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देवभूमि की महिलाओं की सुंदरता में चार-चांद लगाती है नथ, दुनिया है मुरीद

उत्तराखंड के पारंपरिक परिधान और आभूषण अपने आप में बेहद ही खास हैं. बात की जाए उत्तराखण्ड की पारंपरिक नथ (नथुली) की तो गढ़वाल और कुमाऊं मंडल की संस्कृति में नथ का अपना अलग की महत्व है.

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देवभूमि की महिलाओं की सुंदरता में चार- चांद लगाता है नथ.
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Published : Dec 11, 2019, 8:36 AM IST

Updated : Dec 11, 2019, 9:20 AM IST

देहरादून: देवभूमि की कला और विरासत किसी से छुपी नहीं है,जो अपने आपमें अतीत को समेटे हुए है. वहीं प्रदेश में महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले आभूषण भी उन्हें बेहद खास बनाता है. जिन्हें वे मांगलित कार्यों में अकसर पहनी दिखाई देती हैं. जो उनकी खूबसूरती को चार- चांद लगा देता है.

देवभूमि की महिलाओं की सुंदरता में चार- चांद लगाता है नथ.
गौर हो कि उत्तराखंड के पारंपरिक परिधान और आभूषण अपने आप में बेहद ही खास हैं. बात की जाए तो उत्तराखण्ड की पारंपरिक नथ (नथुली) की तो गढ़वाल और कुमाऊं मंडल की संस्कृति में नथ का अपना अलग की महत्व है. गढ़वाल हो या कुमाऊं दोनों ही मंडलों में हर शुभ कार्य में सुहागिन महिलाएं नथ जरूर पहनती हैं. नथ सुहागिन होने का प्रतीक होने साथ ही संपन्नता का प्रतीक भी है. जिसके महत्व को देखते हुए देवभूमि के लोकगीतों पर जिनका जिक्र होता रहा है. महिलाओं के नाक में नथ पहनने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है और आज भी कुमाऊं और गढ़वाल में अधिकतर महिलाएं नाक में नथ पहने दिखाई देती हैं. खासकर पहाड़ की शादियों में दुल्हन शादी के दिन पारंपरिक नथ पहन कर ही शादी करती है.
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नथ पहनी देवभूमि की महिला.

पढ़ें-घोटाला: प्रधान पर गंभीर आरोप, नैनीताल HC ने सचिव पंचायती राज को किया तलब

उत्तराखंड की पारंपरिक नथ के संबंध में बात करते हुए प्रदेश की जानी-मानी लोक गायिका पद्मश्री बसंती देवी बिष्ट ने बताया कि पौराणिक समय में सुहागनों के लिए 24 घंटे नथ धारण करना अनिवार्य था. लेकिन आधुनिकता के इस दौर में जहां नथ के डिजाइन में परिवर्तन आया है. वहीं महिलाओं ने भी इसे सिर्फ खास मौकों पर पहने जाने वाला आभूषण बना दिया है. आज के दौर में सुहागिन सिर्फ मांगलिक कार्य और तीज-त्योहारों के अवसर पर ही नथ पहनती हैं. वहीं प्रदेश की पारंपरिक नथ के डिजाइन में आए बदलाव के बारे में सराफा व्यापारियों बताते हैं कि सोने के दाम बढ़ने की वजह से अब गढ़वाल और कुमाऊं की पारंपरिक नथ पहले के मुकाबले आकार में छोटी हो चुकी हैं. लेकिन अब भी इनकी काफी डिमांड है. यहां तक कि बॉलीवुड की कई फिल्मों में भी अभिनेत्रियां इस आभूषण को पहनी दिखाई दी हैं.

जहां पहले गढ़वाल और कुमाऊं मंडल में 20-25 ग्राम तक कि नथ तैयार कराई जाती थी. वही अब लोग गढ़वाल में 3 से 15 ग्राम की नथ और कुमाऊं में 10- 20 ग्राम तक की नथ बनवा रहे हैं. कुल मिलाकर देखा जाए तो अब नथों का आकार छोटा हो चुका है. बता दें कि गढ़वाल मंडल की टिहरी की नथों का आकार चौड़ा होता और इसमें सोने की तार में खूबसूरत मोतियों और नगों का काम होता है. वहीं दूसरी तरफ कुमाऊं की नथ आकर में काफी बढ़ी होती है और इसमें मोतियों और नगों का काम भी कुछ अधिक किया जाता है. वहीं कुमाऊं की नथों का आकार में बढ़ा और वजन भी कुछ ज्यादा होता है. समय के साथ अब कम वजन के नथों की डिमांड बढ़ गई हैं.

देहरादून: देवभूमि की कला और विरासत किसी से छुपी नहीं है,जो अपने आपमें अतीत को समेटे हुए है. वहीं प्रदेश में महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले आभूषण भी उन्हें बेहद खास बनाता है. जिन्हें वे मांगलित कार्यों में अकसर पहनी दिखाई देती हैं. जो उनकी खूबसूरती को चार- चांद लगा देता है.

देवभूमि की महिलाओं की सुंदरता में चार- चांद लगाता है नथ.
गौर हो कि उत्तराखंड के पारंपरिक परिधान और आभूषण अपने आप में बेहद ही खास हैं. बात की जाए तो उत्तराखण्ड की पारंपरिक नथ (नथुली) की तो गढ़वाल और कुमाऊं मंडल की संस्कृति में नथ का अपना अलग की महत्व है. गढ़वाल हो या कुमाऊं दोनों ही मंडलों में हर शुभ कार्य में सुहागिन महिलाएं नथ जरूर पहनती हैं. नथ सुहागिन होने का प्रतीक होने साथ ही संपन्नता का प्रतीक भी है. जिसके महत्व को देखते हुए देवभूमि के लोकगीतों पर जिनका जिक्र होता रहा है. महिलाओं के नाक में नथ पहनने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है और आज भी कुमाऊं और गढ़वाल में अधिकतर महिलाएं नाक में नथ पहने दिखाई देती हैं. खासकर पहाड़ की शादियों में दुल्हन शादी के दिन पारंपरिक नथ पहन कर ही शादी करती है.
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नथ पहनी देवभूमि की महिला.

पढ़ें-घोटाला: प्रधान पर गंभीर आरोप, नैनीताल HC ने सचिव पंचायती राज को किया तलब

उत्तराखंड की पारंपरिक नथ के संबंध में बात करते हुए प्रदेश की जानी-मानी लोक गायिका पद्मश्री बसंती देवी बिष्ट ने बताया कि पौराणिक समय में सुहागनों के लिए 24 घंटे नथ धारण करना अनिवार्य था. लेकिन आधुनिकता के इस दौर में जहां नथ के डिजाइन में परिवर्तन आया है. वहीं महिलाओं ने भी इसे सिर्फ खास मौकों पर पहने जाने वाला आभूषण बना दिया है. आज के दौर में सुहागिन सिर्फ मांगलिक कार्य और तीज-त्योहारों के अवसर पर ही नथ पहनती हैं. वहीं प्रदेश की पारंपरिक नथ के डिजाइन में आए बदलाव के बारे में सराफा व्यापारियों बताते हैं कि सोने के दाम बढ़ने की वजह से अब गढ़वाल और कुमाऊं की पारंपरिक नथ पहले के मुकाबले आकार में छोटी हो चुकी हैं. लेकिन अब भी इनकी काफी डिमांड है. यहां तक कि बॉलीवुड की कई फिल्मों में भी अभिनेत्रियां इस आभूषण को पहनी दिखाई दी हैं.

जहां पहले गढ़वाल और कुमाऊं मंडल में 20-25 ग्राम तक कि नथ तैयार कराई जाती थी. वही अब लोग गढ़वाल में 3 से 15 ग्राम की नथ और कुमाऊं में 10- 20 ग्राम तक की नथ बनवा रहे हैं. कुल मिलाकर देखा जाए तो अब नथों का आकार छोटा हो चुका है. बता दें कि गढ़वाल मंडल की टिहरी की नथों का आकार चौड़ा होता और इसमें सोने की तार में खूबसूरत मोतियों और नगों का काम होता है. वहीं दूसरी तरफ कुमाऊं की नथ आकर में काफी बढ़ी होती है और इसमें मोतियों और नगों का काम भी कुछ अधिक किया जाता है. वहीं कुमाऊं की नथों का आकार में बढ़ा और वजन भी कुछ ज्यादा होता है. समय के साथ अब कम वजन के नथों की डिमांड बढ़ गई हैं.

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देहरादून: देवभूमि की कला और विरासत किसी से छुपी नहीं है,जो अपने आपमें अतीत को समेटे हुए है. वहीं प्रदेश में महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले आभूषण भी उन्हें बेहद खास बनाता है. जिन्हें वे मांगलित कार्यों में अकसर पहनी दिखाई देती हैं. जो उनकी खूबसूरती को चार- चांद लगा देता है. 

गौर हो कि उत्तराखंड के पारंपरिक परिधान और आभूषण अपने आप में बेहद ही खास हैं. बात की जाए उत्तराखण्ड की पारंपरिक नथ (नथुली) की तो गढ़वाल और कुमाऊं मंडल की संस्कृति में नथ का अपना अलग की महत्व है. गढ़वाल हो या कुमाऊं दोनों ही मंडलों में हर शुभ कार्य में सुहागिन महिलाएं नथ जरूर पहनती हैं. नथ सुहागिन होने का प्रतीक होने साथ ही संपन्नता का  प्रतीक भी है. जिसके महत्व को देखते हुए देवभूमि के लोकगीतों पर जिनका जिक्र होता रहा है. महिलाओं के नाक में नथ पहनने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है और आज भी कुमाऊं और गढ़वाल में अधिकतर महिलाएं नाक में नथ पहने दिखाई देती हैं. खासकर पहाड़ की शादियों में दुल्हन शादी के दिन पारंपरिक नथ पहन कर ही शादी करती है. 

उत्तराखंड की पारंपरिक नथ के संबंध में बात करते हुए प्रदेश की जानी-मानी लोक गायिका पद्मश्री बसंती देवी बिष्ट ने बताया कि पौराणिक समय में सुहागनों के लिए 24 घंटे नथ धारण करना अनिवार्य था. लेकिन आधुनिकता के इस दौर में जहां नथ के डिजाइन में परिवर्तन आया है. वहीं महिलाओं ने भी इसे सिर्फ खास मौकों पर पहने जाने वाला आभूषण बना दिया है. आज के दौर में सुहागिन सिर्फ मांगलिक कार्य और तीज-त्योहारों के अवसर पर ही नथ पहनती हैं.  वहीं प्रदेश की पारंपरिक नथ के डिजाइन में आए बदलाव के बारे में सराफा व्यापारियों बताते हैं कि सोने के दाम बढ़ने की वजह से अब गढ़वाल और कुमाऊं की पारंपरिक नथ पहले के मुकाबले आकार में छोटी हो चुकी हैं. लेकिन अब भी इनकी काफी डिमांड है. यहां तक कि बॉलीवुड की कई फिल्मों में भी अभिनेत्रियां इस आभूषण को पहनी दिखाई दी हैं. 

जहां पहले गढ़वाल और कुमाऊं मंडल में 20-25 ग्राम तक कि नथे तैयार कराई जाती थी. वही अब लोग गढ़वाल में 3 से 15 ग्राम की नथे और कुमाऊं में 10- 20 ग्राम तक की नथ बनवा रहे हैं. कुल मिलाकर देखा जाए तो अब नथों का आकार छोटा हो चुका है. बता दें कि गढ़वाल मंडल की टिहरी की नथों का आकार चौड़ा होता और इसमें सोने की तार में खूबसूरत मोतियों और नगों का काम होता है. वहीं दूसरी तरफ कुमाऊं की नथ आकर में काफी बढ़ी होती है और इसमें मोतियों और नगों का काम भी कुछ अधिक किया जाता है. वहीं कुमाऊं की नथों का आकार में बढ़ा और वजन भी कुछ ज्यादा होता है. समय के साथ वहीं भी अब कम वजन के नथों की डिमांड बढ़ गई हैं.

 


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Last Updated : Dec 11, 2019, 9:20 AM IST
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