देहरादूनः राजधानी देहरादून में मीट की दुकानें (Meat Shops in Dehradun) आपको हर मोहल्ले और चौराहों पर आसानी से मिल जाएंगी. जाहिर है कि नॉनवेज खाने वालों की बड़ी संख्या ऐसी ही दुकानों से ताजा मीट लेने के लिए पहुंचती है. लेकिन क्या आप आश्वस्त हैं कि जो मीट आप खा रहे हैं, वो जहरीला या किसी बीमार पशु का तो नहीं है. यदि नहीं तो आप नॉनवेज खाकर अपने घर में बीमारी को दावत दे रहे हैं.
देहरादून नगर निगम में एक ही स्लॉटर हाउस का है रिकॉर्डः दरअसल, बाजारों में मटन या चिकन बेचने वालों के लिए एक खास नियम है. जिसके तहत स्लॉटर हाउस में इन पशु या मुर्गों के स्वास्थ्य की जांच की जाती है. उसके बाद ही इन्हें बाजारों तक पहुंचाया जाता है. लेकिन देहरादून में ऐसी कोई व्यवस्था फिलहाल नहीं है. आपको जानकर हैरानी होगी कि देहरादून नगर निगम में केवल एक स्लॉटर हाउस ही रिकॉर्ड में है. उसे भी कोर्ट के निर्देशों के क्रम में मानक पूरा न होने के चलते बंद कर दिया गया था.
ऐसे में सवाल खड़ा हो रहा है कि आखिरकार देहरादून शहर में सैकड़ों मीट की दुकानों में मटन और चिकन कहां से पहुंच रहा है? सूचना के अधिकार में आरटीआई एक्टिविस्ट विकेश नेगी (RTI activist Vikesh Negi) ने इन्हीं सवालों का जवाब जानने के लिए जब नगर निगम से जानकारी ली तो नगर निगम ने भी इस संदर्भ में हैरानी भरा जवाब दिया.
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देहरादून नगर निगम के पास कोई जवाब नहींः नगर निगम के पास न तो देहरादून में बिकने वाले मीट को लेकर कोई जानकारी थी. न ही मीट के बाजार में परोसे जाने से पहले किसी मेडिकल टेस्ट रिपोर्ट को किए जाने का पता था. इतना ही नहीं देहरादून शहर में कितनी मीट की दुकान हैं? इसकी भी कोई जानकारी नगर निगम के पास नहीं है. ऐसा नहीं कि बाजारों में बिकने वाले मीट को लेकर कोई नियम न हो. इसके लिए बाकायदा नियमावली बनाई गई है.
मीट की दुकानों और उसकी क्वालिटी के लिए क्या नियम हैं जानिए-
- नियमानुसार किसी भी पशु को नगर निगम के निरीक्षण अधिकारी की ओर से जांच में उपयुक्त पाए जाने के बाद ही स्लॉटर हाउस के लिए चिन्हित किया जाएगा.
- निरीक्षण के दौरान स्वस्थ पशुओं का ही चयन होगा. विकलांग या अधिक उम्र के साथ गर्भावस्था वाले पशु इसमें चयनित नहीं किए जाएंगे.
- संक्रमित या बीमार पशु को भी स्लॉटर हाउस में वध के लिए नहीं लाया जाएगा.
- स्लॉटर हाउस में आने वाले पशुओं का पूरा रिकॉर्ड तैयार किया जाएगा. पशु वधशाला के प्रभारी अधिकारी के समक्ष ही वध हो सकेंगे.
- स्लॉटर हाउस में साफ सफाई के बीच ही इस काम को पूरा किया जाएगा.
- महात्मा गांधी शहीद दिवस, महावीर जयंती, महाशिवरात्रि, बुद्ध पूर्णिमा, भद्र शुक्ल पंचमी, अनंत चतुर्दशी, जन्माष्टमी, महावीर जयंती और 2 अक्टूबर को मीट की दुकानें बंद रखने का भी नियम है.
दुकानों में कहां से पहुंच रहा मीट? सबसे खास बात ये है कि ऐसे स्लॉटर हाउस का नगर निगम में रजिस्ट्रेशन होता है, लेकिन जब देहरादून शहर में नगर निगम के रिकॉर्ड के अनुसार कोई स्लॉटर हाउस (Dehradun Slaughter House) है ही नहीं तो इतनी बड़ी मात्रा में मीट की दुकानों में मीट कहां से पहुंच रहा है? यह बड़ा सवाल बना हुआ है.
सेहत खराब कर सकता है मीटः जाहिर है कि ताजा मीट बेचने के नाम पर मीट की दुकानों में लोगों को जो परोसा जा रहा है, वह टेस्टेड नहीं है. जिससे इस मीट के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होने की भी आशंका बनी रहती है. इसका मतलब ये है कि जो मीट आप खा रहे हैं, वो किसी बीमार पशु का भी हो सकता है और यह आपके लिए चिंता की बात है.
देहरादून नगर निगम के चीफ मेडिकल ऑफिसर के पास भी नहीं जवाबः मामले को लेकर जब हमने देहरादून नगर निगम के चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ. अविनाश खन्ना से बात की, तो उन्होंने भी मामले में घुमा फिरा कर ही जवाब दिया. उन्होंने कहा कि फिलहाल कोर्ट के निर्देशों के बाद एकमात्र स्लॉटर हाउस बंद कर दिया गया है. लिहाजा, यहां कोई मेडिकल जांच जैसी प्रक्रिया को नहीं अपनाया जाता. मीट बेचे जाने के सवाल पर वो कहते हैं कि फिलहाल फ्रोजन मीट का चलन है और बाजार में वो उपलब्ध है.
बीमार पशु के मीट के बाजारों में उपलब्ध होने की स्थिति में लोगों की सेहत पर इसका क्या असर हो सकता है, इसको लेकर चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ. अविनाश खन्ना कहते हैं कि यदि ऐसा होता है तो लोगों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. इससे पशुओं में मौजूद बीमारी लोगों को भी बीमार कर सकती है.
देहरादून में 500 से ज्यादा मीट की दुकानेंः देहरादून शहर में 500 से भी ज्यादा मीट की दुकानें मौजूद हैं. इन दुकानों में ताजा मीट बेचे जाने की बात (Meat Quality in shops of Dehradun) कही जाती है. जाहिर है कि यह फ्रोजन मीट नहीं है. ऐसे में यह भी साफ है कि दून शहर में ही अवैध रूप से पशुओं का वध करके मीट की दुकानों पर मीट उपलब्ध हो पा रहा है.
ऐसे में सबसे बड़ी चिंता बीमार पशुओं को लेकर है, जो नॉनवेज के शौकीन लोगों को धीरे-धीरे बीमार कर सकती है. इससे भी गंभीर बात ये है कि नगर निगम (Dehradun Municipal Corporation) इन सभी स्थितियों को जानता है. इसके बावजूद इस गंभीर मामले पर भी कोई कदम नहीं उठाया जाता.
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