अपनी आजीविका के लिए आश्रित रहते हैं. कोरोना वायरस के चलते इस साल मार्च महीने से ही पसरे सन्नाटे के चलते इन मध्यम वर्ग के लोगों का हाल बेहाल हो चला है. आइए जानते हैं किन परेशानियों से जूझ रहे हैं प्राइवेट टैक्सी संचालक...
उत्तराखंड में पर्यटक स्थल, साहसिक पर्यटन, धार्मिक पर्यटन और इन सबको जोड़ने वाला यहां का प्राइवेट ट्रांसपोर्ट सिस्टम एक ऐसा सिस्टम है, जिसके माध्यम से लोगों को आवाजाही में परेशानी नहीं होती है. प्राइवेट ट्रांसपोर्ट सिस्टम एक पूरा तंत्र है जो कि हर साल प्रदेश में करोड़ों की इकॉनमी को संचालित करता है. उत्तराखंड में हर साल सर्दी के बाद गर्मी का मौसम आते ही एक बार फिर से लोगों की आवाजाही पहाड़ की तरफ बढ़ जाती है. वहीं चारधाम यात्रा के आगाज के साथ ही प्रदेश में बहार लौट आती है. वहीं इस बार वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के चलते देश में चल रहे लॉकडाउन की वजह से हर क्षेत्र में तबाही आ रही है. इस बार प्रदेश में मौसम बदलने के साथ ना तो बहार लौटी और न ही प्रदेश का वह मिजाज बदला जो कि हर साल अब तक बदल जाया करता था.
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इन सबके बीच एक तबका है प्राइवेट टैक्सी यूनियन के अंतर्गत आने वाले वाहन स्वामी या फिर वाहन संचालकों का है. दरअसल, लॉकडाउन का गहरा प्रभाव तो सभी सेक्टर पर पड़ रहा है, लेकिन प्राइवेट ट्रांसपोर्ट के स्वामियों के लिए अब एक अलग संकट खड़ा हो गया है. असल में इस सेक्टर में काम करने वाले व्यक्ति सभी मध्यम वर्ग के होते हैं. यह लोग लोन पर गाड़ियां खरीदते हैं और साल भर काम करने के बाद उस लोन को चुकता कर अपने परिवार की आजीविका चलाते हैं.
लेकिन इस साल लॉकडाउन के कहर ने इनकी रोजी रोटी पर पानी फेर दिया है. जिससे बैंक का लोन को चुकाने का संकट खड़ा हो गया है. बता दें कि देहरादून में मौजूद उत्तराखंड की सबसे बड़ी टैक्सी यूनियन दून गढ़वाल ट्रैक्टर, जीप, कमांडर मालिक कल्याण संचालन समिति में तकरीबन 253 वाहन हैं. इनमें से 90 फीसदी वाहन ऐसे हैं, जो कि लोन पर खरीदे गए हैं.
जब ईटीवी भारत की टीम ने यूनियन के सदस्य और लोन पर गाड़ी खरीद चुके रूप सिंह बिष्ट ने जानकारी ली तो उन्होंने बताया कि 2014 में एक गाड़ी खरीदी थी और आज तक कभी उसकी किस्त नहीं रुकी थी, लेकिन इस बार फरवरी से उनकी किस्तें रुकी हुई हैं. उन्होंने बताया कि एक तरफ खर्चा लगातार बढ़ता जा रहा है. ऐसे में उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि वह अपने परिवार का भरण- पोषण कैसे करें.
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वहीं दूसरी तरफ यूनियन के पदाधिकारी राजेश कुमार कश्यप ने बताया कि यूनियन में अधिकतर वाहन स्वामियों का हाल बेहद बुरा है. उन्होंने यह भी जानकारी दी कि 253 में से तकरीबन 225 गाड़ियां लोन पर ही खरीदी गई हैं. लॉकडाउन के दौरान ना तो कोई व्यवसाय हुई है और गाड़ी की किश्तें भी देनी पड़ रही हैं.
हालांकि सरकार द्वारा ईएमआई और लोन पर राहत दी गई है, लेकिन इन लोगों का कहना है कि यह राहत भी उल्टा वाहन स्वामियों पर भार है. ऐसे में उन्होंने सरकार से गुहार लगाई है कि सरकार उन्हें टैक्स में छूट दें साथ ही उनके लिए कुछ ऐसा प्रावधान करे जिससे वाहन स्वामियों के कंधों पर इतना ज्यादा अतिरिक्त भार ना पड़े.