देहरादून: उत्तराखंड में इंडियन फॉरेस्ट सर्विस (IFS) के अफसर पिछले कुछ समय से खासे सुर्खियों में हैं. चर्चाएं उन मामलों को लेकर रही हैं जिनके कारण कई बार शासन को बैकफुट पर आना पड़ा है. इससे शासन वर्सेस वन विभाग के हालत बने हैं. ताजा मामला IFS अफ़सर अभिलाषा सिंह और मनोज चंद्रन का है, जिन्होंने शासन को अपने जवाब के जरिये परेशानी में डाल दिया है. ये कोई पहला मामला नहीं है. इससे पहले भी कोर्ट का दरवाजा खटखटाकर आईएफएस अफ़सर राजीव भरतरी पूरे सिस्टम को हिला चुके हैं.
उत्तराखंड वन विभाग में बेहद ईमानदार छवि के माने जाने वाले आईएफएस अधिकारी मनोज चंद्रन ने शासन को अपना जवाब दे दिया है. दरअसल, मनोज चंद्रन को फॉरेस्टर से डिप्टी डायरेक्टर के करीब 1193 पद पर प्रमोशन और करीब 500 कर्मियों को नियमित करने के लिए शासन ने कारण बताओ नोटिस दिया था. जानकार बताते हैं कि कारण बताओ नोटिस के जवाब में मनोज चंद्रन ने नोटिस में दिए आंकड़ों पर सवाल उठाए हैं. इसके बाद अब प्रमोशन के पदों की संख्या को लेकर फिर से आकलन किया जा रहा है. उधर दूसरी तरफ 500 लोगों को नियमित किए जाने के मामले में भी तत्कालीन प्रमुख सचिव आनंद वर्धन की अध्यक्षता में मीटिंग आहूत होने और इसमें नियमितीकरण को लेकर निर्देशित किए जाने का जिक्र भी मनोज चंद्रन ने अपने जवाब में किया है. मनोज चंद्रन के मजबूती के साथ जवाब देने के बाद शासन के सामने पुनर्विचार की स्थिति बन गयी है.
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वन विभाग में ही दूसरा मामला तेजतर्रार आईएफएस अधिकारी अभिलाषा सिंह को लेकर हैं, जिन्हें तहसील दिवस पर मेटरनिटी लीव के कारण नहीं पहुंचने को लेकर नोटिस जारी किया गया. खास बात यह है कि इस मामले में अभिलाषा सिंह ने कैट का दरवाजा खटखटाया. इसमें जो बात सामने आई वह बेहद चौंकाने वाली थी. बताया गया कि आईएफएस अधिकारी को जो चार्जसीट दी गई उसके लिए मुख्यमंत्री से कोई अनुमति ही नहीं ली गई. जिसके बाद कैट ने अभिलाषा सिंह को कुछ राहत दी है.
वन विभाग के अधिकारियों ने बढ़ाई मुश्किलें
- इससे पहले राजीव भरतरी और विनोद सिंघल के बीच हॉफ पद को लेकर लड़ाई सभी ने देखी है. इस मामले में भी शासन ने राजीव भरतरी को हॉफ पद से हटाने के आदेश किया. जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट से अपने पक्ष में आदेश लाकर शासन को बैक फुट पर खड़ा किया. आईएफएस अधिकारियों के बीच की यह सीधी खींचतान और शासन से दो दो हाथ को सभी ने देखा.
- इसी तरह शासन ने आईएफएस अधिकारी पराग मधुकर धकाते के हाथियों को दूसरे राज्य में भेजे जाने को लेकर भी फाइल चलाई. बताया गया कि चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन रहने के दौरान जरूरी अनुमति नहीं लिए जाने के तथ्यों को इसमें रखा गया, लेकिन यहां भी शासन के अधिकारी असफल ही रहे.
- कॉर्बेट नेशनल पार्क में अवैध कार्यों को लेकर भी आईएफएस अधिकारी निशाने पर रहे. जिसमें प्रमोटी आईएफएस किशन चंद जेल गए. वहीं चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन रहे जेएस सुहाग को निलंबित किया गया, हालांकि बाद में उनका निधन हो गया.
- शासन स्तर पर दो आईएफएस अधिकारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दिए जाने की भी संस्तुति की गई. इससे जुड़ी फाइल भी मुख्यमंत्री कार्यालय भेजी गई, लेकिन उस पर भी कोई विचार नहीं हुआ.
जानकार बताते हैं कि शासन स्तर पर आईएफएस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई किए जाने की फाइलें चलने से कई अफसरों में शासन के खिलाफ नाराजगी भी बढ़ी है. खासतौर पर उन मामलों में जहां अधिकारियों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.
उत्तराखंड में अफसरों की मनमानी का मामला विधानसभा में भी कई बार सामने आया है. विधायकों द्वारा विशेषाधिकार हनन के तहत अधिकारियों के खिलाफ जांच भी करवाई गई. यही नहीं विधानसभा अध्यक्ष की तरफ से भी खुद अधिकारियों को कड़े शब्दों में निर्देश जारी किए गए हैं. एक तरफ मंत्री, विधायक और अधिकारियों के बीच की यह लड़ाई सार्वजनिक होती हुई दिखाई दी है तो वहीं अफसरों के बीच में भी सीधी जंग राज्य के विकास के लिए परेशानी बढ़ा रही है. उधर दूसरी तरफ आईएफएस अधिकारियों के खिलाफ बढ़ती कार्रवाई के बीच अफसर के कोर्ट का रास्ता इख्तियार कर सरकार को भी परेशानियों में डाल रहे हैं.