देहरादून: पहाड़ की बेटी के हौसले भी पहाड़ जैसे ही अडिग होते हैं. वह विपरीत परिस्थितियों में भी प्रतिकूल हवा में बहना बखूबी जानती है. हम बात कर रहे हैं अपने जमाने में एक मेधावी छात्रा, तेज-तर्रार छात्र नेता और महिलाओं की आवाज को बुलंद करने वाली हंसी प्रहरी की, जिसने सारी परेशानियों अकेली झेली और परिवार से मिलने के बाद उनके चेहरे पर शिकन तक नहीं दिखाई दी. ये हम नहीं उनके परिजन कह रहे हैं. जिन्हें हंसी ने कभी अपनी परेशानियों से रूबरू तक नहीं होने दिया.
ईटीवी भारत पर खबर प्रकाशित होने के बाद हंसी के भाई अनुराग ने ईटीवी भारत से संपर्क किया और उन्होंने कहा कि उन्हें बेहद दुख हो रहा है कि उनकी बहन इस हालत में है. अनुराग ने बताया कि वह चाहते हैं कि उनकी बहन की स्थिति सुधरे और वह अच्छा जीवन बिताए.
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हालत देख परिजन भी हैरान
हंसी के भाई ने अनुराग ने बताया कि यह बात साल 2002 या 2003 की है जब उनकी बहन अल्मोड़ा जिले के जिस क्षेत्र वे रहती थी. उस क्षेत्र की सबसे पढ़ी लिखी छात्रा थी. इतना ही नहीं उनके साथ- साथ पूरे क्षेत्र में उनके पूरे परिवार की पढ़ाई-लिखाई का डंका बजता था. उन्होंने बताया कि उस समय के प्रमुख नेता उनके घर पर आकर उनकी बहन यानी हंसी से चुनाव प्रचार की स्पीच लिखवाया करते थे और उसके एवज में वह उसे कुछ पैसे दिया करते थे.
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परिवार के लिए नौकरी करती थी हंसी
भाई ने बताया कि सब कुछ बहुत सही चल रहा था उनकी उम्र लगभग 10 से 12 साल की थी, लेकिन परिवार में कमाने वाला ऐसा कोई सदस्य नहीं था. जिसकी बदौलत वह अच्छी शिक्षा ग्रहण कर सकें. लिहाजा उनकी बहन ने ना केवल पढ़ाई की बल्कि कुमाऊं यूनिवर्सिटी में डबल एमए करने के बाद वहीं पर नौकरी भी की. इतना ही नहीं जब नौकरी से पैसे आने लगे तो उनकी बहन ने खुद उन्हें सारे सब्जेक्ट दिलवाए, उससे पहले भी उनकी बहन कई जगह पर कार्य कर रही थी.
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घर वालों के लिए काफी कुछ किया
वह चाहती थी कि भले ही वे आर्ट साइड लें, लेकिन उनके भाई और बहन साइंस साइड से ही पढ़ाई करें. उनकी बहन ने तमाम परेशानियों को झेलते हुए ना केवल उनकी पढ़ाई को पूरा करवाया, बल्कि परिवार का भी लालन-पालन किया. उनकी बहन ने कई घरों में काम भी किया, लेकिन वह पढ़ाई में इतनी परिपक्व थी कि उनकी नौकरी कई जगह पर लगी. लेकिन परिवार की वजह से उन्हें हर वक्त हर समय ऐसा लगा कि अगर वह पूरा समय नौकरी करेंगे तो परिवार को समय नहीं दे पाएंगे. लिहाजा उनकी जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव आए. उनके भाई कहते हैं कि हम उम्र में बहुत उनसे छोटे हैं, लिहाजा उस वक्त हमें इस बात का जरा भी इल्म नहीं था कि हमारी बहन हमारे लिए क्या कर रही है.
हंसी नहीं करना चाहती थी शादी
हंसी के भाई अनुराग ने बताया कि साल 2003 या 2004 की यह बात रही होगी जब हंसी उनके पड़ोस की एक परिवार के सदस्य के संपर्क में आई और उन्होंने एक इंसान से उन्हें मिलवाया. अनुराग कहते हैं कि उनकी बहन इतनी परिवार के प्रति समर्पित थी कि वह चाहती थी कि सब की शादी होने के बाद ही वे शादी करेंगी. वह पिता से हर वक्त एक ही बात कहती थी कि उन्हें अभी शादी नहीं करनी है, लिहाजा उन्हें भी लगता था कि उनकी बहन उनके लिए ही जी रही है.
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पिता के इच्छा के विरूद्ध जाकर की शादी
लेकिन अचानक 2003 में उनकी जिंदगी में मोड़ आया और पास ही रहने वाले एक सदस्य ने उन्हें एक व्यक्ति से मिलवाया. वह व्यक्ति आर्मी में जेसीओ पद पर तैनात था और उनकी ड्यूटी लखनऊ में थी. लिहाजा पिता के बार-बार मना करने के बावजूद भी उन्होंने मंदिर में शादी करा दी. जिसके बाद हंसी अपने पति के साथ लखनऊ रहने चली गई.
भाई ने भी कह दी शादी के लिए हां
भाई बताते हैं कि उन्हें कई बार मनाया गया कि वह यह शादी ना करें लेकिन वह नहीं मानी, अब उन्हें यह नहीं मालूम कि वह ऐसा क्यों कर रही थी किसके कहने पर कर रही थी. लेकिन क्योंकि वह छोटे थे लिहाजा उन्होंने भी उस वक्त सबकी हां में हां मिलाई और लगभग साल या दो साल बाद उनकी बहन की जब वापसी हुई तो उन्होंने साफ कहा कि अभी फिलहाल वह लखनऊ नहीं जाना चाहती हैं. कुछ समय बाद हंसी की एक बेटी भी हुई.
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उनके भाई बताते हैं कि जब बहन की बेटी यानी उनकी भांजी का जन्म अल्मोड़ा में हुआ तो उन्हें लगा कि अब उनकी बहन यहीं रहेंगी. लेकिन वह हमेशा लखनऊ वापस जाती रहती थी. यह सिलसिला लगभग 2009 या 2010 तक चलता रहा. जिसके बाद बहन ये बोलकर चली गई की वह अपने पति के पास जा रही हैं. इस बीच वे समय- समय पर वहां आती रहती थी. बात 2012 या 2013 के बीच की है, जब उन्हें किसी ने बताया कि उन्होंने उनकी बहन को हरिद्वार के रेलवे स्टेशन पर सोते हुए देखा है. जिस बात का उन्हें यकीन नहीं हुआ क्योंकि उनकी बहन हर 6 या 7 महीने बाद अल्मोड़ा या उनके पास दिल्ली चली आती थी.
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देने पर भी हंसी नहीं लेती थी कपड़े और फोन
भाई अनुराग ने बताया कि हंसी को कई बार मोबाइल दिए गए नए कपड़े दिए गए, लेकिन वह कुछ भी लेने से मना कर देती थी. उनका यही कहना था कि वह हरिद्वार में शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही हैं. वे भी उनकी बातों का विश्वास करते रहें और साल 2012 13 के बाद हंसी से उनका संपर्क अचानक टूट गया. लेकिन वह कुछ सालों बाद फिर से घर पर आना- जाना करती रही. भाई ने बताया कि उनकी हालत को देखकर इस बात को वह अक्सर महसूस कर रहे थे कि उनकी सेहत सही नहीं है, लेकिन वह ना तो इलाज करवाती और ना ही उनके द्वारा दिए गए पैसे लेती और ना ही कपड़े पहनती, लिहाजा अगर उनसे ज्यादा पूछताछ करते तो वह किसी से भी बात नहीं करती थी.
बता दें कि हंसी की खबर को ईटीवी भारत ने प्रमुखता से उठाया, जिसके बाद तमाम राजनीतिक दल और सामाजिक संस्थाओं ने मदद का भरोसा दिया है. वहीं भले ही हंसी ने शादी के बाद अलग रहकर अपने परिजनों को परेशानियों के बारे में न बताया हो, क्यों कि वे अपनी जिंदगी की परेशानियों को परिजनों को बताकर और परेशान नहीं करना चाहती हो. लेकिन पहाड़ की इस बेटी ने सारी मुसीबतों को खुद ही आजीवन झेलने की ठान ली, जिसे उसने अपनी जिंदगी की नियति मान लिया था.