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जल-जंगल-जमीन के लिए जीते थे सुंदरलाल बहुगुणा, पहाड़ों की थी चिंता

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Published : May 21, 2021, 1:55 PM IST

Updated : May 21, 2021, 2:05 PM IST

मशहूर पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा ने अपना पूरा जीवन जल-जंगल-जमीन को समर्पण कर दिया. उन्हें अपने जीवन के आखिरी पल तक पर्यावरण और पहाड़ की चिंता थी.

सुंदरलाल बहुगुणा
सुंदरलाल बहुगुणा

ऋषिकेश: मशहूर पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का जन्‍म 9 जनवरी, 1927 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के सिलयारा (मरोड़ा) नामक स्‍थान में हुआ था. प्राथमिक शिक्षा के उपरांत वे लाहौर चले गए और वहीं सनातन धर्म कॉलेज से उन्‍होंने बीए किया. लाहौर से लौटकर काशी विद्यापीठ में एमए पढ़ने लगे. लेकिन पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए. पत्‍नी विमला नौटियाल के सहयोग से इन्‍होंने सिलयारा में 'पर्वतीय नवजीवन मंडल' की स्‍थापना की. आजादी के उपरांत 1949 में मीराबेन व ठक्‍कर बाप्‍पा के संपर्क में आने के बाद वे दलित विद्यार्थियों के उत्‍थान के लिए कार्य करने लगे. टिहरी में ठक्‍कर बाबा हॉस्टल की स्थापना की.

1971 में शराब की दुकानों के खिलाफ किया अनशन

1971 में शराब की दुकानें खोलने के खिलाफ उन्‍होंने सोलह दिन तक अनशन किया. चंडी प्रसाद भट्ट द्वारा शुरू किए गए चिपको आंदोलन में पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा भी जुड़ गए. आंदोलन को विस्‍तार दिया और इसे जल, जंगल तथा जमीन को जीवन की सुरक्षा से जोड़ दिया. बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्‍था ने 1980 में इनको पुरस्‍कृत किया. सन 1981 में भारत सरकार ने इन्‍हें पद्मश्री पुरस्‍कार प्रदान किया, जिसे उन्‍होंने यह कह कर स्‍वीकार नहीं किया कि जब तक पेड़ों का कटान जारी है, मैं खुद को इस सम्‍मान के योग्‍य नहीं समझता हूं.

5 हजार किलोमीटर की पदयात्रा की

सुंदरलाल बहुगुणा ने चिपको आंदोलन से गांव-गांव में जागरूकता लाने के लिए 1981 से 1983 तक 5,000 किमी लंबी ट्रांस-हिमालय पदयात्रा की. 'चिपको आंदोलन' का ही परिणाम था कि 1980 में वन संरक्षण अधिनियम बना और केंद्र सरकार को पर्यावरण मंत्रालय का गठन करना पड़ा.

सुंदरलाल बहुगुणा 13 साल के थे और उस जमाने में पूरे देश में गांधी की आंधी चल रही थी. बापू से प्रभावित होकर बहुगुणा भी आजादी के आंदोलन में शामिल हो गए. टिहरी के ही श्रीदेव सुमन सुंदरलाल बहुगुणा के इस आंदोलन के प्रति प्रेरक थे. चिपको आंदोलन के दौरान जब सरकार कहती थी-

क्या हैं जंगल के उपकार

लीसा, लकड़ी और व्यापार

तब आंदोलनकारियों का जवाब होता था...

क्या हैं जंगल के उपकार

मिट्टी, पानी और बयार

जिंदा रहने के आधार।

सुंदरलाल बहुगुणा को अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया. इनमें से कुछ इस प्रकार हैं.

1985 - जमनालाल बजाज पुरस्कार

1987 - राइट लाइवलीहुड पुरस्कार (चिपको आंदोलन के लिए)

1987 - शेर-ए-कश्मीर पुरस्कार

1987 - सरस्वती सम्मान

1989 - डॉक्टरेट ऑफ सोशल साइंसेज की मानद उपाधित आईआईटी रुड़की द्वारा

1999 - गांधी सेवा सम्मान

ऋषिकेश: मशहूर पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का जन्‍म 9 जनवरी, 1927 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले के सिलयारा (मरोड़ा) नामक स्‍थान में हुआ था. प्राथमिक शिक्षा के उपरांत वे लाहौर चले गए और वहीं सनातन धर्म कॉलेज से उन्‍होंने बीए किया. लाहौर से लौटकर काशी विद्यापीठ में एमए पढ़ने लगे. लेकिन पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए. पत्‍नी विमला नौटियाल के सहयोग से इन्‍होंने सिलयारा में 'पर्वतीय नवजीवन मंडल' की स्‍थापना की. आजादी के उपरांत 1949 में मीराबेन व ठक्‍कर बाप्‍पा के संपर्क में आने के बाद वे दलित विद्यार्थियों के उत्‍थान के लिए कार्य करने लगे. टिहरी में ठक्‍कर बाबा हॉस्टल की स्थापना की.

1971 में शराब की दुकानों के खिलाफ किया अनशन

1971 में शराब की दुकानें खोलने के खिलाफ उन्‍होंने सोलह दिन तक अनशन किया. चंडी प्रसाद भट्ट द्वारा शुरू किए गए चिपको आंदोलन में पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा भी जुड़ गए. आंदोलन को विस्‍तार दिया और इसे जल, जंगल तथा जमीन को जीवन की सुरक्षा से जोड़ दिया. बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्‍था ने 1980 में इनको पुरस्‍कृत किया. सन 1981 में भारत सरकार ने इन्‍हें पद्मश्री पुरस्‍कार प्रदान किया, जिसे उन्‍होंने यह कह कर स्‍वीकार नहीं किया कि जब तक पेड़ों का कटान जारी है, मैं खुद को इस सम्‍मान के योग्‍य नहीं समझता हूं.

5 हजार किलोमीटर की पदयात्रा की

सुंदरलाल बहुगुणा ने चिपको आंदोलन से गांव-गांव में जागरूकता लाने के लिए 1981 से 1983 तक 5,000 किमी लंबी ट्रांस-हिमालय पदयात्रा की. 'चिपको आंदोलन' का ही परिणाम था कि 1980 में वन संरक्षण अधिनियम बना और केंद्र सरकार को पर्यावरण मंत्रालय का गठन करना पड़ा.

सुंदरलाल बहुगुणा 13 साल के थे और उस जमाने में पूरे देश में गांधी की आंधी चल रही थी. बापू से प्रभावित होकर बहुगुणा भी आजादी के आंदोलन में शामिल हो गए. टिहरी के ही श्रीदेव सुमन सुंदरलाल बहुगुणा के इस आंदोलन के प्रति प्रेरक थे. चिपको आंदोलन के दौरान जब सरकार कहती थी-

क्या हैं जंगल के उपकार

लीसा, लकड़ी और व्यापार

तब आंदोलनकारियों का जवाब होता था...

क्या हैं जंगल के उपकार

मिट्टी, पानी और बयार

जिंदा रहने के आधार।

सुंदरलाल बहुगुणा को अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया. इनमें से कुछ इस प्रकार हैं.

1985 - जमनालाल बजाज पुरस्कार

1987 - राइट लाइवलीहुड पुरस्कार (चिपको आंदोलन के लिए)

1987 - शेर-ए-कश्मीर पुरस्कार

1987 - सरस्वती सम्मान

1989 - डॉक्टरेट ऑफ सोशल साइंसेज की मानद उपाधित आईआईटी रुड़की द्वारा

1999 - गांधी सेवा सम्मान

Last Updated : May 21, 2021, 2:05 PM IST
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