देहरादून: उत्तराखंड में निकाय चुनाव को लेकर भले ही अक्टूबर-नवंबर तक का लक्ष्य रखा गया हो, लेकिन मौजूदा परिस्थितियों के लिहाज से समय पर चुनाव होना मुश्किल दिखाई दे रहा है. हालांकि, उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव संपन्न होने के चलते उत्तराखंड में भी राजनेताओं के बीच आगामी चुनाव को लेकर बेकरारी बढ़ गई है. उधर चुनाव के लिए आरक्षण तय करने समेत चुनावी कार्यक्रम पर भी नूरा कुश्ती शुरू हो गयी है.
यूपी में हो चुके निकाय चुनाव, उत्तराखंड में इंतजार: पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव संपन्न होते ही उत्तराखंड में भी आगामी चुनाव को लेकर बहस तेज हो गई है. दरअसल, प्रदेश में अक्टूबर और नवंबर महीने के दौरान नगर निकाय चुनाव होने प्रस्तावित हैं. जिसके लिए अधिकारियों के स्तर पर होमवर्क भी शुरू कर दिया है. हालांकि, मौजूदा परिस्थितियों के लिहाज से बचे हुए समय में नगर निकाय चुनाव को संपन्न करवा पाना मुश्किल दिखाई दे रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि राज्य में अभी नगर निकाय चुनाव के लिए ओबीसी आरक्षण पर ही कोई फैसला नहीं हो पाया है. लिहाजा सबसे पहले आरक्षण की स्थिति स्पष्ट की जाएगी. उसके बाद ही चुनाव के लिए रूपरेखा तैयार की जा सकेगी.
समर्पित आयोग करेगा ओबीसी आरक्षण को लेकर अध्ययन: सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के अनुसार देशभर में नगर निकाय चुनाव के दौरान ओबीसी आरक्षण को लेकर समर्पित आयोग गठित करने और 3 चरणों में चुनाव प्रक्रिया तक पहुंचने के निर्देश दिए गए हैं. इसमें पहला चरण समर्पित आयोग का गठन करना है. जिसे साल 2022 में उत्तराखंड राज्य की तरफ से किया जा चुका है. दूसरा चरण आयोग की तरफ से सरकार को अपने अध्ययन के आधार पर रिपोर्ट को प्रस्तुत करना है. जिससे अभी राज्य काफी दूर है, क्योंकि, आयोग ने अभी अध्ययन या आंकड़े जुटाने का काम पूरा ही नहीं किया है. तीसरा चरण राज्य सरकार की तरफ से उक्त आंकड़ों के अध्ययन के आधार पर ओबीसी आरक्षण की स्थिति को लेकर स्वीकृति देना है. इस तरह राज्य अभी पहले चरण में ही है. आरक्षण को स्पष्ट करने की स्थिति अभी बेहद दूर है.
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बता दें सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र सरकार के एक मामले में आरक्षण पर सुनवाई के दौरान देशभर में आरक्षण की स्थिति बेहतर या स्पष्ट करने के लिए समर्पित आयोग गठित करने के लिए कहा था. आयोग का गठन मई 2022 में किया गया. राजनीतिक पिछड़ेपन से संबंधित स्थितियों को आयोग देखेगा और अनुभवजन्य आंकड़े एकत्रित करेगा.
समर्पित आयोग की तरफ से पूर्व में हरिद्वार जिले की आरक्षण स्थिति का आकलन किया जा चुका है. जिसके बाद हरिद्वार में निकाय के चुनाव भी करवाए गए. अब राज्य के बाकी जिलों में भी निकाय चुनाव होने हैं. समर्पित आयोग की तरफ से देहरादून, हरिद्वार, टिहरी, चंपावत, उधम सिंह नगर और नैनीताल जिले का दौरा कर यहां के आंकड़ों को जुटाने की कोशिश की गई है. बड़ी बात यह है कि शहरी विकास विभाग से भी आंगनबाड़ी और तमाम दूसरे आंकड़े मांगे गए हैं, जो अब तक संबंधित विभाग की तरफ से नहीं दिए गए हैं.
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राज्य में फिलहाल ओबीसी के आरक्षण की स्थिति को स्पष्ट करने के लिए ही समर्पित आयोग आंकड़े जुटा रहा है. इस पूरे काम में करीब 1 से 2 महीने का वक्त लग सकता है. यही नहीं रिपोर्ट तैयार कर शासन को प्रेषित करने तक में भी करीब 1 महीने का वक्त लग सकता है. इस तरह अगस्त या सितंबर तक रिपोर्ट पर काम होना संभव है. इसके बाद सरकार को इस पर अध्ययन के बाद अंतिम निर्णय लेना है. फिर चुनाव आयोग को भी चुनाव कराने के लिए वक्त की जरूरत होगी. यही सब वजह हैं कि समय पर चुनाव होने की संभावना कम दिखाई दे रही है. हालांकि, इन सब स्थितियों के बीच कांग्रेस ने स्पष्ट किया है कि राज्य सरकार चुनाव से घबरा गई है. जिसके कारण वह चुनाव टालना चाहती है. यही, नहीं आरक्षण की स्थिति में भी सरकार पर गड़बड़ी कर चुनाव को प्रभावित करने का आरोप कांग्रेस ने लगाया है.
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कर्नाटक चुनाव के बाद कांग्रेस उत्साहित है. वह अब उत्तराखंड में निकाय चुनाव के परिणाम बदलने की कोशिशों में जुट गई है. वहीं, निकाय चुनाव के मामले में उत्तराखंड भाजपा किसी भी तरह की ढील देने के मूड में नहीं है. भाजपा प्रदेश प्रवक्ता नवीन ठाकुर ने कहा कांग्रेस चुनावी स्थिति को अच्छी तरह से जानती है. उसे पता है कि भाजपा के सामने वह कहीं भी नहीं ठहर सकती है. जिसके कारण वह बेवजह के आरोप लगाकर जनता का ध्यान भटकाने का काम कर रही है.